RE: RajSharma Stories आई लव यू
"लेडीज एंड जेंटलमेंन! इस भूतिया रेस्तरां में आप सभी मेहमानों का स्वागत है। बड़ी बुशी की बात है कि इतने डरावने माहौल में भी आप सभी के चेहरे पर खुशी है। इस नए रेस्तराँ की ओपनिंग के मौके पर आप सभी हमारी खुशी में शामिल हुए, इसके लिए धन्यवाद: अब आप सभी इस खास रेस्तरां में भूतों और चुडैलों के साथ लजीज खाने का आनंद लीजिए।"
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा था। मैं और शीतल अपनी टेबल पर बैठ गए। चुडैल जैसी बेटर, मेरे लिए कोल्ड कॉफी और शीतल की कोक भी ले आई थी।
"ओ हलो! तुम लोग क्या बस कॉफी और कोक से ही काम चलाओगे?"- सागर ने कहा।
"नहीं यारले लेंगे कुछ और।"- मैंने कहा।
"ले लेंगे क्या...ऑर्डर करो।"- सागर ने एक बेटर को बुलाते हुए कहा।
"ओके डियर।"- मैंने कहा।। सागर, बाकी मेहमानों का हाल लेने चला गया। मैंने और शीतल ने अपने लिए मखमली कोफ्ता, दम आलू लखनवी, पनीर टकाटक, स्टफ नान, दही और पट-कर्ड सलाद ऑर्डर कर दिया था। पूरा माहौल खुशनुमा था, हर तरफ रंग-बिरंगी रोशनी थी, धुआँ भी था। हल्की रोशनी में शीतल सुनहरे सूट में और दमक रही थीं। मैं और शीतल एक-दूसरे के सामने बैठे थे। हम दोनों की आँखें एक-दूसरे की आँखों से बात कर रही थीं। मेरे पैर शीतल के पैरों के साथ खेल रहे थे। कुछ ही देर में खाना हमारी टेबल पर मज चुका था। हमेशा की तरह आज भी पहली बाइट मैंने शीतल को ही खिलाई थी। जितना खूबसूरत रेस्तराँ था, खाना उससे भी ज्यादा स्वादिस्ट था। हम दोनों उस लजीज खाने का आनंद ले रहे थे। शीतल ज्यादा बात नहीं कर रही थीं। जब शीतल के दिल में कुछ चल रहा होता था, तो वो अक्सर शांत हो जाती थीं; बस उनके दिल में क्या चल रहा है, उसका भाव उनके चेहरे पर दिखता था। उनका चेहरा साफ बता रहा था कि वो आज बहुत खुश हैं। उनकी आँखों में चमक थी और उस चमक पर हल्की-सी नमी थी। मैं एक-एक बाइट शीतल को खिलाता जा रहा था और वो बस मेरी आँखों में आँखें गड़ाए बैठी थीं।
डिनर हो चुका था। मैं और शीतल अपनी टेबल से खड़े होकर सागर के पास गए और उसे मिठाई का बॉक्स देकर एक बार फिर बधाई दी। अब हमारे चलने का वक्त था। मागर से इजाजत लेकर मैं और शीतल घर के लिए निकल पड़े थे। शीतल अभी भी शांत थीं। कार में फिर उन्हीं के पसंद के गाने बज रहे थे। शीतल की आँखें बंद थीं और उन्होंने कोहनी के पास से मेरा हाथ पकड़ा हुआ था। गाड़ी कनॉट प्लेस के रास्ते पर थी और जो गाना चल रहा था, वो था “दो पल रुका ख्वाबों का कारवां और फिर चल दिए तुम कहाँ हम कहाँ..."
