मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-08-2021, 12:48 PM,
#52
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
मेरी माँ और हमारे मकान मालिक

प्यारे साथियो आपके लिए एक अंतरजातीय सेक्स कहानी लाया हूँ . भाइयो मेरा मकसद सिर्फ़ मनोरंजन करना और करवाना है किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नही आशा करता हूँ आप इस कहानी को सिर्फ़ मनोरंजन की दृष्ट से ही देखेंगे . ये सच्ची घटना है,मेरी माँ और हमारे मकान मालिक, राज के बीच हुए सेक्स की. मेरा नाम अनवर है. मैं पहले अपने माँ, और बाप के साथ कोलकाता में रहता था. मेरा बाप एक राजनैतिक पार्टी का कार्यकर्ता था, और माँ स्टेट बॅंक ऑफ इंडिया में काम करती थी. मेरी माँ एक बेहद खूबसूरत बंगाली औरत थी, उसका कद लगभग 5’5” था, फिगर 37द-31-38 थी. उसके लंबे बाल थे जो उसकी कमर तक पहुँचते थे, वो गोरे गदराए बदन, सुडोल बाहों और वक्ष की मालकिन थी. सेक्स में मेरी रूचि तब हुई जब मैं 11 साल का था. स्कूल में दोस्त लोग सेक्स की बातें करते और मस्तराम जैसी किताबें पढ़ते. कुछ दोस्त अपने माँ-बाप के सेक्स की बातें करते, मैं भी अपने माँ-बाप के सेक्स देखने की कोशिश करता, पर मेरे माँ-बाप के बीच सेक्स बहुत ही कम होता था. कभी कभी महीने में एक दो बार वो लोग सेक्स करते, उसमें भी उनका सेक्स कभी 5-7 मिनिट से ज़्यादा नही चलता था. मेरा एक दोस्त था विनय, वो अक्सर अपने बाप धरम और उसकी सेक्रेटरी नजीबा के सेक्स के किस्से सुनाता. मेरी भी बहुत इच्छा होती अपनी माँ को सेक्स करते देखने की. पर मेरे बाप को सेक्स में कोई रूचि नहीं थी, बात तब की हैं जब में 12 साल का था, माँ की उम्र तब 39 साल थी. पार्टी के चक्कर में मेरे बाप का एक लोकल नेता से झगड़ा हो गया. वो नेता वेस्ट बंगाल कमिटी का मेंबर था, और उसकी पहुँच बहुत उपर तक थी. बदला लेने के लिए उसने माँ का ट्रान्स्फर मुर्शीदाबाद के डोंकल इलाक़े में करा दिया. अब माँ के पास और कोई चारा नहीं था, वैसे भी घर उसी की सेलरी से चलता था, इसलिए वो नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी. बाप ने कोशिश की ट्रान्स्फर रुकवाने की, पर कुछ ना हुआ. फिर उन्होने फ़ैसला किया मैं और मेरी माँ डोंकल चले जाएँगे, क्यूंकी यही एक रास्ता बचा था. डोंकल बांग्लादेश की सीमा से बस 5 किमी दूर था, ये पूरा मोमडन इलाक़ा था, यहाँ की 95% जनसंख्या हिंदू थी, 5% हिंदू थे, जो की सब दलित थे यहाँ माहौल बहुत कन्सर्वेटिव था. कोलकाता में तो माँ स्लीव्ले ब्लाउस वाली ट्रॅन्स्परेंट साड़ियाँ पहनती थी. यहाँ वो साड़ियाँ नही पहन सकती थी, ऐसे माहौल में साड़ी पहनती तो पूरा बाज़ार पागल हो जाता. इसलिए माँ अब सलवार कमीज़ पहनने लगी, पर उसके टाइट सलवार कमीज़ में भी उसके गदराए बदन को देख के लोग उसको घूरते थे. यहाँ घर ढूँढने में भी दिक्कत थी, माँ के बॅंक मॅनेजर ने बॅंक के पास ही अज़ीम गंज इलाक़े में एक घर ढूँढ दिया. घर का मालिक एक पहलवान था, उसकी डोंकल में बहुत बड़ी मिठाई की दुकान थी, सभी होटेलों में उसी की दुकान से मिठाई जाता था. उसकी दुकान भी घर के पास ही थी. उसका नाम राज था, वो एकदम जैसा दिखता था, उसका कद 6 फुट, बदन हटटा-कॅटा, चौड़ी छाती, थोड़ा काला रंग था. उसने मूछें नहीं रखी थीं, पर वो लंबी दाढ़ी का मालिक था. वो हमेशा पठानी कुर्ता पाजामा या कुर्ता लुंगी पहनता था. कभी कभी सर पे टोपी भी पहन लेता था. मिठाई की दुकान चलाने के साथ साथ वो पहलवानी भी करता था, और