RE: RajSharma Stories आई लव यू
"चलो फिर ज्योति के मॉम-डैड से मिलते हैं।" - मैंने कहा।
“या दैदस ग्रेट आइडिया।"- नमित ने कहा।
मैं, शीतल, नमित और शिवांग ज्योति के मॉम-डैड से मिले और उसके बाद गराउंड में लगे सोफे पर बैठ गए। नमित ने खाने की कुछ चीजें यहीं मंगा ली थीं। मुंबई का फेमस बड़ा पॉव, पॉवभाजी, आइक्रीम, चॉकलेट रसगुल्ला, दही पापड़ी, पनीर टिक्का और फदम से सोफे के सामने रखी मेज भर गई थी और नई-पुरानी बातों का दौर शुरू हो गया था। नमित और शिवांग, शीतल को हमारे स्कूल की शरारतों के बारे में बता रहे थे। शीतल भी उनकी बातों का खूब आनंद ले रही थीं। जब भी मेरी शरारत की बात होती, तो शीतल मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखतीं। मैं न हँस रहा था और न मुस्करा रहा था। मेरे दिमाग में एक अजीब-सा कोलाहल था। वो कोलाहल शायद आज के आखिरी दिन का था। कल जब हम दिल्ली पहुँचेंगे, तो मेरे और शीतल के रास्ते अलग-अलग हो जाएँगे, ये बात बार-बार मुझे झकझोर रही थी।
काफी देर तक बात करने के बाद पूरे ग्राउंड की रोशनी धीमी हो गई और बीचोंबीच बना स्टेज जगमगा उठा। फॉक्स लाइट, स्टेज के बराबर में बनी सीढ़ियों पर पड़ी, तो गुलाबी लहँगा पहने ज्योति, हाथ में जयमाला लिए एक-एक कदम बढ़ रही थी, तो दूसरी तरफ सीढ़ियों पर शेरवानी पहने आर्यन चल रहा था। दुल्हन के लिबास में ज्योति बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे ऐसे देखकर एक क्षण में बचपन से अब तक की मारी यादें आँखों के सामने तैर गई। हम लोग सोफे से खड़े होकर स्टेज के करीब पहुँच गए। मैं थोड़ा इमोशनल हो गया था। शीतल यह बात समझ गई थीं, तो उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखकर समझाने की कोशिश की। शीतल के कहने पर हम लोग ज्योति के साथ-साथ चलकर स्टेज पर पहुँचे। आर्यन और ज्योति की जोड़ी जम रही थी। लग रहा था मानो दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। सामने खड़े होकर हम लोग ज्योति-आर्यन की जयमाला देख रहे थे। सबसे पहले ज्योति ने आर्यन के गले में माला डाली; उसके बाद आर्यन ने ज्योति के गले में। इसके बाद आसमान में आतिशबाजी होने लगी। शीतल ने एक बार ज्योति की तरफ देखा और फिर मेरी आँखों में।
"राज, बुश हो न तुम?"
"हाँ, बहुत।" - मैंने शीतल का हाथ थामते हुए कहा।
“देखिए, ज्योति कितनी प्यारी लग रही है।"
"बहुत प्यारी लग रही है।"
“मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रहे हो।"
“मैं भी जानता है कि इस वक्त तुम क्या सोच रही हो।" इतना कहकर हम दोनों एक-दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराए और ज्योति-आर्यन को बधाई देने उनके पास पहुंच गए। देर से आने के लिए ज्योति, स्टेज पर ही मुझे डाँटने लगी। मैंने उसे बड़े प्यार से गले लगाया और आर्यन को भी बधाई दी। शीतल और ज्योति ऐसे मिले, जैसे बचपन के दो बिछड़े दोस्त।।
“मैं बहुत खुश हूँ शीतल आपको यहाँ देखकर।"- ज्योति ने कहा।।
"आना ही था ज्योति तुम्हारी शादी में...तुमने इतना बोला जो था।"- शीतल ने कहा।
"अब जल्दी से तुम दोनों शादी कर लो। राज की फैमिली से आप मिल ही चुकी हो...मैं भी पक्का आऊँगी तुम्हारी शादी में।"- ज्योति ने कहा ।
मैं एक फोन का बहाना कर अलग आ गया था। शीतल और ज्योति बात कर रही थीं। नमित समझ गया था कि मैं जान-बूझकर अलग आया हूँ।
"हे राज! क्या हुआ?"
"कुछ भी तो नहीं यार...एक फोन कॉल था।"
"देख राज, हमारी दोस्ती चार दिन की नहीं है: तुझे कब से जानता हूँ, बता क्या हुआ...ऐसे क्यों आ गया वहाँ से तू?"
