RE: RajSharma Stories आई लव यू
काव्या की मम्मी बिलकुल मेरे सामने बैठी थीं और बस मुझे देखकर मुस्करा रही थीं। पूरे परिवार के हावभाव से लग रहा था कि उन्हें काव्या के लिए मैं पसंद आ गया हूँ। अंदर से छोटे बच्चों के खिलखिलाने की भी आवाज आ रही थी। पूछने पर पता चला कि चाचा चाची के दो छोटे बच्चे हैं।
थोड़ी देर में चाची, काव्या को लेकर ड्राइंग रूम में आई। बेहद साधारण से सूट में काव्या, फोटो से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसकी नजरें झुकी हुई थीं। चाची ने उसे मेरी मम्मी के पास सोफे पर बिठा दिया। पापा और मम्मी ने अब काव्या से सवाल शुरू कर दिए। अधिकतर सवालों के जवाब, काव्या की चाची और मम्मी ने ही दिए। काव्या, घबराहट से शांत थी, जैसे हर लड़की इस मौके पर होती है। थोड़ी देर बाद पापा ने काव्या के पापा से उसे वापस अंदर भेजने को कह दिया और काव्या अंदर चली गई।
___“राज, अगर तुम काव्या से कुछ बात करना चाहो, तो अंदर जा सकते हो।"- चाचा ने कहा।
मैं पापा की तरफ देखने लगा।
"हाँ, अगर बच्चे पाँच मिनट आपस में बात कर लें, तो ठीक रहेगा।"- पापा ने कहा।
"हाँ भाईसाहब, बिलकुल; इसमें क्या हर्ज है? आखिर दोनों अपना जीवनसाथी चुनने जा रहे हैं।"- काव्या के पापा ने कहा।
__“सरला! राज को छत पर ले जाओ और काव्या से मिलवाओ।"- चाचा ने चाची से कहा।
चाची के साथ मैं अंदर चल दिया। काव्या अपने कमरे में ऊपर थी शायद। चाची मुझे बुली छत पर लेकर आई। छत पर कुछ कुर्मियाँ पड़ी थीं।
“राज बेटा, तुम यहाँ बैठो, में काव्या को लेकर आती हूँ।"
"ओके चाची जी।"
काव्या की छत से, देहरादून के आस-पास मौजूद पहाड़ियाँ बेहद खूबसूरत लग रही थीं। मैं बैठा नहीं था, बल्कि खड़ा होकर इन वादियों को निहार रहा था। तभी चाची ने आवाज दी।
"राज, काव्या है।"
"ओह! हॉय।"- मैंने पीछे मुड़ते हुए कहा।
"तुम दोनों बात करो, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"- ये कहकर चाची नीचे चली गई।
"काव्या अब भी घबरा रही थी। उसकी नजरें अभी भी झुकी हुई थीं। मैं थोड़ा आगे बढ़ा और काव्या से कहा- "आपकी छत से देहरादून बहुत खूबसूरत दिखता है; कभी नजर उठाकर देखा भी है आपने? अगर नहीं देखा है तो देखिए।"
इसके बाद एकाएक काव्या की नजरें उठीं और मुझसे मिलीं। उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गई, पर मेरा चेहरा अभी भी भावहीन था।
“पेंटिंग करती हैं आप?"
"आपको कैसे पता?"
"ड्राइंग रूम में लगी पेंटिंग्स से पता चला।"
"पर उन पर तो मेरा नाम ही नहीं लिखा है, फिर..."
"कई बार नाम की जरूरत नहीं होती है। सभी पेंटिंग्स पर एक ही तरह का साइन बना हआ है, चाबी का और उसी चाबी के डिजाइन की रिंग आपके हाथ में है।"
“मान गए आपको हम।"
"और क्या पसंद है आपको?"
“पेंटिंग के अलावा मुझे क्राफ्टिंग पसंद है और इंटीरियर डिजाइनिंग पसंद है।"
“उसका भी नमूना आपके ड्राइंग रूम में देखा; आपने बहुत अच्छी तरह सजाया है सब।"
"एमबीए के बाद क्या प्लान है?"
