RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"अनीता....।” विशाल के मुंह से एक हल्की-सी आह के साथ अनीता का नाम निकला। अनीता ने विशाल की ओर देखा तो विशाल की गर्दन एक ओर लुढ़क गई थी। आंखें खुली की खुली रह गईं। अनीता के मुंह से एक हृदय विदारक चीख निकली। जिसको सुनकर बाहर खड़े सभी लोग अन्दर आ गये। सामने का मन्जर देखकर जड़वत् रह गये।
"नहीं विशाल! तुम मुझे यूं अकेले छोड़कर नहीं जा सकते....।" वह जोर-जोर चीख रही थी। इन्हीं चीखों के साथ वह धम् से जमीन पर गिर पड़ी। विशाल के पिता ने सबसे पहले विशाल की आंखों को हाथ से बंद किया। विनीत ने बेहोश पड़ी अनीता को बाहर पड़ी बैंच पर लिटा दिया। विशाल सबको रोता-बिलखता छोड़कर चला गया....ऐसी जगह जहां से कोई वापस नहीं आता। उसकी डैडीबॉडी को घर ले जाया गया। जिस घर से कुछ दिन बाद बारात निकलने वाली थी, उसी घर से अर्थी निकली। पूरा का पूरा माहौल गम में डूबा था। अनीता तो उसको देख भी न पायी। जब शाम को अनीता के पिता घर पर दफ्तर से बापस आये तो बहां का मन्जर देखकर आश्चर्य में पड़ गये। विशाल की मृत्यु और अनीता की तबियत खराब की बात सुनकर उनको हार्टअटैक हो गया और वे तुरन्त ही दुनिया को छोड़कर चले गये। अस्पताल तक ले जाने का भी समय उन्होंने न दिया। अब अनीता और अनीता की मां बीमार हो गई। सब की जिन्दगी बीरान हो गई। बच्चों के सिर से बाप का साया उठ गया। विशाल के माता-पिता का इकलौता बेटा विशाल उन्हें अकेला छोड़कर चला गया। सारी दुनिया, सारे सपने मिट्टी में मिल गये। आने वाली खुशियां गम का कांटा बनकर रह गई।
अचानक घटने वाली उन आपत्तियों ने विनीत को हिला दिया। विशाल की मृत्यु की खबर सुनते ही हार्टअटैक से पिता की मृत्यु हो गई। अनीता भी बेजान सी रहने लगी। कैसे न कैसे खुद को संभाला। मगर विशाल की यादों को अपने दिल से जुदा न कर सकी। विशाल की यादों में घुट-घुटकर रोते-रोते वह हड्डियों का ढांचा हो गई। छोटी वहन थी सुधा। उसको पालने की जिम्मेदारी विनीत के सर पर आ गई। वहनों की ही क्या....एक तरह से सारे परिवार का बोझ उसी के कन्धों पर आ गया। विनीत का मकान अपना था। ऊपर के हिस्से में दो किरायेदार रहते थे। विनीत तो अभी कुछ नहीं करता था। घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था। पिता की मृत्यु के समय पिता के नाम पर बैंक में पांच हजार रुपये थे। सारे पैसे मां की बीमारी में खर्च हो गये थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् मां ने पलंग पकड़ लिया था। उनकी बीमारी ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी। उनको एक हफ्ते तक सरकारी अस्पताल में भी भर्ती करा दिया गया था। मगर किसी भी तरह उनकी बीमारी ठीक नहीं हो पा रही थी। एक तरफ पिता की मृत्यु का गम, दूसरी तरफ अनीता का गम....। इतना अच्छा लड़का अनीता को छोड़ गया था। अनीता से कौन शादी करेगा? उसकी ऐसी हालत और घर की ऐसी गरीब स्थिति देखकर कौन उसका हाथ थामेगा? यही सोच-सोचकर मां गम में घुलती जा रही थीं। दुःखों का तूफान गुजरने के बाद भी अपने कुछ चिन्ह छोड़कर चला गया था। वे चिन्ह मां और वहनों की आंखों के आंसू बन चुके थे। सारे पैसे मां की दवा-दारू में उठ चुके थे। किरायेदारों से आने वाले पैसों में बड़ी कठिनाई से दाल-रोटी मिल पाती थी।
मां को टी.बी. हो गई थी। मां की बीमारी को ठीक कराने के लिये अधिक पैसा चाहिये था। उधर बड़ी वहन की शादी की चिन्ता! वह जवान थी। छोटी वहन जो अभी दस वर्ष की थी, उसकी भी पढ़ाई छुड़वानी पड़ गई थी, क्योंकि स्कूल की फीस भरने को पैसे न थे। विनीत ने बी.ए. किया था। उसके बाद वह पढ़ न सका। पिता ने इसी आस-उम्मीद पर गरीबी की हालत में इतना पढ़ाया था कि पढ़-लिखकर उनका बेटा किसी योग्य बन जायेगा, घर के बोझ को संभाल लेगा। मगर अचानक भाग्य ने साथ छोड़ दिया था। पिता भी उसे अकेला छोड़ चले थे। विनीत अपनी प्रीति को याद करके आत्मविभोर हो उठा था।
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