RE: RajSharma Stories आई लव यू
"बेटा, हमको तो इतना बता दो कि शादी खुद करनी है तुम्हें, या हमारी मर्जी से करोगे?"
“मम्मी ये कैसा सवाल है? शादी तो आप लोगों की मर्जी से ही होगी, लेकिन लड़की कौन होगी ये मैं बाद में बता दूंगा; फिलहाल ये शादी-ब्याह की बातों को बंद कर दीजिए।"
"क्या? इसका मतलब तुमने लड़की पसंद कर रखी है;"- मम्मी ने गुस्से से कहा।
"मम्मी आप नाराज क्यों हो रही हैं? मुझे अभी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मुझे थोड़ी देर अकेले रह लेने दो।"
"देखो राज, तुम भटक रहे हो...बेटा, हमारे यहाँ ये सब नहीं चलेगा।"
“अभी तो आप कह रही थीं कि कोई लड़की हो तो बता दो, फिर गुस्सा क्यों दिखा रही
“राज, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। तुम्हारे पापा कभी राजी नहीं होंगे...तुम देख लो तुम्हें क्या करना है।"
“मम्मी मैं बहुत पहले डिसाइड कर चुका हूँ कि क्या करना है; बस थोड़ा वक्त चाहिए।"
"तो जब फिर तुम सब कुछ डिसाइड कर ही चुके हो, तो करो अपने मन की और खूब बक्त लो, जितना चाहिए।" __
“मम्मी प्लीज, मैं बहुत टेंशन में हूँ अभी...सच में मुझे थोड़ा टाइम दीजिए, सब ठीक हो जाएगा... प्लीज।"
“ठीक है राज, तुम सोच लो"- मम्मी ने इतना कहकर फोन काट दिया। फोन रखकर मैं भी बालकनी में ही बैठ गया। ऑफिस का टाइम हो गया था, इसलिए शीतल का फोन भी लगातार आ रहा था। ऑफिस जाने का मन नहीं था आज।
"हाँ शीतल...गुडमॉनिंग।"
"कहाँ बिजी हो राज, कब से ट्राई कर रही हूँ।"
"घर पर बात कर रहा था।"
“क्या हुआ, बताओ न?"- शीतल ने हैरानी से पूछा।
"कुछ नहीं, वही सब शादी वाला ड्रामा... बहुत टेंशन में हूँ यार, कुछ समझ में नहीं आ रहा है शीतल।"
“राज, क्या बोला घर पर...क्या बात हुई बताओ न प्लीज यार...कोई टेंशन वाली बात तो नहीं है?"
"नहीं शीतल, तुम टेंशन मत लो...मिलूंगा तो बताऊँगा कि क्या बात हुई है।" “ठीक है मैं लेने आती हूँ आपको...तुम तैयार हो जाओ ऑफिस के लिए।" "नहीं, शीतल, मैं ऑफिस नहीं आ रहा हूँ..मन नहीं है आने का, सर को मैसेज कर दिया
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"राज, ऑफिस तो आओ न; में क्या करूँगी ऑफिस में फिर तुम्हारे बिना?"
"शीतलइ मेरा सच में मन नहीं है आने का और अब मैं नहीं आने का मैसेज कर चुका हूँ; तुम जाओ ऑफिस, हम शाम को मिलते हैं न।"
"नहीं, मैं भी नहीं जाऊँगी ऑफिस फिर ...मैं तुम्हारे रूम पर आ रही हूँ सीधे।"
“शीतल...बाबू ऑफिस जाओ तुम...बेवजह क्यों छटी ले रही हो?"- मैंने समझाते हुए कहा।
"नहीं राज मैं आ रही हूँ तुम्हारे पास बस।"
"ओके आओ फिर...मैं फ्रेश हो जाता हूँ तब तक।"- इतना कहकर मैंने फोन रख दिया।
मैं जान-बूझकर किसी का दिल दुखाना नहीं चाहता था... न तो मम्मी-पापा का और न ही शीतल का। लेकिन पापा और मम्मी से जिस लहजे में आज मैंने बात की, वह गलत था। किसी को भी अपने मम्मी-पापा से इस तरीके से बात करने का हक नहीं है। लेकिन मैं करता भी क्या? मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था। फिलहाल मुझे शादी की बातों पर रोक लगानी थी...उसके लिए मुझे ये बताना जरूरी था कि मैं किसी लड़की को पसंद करता हूँ।
शीतल कमरे पर आने वाली थीं। नहाने से पहले कमरे को दुरुस्त किया, बिस्तर पर फैले कपड़े और चादर को सहेजा और बेतरतीब कमरे को कमरे की तरह बना दिया। कुछ खाने पीने की चीजें भुवन भैय्या की दुकान से मँगा ली थीं। शीतल का मनपंसद ब्रेड बटर भी मँगाकर रख लिया था।
मैं नहाकर तैयार था। कुछ ही देर में कमरे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो शीतल सामने थीं। पलक झपकते ही शीतल मेरे गले से लिपट गई। अपनी बाँहों का घेरा बनाकर उन्होंने मुझे कसकर पकड़ लिया और जोर-जोर से रोने लगीं।
"आई लव यू राज...आई लव यू...बहुत प्यार करते हैं हम तुमसे...नहीं जी पाएंगे तुम्हारे बिना।"- शीतल रोते-रोते कह रही थीं।
“शीतल,अरे! रो क्यों रही हो, अभी कुछ हुआ थोड़ी है...चुप हो जाओ।"- मैंने समझाते हुए कहा। *
"राज, क्या होगा तुम्हारे बिना मेरा? मैं सच में नहीं जी पाऊँगी यार...मालविका के बाद एक आप ही हमारे जीने की उम्मीद हैं।"
"हाँ, तो मैं कहाँ कहीं जा रहा हूँ मेरी जान...मैं तुम्हारा ही हूँ और हमेशा रहूँगा।"- मैंने शीतल को खुद से हटाते हुए कहा।
मैंने शीतल को कुर्सी पर बिठाया। शीतल अभी भी रो रही थीं। मैं उनके सामने अपने घुटनों पर बैठ गया और उनका हाथ अपने हाथ में लेकर हिम्मत बंधाई।। __
“रोने से थोड़ी न काम चलेगा शीतल: हमें इस परिस्थिति से बाहर आना है, हम दोनों को कमजोर नहीं होना है...हिम्मत रखनी होगी न बाबू।"
शीतल ने आँसू पोछते हुए अपना सिर हिला दिया।
"अच्छा, नाश्ता किया है तुमने?''
