Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:07 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"मेरा विचार है....तुम्हें बचपन से ही संगीत का शौक रहा होगा?" उसके कानों में कुमार साहब के शब्द पड़े तो वह चौंकी थी। पलटकर उसने उनकी ओर देखा और अपने आंचल को ठीक किया था।

“जी....!"

"स्वर कितना अच्छा है तुम्हारा!"

“जी....आप....।"

"प्रशंसा कर रहा हूं, बुरा नहीं बता रहा।” कुमार साहब अन्दर आ गये थे— "अनीता, यदि मैं तुम से कुछ कहूं तो....?”

“जी...." वह चौंकी।

"मेरा मतलब बुरा तो नहीं मानोगी?"

“जी....बुरा....."

"दरअसल मैं बुरा आदमी नहीं हूं...."

"परन्तु मैंने तो कभी ऐसा नहीं कहा....!"

"नहीं कहा।" वे बोले थे—“परन्तु जो कुछ मैं कहना चाहता हूं, उसे सुनकर हो सकता है, तुम मुझे बुरा समझने लगो।"

"साहब।" उसने साहस संजोया-"छोटे और बड़े में बही तो मुख्य अन्तर होता है। बड़े आदमी कुछ भी कहें, छोटे बुरा मानेंगे तो रहेंगे कहां? मैं आपकी नौकर हूं....मेरे बुरा मानने से होगा भी क्या?"

"बहुत कुछ।" उन्होंने कुछ रुककर कहा-"परन्तु इस विषय में तुम अपने को किसी विवशता में घिरी मत समझो। तुम यहां से पैसा लेती हो तो बदले में इस घर की सेवा भी करती हो। मैं तुम्हें बिवश नहीं करूंगा।"

"आप कुछ कह रहे थे?"

"हां। कभी-कभी तुम्हारे विषय में सोचने लगता हूं। रेखा ने मुझे तुम्हारे विषय में सब कुछ बता दिया है।"

"जी....."

"मुझे यह भी पता चला है कि तुम दोनों वहनों का इस दुनिया में और कोई नहीं है...।" कहकर कुमार साहब ने उसकी ओर देखा था।

“जी....."

"सुनो.....गलत मत समझना। दुनिया की नीयत अच्छी नहीं है। औरत चाहे होटल में जाये या फिर मन्दिर में, पुरुष उसको हमेशा एक ही दृष्टि से देखता है। वह दृष्टि कैसी है....उसमें क्या है, इस विषय में तुम्हें अनुभव भी होगा।"

“जी....।" न जाने क्यों उसने बुरा नहीं माना था।

“सुनो, यहां यदि कोई साध्वी भी रहना चाहे तो रह नहीं पाती। क्योंकि भूखा पुरुष कभी इस बात को नहीं चाहता। जो लोग स्वयं गिर चुके होते हैं, वे दूसरों को भी गिराना चाहते हैं। वे अपनी इस आदत से बाज नहीं आते।"

“जी....."

"तब मेरी मानो अनीता, तुम कोई अच्छा-सा लड़का देखकर अपनी शादी कर लो।"

“जी...?"

"इस काम को मैं करूंगा....बोलो...!"

"कुमार साहब!" जैसे उसके भाव उमड़ पड़े थे—“कभी शादी के विषय में भी सोचा था। इसके साथ बहुत सी कल्पनायें भी मैंने की थीं। परन्तु केवल सोचने तथा कल्पनायें करने का नाम ही तो जीवन नहीं है? वक्त ने मुझे धोखा दिया, मेरा अपना सब कुछ लुट गया। और आज....आज मुझमें इतनी सामर्थ्य भी नहीं है जो कि मैं अपने विषय में सोच सकूँ...."

"फिर क्या सोचती हो तुम...?"

"दुनिया के विषय में....। सोचती हूं, यहां इन्सान को किस प्रकार से जीना चाहिये अथबा मुझे इस दुनिया में कैसे जीना है।"

"फिर क्या समझ में आया?"

"केबल इतना कि मुझे सब कुछ सहन करने के बाद इस दुनिया में जीना पड़ेगा। अपने लिये नहीं तो अपनी वहन के सुखों के लिये।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:07 PM

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