RE: RajSharma Stories आई लव यू
कैब, इंदिरा गांधी नेशनल एयरपोर्ट पहुंच चुकी थी। डेढ़ घंटे में फलाह भी मुंबई पहुँच चुकी थी। मुंबई पहुंचने तक मैंने अपनी बातों से शीतल का मूड ठीक कर दिया था।
.
"छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट के बाहर हमें लेने के लिए कैब खड़ी थी। हम दोनों कैब में बैठ चुके थे। तभी ड्राइवर ने कंफर्म किया, “सर, होटल ताज लैंड्स एंड चलना है न?"
मैंने जवाब दिया- "हाँ, वहीं जाना है।" ___
"ताज लैंड्स एंड होटल?" शीतल ने चौंकते हुए मेरी ओर देखा। "हम वहाँ क्यों जाएंगे राज? तुम तो बोल रहे थे ओशीबारा जाना है हमको पहले।
"आप शांत रहिए मोहतरमा...पहली बार मुंबई आई हैं न आप...और मुंबई घूमना भी है; वो भी मेरे साथ घूमना है, तो थोड़ा पेशेंस तो रखना पड़ेगा।"- मैंने मुस्कराते हुए कहा।
“राज, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
"...तो आप मत समझिए; अब आपको कुछ समझने की जरूरत नहीं है; आप बम महसूस कीजिए।"
कुछ ही देर में गाड़ी, ताज होटल के पास रुकी। हम दोनों एंट्री करके होटल के रूम नंबर 840 में पहुंच चुके थे। मैंने लगेज रखकर रूम में रखे सोफे पर मुस्ताने के लिए लेट गया।
वहीं शीतल का खुशी के मारे कोई ठिकाना नहीं था। शीतल तो दौड़कर कमरे की खिड़की के पास रुकीं। शीतल की नजर जैसे ही बाहर के नजारे पर पड़ी, बो एकदम खामोश हो गई। जहाँ तक नजर जा रही थी, समुद्र की लहरें थीं। बाहर समुद्र की लहरें उफान पर थीं, तो अंदर शीतल के मन में अजीब-सी खुशी का समुदर हिचकोले ले रहा था। मौसम भी आज मेहरबान था। आसमान में घटा छाई हुई थी और शीतल उस दृश्य में पूरी तरह खो चुकी थीं।
तभी मैंने पीछे से जाकर शीतल को पकड़ लिया। “क्या हो रहा है?"- मैंने कहा। "क्या राज, डरा दिया तुमने...देखिए बाहर कितना अच्छा मौसम हो रहा है।"- शीतल ने इशारा करते हुए कहा।
"हाँ, मौसम तो वाकई बहुत प्यारा है शीतल... इस गर्मी में मुंबई का ये मौसम लगता है हमारे लिए तोहफा है।"
"हाँ, तो तोहफा कुबूल कर लीजिए न...प्लीज राज बाहर चलिए न! कमरे से समुद्र इतना खूबसूरत लग रहा है, तो बाहर जाकर...."
शीतल की बात काटते हुए मैंने कहा, “क्या हो गया है तुम्हें शीतल; ये बाहर जाने का वक्त नहीं है। हमारे पास चार-से पाँच घंटे हैं, शाम को शादी में चलना है, भूख भी लगी है बहुत तेज... सुबह जल्दी उठे हैं, थोड़ा आराम कर लेते हैं।"
मेरी इस बात पर शीतल ने मुंह बना लिया।
"शीतल, अभी कल का दिन भी बाकी है। ज्योति की विदा होने के बाद वापस यहीं आना है हमें; कल जहाँ कहोगी घूमने चलेंगे।"- मैंने शीतल की ओर देखते हुए कहा।
हम दोनों की बातचीत जारी थी कि अचानक झमाझम बारिश शुरू हो गई। शीतल खामोश रहीं, लेकिन उन्होंने कुछ इस अंदाज में मेरी तरफ देखा, जैसे बाहर चलने की गुजारिश कर रही हों।
झमाझम बारिश, समुद्र की लहरें और शीतल का मन... सारी चीजों ने मुझे बाहर जाने के लिए मजबूर कर दिया।
"तुम मुझे जिद्दी कहती हो, लेकिन हकीकत ये है कि तुम बहुत जिद्दी हो; जो चाहती हो करा लेती हो। देखो, अपनी जिद मनवाने के लिए बाहर बारिश भी करा दी... अब इस मौसम में मैं तुम्हें बाहर लेकर नहीं गया तो फिर मैं मुजरिम कहलाऊँगा; चलो सामान रखो, बाहर चलते हैं अब।" __