“मैं तो तुमसे पूछने वाली थी कि तुमने नाश्ता किया कि नहीं।"
"मैंने नहीं किया है अभी, पर तुम्हारे लिए ब्रेड बटर मँगाकर रखा है...भुवन भैय्या को कॉफी भेजने के लिए फोन कर दिया है, आती होगी।"
"मैं कुछ लाई हूँ तुम्हारे लिए।"- शीतल ने अपना बैग उठाते हुए कहा।
"पॉवभाजी...'
"हम्म...लो।"- शीतल ने प्लेट में निकालते हुए कहा। मैं और शीतल, पॉवभाजी और ग्रेड बटर का नाश्ता कर रहे थे। कॉफी भी आ गई थी। हमेशा की तरफ पहली बाइट आज भी शीतल को ही खिला दी और हमेशा की तरफ उनकी आँख से आँसू निकल आए थे।
"तो राज, क्या बात हुई घर?"
“मैंने घर पर मना कर दिया कल आने के लिए।"
"पर कैसे? क्या कहा तुमने...?"
“मैंने कहा कि मैं तीन दिन के लिए जयपुर जा रहा हूँ, आप मत आइए। पापा और मम्मी नाराज भी हुए इस बात पर, तो कह दिया कि मुझे एक लड़की पसंद है, सही वक्त आने पर बता दूंगा आप सबको; अभी प्लीज मुझे अकेला छोड़ दीजिए।"
"राज, तुमने मॉम-डैड से ऐसे बात की..."
"तो क्या करता शीतल? बो लोग मेरी शादी की रट लगाए हुए हैं...अगर नहीं बताता तो कल को फिर एक रिश्ता भेज देते। मैं कब तक मना करता रहता बेवजह। एक-न-एक दिन तो बताना ही था सब-कुछ: आज ही बता दिया।"
“फिर क्या कहा मॉम-डैड ने?"
“डैड ने कह दिया, तुम जानो, हमसे कोई मतलब मत रखना और मम्मी को फोन देकर चले गए। फिर मम्मी भी बही सब कहने लगी, तो मैंने थोड़े गुस्से में कह दिया कि प्लीज मुझे माफ कर दो...अभी नहीं करनी शादी-बादी; जब करनी होगी, बता दूंगा आपको।"
“राज, तुमने मॉम-डैड से इतना सब कह दिया...तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था; तुम्हें एक बार बात करके मॉरी बोलना चाहिए उन्हें।"
"नहीं शीतल, अभी नहीं...कुछ दिन बाद; अभी वो सब भी बहुत टेंशन में होंगे।"
"लेकिन राज, मेरी बजह से तुम मॉम-डैड से कितना कुछ कह गए न..."
"नहीं शीतल, तुम्हारी वजह से क्यों...ऐसा क्यों सोच रही हो? तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।"
नाश्ता खत्म हो चुका था। मैं शीतल को समझा रहा था कि सब ठीक होगा; पर कैसे सब ठीक होगा, इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं था। लेकिन मैं शीतल के सामने परेशानी जाहिर करके उन्हें और परेशान नहीं करना चाहता था। हम दोनों बालकनी में रखे लकड़ी के सोफे पर आकर बैठ गए थे। गर्मी में भी इस जगह धूप नहीं आती थी। सामने पार्क था, तो यहाँ से हरा-भरा नजारा दिखता था।
"इस संडे ऋषिकेश चलना है?"
“ऋषिकेश? पर क्यों?"
"तुमको मिलवाना है मॉम-डैड से।"
"राज, अभी तो तुमने कहा कि बक्त चाहिए सोचने के लिए।"
“शीतल, मैंने सोच लिया है कि शादी तुमसे ही करनी है और अब मैं देर नहीं करना चाहता हूँ; जितना देर करेंगे, उतनी ही बातें बढ़ेगी।"
"लेकिन राज, फिर सोच लो..मेरी शादी हो चुकी है और तलाक भी। मेरी एक पाँच साल की बेटी भी है. तुम जो करने जा रहे हो, वो सही है क्या?"
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