RE: RajSharma Stories आई लव यू
“हेलो राज...कहाँ हो यार; जान निकली जा रही है मेरी....मौसम भी खराब हो गया है, जल्दी आओ न यार।"
"आ गया है मेरी जान....ऑफिस के गेट पर ही हूँ।”- मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
“बैंक गॉड, अब जान में जान आई।" उन्होंने कहा।
“मैं आता है मिलने थोड़ी देर में।"- मैंने कहा।
"थोड़ी देर में नहीं राज; अपने डिपार्टमेंट में बैग रखकर सीधे मेरे पास आओ, साथ में कॉफी पिएँगे।" उन्होंने कहा।
"ओके बाबा, आताहूँ।"- मैंने इतना कहकर फोन रख दिया। जितना पागल मैं था शीतल से मिलने के लिए, इतना ही पागल वो थीं मुझे देखने के लिए। डिपार्टमेंट अभी खाली था। सारे लोग बारह बजे तक आते थे। अपनी सीट पर बैग रखकर में सीधे उनके पास पहुंचा, तो हल्की-हल्की बूंदा-बांदी होने लगी थी। गर्मी के मौसम में थोड़ी राहत थी आज।
"शीतल, मैं आपके डिपार्टमेंट के बाहर है।"- मैंने फोन पर कहा।
"अरे अंदर आओ न... अभी कोई नहीं आया है।"- उन्होंने कहा। शीतल की हाइट पाँच फीट पाँच इंच थी। यही वजह थी कि उन पर हर कपड़ा फबता था। वो अपने बाल खोलकर साड़ी पहनती थीं, तो किसी परी से कम नहीं लगती थीं। सूट उन पर बहुत खिलता था और जींस-टॉप में तो वो किसी कॉलेज गर्ल से कम नहीं लगती थीं। उनके डिपार्टमेंट का दरवाजा खोलकर अंदर पहुंचा, तो सबसे कोने में अपनी डेस्क पर शीतल बैठी थीं। काले रंग का प्रिंटेड कुर्ता और औरंज लैगिंग में वो बेहद खूबसूरत लग रही थीं। ऊपर से ऑरेंज और गोल्डन कलर का जयपुरी दुपट्टा उनकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहा था। जैसे ही मेरे पैर दो कदम बढ़े, शीतल ने दौड़कर मुझे अपने गले से लगा लिया। शीतल ने मुझे कस कर पकड़ लिया था। उनके होंठ बार-बार मेरा नामले रहे थे और उनकी कजरारी आँखों से आँसू टपकने लगे थे।
“अरे शीतल! तुम रो रहे हो।"- मैंने पूछा। __
“राज, फिर कभी हमें छोड़कर मत जाना..हम नहीं रह पाते हैं तुम्हारे बिना।" उन्होंने रोते हुए ही जवाब दिया। __
“इधर देखो.. मेरी आँखों में देखो।" ये कहकर मैंने अपने हाथों से शीतल के कंधों को पकड़कर खुद के सामने खड़ा किया। शीतल की आँखों में आँसू भरे हुए थे। उनकी पलकों पर डार्क काजल लगा हुआ था और उन पर उनके आँसू ठहर गए थे। शीतल के बहते हुए आँसुओं को अपने हाथों से पोंछा और उनके माथे पर अपने होंठों से स्पर्श किया। जैसे ही मेरे होंठों ने शीतल के माथे पर प्यार भरा चुंबन दिया, उनकी आँखें बंद हो गई। __
“शीतल, रोना बंद करो; बच्चे की तरह रो रहे हो तुम तो। ये आँसू यूँ ही निकलते रहेंगे तो मैं कभी तुमसे दूर नहीं जाऊँगा। तुम्हारे आँसू ज्यादा कीमती हैं मेरे लिए शीतल। अगर मेरा दर जाना तुमको इतना रुलाता है, तो कभी नहीं...कभी नहीं जाऊंगा में दर तुमसे, तुम्हारी कसम...।"- मैंने कहा।
इतना कहते ही शीतल ने एक बार फिर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। शीतल के चेहरे पर अब हल्की-सी मुस्कराहट थी। बाहर जोरदार बारिश होने लगी थी। गिरती बूंदों की आवाज, शीतल के डिपार्टमेंट के भीतर भी महसूस हो रही थी। मौसम अचानक से इतना ठंडा हो गया था कि ए.सी. में ठंड महसूस हो रही थी। लेकिन शीतल को बाँहों में भरते ही दोनों के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था। शीतल ने एक नजर उठाकर मेरे चेहरे की तरफ देखा, तो मैं होशोहवास खो बैठा। मैंने शीतल की कमर की तरफ अपना एक हाथ ले जाकर उन्हें अपनी तरफ खींच लिया। अब शीतल और मेरे बीच तनिक भी जगह नहीं थी। हम दोनों के बदन एक-दूसरे से चिपके हुए थे। शीतल और मैं एक-दूसरे की आँखों में खोते जा रहे थे। एक-दूसरे की आँखों में डूबते हुए ऐसा लग रहा था, मानो हम प्यार के समंदर में तैर रहे हों और इस प्यार के समंदर में तैरते हुए कब हम दोनों के होंठ एक-दूसरे से टकरा गए पता ही नहीं चला। उधर, बारिश की आवाज और तेज हो गई थी। इधर, हम दोनों की साँमें तेज हो गई थीं। शीतल और मैं एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूम रहे थे। शीतल का चेहरा लाल हो चुका था। बाहर का तापमान आज कम था, लेकिन डिपार्टमेंट का तापमान बढ़ चुका था। शीतल ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया था। अब वो मेरे पूरे चेहरे को चूमती जा रही थीं।
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