“लेकिन राज: तुमने कुछ खाया भी तो नहीं है; मैं रिसेप्शन पर बोल देती हूँ कुछ खाने के लिए" __
“शीतल इतनी फिक्र मत किया करो मेरी; बारिश खत्म हो जाएगी, बाहर जाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा फिर। अब बाहर ही बड़ा पाव और रोस्टेड भुट्टा खाया जाएगा और इजाजत मिली तो थोड़ा-सा तुम्हें भी...'' मैंने हँसते हुए कहा।
मेरी इस बात पर शीतल शरमा-सी गई।
हम दोनों बारिश की फुहारों में बाहर निकल पड़े थे। सड़क पर ऐसे लग रहा था जैसे मुंबई भी हमारा साथ देने के लिए साथ चल रही हो।
बारिश तेज होती जा रही थी। इस बारिश में हम दोनों हाथों में हाथ डाले, पैदल ही जुहू चौपाटी तक पहुंच गए थे।
समुद्र के पास जाकर हम दोनों खड़े हो गए।
लहरें बार-बार आती, पाँवों को छकर, दुलराकर फिर लौट जातीं। समंदर कभी शांत होता, तो कभी गरजता। रोशनी की कतार के बीच शंख और सीप के सामान, बड़ापाब, पावभाजी, झालमुरी, आइसक्रीम, कैंडी और कॉफी के स्टॉल सजे थे। लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी।
हम दोनों चुपचाप, अलग-थलग, भीड़ से धीरे-धीरे एक कदम दूर होते जा रहे थे। शीतल, मेरे पाँवों के निशानों के ऊपर एहतियात से अपने पाँव रखती जा रही थी। शीतल की शरारतें जारी थीं। कभी मेरे ऊपर पानी की बूंदें फेंक देना, तो कभी सीटी मार देना... कभी 'बचाओ राज' कहके मुझे डरा देना। लुका झिपी करते-करते हम दोनों कई किलोमीटर तक आ गए थे। शीतल पीछे-पीछे तब तक चलती रहीं, जब तक उनके इस बचकाने खेल से तंग आकर मैंने उन्हें खींचकर अपनी बाँहों के घेरे में न ले लिया। कमर को घरे मेरी बाहों में शीतल कैद हो गई थीं। हम बहुत देर तक समुद्र के किनारे-किनारे रेत पर चलते आ गए थे। रोशनी पीछे छूट गई थी। ऐसा लग रहा था इन संसार में केवल हम दोनों ही बचे हैं। समुद्र की गरजती लहरें और जमीन-आसमान के एक होने का डर, शीतल को मेरे और करीब ला देता था।
भीड़ से दूर हम दोनों अकेले दो जिस्म एक जान हो चुके थे। शीतल और मैंने एक-दूसरे को कसकर बाँहों में भर रखा था। बारिश लगातार जारी थी, आसमान में बिजली कड़क रही थी। कुछ देर पहले तक जो हमारे शरीर बारिश में भीगने से कैंपकपाने लगे थे, वो अब गर्म हो चुके थे। शीतल की साँसे बढ़ गई थीं... उनकी धड़कनों की धमक मैं अपने सीने पर महसूस कर रहा था। शीतल ने मेरी कमर के आस-पास अपने हाथों से घेरा बनाया हुआ था और मेरे हाथ धीरे-धीरे उनकी कमर से ऊपर बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे मेरे हाथ उनके सीने की
तरफ बढ़ रहे थे, शीतल काँपती जा रही थीं। मैंने अपने एक हाथ से उनके चेहरे को बड़े नाजुक अंदाज में ऊपर उठाया, तो शीतल ने आँखें बंद करके ही अपना चेहरा ऊपर कर लिया। शीतल अच्छी तरह जानती थीं कि मैं उनके होंठों को अपने होंठों से मिलाने के लिए बेताब हूँ, इसलिए शीतल ने अपने चिपके हुए होंठों को अलग कर लिया था। शीतल के चेहरे पर बारिश की बूंदें ठहरी हुई थीं। शीतल के चेहरे पर ठहरी इन बूंदों को अपने होंठों से चखने के बाद मैंने अपने होंठों को उनके होंठों पर रख दिया। होंठ से होंठ जैसेही