RE: RajSharma Stories आई लव यू
चौदह अप्रैल मालविका का जन्म दिन था। शीतल के कहने पर मैंने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। शीतल के लिए ये दिन बहुत खास था। मैंने आज का पूरा दिन शीतल और मालविका के साथ प्लान किया था। ठीक साढ़े छह बजे मैं कार से शीतल और मालविका को लेने निकल गया। रास्ते से मालविका के लिए ढेर सारी चॉकलेट,गुलाब के फूल कार में रख लिए थे। सात बजे मैं शीतल के फ्लैट के नीचे पहुँचा तो शीतल और मालविका पहले से ही मेरा इंतजार कर रहे थे। शीतल ने गहरे नीले रंग का सूट पहना था, तो मालविका गुलाबी रंग के फ्रॉक में लिटिल एंजल लग रही थी। ऊपर से उसके बालों में गुलाबी रंग का हेयर बैंड भी लगा था।
मैं फटाफट कार से उतरा और गुलाब के फूल लेकर मालविका के आगे घुटनों पर बैठ गया।
“हैप्पी बर्थ-डे स्वीट हार्ट।"- मैंने मालविका की तरफ फूल्न बढ़ाते हुए कहा।
"थॅंक यू अंकल।"
"तुम बहुत प्यारे लग रहे हो मालविका।”- मैंने उसके गालों को छेड़ते हुए कहा और उसे गोद में उठा लिया।
शीतल साथ में खड़ी होकर मुस्करा रही थीं। मालविका भी मेरी गोद में आराम से आ गई थी। ये मेरी और उसकी पहली मुलाकात थी। "आप राज अंकल हो न?"- उसने पूछा।
"हाँ बेटा, पर आपको किसने बताया?"
“मम्मा ने बताया कि आप मुझे और मम्मा को बहुत प्यार करते हो।"
"हाँ, वो तो है बेटा।"- मैंने शीतल की तरफ देखते हुए कहा। मालविका मेरी गोद में ही थी। हम लोग कार की तरफ बढ़े। बैठने से पहले शीतल ने मालविका को अपनी गोद में ले लिया।
"तो पहले मंदिर चलना है न शीतल!"
"हाँ, पहले मंदिर और फिर वहीं से मालविका के स्कूल चलना है; इसकी क्लास के बच्चों को चॉकलेट और नोटबुक देनी है।"
"ओके, चॉकलेट्स मैं लेकर आया हूँ।"
"अरे, तुम क्यों लेकर आए, मैं ले लेती न।"
"शीतल...मालविका के लिए मैं लेकर आऊँ या आप लें, एक ही बात है।"
शीतल इस बात पर मुस्करा दी। कुछ ही देर में हम लोग पास में ही मंदिर पहुंच गए। पूजा की थाली मालविका के हाथ में थी। मैं, मालविका और शीतल, तीनों भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के सामने खड़े थे। मैं और शीतल बराबर में खड़े थे और मालविका बिलकुल हमारे आगे खड़ी थी। शीतल, आँखें बंद कर भगवान से मालविका के लिए प्रार्थना कर रही थीं। मने शीतल का हाथ पकड़ा, तो अचानक उनकी आँखें खुल गई। सबसे पहले उनकी नजर मालविका पर गई, कि कहीं मालविका ने तो मुझे हाथ पकड़ते हुए नहीं देखा। मालविका सामने देख रही थी, तब शीतल ने मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखों में मासूमियत थी, जिसके ऊपर भाबुकता का पानी चढ़ा हुआ था। मैंने आँखों के इशारे से शीतल को तसल्ली देने की कोशिश की। पूजा के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आ रहे थे। मालविका हम दोनों के बीच में चल रही थी और उसने अपने एक हाथ से मेरी उँगली और एक हाथ से शीतल को पकड़ रखा था...ठीक उस तरह जैसे एक बच्चा अपने मम्मी-पापा की उँगली पकड़कर चल रहा था। मैं बस यही सोच रहा था कि मालविका यूँ ही हमेशा मेरी और शीतल की उँगली पकड़कर चलती रहे। बीच-बीच में शीतल मेरी तरफ देखती और फिर नजर हटा लेतीं। शायद वो भी बहीं सोच रही थीं, जो मैं।
थोड़ी देर में हम मालविका के स्कूल पहुंच गए। मालविका की क्लास टीचर के साथ हम उसकी क्लास में पहुंचे, तो सभी बच्चों ने एक आवाज में मालविका को बर्थ-डे विश किया। क्लास में पहुँचते ही मालविका उन बच्चों के बीच पहुँच गई। कई छोटी बच्चियों ने मालविका को हग भी किया। बच्चों के बीच में मालविका बहुत खुश थी। उसकी खुशी देखकर मैं और शीतल भी बहुत खुश थे। मालविका ने क्लास के सभी बच्चों को एक-एक कर अपने हाथ से चॉकलेट और नोटबुक दी। सबसे बाद में मैंने अपनी जेब से एक बड़ी सी चॉकलेट निकालकर मालविका को दी, तो वो बहुत खुश हुई।
अब मालबिका को चिड़ियाघर दिखाना था। हम लोग वहाँ के लिए निकल पड़े। आज मालविका बहुत खुश थी, कार की प्रट सीट पर शीतल की गोद में बैठकर वो खूब खिलखिला रही थी, मुझसे बातें कर रही थी। मेरी और मालविका की टयूनिंग देख शीतल बहुत खुश थीं। इसकी एक वजह ये थी कि अगर मैं और शीतल शादी करते हैं, तो उस शादी के लिए मालविका का राजी होना बहुत जरूरी था और मालविका मुझसे घुल-मिल जाएगी, तो शीतल को उसे सब सच बताने में आसानी होगी।
अब हम लोग चिड़ियाघर में थे। घुसते ही रंग-बिरंगे पक्षियों, उछलकूद करते बंदरों, लूंगरों, दौड़ते-भागते हिरणों, मुस्त-मुस्त बड़े गैंडों को देखकर मालविका ताली बजाकर खिलखिला रही थी। कभी वो शीतल का हाथ पकड़ लेती, तो कभी बो राज अंकल कहकर मेरा हाथ पकड़ लेती। जानवरों को देखकर उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे... ये हिरण भाग क्यों रहे हैं....ये गैंडा है...मुस्त क्यों है? मैं बड़े प्यार से उसके सवालों के जवाब दे रहा था।
शीतल अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ किए हुए साथ-साथ चल रही थीं। कभी-कभी मालविका हम दोनों का हाथ छोड़कर जानवरों के बाड़े के करीब पहुंच जाती।
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