Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 01:12 PM,
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
दोनों बस्ती में पहुंचे। सुधा भी विनीत को पहचान नहीं सकी थी। परन्तु जब अनीता ने उसे बताया तो वह भी विनीत से लिपट गयी और देर तक रोती रही। थोड़ी देर बाद सुधा विनीत के लिये खाना ले आयी। आज उस झोंपड़ी में भी जैसे जीवन लौट आया था। तीनों अपने-अपने आंसू बहाकर पुराने दुःखों को भूलने की कोशिश कर चुके थे। खाने के समय विनीत ने कहा—“अनीता, कल यहां पुलिस आयी थी?"

"हां भैया....परन्तु तुम.....!"

"एस.पी. साहब ने मुझे सब कुछ बता दिया है।"

"जो कुछ बताया है, वह ठीक ही है भैया।" अनीता बोली- लेकिन हम दोनों को अपनी इज्जत बचाने के लिये ही....!"

“मैंने उनके मुंह से सुन लिया था."

विनीत अभी खाना खाकर उठा ही था, ठीक उसी समय झोंपड़ी के सामने पुलिस की एक जीप आकर रुकी। महिला पुलिस के साथ एस.पी. साहब भी नीचे उतरे। महिला पुलिस बाहर ही रही। एस.पी. साहब विनीत के निकट आ गये, बोले- क्या तुम अब भी अपनी वहनों के हाथों में हथकड़ी नहीं लगाओगे....?"

"हां, एस.पी. साहब।"विनीत बोला-"इन दोनों ने कभी मेरे हाथ में राखी बांधकर मुझसे अपनी रक्षा का वचन लिया था। आज मैं इनकी रक्षा तो नहीं कर सकता। परन्तु अपने ही हाथों से फांसी के तख्ते पर भी नहीं चढ़ा सकता। लेकिन एस.पी. साहब....."

"कहो।"

"शायद आप इसी अवसर की खोज में थे....."

“मतलब...?"

"मैं वर्षों के बाद अपनी वहनों से मिला हूं....और आप इन्हें गिरफ्तार करने आ जाये? आपको एक दो दिन का समय तो देना चाहिए था....।" कहते-कहते विनीत का गला भर आया। उसने याचना भरी दृष्टि से उनकी ओर देखा।

एस.पी. बोले-"विनीत, इन्सान भाबुक होता है। परन्तु इन्साफ को सीमा के अन्दर बांध लेने वाला कानून भाबुक नहीं होता। यदि वह भी तुम्हारी तरह भाबुक हो जाये तो वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सकता। ये दोनों लड़कियां समाज की दृष्टि में तुम्हारी वहनें हैं, परन्तु कानून इन सब रिश्तों से परे है। उसकी दृष्टि में ये खूनी के अलावा और कुछ नहीं हैं, जो कि कानून की दृष्टि में अपराध है।"

"ओह......"

"और कुछ कहना है तुम्हें?"

"नहीं साहब।” विनीत को अपनी आंखें पोंछनी पड़ीं—“यदि मैं कहना भी चाहूं....तब भी नहीं कह सकता। क्योंकि मेरी आवाज को सुनने वाला कोई भी नहीं है। यहां किसी के पास भी वह हृदय नहीं है जो वहन और भाई के रोदन को सुनकर रो उठे....जो यह महसूस कर सके कि एक भाई अपनी वहनों के बिना कैसे जिन्दा रहेगा। एस.पी.साहब....मैं समझता हूं आज तक आपने कानून को ही पढ़ा है, किसी के दिल की गहराई को आप नहीं जान सके। मैं केबल इन्हीं दोनों के लिये जिन्दा था साहब.....इन्हीं के लिये....।" विनीत की आंखें फिर छलक उठीं। उसने बल-पूर्वक अपने आंसुओं को अन्दर-ही-अन्दर पी लिया।

उन्होंने कहा—“परन्तु तुम अदालत की मदद ले सकते हो।"

“एस.पी. साहब, आप जान-बूझकर ऐसी बात कर रहे हैं।"

"क्यों....?"

"आप जानते हैं कि मैं एक बेघर, बेसहारा इन्सान हूं।"

उन्होंने कुछ नहीं कहा। हाथ का संकेत किया। महिला पुलिस इन्सपेक्टर अन्दर आ गयी। उनके संकेत पर सुधा और अनीता के हाथों में हथकड़ी लगा दी गयी। दोनों रो उठीं। विनीत ने कहा- "मुझे अफसोस है कि मैं तुम दोनों के लिये कुछ भी न कर सका। यदि मेरे ही हाथों एक गुनाह न हुआ होता तो आज तुम्हें यह दिन देखना न पड़ता। खैर, अनीता....जहां तक सम्भव हो, सुधा का ध्यान रखना।"

"भैया....!"

फिर बही उदासी और अकेलापन। स्टेशन से बाहर आकर विनीत फुटपाथ पर बैठ गया। बिल्कुल थका सा....जैसे अन्दर का इन्सान मर गया हो। जीने की लालसा बिल्कुल समाप्त हो चुकी थी। न कोई संगी था....न सहारा। सोचने लगा, शायद उसका जन्म ही इसलिये हुआ था कि वह जीवन भर भाग्य के थपेड़ों से टकराता रहे। भटकता रहे और उसे एक पल के लिये भी कभी चैन न मिले। बचपन में जो सपना देखा था, वह इस प्रकार अधूरा रह जायेगा, वह ऐसा कभी सोच भी नहीं सकता था। एक बार फिर नाब किनारे पर लगी थी, परन्तु वक्त की आंधी ने उसे फिर से बीच धारा में धकेल दिया था। एक बार फिर जीवन ने आंखें खोली थीं परन्तु फिर दुर्भाग्य ने उसे सदा सदा के लिये अंधेरों में डाल दिया था। समझ नहीं सका कि उसे अब करना क्या है। आखिर क्यों जिन्दा है वह? वहनों के लिये तो वह कुछ कर नहीं सकेगा। परन्तु आज भी एक और स्वप्न उसकी राह देख रहा था। इसी शहर के किसी कोने में से दो आंखें उसी की ओर देख रही थीं—प्रीति की आंखें। उन आंखों को धोखा देने का साहस उसमें न था....वह उसके प्रेम को नहीं ठुकरा सकता था। शायद इसीलिये अपना सब कुछ खो जाने के बाद भी एक आशा शेष थी।

यदि यह लालसा न होती तो वह कदापि उसी शहर में न आता। अब तो उसने एक निश्चय कर लिया था कि वह प्रीति से कह देगा, प्रीति....तुमने पत्थर के देवता की पूजा की थी। उसका जन्म-जन्म का प्यार तुम्हारे लिये हैं। अनजाने में ही उसके कदम उन्हीं गलियों की ओर उठ गये। अपने विचारों में उलझा वह प्रीति के घर के सामने पहुंचा। अभी उसकी आंखें उस ओर उठी ही थीं कि पीछे से एक सुरीला स्वर उसके कानों में पड़ा _____“मिस्टर विनीत ....।"
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 01:12 PM

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