RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
प्रीति पर शीला मौसी के कथन का असर दिल पर हुआ। वह अत्यन्त आहिस्ता से सुबक पड़ी—"नहीं मौसी! ऐसे मत कहो।"
"नहीं प्रीति, रोते नहीं पगली।" शीला मौसी तड़प उठी।
"नहीं....नहीं, मौसी!" प्रीति ने सिसकियों के साथ कहा, "नहीं, वह ऐसे नहीं हैं। वे मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं। सिर्फ मुझसे प्रेम करते हैं। बे मेरे सिवा किसी को भी अपनी पत्नी नहीं स्वीकार कर सकते।"
"नहीं....प्रीति। मैं नहीं मानती। कोई भी मर्द अपने सीने में प्रेम को दबा रखे। मर्द के अन्दर प्रेम नहीं बासना अधिक होती है। वह बासना में डूबा पुजारी है।" शीला मौसी ने मर्द की असलियत उसके समक्ष रखी।
"इसमें कोई सन्देह नहीं मौसी, अगर हम चाहते तो अपने शरीर की आंधी को रोक नहीं सकते थे। मगर मौसी, उन्होंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया जबकि हम काफी-काफी समय तक अकेले रहे हैं।" प्रीति भावनाओं में डूब गई। पुनः बोली- "उनका प्रेम बासना नहीं हो सकता। उनका प्रेम, प्रेम है और प्रेम आत्माओं में बसा होता है। सिर्फ दिल में नहीं। वासना मर सकती है। मगर प्रेम नहीं मरता। वह अमर है अमर...मेरा और विनीत का प्रेम भी अमर है मौसी।" प्रीति खामोश हो गई।
“मर्द किसी कच्चे धागे जैसा होता है बेटी! औरत जब चाहे उसे अपनी ओर मोड़ सकती है, बशर्ते उस औरत के पास रूप, यौबन हो। और हो सकता है वह सिर्फ इसीलिये तेरी ओर आकर्षित होता हो क्योंकि तेरे पास रूप और यौबन दोनों हैं।"
मौसी की बात बीच में काटकर कहा—"बस....करो मौसी बस!" प्रीति ने मौसी के विचारों का हल्का विरोध किया। कुछ क्षण चुप होकर पुनः बोली-"मौसी, जैसा आप सोच रही हैं बैसा कुछ नहीं हो सकता। बिबाह से पूर्व ऐसा कदम पाप होता है....और विनीत पाप नहीं कर सकता।"
"हां प्रीति, ये तो ठीक है कि मानव ने अपने लिये कुछ सीमाएं बनाई हैं। जब हम उन सीमाओं को लांघ जायें तो वह पाप होता है। किन्तु प्रीति, शारीरिक सम्बन्ध पाप है तो प्रेम क्यों होता है?" शीला मौसी के होठों पर अनायास ही मुस्कान बिखर गई। “प्रेमी का प्रेम आखिर औरत के शरीर तक आकर ठहर जाता है तो, क्या इसे भी पाप कहोगी तुम?"
प्रीति खामोश रही। क्या कहती? "अगर तेरा प्रेमी विवाह होने के पश्चात् तुझसे अपना जिस्मानी सम्बन्ध न बनाये, तो उस समय तेरे प्यार का अन्त हो जायेगा। बही प्रेमी जिसे आज तू जी जान से प्रेम करती है, उसकी यादों में तड़पती, उससे मिलने को बेचैन रहती है, मिल जाती है तो उसे छोड़कर बापस घर जाने को दिल नहीं करता, उसी प्रेमी से उस समय तुझे नफरत हो जायेगी, उसकी सूरत से तुझे घृणा हो जायेगी। मेरा केवल इतना ही कहना है प्रीति, जैसे किसी बच्चे को अच्छे खिलौने देकर वहलाया जाता है, वैसे ही प्रेम को, अपनी जिन्दगी और आर जुओं को सजाने के लिये औरत सदैव ही अपने सुन्दर शरीर का प्रयोग करती है। यही वह सत्य है, जिसे अर्पित करते औरत का मर्द पर पूर्ण रूप से अधिकार होता है। किन्तु प्रत्येक काम का एक ढंग अबश्य होता है। जहां प्रेम है वहीं इच्छायें भी हैं, और इच्छायें वृक्षों पर नहीं, शरीर में ही उगती हैं....।
"शीला मौसी का एक-एक शब्द प्रीति के लिये आश्चर्य जैसा ही था। सच तो यह था कि वह एक कड़वा सच था जो प्रीति सुन रही थी। शीला मौसी जाने के लिये आगे बढ़ने को हुईं, फिर कहा-"प्रेम करना अपराध नहीं है प्रीति बेटी, किन्तु प्रेम में असफलता पाना अपराध है। मूर्खता भी कहा जाये तो अधिक उचित होगा। अगर वह तुझसे शादी कर सकता तो उस प्रेमी को भूलना होगा तुझे, उस प्रेमी को भूलना होगा, क्योंकि तु औरत है और औरत को कभी अपनी कमजोरियों का गुलाम नहीं होना चाहिये....और तेरी कमजोरी विनीत है। तू आज चाहकर भी उसे एक पल के लिये भी नहीं भुला सकती....."
प्रीति ने बुदबुदाया—“सच!"
“फिर कैसे उसे भुलायेगी जब तेरी या उसकी शादी कहीं और हो जायेगी? फिर कहां जायेगा तेरा ये प्रेम? अगर तू उसे नहीं भुला सकती तो तू रहेगी अपने पति की बांहों में और दिल में रहेगा तेरा बो प्रेमी विनीत –तो क्या तू अपने पति के साथ अन्याय नहीं करेगी? क्या तू उसे बही प्रेम दे सकेगी जो तू आज विनीत से करती है?"
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