RE: RajSharma Stories आई लव यू
चंडीगढ़ जाने से पहले, या यूँ कहें कि हमारी इस लव स्टोरी के शुरू होने से पहले तक शीतल कभी-कभार या शायद दिन में एक बार पाँचवें फ्लोर पर आती थीं। उनके बॉस का केबिन इसी फ्लोर पर था। अगर बॉस से भी कोई काम होता था, तो वह फोन पर ही निपटा लेती थीं... लेकिन अब उनको बहाना चाहिए होता था मेरे फ्लोर पर आने का। अगर बॉस ने कोई पेपर भी माँगा है, तो वो किसी से भिजवाने की बजाय खुद नीचे चली आती थीं। उनके किसी टीम मेट को भी अगर उनसे बात करनी होती थी, तो वो उसे ऊपर बुलाने की बजाय नीचे दौड़ आती थीं; यहाँ तक की टॉप फ्लोर की बजाय बो पाँचवें फ्लोर के वॉशरूम को इस्तेमाल करने लगी थीं।
और पाँचवें फ्लोर पर आते ही उनका मैसेज आता था- 'पलटिए।' पाँचवें फ्लोर के एंट्री गेट की तरफ मेरी पीठ जो होती थी। शीतल, जब अपने फ्लोर पर जाती थीं, तो भी उनका मैसेज होता था- “पलटिए जनाब, पीछे देखिए।"
मैं पलटकर तब तक उन्हें देखता रहता था, जब तक शीतल, लिफ्ट में एंट्री नहीं कर जाती थीं।
प्यार दिल में होता है, दिमाग में होता है। लेकिन शीतल मेरी आदत में शामिल हो गई थीं। प्यार में डूबने की हकीकत ये ही होती है कि कोई आपकी आदतों में इस कदर शामिल हो जाए कि उसका खयाल आपके दिल और दिमाग से दूर न हो। तभी तो घर से निकलने से पहले शीतल को मैसेज करना, कि वो ठीक से ऑफिस पहुँची या नहीं, ऑफिस आकर उन्हें ठीक से पहुँचने का मैसेज करना, उसके बाद उनके साथ चाय पीना, लंच के बाद मिलना और साथ घूमना; फिर शाम की चाय और छत पर घूम-घूमकर बातें करना और सबसे खूबसूरत बो पल... शाम को उन्हें टॉप फ्लोर से पाकिंग तक छोड़ने जाना।
शीतल जिस दिन छुट्टी पर होती थीं, तब मैं ये सब करता था। छत पर घूमता था, चाय पीता था,पाकिंग तक जाता था। बस अंतर इतना होता था कि उस दिन शीतल नहीं, उनकी यादें साथ होती थीं। पूरी रात बात करते ही गुजरती थी। मेरे कानों में पड़ने वाला आखिरी शब्द उनका होता था और सुबह की पहली किरण के साथ जो शब्द सुनाई देता था, बो भी शीतल का ही होता था।
प्यार में जी रहे इंसान के दिन के चौबीस नहीं अड़तालीस घंटे होते हैं। चौबीस बो, जो साथ बिताए और चौबीस उन पलों की यादों के। जब शीतल साथ होती थीं, तो समय हवाई जहाज की स्पीड से भागता था और जब शीतल साथ न होकर यादों और खयालों में होती थी, तो हर घंटा खिंचकर दो घंटे के बराबर लगता था। शीतल थीं, तो तेज धूप भी तन को ठंडक देती थी। वही थीं, जिनकी वजह से ऑफिस के रास्ते में लगने वाला जाम भी परेशान नहीं करता था। जाम में फंसकर भी लगता था कि कुछ पल में तो ऑफिस पहुँच ही जाएंगे और शीतल से मिलना होगा। शीतल की वजह से कैंटीन की बेकार- मी चाय भी टेस्ट देती थी। उनकी ही बजह से हवा सुहानी लगती थी और रात दीवानी लगती थी।