अखाड़े में कुश्ती करता था, इसलिए वो सांड जैसा दिखता था. उसका घर काफ़ी बड़ा था, नीचे वो खुद रहता था, उपर का फ्लोर हमें किराए पर दे दिया. उसने शादी नहीं की थी, उसकी उम्र लगभग 42 साल की थी. वो लोकल मुनिसिपल काउन्सिल का काउन्सिलर भी था, इसलिए थोड़ी गुंडागर्दी भी करता था, मैने कई बार उसे फोन पे गाली गलोच करते सुना था, पर माँ और मेरे साथ बहुत प्यार से बात करता था. मुझे खिलोने या चॉक्लेट देता, माँ को हसाने की कोशिश करता. इसका एक कारण था, मैने देखा वो माँ को बहुत अजीब नज़र से घूरता था, माँ के बदन और उसकी मटकती गाँड को निहारता. वो उसको उसी नज़र से देखता जिस नज़र से एक ठरकी आदमी एक खूबसूरत औरत को देखता है. शायद माँ को भी ये बात पता थी, इसलिए वो उससे ज़्यादा बात नहीं करती थी, हालाँकि वो कभी कभी अपनी बातों से माँ को हंसा देता था. उसे शायरी भी आती थी, इसलिए वो उसको गालिब के शेर सुनाता. धीरे-धीरे मैने देखा माँ की झिझक कम होने लगी थी, वो भी अब उसे खुल के बात करती. बातों बातों में कभी कभी राज माँ के बदन को छू देता. अब तो वो कभी कभी हमारे साथ ही रात का खाना ख़ाता. एक महीने के बाद सब नॉर्मल सा लगने लगा था. जो डर था की हम एक इलाक़े में जा रहे हैं वो कम हो गया था. माँ अब राज के साथ घुल मिल गयी थी, मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था. तकरीबन एक महीने बाद की बात है, रविवार का दिन था. मैं उपर अपने कमरे में बैठ के होमवर्क कर रहा था. मैने देखा माँ मेरे कमरे के बाहर खड़ी छुप के नीचे आँगन की तरफ देख रही थी. काफ़ी देर तक नीचे देखने के बाद वो अंदर आ गयी. मैं बाहर गया और आँगन की तरफ़ देखा, वहाँ डंब-बेल और कुछ फिज़िकल एक्सर्साइज़ का सामान पड़ा था. मैं समझ नहीं पाया माँ क्या देख रही थी. जैसे ही मैं अंदर आने लगा, नीचे राज आँगन में आया. वो केवल एक छोटे से लंगोट में था, उसका पूरा बदन पसीने से भीगा हुआ था. क्या बदन था उसका, एकदम डब्ल्यूडब्ल्यू एफ के पहलवानों जैसा, पर उसके बाल बहुत थे. पूरा बदन और पीठ बालों से भरी हुई थी. मुझे समझने में देर ना लगी, माँ राज को कसरत करते हुए देख रही थी. ऐसे मर्दाना बदन को देख के कोई भी औरत गर्म हो जाए. मैने सोचा माँ राज के पसीने से भरे मर्दाना जिस्म को देख रही थी. एक महीने से वो अपने पति से दूर थी. वैसे भी उसका पति सेक्स में कम ही रूचि रखता था, उसकी शारीरिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं थी. वो तो बस ऐसे ही एक नंगे पहलवान को देख के नयनसुख प्राप्त कर रही थी, और अपने अंदर की आग को तृप्त कर रही थी. मुझे भी अजीब सी उत्तेजना हुई, मेरी माँ एक ग़ैर मर्द की तरफ़ आकर्षित थी, क्या वो इससे ज़्यादा कुछ करेगी, या बस ऐसे ही राज को नंगा देख के अपनी आप को शांत करेगी? अगले ही दिन एक और घटना हुई. मैं उपर अपने कमरे में बैठ के होमवर्क कर रहा था. तभी मुझे माँ और राज की हँसने की आवाज़ सुनाई पड़ी. मैं बाहर आ के देखने लगा. वो दोनों नीचे आँगन में खड़े थे. माँ ने काले रंग का टाइट सलवार सूट पहना था, वो एकदम बला सी सुंदर लग रही थी. राज एक कुर्ते और लुँगी में था. वो उसको शायरी सुना रहा था, और उसके खूबसूरत गोरे बदन की तारीफ कर रहा था. माँ भी मुस्कुरा रही थी. तभी अचानक राज ने माँ को अपनी बाहों में भर लिया, और उसे चूमने की कोशिश करने लगा. माँ एकदम से चौंक गयी, उसने अपने आप को राज की बाहों से छुड़ाने की कोशिश की और अपना मुँह फेर लिया ताकि राज उसको किस ना कर सके.

