Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:59 PM,
#67
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
वह मुख्य द्वार से बाहर आ गया। अन्दर की घुटन और इस दुनिया में कितना अन्तर था? कितनी स्वतन्त्रता थी? उसने वर्षों के बाद संतोष की सांस ली थी। प्रसन्नता में डूबा हुआ वह घर की ओर चल दिया। रास्ते भर उसके मन में तरह-तरह के विचार चक्कर काटते रहे थे। वह सुधा और अनीता के बारे में ही सोचता रहा। दोनों ने किस प्रकार से अपने दिन काटे होंगे। सुधा भी अब तो बीस-इक्कीस वर्ष की हो गई होगी। अपने विचारों में खोये हुये विनीत ने लम्बा रास्ता तय कर लिया। बाजार में अपने बाल कटवाये....शेव बनवाई और थोड़ी देर बाद ही घर पहुंच गया। मकान के बाहर ही दो बच्चे खेल रहे थे। उसने किसी से कुछ नहीं पूछा और मकान के खुले दरवाजे के अन्दर दाखिल हो गया। आंगन में पहले इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई। फिर पुकारा—“सुधा....। अनीता....."

हृदय बुरी तरह से धड़क रहा था। मन में बिभिन्न प्रकार की कल्पनायें चक्कर काट रही थीं। तभी उसने देखा कि एक बारह-तेरह वर्ष की लड़की उसकी ओर आ रही है। आते ही उसने प्रश्न किया—“आप कौन हैं?"

"मेरा नाम विनीत है।"

"किससे मिलना चाहते हैं आप?"

"सुधा से....” उसने कहा।

"सुधा....?" लड़की ने आश्चर्य व्यक्त किया।

"हां....मेरी वहन।"

“यहां कोई सुधा नाम की लड़की नहीं रहती।"

"सुधा नाम की लड़की नहीं रहती?" उसने बुदबुदाया।

“जी....."

"और अनीता?"

"अनीता भी कोई नहीं।"

"ओह!" सुनकर विनीत का मस्तिष्क चकराकर रह गया। एक साथ कई प्रश्न उसके सामने आकर खड़े हो गये। सुधा और अनीता कहां गयीं? यह लड़की कौन है? उसके पास किसी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। उसकी समझ में नहीं आया कि वह किस प्रकार उससे कुछ और पूछ।

फिर भी उसने कहा-"तुम कौन हो?"

“मैं....मेरा नाम राखी है।”

राखी नाम की लड़की ने कहा और तुरन्त ही अन्दर चली गयी। विनीत आंगन में खड़ा रह गया।
उसने एक बार गहरी दृष्टि से चारों ओर देखा। यह देखने के लिये कि कहीं वह किसी दूसरे मकान में तो नहीं आ गया। परन्तु ऐसा नहीं था। सब कुछ बही था। तभी उसकी दृष्टि एक व्यक्ति पर पड़ी, जो उसी की ओर आ रहा था। विनीत के निकट आकर उसने कहा ____"कहिये....?"

“जी....जी....।" वह हकलाया।

“किससे मिलना है आपको?"

"सुधा.....अनीता से....मेरा नाम विनीत है।"

“विनीत।" वह व्यक्ति कुछ सोचने लगा और फिर धीरे से मुस्कराया-"अच्छा-अच्छा, प्रभु दयाल के लड़के....?"

"जी, ठीक पहचाना आपने।"

"आओ।" विनीत उस व्यक्ति के पीछे-पीछे चल दिया। उसने विनीत को कमरे में एक सोफे पर बैठने का इशारा किया और स्वयं भी एक सोफे पर बैठ गया। विनीत बड़े आश्चर्य से कमरे की सजावट को देख रहा था, जबकि उस समय कमरे में था ही क्या? उसे विचारों में मग्न देखकर उस व्यक्ति ने पूछा- क्या सोच रहे हो?"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:59 PM

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