Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:56 PM,
#54
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
लम्बे-लम्बे डग भरते हुये बे कमरे से बाहर निकल गये थे। उसके जाने के तुरन्त बाद ही मां ने कमरे में आकर कहा था "क्या बात है विनीत ?"

"बात....!"

“तूने श्याम जी लाल को कुछ कहा तो नहीं?"

"मतलब....?"

"बे बड़े गुस्से में लग रहे थे। मैंने पुकारा भी परन्तु नहीं रुके....."

हताशा में उसके मुंह से निकल गया था—"मां, चाचा जी बड़े आदमी हैं, बे तुम्हारे पुकारने से भला क्यों रुक सकते थे?"

"बड़े आदमी?" मां ने हैरानी की नजरों से उसकी ओर देखा था_खैर यह बात तो नहीं है। श्याम जी लाल ऐसा तो कभी नहीं सोच सकते। मेरा ख्याल है तूने ही उन्हें कुछ कह दिया

"भला मैं क्या कहता मां?" उसने झूठ बोला था।

“अब मुझे क्या पता।" मां ने कहा था-"तू जाने या वे, मुझे इससे क्या है?"

उसे बताना पड़ा था—“मां, श्याम जी लाल मुझे एक बात समझाने आये थे। उन्होंने बताया है कि इन्सान को हमेशा इन्सान बनकर ही रहना चाहिये।"

"तू इन्सान नहीं है क्या?"

"हो सकता है मां।" उसने कहा था-"हर इन्सान की परख अलग-अलग होती है। कोई किसी को क्या समझता है, इस विषय में कोई क्या कह सकता है। हकीकत यही है मां कि चाचा जी अब बड़े आदमी बन गये हैं। प्रीति के बारे में कह रहे थे....."

"क्या....?" मां ने पूछा था।

“कह रहे थे....तुम्हारा प्रीति से मिलना-जुलना अच्छा नहीं है। वे प्रीति की शादी कर रहे हैं....उनके लिये इज्जत का प्रश्न पैदा हो गया है।"

मां ने कुछ नहीं कहा था परन्तु उनकी मनोदशा उससे छुपी न रह सकी थी। बे केबल एक निःश्वास भरकर रह गयी थीं।। उस दिन शायद पहली बार उसने महसूस किया था कि किसी को अपना बनाकर उससे अलग होना कितना कष्टप्रद होता है। प्रीति से उसका कोई सम्बन्ध न होता अथवा वह स्वयं ही प्रीति को बचन न देता, तब शायद उसे ऐसा महसूस नहीं होता। परन्तु इस दशा में जब प्रीति को उससे अलग किया जा रहा था, उसे पीड़ा का अनुभव हुआ था। उस दिन वह सारी रात सो नहीं सका था। रात भर करवटें बदलता रहा था। सोचता रहा था.....आखिर ऐसा होता क्यों है? प्रेम की राहों में यह समाज दीवार बनकर खड़ा क्यों हो जाता है? क्यों वह दो हृदयों का संगम नहीं होने देता? उसमें यदि वह प्रीति का दोष निकालता तो अनुचित ही था। प्रीति तो उसे अपना सब कुछ मान चुकी थी....उसके लिये अपना सब कुछ छोड़ देने को तैयार थी। अंत में उसके विचार केबल बिवशता' शब्द पर आकर अटक गये थे। वह कह उठा था—काश! वह विवश न होता। अगले दिन भाग्य ने उसका साथ दिया था और उसी कम्पनी में दो हजार रुपये की नौकरी मिल गई थी। सुनकर मां ने अपने भगवान को लाख बार धन्यवाद दिया था। दोनों वहनों ने शांति की सांस ली थी और उसने अपने को एक बोझ से मुक्त समझ लिया था।

उस दिन वह दफ्तर से घर लौट रहा था। एक दुकान के सामने उसने प्रीति को खड़े देखा। देखकर उसका अन्तर्मन कसमसा उठा था। उसके चलते हुये कदम जड़ हो गये थे। विनीत ने चाहा कि वह प्रीति को पुकार ले। उससे कहे, प्रीति! मैं तुम्हारे बिना जिन्दा नहीं रह सकता। किसी प्रकार इस दीवार को तोड़ डालो प्रीति। इसके अलावा भी न जाने कितने भाव उसके अन्तर में उमड़ रहे थे और वह प्रीति से बहुत कुछ कह देना चाहता था। परन्तु चाचा जी, उन्होंने तो कहा था कि भविष्य में कभी भी प्रीति से मिलने की कोशिश मत करना। मन में एक द्वन्द्व-सा छिड़ गया। उसने अपने आपको समझाने की कोशिश की थी, परन्तु प्रीति ने तो कुछ भी नहीं कहा था। और यदि स्वयं बे भी यहीं कहीं हुए तथा उन्होंने उसे प्रीति से बातें करते देख लिया तो? उसे चल देना पड़ा था। विवशता एक बार फिर उसके सामने आकर खड़ी हो गयी थी। लेकिन शायद प्रीति ने उसे देख लिया था। उसके चलने पर प्रीति ने उसे पुकारा था और उसे रुक जाना पड़ा था।

"विनीत ....!" प्रीति ने उसके बिल्कुल निकट आकर कहा। उसके स्वर में पीड़ा थी और चेहरे पर गम्भीरता स्पष्ट झलक रही थी।

"प्रीति!” उसने मुस्कराने का प्रयत्न किया था। परन्तु असफल रहा था।

"क्या बात है?"

"कुछ नहीं।"

“तुम रुके क्यों नहीं थे?" प्रश्न था।

"नहीं तो।" उसने कहा था-"तुमने पुकारा और मैं रुक गया। मुझे तो इस बात का पता भी न था कि तुम....."

"झूठ भी बोल लेते हो...?"

"झूठ कैसा?" उसने आश्चर्य से प्रीति की ओर देखा था।

"मैं काफी देर से तुम्हें देख रही हूं विनीत ।” प्रीति ने कहा था-"तुम भी रुककर मुझे देख रहे थे। तुमने शायद मुझे पुकारना उचित न समझा था। यही बात थी न?"

जैसे कि उसकी चोरी पकड़ी गयी थी। वह कुछ भी न कह सका था और दूर शून्य में कुछ खोजने लगा था, कुछ सोचने लगा था।

"क्या यह सच है विनीत?" प्रीति ने फिर मौन तोड़ा।

"क्या?” उसने अपनी ग्रीवा को ऊपर उठाया था। "मुझे देखकर भी तुमने मुझसे मिलना उचित न समझा था?"

"हो....।” उसे कहना पड़ा था।

"मेरी कोई भूल....?"

"नहीं....."

“नाराजगी?"

"वह भी नहीं।"
Reply


Messages In This Thread
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:56 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,479,535 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,068 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,223,480 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 925,044 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,641,747 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,070,533 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,933,809 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,999,778 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,010,444 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 282,848 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)