RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विशाल ने इत्मीनान की सांस ली। उसको अहसास हो गया कि माताजी उसके दिल का हाल जान गई हैं।
"विशाल बेटा, एक बात पूडूं।" विशाल की मां ने विशाल की आंखों में झांकते हुए पूछा।
"हां-हां, क्यों नहीं।” झिझकते भाव में वह बोला।
"अनीता के लिये इतने क्यों परेशान हो? क्या समझू?"
"बही समझो मां जी जो आपको समझना चाहिये।” मां के सामने बैठते हुए उसने आहिस्ता से कहा।
"तो बात करूं अनीता के पिताजी से? अब मैं भी घर में अकेली बोर होती रहती हूं....."
"माई ग्रेट मदर! तुम कितनी अच्छी हो?" विशाल मां के गले में बांहें डालकर घूम गया।
विशाल की मां स्वयं भी अनीता को बहुत चाहती थीं। मगर इस बात से ही डरती थीं कि कहीं मेरी पसंद विशाल को पसंद न आये। मगर आज विशाल की पसंद के विषय में जानकर वह बहुत खुश थी। वह जल्दी ही अनीता को अपने घर की दुल्हन बनाना चाहती थीं। अनीता एक सुलझी हुई लड़की थी। वह हमारे परिवार को अच्छी तरह चला लेगी यही सोचकर विशाल की मां अनीता को अपने घर में लाना चाहती थीं।
विशाल मां के पास से उठकर अपने कमरे में चला गया। नौकर ने शाम की चाय उसके कमरे में ही दे दी। पहाड़ी इलाकों की फैली धूप भी धीरे-धीरे सिमटने का प्रयास कर रही थी। और....। और धुप हल गई थी। शाम का धंधलापन चारों ओर फैलने लगा। आसमान के मुखड़े पर चांद के चिन्ह उभर आये थे, मानो रात की प्रथम बेला ने आकाश के माथे पर मंगल टीका लगा दिया हो। चाँद-तारों की चमक ने शाम के धुंधलेपन को निगल लिया था। धीरे-धीरे रात का प्रथम चरण प्रारम्भ होता जा रहा था।
विशाल ने चाय की चुस्की ले-लेकर पी। कप खाली हो चुका था। कप को साइड टेबल पर रखकर वह बार्डरोब से नाईट सूट निकालकर चेन्ज करने के लिये बाथरूम में घुस गया। खाना खाने के लिये उसकी मां ने उसे पुकारा– विशाल बेटा! अन्दर घुसा क्या कर रहा है? चल जल्दी आ जा, खाना तैयार है....।"
"मां, मैं अभी आया....।" उसने जोर से कहा। उसके कमरे के पास बाला रूम ही डाइनिंग रूम था। वह हाथ धोकर डाइनिंग रूम में आ गया। खामोशी से खाना खाकर वह अपने कमरे में चला गया। उसकी आंखों के सामने अनीता का मासूम चेहरा बार-बार घूम रहा था। उसका दिल चाह रहा था कि वह किसी तरह अनीता के पास पहुंच जाये और ढेर सारी बातें करे। उसकी मीठी सुरीली आवाज कानों में गूंज रही थी। अनीता आजकल की फैशनेबल लड़कियों से अलग थी। वह ऐसी ही लड़की को अपनी जिन्दगी में लाना चाहता था। वह अनीता के रूप में उसे मिल गई थी। उनका तकाजा भी यही कह रहा था....बस जल्दी ही उसे अपने घर की रानी भी बना डाल। दिल की रानी तो वह कई सालों से बनी बैठी है। रात। गहरी खामोश रात। चारों ओर केबल गहरा सन्नाटा उतरा हुआ था। रात के दो बज गये थे। रात्रि का दूसरा चरण यौबन पर था। वह रात भर सोचता रहा....सिर्फ अनीता के विषय में।
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