RE: RajSharma Stories आई लव यू
“माढ़े पाँच बजे मिलते हैं बस स्टॉप पर: पाँच बजकर पैंतीम मिनट पर वॉल्वो है दिल्ली के लिए।"
“ठीक है।" कमरे से बाहर निकला और नीचे देखा, तो माँ और पापा उठ चुके थे। माँ किचेन में थीं और पापा माँ से कह रहे थे, “समझाओ इसे...शादी तो करनी ही है। मुझे तो लगता है कि इसे कोई लड़की पसंद है..तो एक बार तुमही पूछ लेना,शायद तुम्हें बता दे क्या मामला
"गुड मार्निंग पापा!"
"अरे उठ गए तुम...चलो फ्रेश होकर आओ नीचे।"
"आ जाओ नहाकर...पकौड़े बना रही हूँ तुम्हारे लिए।"- मम्मी ने किचेन से बाहर आते हुए कहा।
"हाँ माँ, मैं बस आया।" इतना कहकर मैं फ्रेश होने चला गया। थोड़ी देर बाद बैग पैक करके नीचे पहुँचा, तो माँ ने एक बैग और तैयार कर रखा था।
"माँ, इसमें क्या है?"
"तेरा फेवरेट आम का अचार है...लड्डू हैं दो डिब्बे में,खा लेना।"
गर्मागर्म पकौड़े खाते-खाते मैं सामान भी सहेज रहा था। माँ, साथ बैठकर बालों में हाथ फेर रही थीं। घर से बाहर रहते-रहते कई साल हो गए थे, लेकिन माँ आज भी मेरे जाने पर उदास हो जाती थी।
"राज, सोचना ठंडे दिमाग से शादी के बारे में...सही उमर है और रिश्ते भी अच्छेआ रहे हैं: शादी करने में फायदा है।"-
माँ। माँ की इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। बम मैं चुपचाप कॉफी का सिप भरता रहा। भाई-बहन भी साथ में बैठे थे।
“भैय्या कब आओगे अब?"- भाई ने पूछा।
"आऊँगा यार, अगले महीने।" नाश्ता हो चुका था और पाँच से ज्यादा बज चुके थे। अब चलने का वक्त था। मैं उठा और हाथ धोकर पूजाघर के आगे नतमस्तक हुआ।
माँ और पापा के पैर छए। छोटे भाई ने दोनों बैग उठा लिए थे। माँ ने मुझे गले लगा लिया और कहा, “जल्दी आना।"
"तुम आओ, मैं गाड़ी निकालता हूँ।"- पापा ने कहा।
घर से बाहर निकलते हुए माँ मुझे समझा रही थीं। मैं भी ऐसे सिर हिला रहा था, जैसे सब समझ आ रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। मेरे दिमाग में शादी की बात घुस ही नहीं रही थी। दिल-दिमाग और शरीर के हर अंग में बस शीतल का ही खयाल था। घर मे लौटने पर मैं जरा भी उदास नहीं था, बल्कि मेरे चेहरे पर दिल्ली वापस आने, या यूँ कहें कि शीतल से मिलने की खुशी साफ झलक रही थी। पापा, गाड़ी निकाल चुके थे। भाई ने मेरा लगेज कार की बैंक सीट पर रख दिया। पीछे मुड़कर माँ को एक बार फिर गले लगाया। छोटे भाई-बहन को भी गले लगाकर में कार में बैठ गया।
जाती हुई कार को माँ तब तक देखती रहीं, जब तक कार गली से मुड़कर मेन रोड पर नहीं आ गई।
'मैं निकल चुकी है।'-डॉली का मैसेज आया था।
"मैं भी अभी निकला है...पापा हैं साथ में।'
सुबह का वक्त था। लोग मॉर्निंग वॉक कर रहे थे और सड़क बिलकुल खाली थी। पापा, ड्राइव करते हुए संभलकर जाने की हिदायत दे रहे थे। मैं जानता था कि बो फिर शादी की बात करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पा रहे थे। बस स्टॉप पहुँचने में मुश्किल से दस मिनट ही लगते थे।
पापा कुछ कहते, उससे पहले मैंने ही कह दिया, “पापा थोड़ा वक्त दीजिए...शादी मुझे करनी है, पर अभी नहीं।"
"देखो राज ...तुम्हें कोई पसंद है तो बेहिचक बता दो, बरना हम जहाँ कहें वहाँ शादी कर लो। बेटा तुम्हारे बाप हैं हम...तुम्हारा अच्छा ही चाहेंगे।"- पापा ने इतना कहा और बस स्टॉप के सामने ब्रेक लगा दिए।
“ओके पापा...दिल्ली पहुँचकर बात करगा आपसे।"- कार से उतरते हुए मैंने कहा।
पापा भी कार से उतरे और पीछे वाली सीट से बैग निकालते हुए बोले, “कौन-सी बॉल्बो जाएगी दिल्ली?"
“पापा बो है शायद, सामने...लिखा है उस पर।"
"ठीक है फिर...आराम से जाना...पहुँचकर फोन करना।"
"ओके पापा।"- पापा के पैर छते हुए मैंने कहा और बस की तरफ बढ़ चला। पापा, कार मोड़कर जा चुके थे। बस की तरफ बढ़ते हुए मैंने शीतल को कॉल किया। "गुड मॉर्निंग म्बीट हार्ट।"
"गुड मानिंग माई बेबी...निकले या नहीं?"
|