RE: RajSharma Stories आई लव यू
सिमरन, जो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी चंडीगढ़ में; उससे तो घर जाने तक का वादा किया था... लेकिन चंडीगढ़ में एक भी पल उसका खयाल मेरे दिमाग में नहीं आया। मच तो यह है कि मैं शीतल को होटल में छोड़कर सिमरन के घर खाने पर नहीं जाना चाहता था। मेरी खुशी अब सिर्फ शीतल से थी। उनको एक पल भी देखे बिना रहना अब मुश्किल हो रहा था मेरे लिए। अपने कमरे का इस्तेमाल सोने और कपड़े बदलने के लिए ही कर रहा था; बाकी मेरा पूरा वक्त उनके कमरे में ही बीत रहा था। चंडीगढ़ से दिल्ली लौटने के बाद सिमरन और चंडीगढ़ के सभी दोस्तों की न जाने कितनी बातें मुझे सुननी पड़ीं, लेकिन इन सब बातों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। ये बातें मुझे परेशान नहीं कर रहीं थीं, क्योंकि एक ऐसा दोस्त मुझे मिल गया था, जो मेरी जिंदगी बनाता जा रहा था।
बीती रात में आँखें बंद जरूर हो गई थीं, पर खयालों ने सोने कहाँ दिया था। एक सेकेंड के लिए भी हँसता-खिलखिलाता चेहरा आँखों के सामने से जा ही नहीं रहा था। शीतल के अतीत की कहानियाँ दिमाग में खुमारी की तरह छा गई थीं।
आज प्रोग्राम वाला दिन था और चंडीगढ़ में हमारा आखिरी दिन। आज मैं जल्दी उठ गया था। शीतल के कमरे की घंटी बजाने का खयाल दिल में आया था, लेकिन सोचा सो रही होंगी, एकदम से घंटी बजाना ठीक नहीं। इसलिए फोन कर दिया।
"हेलो शीतल,गुड मॉनिंग।"
"हम्म... गुड मार्निंग।"
“उठ जाइए भाई, नाश्ता करने चलना है।"
"यार राज, रातभर सो नहीं पाई हूँ; कोई-न-कोई आता ही रहा... कभी ड्राइवर, कभी कोई सामान देने।" __
“कोई नहीं, तैयार हो जाओ तुम जल्दी।"
शायद सुबह के साढ़े आठ बजे होंगे। शीतल का रेडी का मैसेज आ चुका था। मैसेज मिलते ही उनके कमरे की घंटी बजा दी। दरवाजा खोलते ही ऐसे लगा जैसे रेगिस्तान में किसी टीले के पीछे से सूरज ने निकलना शुरू किया हो। मेरी आँखों के सामने उनका दमकता चेहरा था। एक पल के लिए मैं उन्हें देखता ही रहा गया। लाल और काले रंग के उस फुल स्लीव वाले सूट में शीतल किसी एक्ट्रेस से कम नहीं लग रही थीं... ऊपर से उनके खुले बाल उनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहे थे। फम्ट फ्लोर से नाश्ता करने हम थर्ड फ्लोर जा रहे थे। एक-एक सीढ़ियाँ चढ़ते, मेरी आँखें चुपके से उनके पैरों को देखती जा रही थीं।
उनके पैर इतने खूबसूरत थे कि 'पाकीजा' फिल्म का डॉयलाग अचानक मेरे दिमाग में आ गया- 'आपके पैर देखे... बहुत सुंदर हैं... इन्हें जमीं पर मत उतारिएगा।"
शीतल का एक-एक कदम मेरे दिल की गहराइयों की तरफ बढ़ता जा रहा था। नाश्ते की टेबल पर एक साथ बैठना, उनके हाथों को उनके होठों तक जाते देखना एक मुकून-मा दे रहा था। नाश्ते के बाद प्रोग्राम के लिए आए लोगों के कमरे में में और शीतल बारी-बारी से जा रहे थे और उनका हालचाल पूछ रहे थे। सभी के कमरों में एक साथ जाने की कोई जरूरत नहीं थी वैसे... लेकिन हम दोनों एक पल भी एक-दूसरे के बिना बिताना नहीं चाहते थे।
शीतल के कमरे में बैठकर अब हम प्रोगराम की तैयारियों का अंतिम रूप दे रहे थे।
"तुम साड़ी पहन रही हो शाम को?" - मैंने पूछा।
"हाँ, तुम्हें कैसे पता?"
"बस, ऐसेही।"
"राज, शाम को मुझे अकेला मत छोड़िएगा; मैं यहाँ किसी को नहीं जानती हूँ।"
"अरे, क्यों अकेला छोड़ेंगे; मैं हर पल साथ रहूँगा, मैं...।" ये वादा करते समय शीतल के चेहरे के पीछे की खुशी का अंदाजा मैं लगा सकता था। उनके और मेरे बीच कोई रिश्ता नहीं था अब तक; लेकिन मेरा उनके साथ होना हम दोनों के अधूरेपन को पूरा कर रहा था।
दोपहर के खाने का बक्त हो गया था। प्रोग्राम में आए सभी लोगों के लिए होटल के एक हॉल में खाने का इंतजाम किया गया था। मैं और शीतल भी उसी हॉल में मौजूद थे। शीतल अभी भी काम में व्यस्त थीं और मैं साथ बैठा था। लोग खाना खाने का आग्रह कर रहे थे, लेकिन मैं तब तक खाना नहीं खा सकता था, जब तक शीतल प्री न हो जाएँ।
उनके प्री होने पर मैंने खाने के लिए प्लेट उठाई थी।
“आई लब मूंग दाल हलवा"- शीतल ने एक दिन पहले लंच का मेन्यू तय करते वक्त बताया था।
मैं खाना खत्म कर उठा और दो प्लेट में मूंग दाल हलवा लेकर शीतल के पास आया। “लीजिए, योर फेवरेट मूंग दाल हलवा।"
"अरे, तुम क्यूँ लाए हो, मैं ले आती।" "अरे, इदस ओके, लीजिए।"- मेरी आँखों में बड़े प्यार से देखा था उन्होंने और हलवे की प्लेट अपने पास रख ली।
अब इंतजार था तो उस शाम का, जिस पल मेरी आँखें उस खूबसूरत परी को देखने के लिए बेताब थीं।
शाम के चार बज चुके थे। हम दोनों अपने-अपने कमरे में थे और तैयार हो रहे थे। शीतल को देखने के लिए मैं इतना बेताब था, कि खुद को बीस बार आईने में देख चुका था। इतने में ही कमरे की घंटी बजी।
'टिंग-टोंग।'
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