जैसे-जैसे ये गाना खत्म हो रहा था, वैसे-वैसे शीतल की आँखों से आँसू बहने लगे थे। मैंने उनकी तरफ देखा, तो मैं डर गया कि क्या हुआ।
"शीतल क्या हुआ?'- मन पूछा।
"कुछ नहीं राज...तुम गाड़ी चलाओ।'' - शीतल ने इशारे से बताया।
"अरे, तो फिर रो क्यों रहे हो?"- मैंने गाड़ी साइड लगाते हुए पूछा। ___
“कुछ नहीं राज; ये गाना बहुत प्यारा है...बस सुनते हुए आँखों मे आँसू निकल आए।"- शीतल ने आँसू पोंछते हुए कहा।
“क्या शीतल...मैं डर जाता हूँ जब तुम रोती हो; मैं साथ हूँ न, तो फिर क्यों रोना।" मैंने कहा।
"राज, मैं डर जाती हूँ कभी-कभी, कि अगर आप भी मेरी जिंदगी में न रहे, तो मैं क्या करुंगी? आपके घरवाले हमेशा शादी की बात करते हैं; आज न कल आपकी शादी कहीं हो ही जाएगी, तब मैं कितनी अकेली हो जाऊँगी... तब तो शायद मैं आपको फोन भी नहीं कर पाऊंगी।"
"अरे बाबा, राज सिर्फ तुम्हारा है...सिर्फ तुम्हारा; मैं कहीं नहीं जा रहा है।"- मैंने शीतल को समझाते हुए कहा।
“जानती हूँ राज, ये सब आप मुझे समझाने के लिए बोल रहे हो..हकीकत तो ये है कि आपकी शादी होते ही मैं अकेली पड़ जाऊँगी। पर कोई बात नहीं, आपकी यादों के महारे जिंदगी काट लूँगी अपनी। राज एक बात बोलूँ आपमे...इतना प्यार मत करो मुझसे मुश्किल होगी आपको भी। आप मुझे इतना प्यार करते हैं और उस प्यार के बदले मैं आपको कुछ नहीं दे पाऊँगी... काश! मैं छह साल छोटी होती।"- शीतल ने कहा। __
"शीतल, इधर आओ...आँसू पोंछिए अब; मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ... मैं अपनी जिंदगी आपके साथ बिताऊँगा शीतल।"- मैंने कहा।
“राज, ये हो नहीं पाएगा...कोई फायदा नहीं है ये सोचने का।"- शीतल ने कहा।
"शीतल, राज तुम्हारा होकर रहेगा और अब बिलकुल चुप हो जाओ; आओ मीठा पान खाते हैं।"- मैंने कहा।
शीतल और मैं पान खाने के लिए कार से उतर गए थे। हम लोग शीतल के घर के करीब ही थे। मैंने शीतल को तो समझा दिया था, लेकिन उनकी बातों से आज मैं भी डर गया था। मैं शीतल का हो पाऊँगा और शीतल मेरी हो पाएँगी? इन बातों ने मुझे अंदर तक हिला दिया था। मैं बहुत घबराया हुआ था। दिमाग कुछ सोचना नहीं चाहता था। शीतल को माथे पर प्यार भरा चुंबन देकर बाहों में लिया और अपने घर की तरफ बढ़ गया। रास्ते भर शीतल की बातें दिमाग में घूमती रहीं। शीतल की हालत देखकर मैं उन्हें ये भी नहीं बता पाया कि शाम को पापा का फोन आया था और उन्होंने शादी की बात फिर छेड़ दी। दो दिन बाद पापा और उनके साथ कुछ लड़की वाले आने वाले हैं मुझसे मिलने। मैंने पापा से शादी के लिए मना किया, लेकिन उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि बहुत हो चुका तुम्हारा ड्रामा हमलोग आएंगे तो चुपचाप रहना। एक तरफ शीतल की परेशानी और दूसरी तरफ पापा ने एक बड़ी टेंशन दे दी थी।
बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं रातभर नींद का इंतजार करता रहा, पर कोशिश नाकाम ही रही। इधर-उधर करवट बदलते-बदलते सुबह के पाँच बज चुके थे।
बाहर अँधेरा छैट चुका था। लेटे-लेटे में काफी थक चुका था। अब और देर तक लेटे रहने की क्षमता मेरे शरीर में नहीं थी। उठकर हाथ-मुँह धोया और बाहर बालकनी में आकर टहलने लगा। कुछ ही देर में न्यूजपेपर वाले भैय्या ने आवाज लगाकर अखबार ऊपर फेंक दिया था। जिस अखबार के इंतजार में में हर सुबह पागल रहता था, आज उसे पढ़ने में भी बेरुखी थी। देश-दुनिया का हाल जानने में आज मुझे कोई दिलचस्पी ही नहीं हो रही थी।
बालकनी से नीचे नजर की, तो डॉली मॉर्निंग वॉक पर निकली थीं।
"डॉली! डॉली!"- मैंने आवाज दी।
"ओह! हाय राज, गुडमॉनिंग।"
'मार्निग वॉक।'
"हाँ...आओ न नीचे, चूमते हैं।"
"ओके..बेट; आता हूँ।" डॉली के साथ पार्क का राउंड लगाकर और फिर भुवन भैय्या के यहाँ चाय पीकर; शायद सिर का दर्द थोड़ा कम हो जाए, ये सोचकर मैंने नीचे जाना बेहतर समझा। मैं और डॉली पार्क में साथ-साथ घूमने चल दिए।
"तो, कैसी नींद आई?'- डॉली ने पूछा।
"आई ही नहीं यार।"
'क्यूँ?'
“ऐसे ही यार... कभी-कभी होता है ऐसे भी।"- मैंने टालते हुए जवाब दिया।
"देखो राज, जब कोई बात होती है, तब ही ऐसा होता है; सच बताओ क्या प्राब्लम है...शीतल ठीक हैं न?
“अरे कोई प्राब्लम नहीं है और शीतल बिलकुल ठीक हैं।"
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