Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:08 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
"और बदले में तुम दोनों को मेरा काम करना पड़ेगा....."

“यानि....।"

.
.
"कोई बुरा काम नहीं, इस बात का भी मैं बचन देता हूं कि तुम दोनों वहनों की इज्जत पर कभी आंच नहीं आयेगी। मेरा एक छोटा-सा धन्धा है।"

वह कुछ सोचने लगी थी। पता नहीं उसका क्या धंधा था? उसने इशारों ही इशारों में सुधा की ओर देखा था, जैसे कि पूछ रही हो, क्या इरादा है? इशारों में ही सुधा ने बताया था कि दीदी, फिलहाल तो पुलिस से बचो। बाद में कुछ और सोचा जायेगा....।

उस व्यक्ति ने फिर कहा था-"मैं समझता हूं, सोचने का समय न तो तुम्हारे पास ही है और न मेरे ही पास। यदि पुलिस की दृष्टि तुम पर पड़ गयी तो उस हालत में मैं भी तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा.....बोलो....."

"हम तैयार हैं......" सनकर उस व्यक्ति की आंखों में चमक आ गयी थी। उसने तरन्त ही संकेत से एक टैक्सी ड्राईबर को टैक्सी लाने के लिये कहा था। टैक्सी में बैठने से पहले उसने उनसे कहा था

"सुनो, तुम लोग अपनी सीट पर जरा झुककर बैठना।" टैक्सी उन दोनों को लेकर चल पड़ी। खिड़कियों के पर्दे सरका दिये गये। वह व्यक्ति आगे चालक के पास बैठा था।

सुधा बहुत ही घबरायी हुई थी। उसने उसे सांत्वना देते हुए कहा था—“घबराती क्यों है पगली? जो कुछ होगा देखा जायेगा....।"

"दीदी, पता नहीं....."

“सब कुछ ठीक हो जायेगा।"

"मेरा मतलब यह ब्यक्ति हमसे चाहता क्या है?"

“वह भी सामने आ जायेगा।" उसने कहा था। सुधा खामोश हो गयी थी। लगभग पौन घण्टे तक शहर की विभिन्न सड़कों के चक्कर काटने के बाद टैक्सी एक छोटे से होटल के सामने रुकी। टैक्सी का भाड़ा देने के बाद वह व्यक्ति उन दोनों को लेकर होटल के अन्दर दाखिल हो गया। सुधा का तो मारे घबराहट के बुरा हाल था। परन्तु किसी प्रकार अपने को संभाले हुई थी। घबरा तो वह भी रही थी, पता नहीं अभी जिन्दगी किस मोड़ पर जाकर रुकेगी। उसके भाग्य में अभी और क्या बदा है? उस समय तरह-तरह के विचार उसके मस्तिष्क में चक्कर काट रहे थे। बहुत-सा आशंकायें थीं। वह ब्यक्ति उन दोनों को लेकर एक कमरे में पहंचा— बैठिये।" उसने सामने पड़े सोफे की ओर संकेत किया। फिर बोला-"सबसे पहले तुम लोग कुछ खा पी लो। इसके बाद आराम से बैठकर सारी बातें की जायेंगी। बैसे तुम्हारी मजबूरी का गलत फायदा नहीं उठाया जायेगा।"

वह आश्वस्त तो खैर नहीं हुई थी क्योंकि उसे अनुभव था कि इस दुनिया में प्रत्येक इन्सान दूसरे की मजबूरी का लाभ उठाना चाहता है। बेटर नाश्ता लगा गया था। सुधा की तो इच्छा भी नहीं थी, परन्तु उसके कहने पर उसे खाना पड़ा था। उसने खाने में कोई बुराई नहीं समझी। इसके बाद उस व्यक्ति ने कहा था-"पहले मैं तुम्हें अपना परिचय दे दूं। मेरा नाम रतन कुमार है। तुम मुझे सिर्फ रतन कह सकती हो। मैं तुम दोनों का चेहरा तथा कपड़े बगैरह सब बदल दूंगा।"

"फिर हमें क्या करना पड़ेगा?"

"बताऊंगा।” रतन ने कुछ न कहकर कहा-"मैं तुम दोनों के लिये एक छोटा-सा मकान किराये पर ले दूंगा। तुम्हें पैसे सम्बन्धी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी।"

"और काम....?"

“वह क्या होगा?" उसके कहने से पहले ही सुधा ने पूछा था।

"तुम दोनों सबेरे तैयार होकर घर से निकला करोगी। तुम दोनों को ऐल्यूमीनियम के बर्तन बेचने का काम करना पड़ेगा।"

"बर्तन बेचने का....?"

"हां, परन्तु बर्तन बेचोगी नहीं। बर्तनों के नीचे टोकरी में छोटी-छोटी चार-पांच थैलियां होंगी। तुम्हें उन थैलियों को विभिन्न स्थानों पर देना होगा। काम समाप्त करके अपने स्थान पर आ जाया करोगी। इसके बाद पूरे दिन की छुट्टी और रात का आराम। मेरा एक आदमी तुम्हारे पास प्रतिदिन उन थैलियों को पहुंचा दिया करेगा।"

सुनकर वह कुछ सोचने लगी। उसे रतन की कही गई बात पर गहराई से विचार करना था। उसने सुधा की ओर देखा। "तुम्हारा क्या ख्याल है?"

"देख लो दीदी....काम तो बुरा नहीं है। ऐसी कोई दिक्कत भी नहीं है। और फिर हमें कहीं न कहीं तो ठिकाना देखना ही है।"

"ठिकाना ही नहीं।" रतन ने कहा था-"तुम दोनों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर रहेगी। इसके अलावा तुम्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होगी।"

"और पुलिस?"

"उसके पहचानने का तो सबाल ही पैदा नहीं होता। भई, तुम दोनों के चेहरों को बड़ी ही होशियारी से बदल दिया जायेगा।"

"कैसे....?”

"फेस मास्क द्वारा....मेरे पास है। मैं दिखलाता हूं...." कहकर रतन बाहर चला गया था। लौटने पर उसने अपने कोट की जेब में से एक रबर की झिल्ली निकालकर उसकी ओर बढ़ायी थी।

सुधा के चेहरे पर लगाकर देख लो....तुम्हारा रहा-सहा भय भी जाता रहेगा।" वह तो नहीं लगा सकी थी। उस काम को रतन ने ही किया था। उसने मास्क चढ़े हुये सुधा के चेहरे की ओर देखा था। देखकर वह आश्चर्य में डूब गयी थी। मास्क के कारण सुधा की सूरत एकदम बदल गयी थी। वह अधेड़ तथा कुरूप औरत दिखलाई दे रही थी।

सधा ने दर्पण में अपनी नई शक्ल को देखा था। देखकर उसकी धुंधली आंखों में चमक आ गयी। उसने कहा—“यह तो कमाल की बात है दीदी। भला इस सूरत में कोई मुझे लड़की बता सकेगा।"

"बिल्कुल नहीं।” रतन ने कहा।

“तब इनकी बात मान लेने में क्या हर्ज है?"

“कुछ नहीं।” उसने कहा था— रतन साहब, आप मकान का प्रबंध करा दीजिये....मैं तैयार
"शाम तक सब कुछ ठीक हो जायेगा।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:08 PM

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