Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:03 PM,
#86
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"परन्तु बाद में?"

"बाद में?"

"जब उन विचारों से निकलकर इंसान अपने बास्तबिक संसार में लौटता है, तब उसे क्या मिलता है....?" अर्चना ने पूछा।

"घुटन....तड़प और बेचैनी।” उसे कहना पड़ा।

अर्चना होठों में मुस्करायी—"विनीत साहब....छोड़ दीजिये उन विचारों को। उन भावनाओं को भी अपने निकट मत आने दीजिये जो आपको सबेरे से शाम तक परेशान करती रहती हैं....आपको जीने भी नहीं देतीं।"

"काश ऐसा होता।” विनीत ने गहरी सांस ली।

"क्यों?"

“यह संभव नहीं है अर्चना जी।"

"आप चाहेंगे तो संभव भी हो जायेगा।"

विनीत धीरे से हंसा। उसने एक बार अर्चना की ओर देखा, फिर नदी की लहरों पर दृष्टि जमाते हुये बोला-"यदि आज सभी कुछ मेरे वश में होता तो मैं आपको इस दशा में न मिलता। रही भावनाओं की बात....उन्होंने मेरा छीन ही क्या रखा है? अपने जो दूर हो जाते हैं, उन्हें तो कोई भूल ही नहीं पाता। हां प्रीति की बात है....मन प्रत्येक समय उनकी ओर देखता रहता है....परन्तु इसमें भी मेराही दोष है। मैंने जान-बूझकर उसका हाथ नहीं थामा।

"क्यों....?" अर्चना ने प्रश्न किया।

"क्योंकि ऐसी अवस्था में, जब मैं स्वयं बेघर हूं....किसी को सहारा कैसे दे सकूँगा?"

अर्चना ने कुछ नहीं कहा। खामोश नदी की लहरों को देखती रही। शाम घिरने लगी थी। पश्चिम की दिशा में उतरने बाला सूरज निरन्तर पहाड़ियों के पीछे होता जाता था। सहसा अर्चना की दृष्टि अपनी रिस्टवाच पर पड़ी। वह बोल उठी—“सुन्दर घाटी नहीं देखोगे?"

"अब नहीं।"

"क्यों?"

“न जाने क्यों मुझे इस खूबसूरत बादियों से डर लगने लगा है। कभी-कभी तो यह भी सोचने लगता हूं, काश कभी शाम न होती तो कितना अच्छा रहता।"

"तब फिर एक काम क्यों नहीं कर लेते आप?"

"क्या...?"

"कविता लिखना शुरू कर देते। खैर....आइये चलें।” अर्चना के कहने का क्या अर्थ था, इस बात को विनीत तुरन्त ही न समझ सका। वह उसके पीछे गाड़ी तक आ गया।

विनीत को महसूस हुआ कि जैसे उसने प्रीति से झूठ बोला है। प्रीति को अपने हृदय से निकाल देना उसके वश की बात नहीं थी। वह बिस्तर पर लेटा इसी विषय में सोच रहा था। कहने को तो उसने प्रीति से कह दिया था, परन्तु कितना कठिन था, इस बात का पता उसे अब चला था। प्रीति के विषय में सोचते ही उसका अन्तर्मन कसमसाकर रह गया। सोचने लगा, कैसी पुजारिन है वह....। क्या वह इस बात को नहीं जानती कि इंसान भाग्य के दायरे को तोड़कर कभी बाहर नहीं निकल सकता? क्या वह इस बात को नहीं जानती कि जो स्वयं अपना नहीं है, वह किसी का नहीं हो सकता। शायद वह यह सब नहीं जानती। और फिर उसने कहा भी था—'मैं इस बात को नहीं जानती कि मेरा देवता निर्मम है अथवा दयालु। मेरा काम तो केवल पूजा करना है....मुझे फल मिले अथवा न मिले, इस बात को मैं नहीं जानती।' उसने अर्चना को कई तरह से समझाने का प्रयत्न किया था। कई तर्क उसके सामने रखे थे। परन्तु प्रीति....पता नहीं क्या चाहती है वह। विनीत की सारी रात इन्हीं विचारों में डूबते उतराते बीती। सारी रात एक पल के लिये भी नींद न आ सकी।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:03 PM

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