“एक अच्छी -मी जॉब।"
“गुड, मुझे यही जवाब सुनना था काव्या।"
"आप कुछ पूछ सकते हैं मुझसे।" ।
"आपकी बातों ने मुझे सब बता दिया आपके बारे में।"- उसने मुस्कराकर जवाब दिया। चाची ने छत का दरवाजा खटखटा दिया था। मैं और काव्या नीचे आ चुके थे। दोनों परिवारों ने शादी के लिए हाथ मिला लिया था। ठीक दस दिन बाद मेरी और काव्या की सगाई की तारीख तय कर दी गई थी। खाने-पीने के बाद हम लोग वापस ऋषिकेश चले आए एक गुड न्यूज के साथ। मम्मी-पापा तो जैसे गंगा नहा लिए।
* * *
सब लोगों को घर छोड़कर, मैं ठीक पाँच बजे दिल्ली के लिए निकल गया था। मम्मी ने दोस्तों को देने के लिए कुछ मिठाई के डिब्बे मेरे साथ रख दिए थे। काव्या के घर पर मेरे चेहरे के भाव कुछ खास नहीं थे। मम्मी शायद समझ गई थीं कि मेरे दिमाग में अब भी शीतल हैं, शायद इसलिए चलते वक्त उन्होंने कई सारे नसीहतें मुझे दे दी थीं। ___
काब्या से शादी के लिए हाँ तो कर दी थी, लेकिन अभी भी मैं कई सारी उलझनों में था। मैं खुद से ही सवाल कर रहा था, क्या मैंने शादी के लिए हाँ करके ठीक किया? कहीं ऐसा तो नहीं कि शीतल का प्यार, काव्या की जिंदगी बर्बाद कर दे? क्या मैं काव्या को उसके हिम्मे का प्यार दे पाऊँगा या नहीं?
कोई नौ बजे थे। मैं दिल्ली पहुँचने वाला था, तभी डॉली का फोन आया। "कहाँ पहुँचे राज?"- उसने पूछा।
"डॉली, मैं एनएच-24 पर हूँ, आधे घंटे में घर पहुंच रहा हूँ।" __
“मिलना है मुझे तुमसे...आई एम वेटिंग फॉर यू; मुझे जानना है, क्या हआ ऋषिकेश
"आई एम कमिंग...बताता हूँ क्या हुआ; सगाई है दस दिन बाद मेरी।"
इतना कहते ही बराबर से गुजरती हुई एक इनोवा कार ने मेरी कार को साइड मार दी। मेरा बैलेंस बिगड़ा और मेरी कार डिवाइडर से जा टकराई। टकराते ही कार का हॉर्न बजने लगा, कार से धुआँ उठने लगा। लाइटें लगातार जल रही थीं और फोन पर मेरी चीख सुनकर डॉली चिल्ला रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी फिल्म का कोई मीन देख रहा हूँ। मेरे सिर से खून बह रहा था। रास्ता जाम हो गया था। कुछ लोग मुझे कार से बाहर निकाल रहे थे। मुझे काफी दर्द हो रहा था। मुझे जो लोग बाहर निकाल रहे थे, उन्हीं में से किसी ने फोन पर डॉली को सब बता दिया।
थोड़ी ही देर में मुझे मैक्स हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया। डॉली भी हॉस्पिटल में पहुँच गई थी। डॉक्टर्स ने उसे काफी रोकने की कोशिश की, लेकिन बो रूम के अंदर चली आई। मैं थोड़ा अचेत था। डॉली के आँसू बह रहे थे,बो काँप रही थी। अंदर आते ही बो मुझसे लिपट गई और एक साँस में कई शिकायतें उसने मुझसे कर डालीं। कार ठीक से नहीं चला सकते हो, कार चलाते हुए बात क्यों कर रहे थे?
मैं बस मुस्करा रहा था। डॉक्टर्स ने ब्लड साफ कर दिया था और अब सिर से खून बहना बंद हो गया था। शायद मुझे दर्द का इंजेक्शन दिया गया था, क्योंकि अब दर्द नहीं हो रहा था। डॉली ने मेरे फोन से पापा को फोन कर दिया था। पापा-मम्मी और भाई-बहन, मेरे एक्सीडेंट की खबर सुनकर दिल्ली के लिए निकल पड़े थे। शीतल को इसके बारे में कुछ भी बताने के लिए मैंने मना कर दिया था।
रात काफी हो चुकी थी। मैंने उसे घर चले जाने के लिए कहा भी, लेकिन उसने हर बार मना किया। उसकी आँखों में अभी तक आँसू थे। मैं बार-बार उसे चुप कराता और वो फिर रोने लगती। डॉली मेरे पास बैठी थी और मेरे माथे को सहला रही थी। थोड़ा आराम पाकर मेरी आँख लग गई।
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