शीतल ने पूछ लिया था, "हम एक कैसे हो सकते हैं?" तब मैंने उनसे कहा था, "कुछ पल साथ बिताने से ही जिंदगानी बनती है कुछ तेरे कुछ मेरे शब्दों से ही कहानी बनती है। जब से तुम हो मुझमें शामिल, मुझमें अब तुम ही तुम हो सुबह-शाम और दिन के हर पल, हवा मुहानी लगती है। तेरे हाथों की खुशबू में रंग हिना का महका है गोरी-नाजुक हथेलियों में तस्वीर प्यार की बनती है। तारे, चंदा और चाँदनी, ये सब फीके लगते हैं तेरी बातें और यादों से रात दीवानी लगती है।" हम दोनों के दिल में बस प्यार था एक-दूसरे के लिए। हम दोनों हर पल साथ बिताना चाहते थे। हम दोनों एक-दूसरे का हो जाना चाहते थे। बात करते-करते सपनों का एक आलीशान महल बनाने लगते थे। उस महल का नाम रखने से लेकर, उसकी सजावट तक में इस्तेमाल होने वाली चीजों और उसके रंगों पर रात-रात भर बातें करते। __ और जब बात खत्म कर मोने का वक्त आता, तो बस एक बात मुंह से निकलती थी
"काश! ऐसा हो पाता कि आप हमेशा के लिए हमारे हो जाते।"
ये सुनते ही सपनों का वो बेहद खूबसूरत महल एक पल में धराशाई हो जाता था, हर उम्मीद काँच की तरह बिखर जाती थी। काँच को बिखरते तो देखा ही होगा... बिखरने के बाद संवारना मुश्किल होता है काँच को।।
बचपन में जब सब बच्चे पानी की बोतल साथ लेकर स्कूल जाते थे, तो मैं बोतल के साथ एक गिलास भी लेकर जाता था। मुझसे बोतल से पानी नहीं पिया जाता है। ऑफिस में भी डेस्क पर पानी की बोतल के साथ एक गिलास आज भी साथ रखता हूँ। __
“राज, जब आप चंडीगढ़ में हमारे कमरे में पहले दिन आए थे, तो याद है आपने गिलास से पानी पिया था?" - शीतल ने कहा था।
"हाँ, याद है।"- मैंने जवाब दिया था।
"आप और हम जब हमारे कमरे में बैठे होते थे, तो आप अक्सर उसी गिलास में पानी पीते थे और बो गिलास आपको वहीं रखा मिलता था।"- शीतल ने कहा था।
शीतल, पानी पीने की इस बात को क्यों कर रहीं थीं, मैं समझ नहीं पाया था।
“एक बात कहें राज?"- शीतल ने पूछा था।
"हाँ, कहिए न।"- मैंने कहा था।
"राज, जब आप हमारे कमरे में आते थे और जिस गिलास से पानी पीते थे न... उस गिलास में जो पानी रह जाता था, आपके जाने पर हम उस पानी को पीते थे।" - शीतल ने बताया।
'क्या।'- मैंने चौंकते हुए पूछा था।
"हाँ राज, हम आपके जूठे पानी को पीते थे और फिर उस गिलास को उतना ही भर देते थे, ताकि आप पता न कर सकें।"- शीतल ने बताया था। __
“और जब आपने हमारे कमरे में आकर कहा था न, कि ये गिलास कल से ऐसे ही रखा है, तो मैं एक पल के लिए डर गई थी; मुझे लगा था कि कहीं आप समझ न जाएं कि हमने गिलास को छेड़ा है।"- उन्होंने कहा था।
प्यार में एक-दूसरे के हाथ से खाना या एक-दूसरे का जूठा खाना, जो खुशी देता है, वो कोई बेशकीमती डिश भी नहीं दे सकती है।
एक-दूसरे का जूठा खाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती है, लेकिन प्यार में ये छोटी छोटी चीजें काफी मायने रखती हैं।
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