Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:11 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
विनीत फिर खामोश हो गया। एक बार फिर उसकी दृष्टि विभा की दृष्टि से उलझकर रह गयी। न जाने क्यों वह बौखला-सा गया। विभा की पंखुड़ियां एक दूसरे से तनिक अलग हुई थीं। जैसे एक साथ ही सैकड़ों कमल खिल उठे हों। थोड़ी देर बाद ही नौकर शीशे की खूबसूरत ट्रे को लेकर कमरे में दाखिल हुआ। ट्रे को मेज पर रखा तथा बिभा का संकेत पाकर बापिस चला गया। विभा ने अपने लिये चाय बनायी। द्ध का गिलास विनीत की ओर बढ़ा दिया। गिलास को खाली करते समय भी उसकी दृष्टि विभा के चेहरे से टकरा ही जाती थी। अपनी इस हरकत पर वह स्वयं ही झुंझला उठा। पता नहीं बिभा उसके विषय में क्या सोचेगी....उसे कोई ऐसी हरकत नहीं करनी चाहिये जो उसके चरित्र की कमजोरी को जाहिर करे। फिर भी वह अपने आपको न रोक सका। उसने फिर बिभा की ओर देखा....वह जैसे गहरे पानी में गिरा हो, विभा ने उसे देख लिया था। वह बुरी तरह बौखला गया। इस बौखलाहट में दूध का गिलास उसके हाथ से छूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। बिभा खिलखिलाकर हंस पड़ी। विनीत ने बात बनायी- दरअसल....तबियत....!"

"इस रोग में ऐसा हो ही जाता है।"

“जी....."

"कोई बात नहीं...आप बिस्तर पर लेट जाइए।" विभा ने अपने प्याले को रखकर उसकी बांह थामी और उसे बिस्तर तक ले आयी।

शाम का खाना खाने के बाद विनीत बिस्तर पर लेट गया। वह तो यहां से जाना ही चाहता था परन्तु जब स्वयं दीवान साहब ने उससे कहा तो उसे रुकना पड़ा था। काफी रात तक वह सुधा और अनीता के बारे में सोचता रहा। पार्क वाले युवक की घटना को भूल नहीं पाया था। उस युवक ने तो स्वयं आत्महत्या की थी, इसलिये किसी पर खून का इल्जाम लगाने का प्रश्न पैदा नहीं होता था। यही सब सोचते-सोचते उसे नींद ने दबोच लिया। अचानक हड़बड़ाकर वह उठा। कोई उसे जगा रहा था। उसने पलके झपकाते हुए देखा। विभा थी। "ओह...आप....।" वह संभलकर बैठ गया।

"हां, पूछने चली आयी थी, अब कैसी तबियत है आपकी?" कहकर विभा एक कुर्सी खींचकर उसके बिस्तर के पास ही बैठ गयी।

"आपने तो व्यर्थ ही कष्ट किया....मैं बिल्कुल ठीक हूं।" विनीत ने एक बार उसकी ओर देखकर कहा। नाइटी में विभा और भी खूबसूरत लग रही थी। उसकी तबियत का हाल पूछने के बाद भी विभा वहीं बैठी रही। विनीत को बड़ा अजीब-सा लगा। खामोश रात....तन्हाई और एक खूबसूरत लड़की। वह अपने अन्दर एक बेचैनी-सी अनुभव करने लगा। उसने देखा, उस समय विभा की दृष्टि उसके चेहरे पर ही टिकी हुई थी। न जाने क्यों अपनी ग्रीवा को नहीं उठा सका वह। गहरी चुप्पी को विभा के स्वर ने तोड़ा
- "क्या सोच रहे हैं आप....?"

"जी, मैं! कुछ भी नहीं....।" वह हकलाया।

"झूठ! आप मेरे विषय में सोच रहे हैं।"

“जी....?"

“सोच रहे हैं कि कैसी लड़की है जो रात के अकेलेपन में चली आयी।"

"ज...जी....."

"न जाने क्यों मैं आपके विषय में जानना चाहती हूं।"

विनीत ने इस बात के उत्तर में अपनी ग्रीवा को उठाया और पलकें झपकाते हुए बिभा की ओर देखा। कोई उत्तर न दे सका वह। सोचने लगा, विभा उसके विषय में और क्या जानना चाहती है? परन्तु वह किसी नतीजे पर न पहुंच सका। बिभा ने फिर कहा-"आप कुछ बतायेंगे?"

"मेरी जिन्दगी में ऐसा कुछ नहीं बीता, जिसे सुनकर आपका मन वहल सके। मैं अपनी जिन्दगी को एक कहानी भी नहीं समझ सकता। क्योंकि प्रत्येक कहानी, चाहे वह सैकड़ों मोड़ों से गुजरी हो, कभी-न-कभी अपनी मंजिल पर जाकर पहुंचती है। और मेरी । जिन्दगी....अनगिनत राहों से गुजरने के बाद भी एक ही दायरे में घूम रही है। समझ नहीं सका, आखिर यह दायरा कब टूटेगा....।” विनीत ने कहा।

"बड़ी अजीब बात है।"

अजीब क्यों?"

"आपके इन शब्दों को सुनकर तो कुछ और भी अनुमान लगाया जा सकता है। मेरे विचार से आपने किसी से....."

विनीत ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही कहा-"प्यार किया था। मैं चाहता तो उसकी मंजिल तक पहुंच भी सकता था। परन्तु जान-बूझकर मैंने उसे ठुकरा दिया। इसलिये कि गैरों को अपना बनाने से पहले, मुझे अपनों की तलाश करनी थी।"

“यानि दोनों वहनें....?"

"हां....।"

"वे दोनों....."

"कह तो नहीं सकता परन्तु सुना है कि उन दोनों को लखनऊ में ही होना चाहिये। केबल अनुमान ही है। अनुमान गलत भी हो सकते हैं। एक बात मानेंगी?"

“कहिए....।" विभा ने कहा।

"मुझे, सबेरे यहां से चला जाने दीजिये।"

"क्यों....?"

“आपको मैं इस विषय में बता ही चुका हूं।"

"अब तो आपको डैडी से ही पूछना पड़ेगा। इस विषय में मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकती। सबेरे डैडी से कह देना।” विभा मुस्कुरायी।

“इसका मतलब आप मुझे उलझा रही हैं।"

"मुक्त ही कब हैं आप....."

“जी....." विनीत ने विभा की ओर देखा। वह समझ नहीं सका कि विभा के शब्दों का क्या आशय था। उसका चौंकना भी स्वाभाविक ही था। विनीत के चौंकने पर बिभा मुस्करायी, बोली-“मिस्टर विनीत , हम बो हैं जो लिफाफा देखकर मजमून भांप लेते हैं।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:11 PM

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