RE: RajSharma Stories आई लव यू
"काफी अँधेरा है शीतल...कोई नहीं है अब यहाँ...और मुझे नहीं है किसी की परवाह अब।"
इतना कहकर मैंने अपने दोनों हाथों से शीतल को कंधे के पास पकड़ा और अपनी तरफ मोड़ लिया। शीतल ने अब अपनी नजरें उठा ली थीं। मैं उनकी आँखों में और वो मेरी आँखों में देख रही थीं। तभी मैंने एक कदम आगे बढ़ाया और शीतल के माथे को दुलार से चूम लिया। माथे को चूमते ही शीतल की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गई और वो किसी मदहोश इंसान की तरह मेरे बाँहों में समा गईं।
शीतल के साथ बिताया हर पल मेरी जिंदगी का बेहद हमीन पल होता था। साथ बैठकर एक-दूसरे की उँगलियों से खेलना, मेरे कंधे पर सिर रखकर शीतल का खूब बातें करना, लंच और डिनर पर हर पहला कौर उन्हें अपने हाथ से खिलाना; सब खास होता था मेरे लिए। शीतल का इस खुशनुमा मौसम में मेरी बाँहों में समा जाना भी उन्हीं पलों में से था।
घर जाने का वक्त हो चुका था।
“शीतल, घर चलें?"
“दो मिनट यूँ ही खड़े रहिए न प्लीज।"- शीतल ने कहा।
"शीतल...चलो।"
"आई लव यू राज ....आई लव यू।" उन्होंने मेरी बाँहों से हटते हुए कहा।
"आई लब यू टू..." शीतल और मैं अपना-अपना बैग लेकर उनकी स्कूटी पर घर के लिए निकल्न चुके थे। आज भी स्कूटी में ही चला रहा था हमेशा की तरह। बारिश थम गई थी, लेकिन ठंडी हवाएं चल रही थीं। शीतल मेरे पीठ से चिपकी हुई थीं। उनकी आँखें बंद थीं। मैं बखूबी जानता था कि उनकी आँखों में और उनके दिमाग में सुबह का दृश्य ही चल रहा है।
"शीतल! शीतल!"
"हम्म...कहिए।"- उन्होंने पीठ से चिपके हुए ही जबाब दिया।
"सुनिए...आप थके होंगे न आज, तो मयूर बिहार ही ड्रॉप कर देंगे आपको; कनॉट प्लेस तक मत चलिएगा आज।" उन्होंने कहा।
"अरे नहीं, मैं कनॉट प्लेस चलूँगा साथ आपके।"- मैंने कहा।
"अरे, आप आराम कीजिएगा आज।'- उन्होंने फिर कहा।
"आप अभी दिन की खुमारी में हैं... ड्राइव कैसे कर पाएँगे? आपसे स्कूटी चलेगी नहीं।"- मैंने कहा।
“पता नहीं हम कैसे करेंगे इराइव आज।" उन्होंने धीमी आवाज में कहा।
"तभी तो कह रहा हूँ...मैं चलता हूँ कनॉट प्लेस तक और आप क्यूँ जिद कर रही हो? हर रोज तो आता ही हूँ कनॉट प्लेस तक मैं आपके साथ।”- मैंने कहा। __
"आप तो पागल हैं न... मयूर विहार में घर है, लेकिन हमें छोड़ने पहले कनॉट प्लेस तक जाते हैं, फिर लौटकर मयूर विहार आते हैं।" उन्होंने मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ, सच तो कहा है आपने ...पागल तो हूँ आपके लिए: कनॉट प्लेस तो क्या, कहीं तक भी चल सकता हूँ आपके साथ।"- मैंने जवाब दिया।
स्कूटी, मयूर बिहार से आगे बढ़ चुकी थी। शीतल फिर उसी स्थिति में आ गई थीं। अपने हाथों का घेरा बनाकर वो मेरी पीठ से चिपक गई थीं। मैं जान-बूझकर उन्हें छेड़ना नहीं चाहता था आज। ये सफर यूँ ही कनॉट प्लेस तक चलता रहा।
शीतल को छोड़कर मयूर विहार लौटते हुए भी दिमाग बहीं अटका हुआ था। मन में था कि शीतल के सामने खड़ा होकर कहूँ
"जानती हो, सबसे बुरा पल कब आता है? जब शाम को तुम मुझे छोड़कर जाती हो। रोभी नहीं पाता हूँ तब तो; क्योंकि तुमको मुस्कराहट से विदा करना होता है। तभी आना, जब तुमको बिदा न करना पड़े। तुम बिलकुल धुंघरू की तरह हो; पाम होती हो, तो एक खनक होती है मेरे दिल में और जब दूर होती हो, तो खामोश कर जाती हो। तुम हवा हो; जब बहती हो, तो दिल को सुकून देती हो। तुम सागर की लहरें हो... जब उठती हो, तो मन में उमंग भर देती हो। सच कहूँ तो मेरे लिए दुनिया की वो हर चीज़ हो तुम, जो जीने के लिए जरूरी होती है। मैं तुम्हारे कदमों के निशानों पर अपने पैर रखकर चलना चाहता हूँ। समंदर की रेत में बैठकर तुम्हारे साथ सूरज को निकलते और छिपते देखना चाहता हूँ।
मैं तुम्हारी बाँहों में रहना चाहता हूँ; बस तुम प्यार में मेरे माथे को चूम लेना...।"
हल्की बारिश शुरू हो गई थी, पर इतनी नहीं थीं कि पूरी तरह भिगो दे; इसलिए मैं मयूर बिहार मेट्रो स्टेशन से घर की तरफ पैदल ही जा रहा था। मेरे घर की दूरी मेट्रो स्टेशन से दस मिनट की ही थी। तसल्ली करने के लिए शीतल का मैसेज आ चुका था।
"लगभग पहुँच चुका है...घर के करीब ही हूँ।"- मैंने मैसेज का रिप्लाई किया।
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