RE: RajSharma Stories आई लव यू
ऑफिस से में सीधे कॉफी हाउस पहुंच गया था, ठीक सात बजे। डॉली को वहाँ एक नए रूप में देखकर मैं तो हैरान रह गया। जो डॉली हमेशा शादस, जींस, स्कर्ट, शर्ट और वेस्टर्न ड्रेस पहनती थी, उसने आज बहुत प्यारा ब्लू कलर का सूट पहना हुआ था। खुले बाल, आँखों में काजल, एक हाथ में थोड़ी-सी चूड़ियाँ पहने बो बेहद खूबसूरत लग रही थी।
"अरे वाह ! डॉली ये तुम हो?"- मैंने उसके पास जाकर कहा।
'यस।'
"यू आर लुकिंग सो ब्यूटीफुल डॉली।"
“थॅंक्स राज।"
“सो बॉट्स द स्पेशल?"
"माई बर्थ-डे।”
"ओह बाओ! हैप्पी बर्थ-डे डॉली।"- यह कहते हुए मैंने उसे हग किया।
“थॅंक यू सो मच।"
"तो बर्थ-डे पार्टी में कौन-कौन आएँगे?"
"कोई नहीं। मैंने बताया था न कि मेरे ज्यादा दोस्त नहीं हैं: तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो, तो तुमको बुला लिया बस।"
“नी वे थैक्स।"
हम दोनों एक टेबल पर एक-दूसरे के सामने बैठ गए थे। कई सारी चीजें ऑर्डर भी कर दी थीं। खूब बातें हो रही थीं।
"राज,घर कबजा रहे हो?"
"बस, कल सुबह निकलूंगा।"
"कार से जा रहे हो?" 'हाँ।'
"और वापस कब आओगे?"
"कल रात में ही।"
"ओके । राज, तुम खुश हो न इस शादी से?"
"हाँ डॉली, मैं खुश है; मेरी फैमिली की खुशी ही अब मेरी खुशी है।"
"सही है...जाओ। काव्या अच्छी लड़की है उससे बात करना तुम अलग से... जिंदगी बितानी है तुम्हें उसके साथ।" ।
'हम्म।
"जानते हो राज...जिंदगी में हम कितनी चीजें खो देते हैं, क्योंकि कुछ भी हमारे हाथ में नहीं होता है; सब भगवान जी के ही हाथ में है न, वो जैसा चाहते हैं करते हैं।"
"आई नो डॉली।"
“जिसे हम चाहते हैं और वो हमें न मिले, तो दु:ख होता है; पर कई बार मजबूरी में कुछ और करना पड़ता है। शीतल अगर तुम्हारी जिंदगी में आता तो अच्छा होता, पर कोई नहीं... काव्या के साथ भी खुश रहोगे तुम। उसे खूब प्यार करना, उसे कभी किसी चीज की कमी मत होने देना।"
"हाँ डॉली ।"
"और हाँ, उसे कभी शीतल के बारे में मत बताना, उसे बुरा लगेगा।"
'काव्या बहुत लकी है कि उसे तुम्हारे जैसा लड़का मिल रहा है। जैसे तुमने शीतल को प्यार किया, वैसे ही काव्या को प्यार करना; काव्या के आने के बाद किसी का खयाल भी अपने दिल में मत लाना।"
"हाँ डॉली, मैं जानता हूँ ये सब; मैं बहुत प्यार करूँगा उसे और बहुत ध्यान रखूगा उसका।"
'गुड ।'
"पर ये बताओ, मुझे फोन पर क्यों नहीं बताया कि तुम्हारा बर्थ-डे है? गिफ्ट भी नहीं ला पाया तुम्हारे लिए।"
"राज, तुम आ गए यहाँ, मेरे लिए इससे बड़ा गिफ्ट कोई नहीं है। कल जो अपनी शादी की गुड न्यूज लेकर तुम दिल्ली आओगे, बो मेरा बर्थ-डे गिफ्ट होगा।"
"बो तो होगा ही, पर अभी ये पेन मेरी तरफ से।" ।
"राज, ये मैं नहीं ले सकती हूँ; ये तो तुम्हारा लकी पेन है न और ये बहुत कीमती है।"
