RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"अनीता सुधा के स्कूल में किसी काम से गई है। आती ही होगी।"
अनीता के विषय में जानकारी मिलने के पश्चात् विशाल के दिल की धड़कन काबू में आयी। विशाल और उसकी मां कुछ देर बहां रुकने के पश्चात् अपने घर वापस आ गये।
अब विशाल का ऑफिस जाने का क्रम चलता रहा। वह सुवह दस बजे जाता और शाम पांच बजे के बाद वापस लौट आता। जिन्दगी बहुत मजे में व्यतीत हो रही थी। शादी की तैयारी भी धीरे-धीरे चल रही थी। उधर अनीता की मां ने भी अनीता के लिये कुछ सामान खरीदना शुरू कर दिया था। कभी कभार वह विशाल को भी अपने साथ बाजार ले जातीं। विशाल की मां ने भी अनीता की पसंद से ही सभी कपड़े खरीदे थे। रोज-रोज बाजार के चक्कर लगा-लगाकर वह थक चुके थे। अब तैयारी पूरी सी ही थी। शादी की डेट भी निश्चित कर दी गई थी। शादी में कुछ ही दिन शेष थे। जैसे-जैसे शादी करीब आती जा रही थी, वैसे-वैसे ही विशाल और अनीता के दिल की उमंगें बढ़ती जा रही थीं। वे दोनों तो क्या उनका पूरा परिवार इस रिश्ते से बहुत खुश था।
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विशाल ने बड़ी कठिनाई से आंखें खोलीं। उसके मुंह से दर्द भरी आवाज निकली—"मैं कहां हूं?" उसके शरीर पर अनगिनत चोटें लगी थीं। उसके हिलने मात्र से ही पूरे शरीर में कराह की लहर दौड़ जाती। उसके एक हाथ में प्लास्टर था। सिर पूरा पट्टियों से बंधा था। दोनों पैरों पर प्लास्टर चढ़ा था। पैरों में रॉड डाली गई थी। वह एकदम सीधा लेटा ऊपर चलने वाले हल्की-हल्की हवा फेंकने वाले पंख को देख रहा था। उससे बिल्कुल भी नहीं बोला जा रहा था। बड़ी कोशिशों के पश्चात् बस वह इतना ही पूछ पाया था—“मैं कहां हूं....."
तभी पास बैठी एक अधेड़ उम्र की महिला ने उत्तर दिया- बेटा, तुम अस्पताल में हो। तुम्हें पांच घन्टे में होश आया है। हम सुवह से बहुत परेशान है। तुम्हारा कोई कान्टेक्ट नम्बर भी तुम्हारे पर्स में नहीं मिला, न ही तुम्हारा पता लिखा मिला जो हम तुम्हारे घर पर सूचना दे देते।"
विशाल मस्तिष्क पर जोर डाले कुछ सोच रहा था। उसे याद आया वह सड़क पार करते समय पता नहीं कैसे दो गाड़ियों के बीच में फंस गया था। वे तेज स्पीड से दौड़ती हुई आ रही थीं। वह भी जल्दी सड़क पार करना चाहता था—बस। जब आंख खुली तो अस्पताल में था। अपने घर के विषय में सोचते ही वह दुःखी हो गया। सबसे पहले उसने अपने घर पर फोन मिलवाया। ट्रिन....ट्रिन। फोन की घण्टी बजी। विशाल की मां ने फोन रिसीव किया-"हैलो...."
"हैलो! मैं डॉक्टर रस्तोगी बोल रहा हूं।"
विशाल की मां ने पूछा-"किससे बात करनी है?"
डॉक्टर रस्तोगी एक क्षण को शान्त हुआ, फिर बोला-"आप विशाल की मदर बोल रही हैं क्या?"
"हां-हां। क्या बात है?" वह कुछ परेशान हो गईं।
"आपके बेटे का एक्सीडेन्ट हो गया है।"
विशाल की मां हड़बड़ा गईं—“वह कहां है?"
"विशाल चौरासिया अस्पताल में एमरजेन्सी बार्ड में है।" डॉक्टर ने अस्पताल का पता बताया। इतना सुनते ही विशाल की मां ने फोन काट दिया।
"विशाल, हमने तुम्हारी मां को तुम्हारे विषय में बता दिया है। अब तुम्हें घरवालों की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। अब तुम फ्री माइन्ड होकर आराम करो...."
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