टकराए, तो आसमान में बिजली कड़क उठी और बिजली की इस कड़क के साथ शीतल ने मुझे और कम कर पकड़ लिया। मैं और शीतल पागलों की तरह एक-दूसरे को प्यार करते जा रहे थे। मौसम में जितनी ठंडक थी, हमारे होंठों के भीतर उतनी ही गर्माहट थी। हम दोनों हर फिक्र को छोड़कर एक-दूसरे में खोते जा रहे थे। कोई भी किसी को छोड़ना नहीं चाह रहा था। मेरे चुंबन से शीतल का कोई अंग अछूता नहीं रहा। उनकी आँखों, गर्दन और सीने पर मैंने अपने चुंबन के निशान छोड़ दिए थे। मैंने शीतल को तब तक नहीं छोड़ा, जब तक थककर शीतल ने अपना पूरा शरीर मेरी बाहों के सहारे नहीं छोड़ दिया।
शीतल को सँभालते हुए मैंने उन्हें खुद से अलग किया। हम दोनों बहीं समंदर किनारे रेत पर बैठ गए। शीतल की आँखें बंद थीं और सिर मेरे कंधे पर रखा था।
हम दोनों शांत थे। शीतल ने बस इतना ही कहा- "तुम्हारे साथ आज पूरी जिंदगी जी ली मैंने।" कुछ ही देर में मैं और शीतल वापस जुहू पहुँचे और कैब लेकर होटल आ गए। इस बीच नमित और शिवांग का भी फोन आ चुका था। ज्योति भी शीतल को फोनकर पूछ चुकी थी कि हम कब तक पहुंचेंगे।
"शीतल, सात बज चुके हैं और हमें साढ़े आठ तक निकलना है। हम लोगों को तैयार होना चाहिए।"
'हम्म।- शीतल इतना कहकर तैयार होने वॉशरूम में चली गई।
मुंबई के ओशीबारा स्थित एश्वर्या फार्म हाउस, दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हर तरफ सुनहरी रोशनी बिखरी हुई थी, गेट पर दरबान खड़े थे; कुछ खूबसूरत युवतियाँ हाथ में पूजा के थाल लिए मेहमानों का स्वागत कर रही थीं। फूलों से सजा भव्य गेट और उसके आगे खड़े दो हाथी, शादी की भव्यता को दर्शा रहे थे। तकरीबन नौ बजे मैं और शीतल यहाँ पहुँचे।
स्वागत गैलरी से होते हए जैसे ही मैं और शीतल वेडिंग, वेन्यू में दाखिल हए, तो कैमरे के फ्लैश हम दोनों के ऊपर चमकने लगे। मैंने रॉयल ब्लू कलर का सूट पहना था, जिस पर गोल्डन कलर का पॉकेट पाउच लगा था लेकिन शीतल आज कयामत ढा रही थीं। शीतलने व्हाइट बेस की बेहद खूबसूरत साड़ी पहनी थी, जिस पर करीब छह इंच चौड़ा ब्लू मिल्क का बॉर्डर और बीच-बीच में मोर पंख बने थे। ऊपर से शीतल के खुले बाल, हाथ में चमकती हुई घड़ी, कानों में बड़े-बड़े इयररिंग्स और महकती खुशबू, शीतल की खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी। मेरे सूट का रंग और शीतल की साड़ी के बॉर्डर का रंग एक जैसा ही था। हम दोनों थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि नमित और शिवांग हमको रिसीव करने पहुँच गए।
"बेलकम राज.....वेलकम शीतल!''- दोनों ने हैंडशेक करते हुए कहा।
"थैक्स डियर; कब पहुँचे तुम लोग?"
"आधा घंटा पहले..हमारा होटल यहीं पास में है।"- नमित ने कहा।
“राज-शीतल, तुम दोनों बहुत प्यारे लग रहे हो...जस्ट लाइक अ हैप्पी मैरिड कपल।"- शिवांग ने कहा।
"ओह! रियली? थॅंक्स अलॉट शिवांग।"- शीतल ने कहा।
"अब दोनों जल्दी शादी कर लो।"- नमित ने कहा।
नमित की इस बात पर शीतल ने कोई रिप्लाई नहीं किया, तब मुझे ही कहना पड़ा "करेंगे यार...पहले ये ज्योति की शादी हो जाए: वैसे कहाँ हैं अभी मैडम?"
"वो अभी पार्लर गई है तैयार होने...आती होगी।”- शिवांग ने कहा।
|