RE: RajSharma Stories आई लव यू
शीतल और मैं एक-दूसरे में पूरी तरह डूब चुके थे, पर मजबूरी ये थी कि ऑफिस भी जाना था। मैंने शीतल को संभलने का मौका दिया, तो शीतल आँख बंद कर सीट पर ही लेट गई। कार के अंदर बस हम दोनों की तेज साँसों की आवाज थी। कुछ देर में हम दोनों मौन होकर ऑफिस में दाखिल हो गए।
जब इंसान प्यार में होता है, तो उसे हर पल अपने हमदम का ही बयाल रहता है। दिल चाहता है कि बस एक-दूसरे की आँखों में आँखें डालकर बैठे रहें, एक-दूसरे से बातें करते रहें। ऐसा ही हाल इस बक्त मेरा था। ऑफिस में अपनी सीट पर बैठ तो गया था, लेकिन कोई काम करने का मन ही नहीं कर रहा था। जो कुछ कार में हमारे बीच हुआ, उसका खुमार अभी तक था, तो दूसरी तरफ शाम के बारे में सोचकर मन में अनगिनत तरह की उमंगें थीं। इंतजार उस पल का था, जब मैं और शीतल, खूबसूरत शाम को एनज्वॉय करने निकल पड़ेंगे।
घड़ी की सुई की तरफ देखते-देखते मैं थक चुका था। बक्त किसी बैलगाड़ी की तरह आगे बढ़ रहा था। ऑफिस में बैठना मुश्किल हो रहा था। बेकरारी की इंतहा शायद इसी को कहते हैं। शीतल अभी तक अपने होंठों पर मेरी गर्माहट महसूस कर रही थीं। यही वजह थी कि दिन में मेरे कई बार कहने के बाद भी बो मिलने नहीं आई। हर बार उन्होंने ये ही कहा, “राज शाम बाकी है अभी।"
शीतल जब ये बात कहतीं, तो मेरी बेकरारी और बढ़ जा रही थी। मैं बार-बार भगवान से बस यही प्रार्थना कर रहा था कि जल्दी से पाँच बजे और हम बाहर निकलें।
आखिरकार पाँच बज गए। शीतल का फोन तुरंत आ गया। "हम्म..तो क्या प्लान है जनाब का?"
"शीतल, पागल हो गया हूँ आज पाँच बजे का इंतजार करते-करते...अब चलो जल्दी।" मैंने कहा।
"अच्छा बाबा चलते हैं...आप फ्री हो गए?"- शीतल ने हँसते हुए पूछा।
"हाँ, मैं तो सुबह से फ्री है...चलिए अब
"ठीक है...मैंने बैग पैक कर लिया है, मिलिए रिसेप्शन पर।"
'ओके।
मैं अपना बैग लेकर रिसेप्शन पर पहुँच गया था, थोड़ी ही देर में शीतल भी पहुंच गई। हम दोनों कार की तरफ बढ़ते जा रहे थे। शीतल बहुत खुश नजर आ रही थीं। उनके चेहरे पर मुस्कान थी।
"क्या हुआ, बड़े चहक रहे हैं आप!"- मैंने पूछा और शीतल जोर से मुस्करा पड़ी।
"नहीं तो...ऐसी तो कोई बात नहीं है, हम तो नॉर्मल हैं..."
"अच्छा...चेहरा तो देखिए अपना; कितना गुलाबी हो गया है।"
"अच्छा...ये जो आपकी आँखें इतनी चमक रही हैं न राज मियाँ... हमारे चेहरे पर उसका रिफलेक्शन दिख रहा है।"
"ओके...तो ये असली बात।" । कार में बैठते हुए शीतल ने कहा था
"जानते हो...तुम जब हमारी आँखों में देखते हो न, तो हमारे चेहरे की चमक खुद-ब खुद बढ़ जाती है; जब तुम मुझे छूते हो न, तो हमारे शरीर में करंट दौड़ जाता है और उस करंट की झनझनाहट कई घंटों तक मेरी नसों में रहती है। तुम मेरे दिल-दिमाग में ही नहीं रहते हो, तुम मेरे खून में बसते हो और मेरी नसों में दौड़ते हो। आज सुबह से हम हर पल इस वक्त का इंतजार कर रहे थे। जितने बेकरार तुम थे दिन में मिलने के लिए, उतनी ही बेकरार मैं भी थी... पर मैं कुछ मिनट मिलकर खुद की भावनाओं को जाहिर नहीं करना चाहती थी। यही वजह है कि मैं दिनभर अपने दिल को इस खूबसूरत शाम के लिए थाम कर रखा। अक्सर में अपने दिल की बात तुमसे कम ही कह पाती है...आप हमारे कहे बिना आँखों से मेरे दिल की बात जान लेते हो; पर आज जो मेरी आँखों में है और जो मेरे दिल में है, वो मेरी जुबां पर भी होगा।"
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