Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:49 PM,
#20
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
वह प्रेम भावना में वह विनीत की धड़कनें भी जल्दी-जल्दी धक....धक....धक हो रही थीं। उसने कुछ कहने से पहले सामने शर्मायी बैठी प्रीति पर नजर डाली। वह लाल रंग की सिम्पल साड़ी पहने बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसके काले लम्बे बाल जो पीछे की ओर खुले पड़े थे, उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। कपड़ों का शेड उसके गालों पर पड़कर उसके गुलाबी गालों को लाल कर रहा था। वह नीचे पलकें झुकाये ऐसी बैठी थी जैसे लाल जोड़े में सजकर नई नवेली दुल्हन अभी आयी हो। मगर विनीत के लिये वह दल्हन से कम भी न थी। आज उसे अपनी पसंद पर गर्व हो रहा था। आज उसकी बचपन की मौहब्बत साड़ी में लिपटी कितनी हसीन लग रही थी, वह कह नहीं सकता था। वह पलकें झपकाये बगैर उसे लगातार देख रहा था।

"ऐसे मत देखो विनीत , प्लीज।" वह पलकें झुकाकर पुनः बोली। वह अब विनीत को देखने लगी। वह भी कम आकर्षक नहीं लग रहा था। आज वह अन्य दिनों की अपेक्षा स्मार्ट लग रहा था। लम्बा कद, गठीला शरीर, चौड़ी छाती, मर्दाने कन्धे उसकी ठोस मर्दानगी का सबूत दे रहे थे। उसके मजबूत जिस्म पर नेवी बाल्यू कलर का कुर्ता उसकी सांवली रंगत पर खिल रहा था। प्रीति ने उसे आज पहली बार इस ड्रेस में देखा था। वह एकदम फ्रैश लग रहा था। जैसे अभी-अभी गुलाब-जल में नहाकर आया हो....। उसके जिस्म से फूटने वाली खुशबू प्रीति की सांसों में घुल रही थी। वह बार-बार लम्बी सांस लेकर उसके जिस्म की खुशबू अपने जिस्म में उतार रही थी। वैसे भी वे दोनों दो जिस्म एक जान थे। प्रीति विनीत की जानलेवा खामोश अदा पर आत्मविभोर हो उठी। लाख कोशिशों के पश्चात् भी बे दोनों स्वयं को न रोक पाये। प्रीति की गोरी बाहें उसी पल उठीं और वह विनीत की बांहों में समा गई। विनीत ने उसे अपनी मजबूत बांहों में समेट लिया- आओ प्रीति! बहुत तड़पाती हैं तुम्हारी यादें मुझे। पल-पल सुलगकर जीता रहता हं, मैं! हां माई लव एण्ड लाइफ हां....।" विनीत प्रीति की जुल्फों की छांव में पागल-सा हो उठा। प्यार के समुन्द्र में जैसे हलचल मच गई थी। संकोच, शर्म, शिकबा-शिकायतों की दीवारें प्रेम के हल्के से स्पर्श से ही गिर पड़ी थीं। प्रीति की गोरी बांहें अपने साजन की पीठ पर सख्त हो गई। उसने विनीत को पूरी ताकत से जकड़ लिया। इतना ही नहीं, विनीत के तपते होठ प्रीति के होठों पर ठहर गये थे, विनीत ने प्रीति को बांहों में समेट लिया था। जैसे तारों ने घटा की चादर ओढ़ ली हो....|

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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:49 PM

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