RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
तभी विनीत की मां बोलीं- "मुझे पता है तुझे क्या खाना है!" वह प्यार भरी दृष्टि विनीत पर डालकर बोली-“खीर खानी है ना विनीत तुझको।"
"खानी तो खीर ही है, मगर खाऊंगा अनीता के हाथ की बनी हुई।"
"हां-हां भइय्या, कल सारा खाना मैं ही बनाऊंगी....।" अनीता बीच में ही बोली।
"हम भी हैं यहां पर।” विनीत के पिता जी बोले, जो चुप बैठे उनकी बातें सुन रहे थे।
"हां भई हां, हमें पता है....मगर कुछ बोलो तो सही।” विनीत की मां ने उसके पिता की बात का जवाब देते हुए कहा।
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विनीत कॉलिज आया तो सीधा लाइब्रेरी में जाकर बैठ गया। उसे पढ़ाई छोड़े हुए कई दिन गुजर गये थे। वह पढ़ाई के प्रति लापरवाही नहीं बरतना चाहता था। बस सब कुछ भूलकर वह पढ़ाई करने के लिये बैठ गया। उसने इधर-उधर नहीं देखा। वह किताब में खो गया। कुछ देर बाद ही अर्चना ने लाइब्रेरी में प्रवेश किया। सबसे पहले उसने उसी सीट की ओर देखा जहां विनीत बैठा पढ़ता था। उस सीट पर विनीत को बैठा देख अर्चना की आंखें खुशी से चमक उठीं। वह भी अपनी सीट पर आकर बैठ गई, जहां वह अक्सर बैठकर नोट्स बनाती थी। बस वह विनीत की हर हरकत पर नजर रखे हुए थी। आज कुछ भी हो, वह विनीत से मुलाकात करके ही रहेगी। यही सोचकर वह किताब को खोलकर बैठ गई, मगर किताब में उसने एक शब्द भी नहीं पढ़ा। बस उसका तो सारा ध्यान विनीत पर था। विनीत का मुड आज कुछ सही लग रहा था। बस इसी का फायदा वह उठा लेना चाहती है।
थोड़ी देर पढ़ने के बाद विनीत उठ खड़ा हआ और घर जाने लगा। जब विनीत लाइब्रेरी से बाहर निकल गया तो अर्चना अपनी सीट से उठी और उसके पीछे-पीछे हो ली। विनीत कालेज के गेट से बाहर निकला तो अर्चना अपनी गाड़ी स्टार्ट करके उससे थोड़ी दूरी बनाये उसके पीछे-पीछे चलती रही।
विनीत कालेज से थोड़ी दूर बाले बस स्टॉप पर जाकर खड़ा हो गया। थोड़ी ही देर में बस आ गई। बस में काफी भीड़ थी। मगर फिर भी विनीत उस बस में चढ़ गया। शायद आज घर जाने की बहुत जल्दी थी। बस कुछ सेकेण्ड रुकी और चल दी। अर्चना की कार भी स्टार्ट थी। वह भी बस के पीछे लग गई। मगर विनीत उसे न देख सका। अर्चना के इरादे दृह नजर आ रहे थे। वह ध्यान से बस को देखती हुई गाड़ी ड्राइब कर रही थी। बस में से उतरने वाले हर व्यक्ति को वह बड़े ध्यान से देख रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि—विनीत कहीं उतर जाये और आज फिर वह अपना-सा मुंह लेकर वापस आये। आज वह ऐसा कुछ नहीं चाहती थी। अर्चना का दृढ़ संकल्प देखकर लग रहा था कि वास्तव में नारी जिस काम को ठान ले, उसे पूरा करके ही छोड़े। दुनिया की कोई हस्ती उसे उसके लक्ष्य से नहीं हटा सकती। क्योंकि नारी जहां स्वभाव से नम्र होती है, वहीं उसका स्वभाव जिद्दी किस्म का होता है। अगर वह अपनी पर आ जाये तो क्या से क्या कर डाले। और अर्चना का जिद्दी रूपही अब सामने था। वह विनीत से प्रत्यक्ष रूप में क्षमा चाहती थी। और दिल के एक कोने में विनीत को प्रेम का देवता भी बना बैठी थी। जिसे वह चाहकर भी नहीं निकाल सकती थी। वह निरन्तर बस के पीछे-पीछे चलती रही। थोड़ी देर बाद एक बस स्टाप पर बस रुकी।
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