RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
“मैं तुम दोनों को बाजारू बनाकर ही छोडूंगा।” मंगल उठकर गुस्से से पैर पटकता हुआ अपनी झोंपड़ी की ओर चला गया।
अनीता सुधा के पास आ गयी। सुधा ने सब कुछ देख ही लिया था। अनीता के आते ही वह बोली- दीदी, यह अच्छा नहीं हुआ।
"क्या ....?"
"मंगल तो बहुत ही बुरा आदमी है।"
"तो....."
"तुम्हें उससे नहीं उलझना चाहिये था।"
"पगली है तू।" अनीता बोली—“सुन! इस दुनिया में शराफत की कोई कीमत नहीं। यदि मैं मंगल को कुछ न कहती तो वह आगे बढ़ सकता था।"
"परन्तु दीदी...."
"तू चिन्ता मत कर सुधा। मैं तेरी बड़ी वहन हूं ना.....तेरी मां भी मैं ही हूं। मेरे होते कोई तेरी ओर उंगली भी नहीं उठा सकता। मैं अपने को मिटा डालूंगी, लेकिन तुझे कुछ भी न होने दूंगी। सब ठीक हो जायेगा।"
"दीदी...."
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विनीत ने चौंककर अपनी आंखें खोली। उसके मुंह से कराह भरा स्वर निकला—“मैं कहां हूं....?"
"तुम अस्पताल में हो।" सुनकर वह और भी बुरी तरह से चौंका। उठने की कोशिश की परन्तु दर्द के कारण उठन सका। उसे ध्यान आया कि वह सड़क पार करते समय एक कार से टकराकर गिर पड़ा था। वह तुरन्त ही बेहोश हो गया था। अब इतने समय बाद चेतना लौटी थी।
सहसा ही उसका हाथ अपने माथे पर बंधी हुई पट्टी की ओर चला गया। इससे पहले कि वह कुछ पूछता, निकट खड़े डॉक्टर ने कहा-"कुछ नहीं, मामूली सी चोट है....। जल्दी ठीक हो जायेगी। इसके अलावा और कुछ नहीं हुआ।"
“बैंक्यू डॉक्टर।” उसने कहा।
"क्या नाम है तुम्हारा?"
"विनीत ।"
“यहीं रहते हो...?" डॉक्टर उसके विषय में जानना चाहता था।
"नहीं.....” उसने उत्तर दिया।
"फिर....? दरअसल हमें रजिस्टर में तुम्हारा नाम-पता लिखना पड़ेगा। कागजी कार्यबाही भी पूरी करनी जरूरी होती है....."
विनीत खामोश रहा। उसकी समझ में नहीं आया कि वह डॉक्टर के प्रश्न का क्या उत्तर दे? वह तो एक बेघर -बेसहारा इन्सान था। एक्सीडेन्ट हो गया तो भले लोगों ने उठाकर अस्पताल तक पहुंचा दिया। मर जाता तो श्मशान घाट तक छोड़ने वाले भी मिल ही जाते। लेकिन वह मरा नहीं था, जिन्दा था। अभी दुनिया के बहुत से दुःख उसे उठाने थे।
डॉक्टर ने फिर अपनी बात दुहराई—“कहां रहते हो?"
"डॉक्टर, इतने समय से यही सोच रहा था कि आपके प्रश्न का क्या उत्तर दं? हां, एक बात बताइए....जो लोग नंगी धरती पर खुले आकाश के नीचे रहते हैं, उन्हें आप क्या कहते हो?"
“मतलब....?"
ऐसा भी तो कोई आदमी आपके पास आया होगा?"
“बहुत से आते हैं। परन्तु तुम....?"
“डॉक्टर, मेरा कहीं घर नहीं है। मेरा कहीं ठिकाना नहीं है। मैं एक.....एक बेसहारा इन्सान हूं। मेरा कोई नहीं है।" विनीत एक ही सांस में कह गया। डॉक्टर ने अजीब सी निगाहों से विनीत की ओर देखा। तभी एक लड़की ने उस कमरे में प्रवेश किया। आते ही उसने डॉक्टर से पूछा- क्या हुआ डॉक्टर?"
“होश आ गया है।"
"कुछ अपने विषय में बताया?"
"लगभग कुछ नहीं....शायद तुम पूछ सको।"
लड़की विनीत के पास आ गयी। उसने एक बार उसकी ओर देखा फिर पूछा-"आपका नाम?"
“विनीत ....परन्तु आप....."
मेरा नाम विभा है....आप मेरी गाड़ी से टकरा गये थे। शायद आप बेहद जल्दी में थे इसीलिये आपने ट्रेफिक पर भी ध्यान नहीं दिया था....."
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