वो बोली, “क्या कर रहें हैं आप?”
राज बोला, “माँ जी आपको प्यार करने की कोशिश कर रहा हूँ.”
माँ, “छोड़िए मुझे प्लीज़, मैं शादीशुदा हूँ, ऐसी हरकत मत कीजिए मेरे साथ.”
राज, “आप भी तो मुझे चाहती हो!”
माँ, “क्या कह रहे हैं आप?”
राज, “कल आप मुझे छुप-छुप के देख रही थीं, सच बताइए!”
माँ के पास कोई जवाब नहीं था, राज ने उसकी चोरी पकड़ ली थी.
राज, “देखिए मुझे आप बहुत अच्छी लगती हैं, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ. आप मुझसे प्यार नहीं करती?”
माँ, “पर मैं शादीशुदा हूँ, मेरा 12 साल का बच्चा है, मैं आपके साथ रिश्ता नहीं बना सकती.”
मैने सोचा माँ ने साफ मना नहीं किया बल्कि अपने शादीशुदा होने का बहाना लगाया.

राज, “अगर मैं आपको पसंद हूँ तो इसमें बुरा क्या है? आपको किसी से डर लगता है?”

माँ, “नही ये रिश्ता नहीं बन सकता, मैं एक हिंदू औरत हूँ, और आप हिंदू, ये रिश्ता समाज को मंज़ूर नहीं होगा.”

राज, “तो हम किसी को पता नहीं चलने देंगे. आपकी बातों से मुझे लगा था आपके और आपके पति में प्यार नहीं है, मैं आपको वो प्यार दे सकता हूँ जो आप ढूँढ रही हो. मान जाइए माँ जी प्लीज़, मैं आपको बहुत प्यार करूँगा, मुझसे अब आपसे दूर नही रहा जाता.”

माँ, “नहीं ये ग़लत है.”

राज, “कुछ ग़लत नहीं है, आपको प्यार का पूरा हक़ है, अगर आपका पति अपना फ़र्ज़ नही निभा रहा तो आपको हक़ है की आप बाहर से वो प्यार पायें जो हर औरत की चाहत होती है.”
माँ चुप रही. राज ने अभी भी माँ को अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ा हुआ था. मुझे बहुत उत्तेजना हो रही थी, मेरी माँ को एक लंबी दाढ़ी और मूछों वाले मर्द ने अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ा हुआ था, और वो बेबस छटपटा रही थी.