"डॉली, दोस्त को दिए गए गिफ्ट की कीमत नहीं देखी जाती और रही बात लकी पेन की, तो मेरे पास रहे या तुम्हारे पास, एक ही बात है।"
डॉली ने पेन, बतौर गिफ्ट रख लिया था। पार्टी भी खत्म हो चुकी थी। मैं और वो वापस अपने-अपने घर आ गए।
"हेलो मम्मी, मैं निकल गया हूँ।” सुबह के चार बजे थे और मैं ऋषिकेश के लिए निकला था। मम्मी को फोन करके बता दिया था। रास्ते भर मैं यही सोचता रहा, कि अगर मेरी आँखों और मेरे चेहरे ने मेरे दिल की सच्चाई काव्या को बता दी, तो क्या होगा।
मैं काव्या के सामने पुरानी यादों की परछाई को लेकर नहीं जाना चाहता था। मैं डर रहा था, फिर भी शीतल मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थीं। कई बार तो काव्या के बारे में सोचते हुए, मुंह से शीतल का नाम निकल जाता था। एक अजीब-सी हालत हो गई थी मेरी। मैं वो काम करने जा रहा था, जो मेरा दिल नहीं चाहता था... जिसकी मुझे कोई खुशी नहीं थी।
न मन में उमंग थी और न शादी का उत्साह । ऐसा लग रहा था, मानो मैं फार्मेलिटी के लिए ये शादी कर रहा हूँ।
नौ बजे के करीब मैं ऋषिकेश पहुंच गया। घर में घुसते ही किसी त्योहार जैसा माहौल लग रहा था। मम्मी-पापा और भाई-बहन, सब नए-नए कपड़े पहनकर तैयार थे। सबके चेहरे खुशी से खिले हुए थे। गर्मागर्म नाश्ता भी मेरे लिए तैयार था।
घर पहुँचकर सबसे पहले मैं ऊपर अपने कमरे में गया और प्रेश होकर नीचे आया।
"अरे राज ये क्या, तुम लोअर-टीशर्ट में आ गए! भई तैयार हो जाओ, चलना है देहरादून।"
"पापा, पहले नाश्ता कर लें, तब चेंज करूंगा।"
"हाँ, पहले राज को नाश्ता करने दो।
"- माँ।
"हाँ, तुम नाश्ता करो, फिर अच्छे से तैयार होना।"- पापा। माँ ने साथ बैठकर दही-पूड़ी का नाश्ता परोसा। नाश्ते के बाद मैं, पापा-मम्मी, भाई और बहन, देहरादन के लिए निकले। पापा ने कार में बैठते ही काव्या के पापा को फोन कर दिया था। रास्ते भर पापा का वही पुराना राग चलता रहा और मैं कार ड्राइव करता रहा। एक घंटे के बाद हम लोग काव्या के घर पहुँच गए। काव्या के घर में घुसते ही एक बड़ा-सा ड्रॉइंग रूम था, जिसमें बड़े-बड़े चार सोफे पड़े थे। ड्रॉइंग रूम की दीवारों पर बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स भी लगी थीं। सभी पेंटिंग्स पर नीचे की तरफ एक कोने में एक चाभी बनी हुई थी।
चाय-नाश्ते के साथ बातों का दौर शुरू हो चुका था। काव्या के पापा-मम्मी और चाचा चाची हमारे साथ बैठे थे। सब लोग एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। काव्या के चाचा और चाची ने कई बातें जो मुझसे पूछीं, मैंने बड़ी शालीनता से उनका जवाब दे दिया। काव्या के पापा ने भी छोटी-छोटी चीजें पूछी थी, जैसे- देहरादून तो आए होंगे आप पहले?
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