“यार नमित, घर में कोई मेरी और शीतल की शादी के लिए राजी नहीं है... मम्मी को शीतल ने अपने बारे में सब बता दिया।"
"सब सच मतलब? यही कि उनकी शादी हो चुकी है और उनकी बेटी है?"
"हाँ यार...मैंने नहीं बताया था घर पर; लेकिन जिस दिन शीतल ऋषिकेश आई थीं, उन्होंने ही मम्मी को बता दिया। मम्मी ने अभी तीन दिन पहले पापा को बता दिया... पापा का फोन आया और पता नहीं क्या-क्या कहा उन्होंने मुझसे।"
“अरे यार, फिर कैसे होगा सब?”
“यही तो मुझे समझ नहीं आ रहा है नमित; उधर पूरा घर मुझसे नाराज है, पापा बात नहीं कर रहे हैं मुझसे... उन्होंने साफ कह दिया कि शीतल हमारे घर की बहू नहीं बन सकती है।"
"तुमने शीतल को बताया ये सब?"
"बताया क्या... ऋषिकेश से लौटने के बाद मेरे और शीतल के बीच कुछ ठीक नहीं रहा; अगले दिन से शीतल ने मुझसे बात तक करना बंद कर दिया। वो खुद को मुझसे दर रखने की कोशिश कर रही हैं। वो कहती हैं कि मैं तुम्हें अपने परिवार से अलग होते हुए नहीं देख सकती हूँ; मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हारा परिवार बिबर जाए। ज्योति की शादी में हम आखिरी बार साथ आए हैं; आज के बाद हम अलग-अलग हो जाएंगे।"
"तूने बताया क्यों नहीं ये सब?"
“यार नमित, क्या बताता? बहुत बुरी हालत हो गई थी मेरी...कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ।"
"कोई बात नहीं मेरे दोस्त, सब ठीक होगा, तू परेशान मत हो...आज आखिरी बात साथ आए हो, तो एन ज्वॉय करो... चल ..."- नमित ने गले मिलते हुए कहा।
शीतल, ज्योति, आर्यन और शिवांग अभी भी स्टेज पर थे। हम लोग पहुँचे, तो सबने साथ में खूब सारे फोटो खिंचवाए। खूब खाना-पीना हुआ, नाच-गाना हुआ, खूब हँसी मजाक हुआ... एक-एक रस्म का मर्म भी जाना, ज्योति को विदा करते वक्त खूब आँसू भी बहे।
ये आँसू, जुदाई के आँसू थे...थोड़े ज्योति के लिए, तो थोड़े शीतल के लिए। ज्योति अपने ससुराल जा चुकी थी। जो फार्म हाउस रात में जगमगा रहा था, बो अब किसी बिखरे हुए आँगन की तरह लग रहा था। जिस मंडप में ज्योति ने आर्यन के संग सात फेरे लिए थे, अब उसे हटाया जा रहा था। कहीं सोफे पड़े थे, तो कहीं उखड़ा हुआ टेंट। कितना अजीब होता है न ये सब।।
पहले हम कितनी खूबसूरती से शादी का मंडप सजाते हैं। कोई कसर नहीं रहने देते हैं... और शादी होते ही सब उजड़ जाता है। यही इस दुनिया की रीति है। शादी पूरी हो चुकी थी और इसी के साथ पूरा हो गया था मेरा और शीतल का साथ वाला आखिरी दिन । अब बस हमें दिल्ली लौट आना था।
नमित और शिवांग की फ्लाइट आठ बजे की थी, तो दोनों एयरपोर्ट के लिए निकल गए। मुझे और शीतल को होटल से ग्यारह बजे निकलना था। हमारी फ्लाइट एक बजे की थी। सब जा रहे थे। मैं और शीतल भी कैब से वापस होटल पहुंच गए। पूरे रास्ते मैं और शीतल चुप ही रहे। शीतल अपना सिर, कार की सीट पर टिकाए आँख बंद किए ही बैठी रहीं और मैं शीशे से बाहर ही झाँकता रहा। दिल-दिमाग में शीतल के साथ बिताया एक-एक पल किसी फिल्म की तरह चल रहा था। डर भी लग रहा था कि जिसकी आवाज सुने बिना मेरा दिन नहीं होता, उसके बिना रहना कितना मुश्किल होगा। मैंने रात में शीतल से यह बात भी की, कि क्या सब-कुछ पहले जैसा नहीं हो सकता है?
शीतल ने आँसुओं के साथ बस इतना ही कहा, “आज हमारा आखिरी दिन है। इसके बाद तुम मुझसे कभी बात करने की कोशिश भी नहीं करोगे।" ।
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