Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:48 PM,
#15
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
बस से उतरने बाला विनीत था। विनीत को देखते ही अर्चना की धड़कनें बढ़ गई। अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए उसने अपनी गाड़ी विनीत के पीछे थोड़े फासले पर लगा दी। अर्चना भी काफी धीमी रफ्तार से उसका पीछा कर रही थी। कुछ दूर चलकर विनीत एक दाहिनी ओर को जाने वाली गली में मुड़ा। अर्चना ने भी अपनी गाड़ी गली में मोड़ दी। काफी लम्बी गली थी। वह सीधा चलता जा रहा था। वह टकटकी लगाए उसे देख रही थी। विनीत एक छोटे से घर में घुस गया। अर्चना ने भी अपनी गाड़ी गली में मोड़ी और जिस घर में विनीत गया था, उसने गाड़ी वहीं रोक दी।। कुछ पल वह दरवाजे के बाहर खड़ी रही, फिर उसने दरवाजे पर दस्तक दी। अर्चना का दिल तेज-तेज धड़कने लगा। अन्जाम पता नहीं क्या होगा यही सोचकर वह कुछ भयभीत सी हुई लेकिन दरवाजे में किसी के आने से पहले ही उसने खुद को नार्मल किया।

“जी आपको किससे मिलना है...?" दरवाजे पर खड़ी हुई एक लड़की अर्चना से पूछ रही थी।

अर्चना चौंक गई। "मु.........बि....नी...त से मिलना है....। क्या मैं अन्दर आ सकती हूं....." अर्चना ने हकलाते हुए कहा।

"हां....हां....क्यों नहीं....आप अन्दर आ जाइये.....” सुधा दरवाजे से हटती हुई बोली।

अर्चना अन्दर चली गई। सुधा उसके पीछे-पीछे चलकर बराबर में आ गई थी। जल्दी से आगे भागकर वह भइय्या के पास गई। "भइय्या...देखो तो सही....आपसे कोई....मिलने आया है....."

"अभी आया....।" विनीत ने सपाट लहजे में कहा। सुधा बापस आयी तो अर्चना को खड़े देखकर बोली_“आप बैठ जाइये, भइय्या अभी आते है....."

वह एक कुर्सी पर बैठ गई, जो मेज के पास रखी थी। मेज पर एक लैम्प था। कुछ किताबें सलीके से रखी हुई थीं। देखने में लगता था कि वह पढ़ने की मेज है। कमरे में बैसी दूसरी कोई कुसी नहीं थी जिस कमरे में वह बैठी थी। कमरा बहुत छोटा था। मगर साफ-सुथरा था। एक कोने में एक बड़ा बक्सा रखा था। ऊपर एक-दो और छोटे बक्से रखे थे। ऊपर एक बड़ी सी अलमारी थी जिस पर एक पर्दा लटका हुआ था। उसमें क्या रखा था, कहा नहीं जा सकता। दीबार के एक सहारे एक छोटा-सा बैड पड़ा था। उस पर एक तकिया रखा था। बेड के ठीक सामने एक खूबसूरत ऑयल पेन्टिंग लगी थी, जो एकदम नेचुरल थी। उसमें डूबते सूरज का सीन बनाया गया था। पहाड़ों के पीछे से दिखता हुआ लाल-लाल सूरज बहुत ही सुन्दर दिख रहा था।

उस छोटे कमरे के बराबर में भी एक कमरा था। जिस लड़की ने दरवाजा खोला था, वह बराबर में ही चली गई थी। जिससे पता चल रहा था कि बराबर में कोई कमरा होगा या हो सकता है किचन हो। वह इन्हीं विचारों में थी कि उसी लड़की की आबाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया "लीजिये, पानी ले लीजिये।” सुधा ने पानी का गिलास आगे बढ़ाया।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:48 PM

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