राज बोला, “मैं चाहता तो आपके साथ ज़बरदस्ती भी कर सकता था, पर उससे आपको दुख होता. और वैसे भी मर्ज़ी में जो मज़ा है वो ज़बरदस्ती में नहीं. मैं चाहता हूँ कि आप अपनी मर्ज़ी से मेरे साथ सेक्स करें मैं आपको जाने देता हूँ, पर मैं तब तक कोशिश करूँगा जब तक आप खुद चलके मेरी बाहों में नहीं आतीं.”

माँ उपर आ गयी, मैने नाटक किया जैसे मैने कुछ सुना या देखा नहीं. रात भर मुझे नींद नहीं आई, मेरी आखों में वही दृश्य घूम रहा था, मेरे माँ एक ग़ैर मर्द, राज की बाहों में. मैं यही सोच रहा था क्या मेरी माँ मुस्लिम समाज की मर्यादाओं को तोड़ते हुए शादीशुदा होते हुए भी एक ग़ैर हिंदू मर्द से शारीरिक रिश्ता बनाएगी और क्या वो उसके साथ सेक्स करेगी? वैसे भी वो प्यासी है, कब से उसने सेक्स नही किया है. मुझे विनय के किस्से याद आए, कैसे एक शादीशुदा औरत नजीबा विनय के बाप धरमके साथ सेक्स करती थी. विनय बताता था, धरमऑफीस में या अपने घर में दिन रात नजीबा के साथ सेक्स करता था, और नजीबा भी धरमके प्यार में पागल थी. मैं तो पहले ही अपनी माँ को सेक्स करते देखना चाहता था. क्या मेरी माँ एक हिंदू मर्द से सेक्स करेगी? ये ख्याल ही मेरे लिए बहुत एग्ज़ाइटिंग था. रात के सन्नाटे में मुझे माँ के कमरे से गरम आहें सुनाई दे रही थी, मैं समझ गया, शाम की घटना के बाद माँ भी गर्म थी. माँ राज से शारीरिक रिश्ता बनाने से डर रही थी, क्यूंकी, एक तो वो शादीशुदा थी, और दूसरा, राज एक हिंदू था. कहाँ एक शुद्ध मुस्लिम औरत, माँ, और कहाँ एक पहलवान हिंदू मर्द राज . एक मुसलमान औरत होते हुए वो एक हिंदू के साथ सेक्स करने के बारे में सोच भी कैसे सकती थी. कहाँ उसका पति पार्टी का कार्यकर्ता था और मुस्लिम धर्म का प्रचार करता था, और कहाँ वो एक पहलवान हिंदू मर्द से सेक्स का सपना देख रही थी. पर क्या वो अपनी सेक्स की आग को भुजाने के लिए अपनी शादी और धर्म को भुला के एक हिंदू मर्द की बाहों में जाएगी? पता नहीं क्यों, मैं चाहता था कि ऐसा ही हो, मेरी मुस्लिम माँ, सब कुछ भुला के उस हिंदू मर्द के बिस्तर में जाए और उस हिंदू मर्द से वो प्यार पाए जो हर औरत का हक़ होता है, और जिस प्यार को वो अपने पति से नहीं प्राप्त कर पाई थी. अगले 2-3 दिनों तक राज ने माँ से बात नहीं की, पर वो माँ को अपना मर्दाना जिस्म दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था. वो सिर्फ़ एक लुंगी में घूमता, उसकी बालों वाली चौड़ी छाती देख के माँ के जिस्म में आग लग जाती थी. माँ भी मौका ढूँढती रहती राज के आधे नंगे शरीर को देखने की. 2 दिन यही चलता रहा. राज जान भूझ कर माँ के सामने सिर्फ़ लंगोट या लुंगी में घूमता. माँ का धैर्य टूट रहा था, उसका दिमाग़ मना कर रहा था एक हिंदू मर्द से शारीरिक रिश्ता बनाने को, पर उसका दिल नहीं मान रहा था, वो भूखी थी एक मर्द के प्यार के लिए. और आख़िर वही हुआ, माँ के सब्र का बाँध टूट गया, ये बात भुलाते हुए की वो एक मुस्लिम औरत है और राज एक हिंदू, वो अब उसके साथ सेक्स करने के लिए पागल थी.
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-08-2021, 12:48 PM

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