RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"देखिये, मिस अर्चना जी, मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे और आपके स्टैण्डर्ड में जमीन आसमान का फर्क है। क्षमा....लेन-देन तो बराबर के लोगों में होता है। मेरी और आपकी कोई बराबरी नहीं। मैंने जो कपड़े पहने हैं, एकदम सस्ते हैं। आपके जैसी ड्रेस मेरे पिता अपने एक महीने के वेतन से भी नहीं खरीद सकते। आप कार से आती-जाती हैं और मैं बसों के धक्के खाता फिरता हूं। आपकी एक छोटी-सी बीमारी के लिये एकदम डॉक्टर बुला लिये जाते होंगे, जबकि हमें बड़ी से बड़ी बीमारी होने पर भी सरकारी अस्पतालों के धक्के खाने पड़ते हैं।" अर्चना उसके मुंह से निकलने वाले एक-एक शब्द को बहुत ही ध्यान से सुन रही थी—“सच में आपमें और हममें जमीन-आसमान जितना फर्क है। आप मुझ गरीब के साथ बेकार में ही अपना कीमती समय नष्ट कर रही हैं।" इतना कहकर विनीत तीर की तरह पार्क से बाहर निकल गया। सड़क पर आती बस को रोककर उसमें चढ़ गया।
अर्चना पार्क की सीट पर गुमसुम-सी बैठी रह गई। वह थोड़ी देर बाद सीट से उठी और बोझल कदमों से कॉलिज की ओर बढ़ने लगी। लेकिन शायद वह इस बात से अन्जान थी कि वह तो अपना दिल उसे हार बैठी थी। मगर वह यह नहीं जानती थी कि विनीत एक मिट्टी के माधो की तरह है। उसे किसी भी लड़की में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है। वह तो केवल पढ़ाई में ही अपना इन्ट्रेस्ट रखता है। कॉलिज में बापस आयी तो लड़कों का बही ग्रुप, जिसने ये ओछी हरकत की थी, उसको देखकर खिलखिलाकर हँस रहा था। वह उनको इगनोर करके लाइब्रेरी में जाकर बैठ गई। किताब खोलकर किताब पर झुक गई....मगर किताब में उसको विनीत की ही तस्वीर नजर आ रही थी। पढ़ाई में मन नहीं लगा। उसने हारकर....किताब बंद की और घर जाने के लिये उठ खड़ी हुई। एक गहरी सांस लेकर बड़बड़ा उठी वह—'मैं भी आसानी से हार मानने वाली नहीं विनीत! जिन्दगी में पहली बार कोई गलती की है मैंने। जब तक तुम मुझे दिल से क्षमा नहीं करोगे, मैं तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं हूं।' वह अपनी कार में आकर बैठ गई और चल दी घर की ओर। सारा दिन कमरे में बंद रही। खामोश रात में अर्चना के कानों में विनीत की कहीं बातें गूंज रही थीं। वह बैड पर लेटी लेटी बेचैनी से करवटें बदल रही थी। मगर चैन तो कहीं गुम हो गया था। अर्चना की नींद चैन विनीत चुरा ले गया था। उसकी आंखों में विनीत का सुन्दर किन्तु मासूम चेहरा घूम रहा था। उसकी याद आते ही वह भाव-विभोर होकर बैठ जाती। वह सोने की पूरी-पूरी कोशिश कर रही थी। मगर नींद तो आने का नाम ही नहीं ले रही थी। वह हारकर आखें बंद करके पलंग पर लेट गई। कब नींद आई, उसे नहीं पता।
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