RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विशाल अजीब-सी निगाहों से डॉक्टर रस्तोगी को देख रहा था। तभी एक खूबसूरत नौजवान ने उस कमरे में प्रवेश किया। विशाल के पास बैठी हुई अधेड़ उम्र की महिला उसी नौजवान की मां थीं। नौजवान ने कमरे में आते ही पूछा- क्या हुआ डॉक्टर?"
"होश आ गया। मगर खून की एक बोतल चढ़ने के बाद भी दो-तीन बोतल खून की और आवश्यकता है....। सिर फटने से शरीर का बहुत खून वह गया है....।" दिमाग का डॉक्टर रस्तोगी कुछ आगे कहने वाला था लेकिन विशाल को अपनी ओर देखते देख वह चुप हो गया।
नौजवान ने फिर सवाल किया—“कुछ अपने विषय में बताया?"
"हां, इन्होंने अपने घर का नम्बर दे दिया है। मैंने इसके घर पर बता दिया है शायद इनके घरवाले आते ही होंगे।" डॉक्टर रस्तोगी ने नौजवान की परेशानी कम की।
विशाल ने नौजवान की ओर दृष्टि घुमाई और बोला-"आप कौन हैं? आपका नाम क्या है।
"मैं आपका शुभचिन्तक ह।" वह धीरे से मुस्कराया, "मेरा नाम प्रेम है। जब आपका एक्सीडेन्ट हुआ, मैं अपनी मां को लेकर जा रहा था। रास्ते में देखा बहुत भीड़ जमा थी। मैं जल्दी से गाड़ी से उतरा और भीड़ को चीरता हुआ अन्दर घुस गया। सड़क पर तुम बेहोश पड़े थे....सिर से खून वह रहा था। तुम्हें देखकर मुझे पता नहीं कहां से इतनी शक्ति आ गई, तुमको अपने कन्धे पर उठाया, गाड़ी में लिटाकर अस्पताल ले आया। मां को बस तुम्हारे पास बिठाकर मैं स्वयं घर नहाने चला गया।"
बहुत देर से खामोश बैठी प्रेम की मां बोल पड़ीं—“मुझे तो बहुत डर लग रहा था। अच्छा हुआ बेटा तुम बच गये....वरना इतनी लम्बी बेहोशी को देखकर मैं तो घबरा ही गई थी।"
प्रेम डॉक्टर रस्तोगी से बात करने लगा-"आप पैसे की चिन्ता मत कीजिये। जल्द-से-जल्द खून का बन्दोबस्त कर लीजिये। आप इनको गैर मत समझिये। ये मेरे लिये मेरे बड़े भाई जैसे हैं। वैसे भी मेरा कोई भाई नहीं है। आज से मैं इनको अपना भाई मान बैठा हूं....।"
उसी के साथ प्रेम ने नोटों की गड्डी डॉक्टर को थमा दी। डॉक्टर प्रेम से रुपये लेकर जाने लगा।
"थैक्यू प्रेम। मैं तुरन्त खून का बन्दोबस्त करता हूं। अब आपको टेन्शन लेने की आवश्यकता नहीं है।”
"ओके डॉक्टर साहब।" प्रेम ने प्रेमपूर्वक कहा। प्रेम विशाल के पास स्टूल रखकर बैठ गया। विशाल अपलक प्रेम को देख रहा था। उसने डॉक्टर व प्रेम के बीच होने वाले बार्तालाप को सुन लिया था। वह मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था कि भगवान ने प्रेम को उसे बचाने के लिये भेज दिया। यदि प्रेम आधा घन्टा और उसे अस्पताल में न लाता तो वह सड़क पर ही दम तोड़ देता। मरने का ख्याल दिमाग में आते ही विशाल दुःखी हो गया। उसकी आंखों में आंसू आ गये। वह अनीता के विषय में सोचने लगा। अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी अनीता का क्या होगा?
विशाल को किसी गहरी सोच में डूबा देख प्रेम ने पूछा-"कहां खो गये विशाल?"
विशाल एकदम चौंका—जैसे नींद से जागा हो। "अ....हां कहीं नहीं।” वह घबराकर इतना ही कह सका।
"डियर विशाल, डॉक्टर ने आपको कुछ भी टेन्शन लेने से मना किया है। अगर तुम अधिक सोचोगे तो मस्तिष्क पर असर पड़ेगा और फिर कुछ भी हो सकता है।" प्रेम इनडायरेक्ट बे में उसे समझाता हुआ बोला।
विशाल धीरे से 'अच्छा जी' कहकर चुप हो गया। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं।
प्रेम काफी समय तक उसके पास मौन बैठा रहा। जब काफी समय तक उसने आंखें न खोलीं तो प्रेम यह सोचकर कि शायद विशाल को नींद आ गई है, वहां से बाहर चला गया। प्रेम की मां फिर भी वहीं बैठी रहीं। कहीं विशाल को किसी चीज की जरूरत न पड़ जाये? क्या पता वह कब आंखें खोल दे। पता नहीं वह सोया है या नहीं। अगर सोया है तो....भी मरीज को अकेले नहीं छोड़ना चाहिये। बस यही सोचती हुई, वह वहां बैठी रहीं।
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