मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-08-2021, 12:53 PM,
#84
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
सुहागरात में ऐसा ही होता है

आज से १५ साल पहले की बात है, मैं अपने पिता जी और माँ के साथ कानपूर से दूर एक कस्बे नरवाल में रहती थी. मेरा माता पिता दोनों ही तहसील में काम करते थे, में उनकी अकेली बेटी थी

हम लोग कुछ समय पहले ही नरवाल आये थे और वहीँ के एक स्कुल के मैनेजर साहब के घर में रहते थे. मै उसी स्कुल में ही पढ़ती थी. मैनेजर साहब ३७/३८ साल के थे और उनकी पत्नी ३५ साल की थी और उसी स्कुल की प्रिन्सिपल थी. क्यों की हम उन्ही के घर में किरायदार थे इसलिए काफी घुल मिल गए थे . मै उनको चाचा और चाची कहती थी उनके कोई बच्चा नही था इस लिए वो मुझे अपनी बच्ची की तरह ही प्यार करते थे और मेरा ख्याल रखते थे. मै जब स्कुल से लौटती थी तब माँ और पिता जी दफ्तर में ही होते थे इस लिए मेरी ज्यादा वक्त उनके साथ ही गुजरता था.

मेरे इम्तहान चल रहे थे तभी पिता जी के पास खबर आई की शासन से लखनऊ में एक वर्कशॉप लगी है जिसमे मेरे माँ और पिता जी का जाना जरुरी है. मेरे पिता जी परेशान हो गए की कैसे मुझे यहाँ छोड़े, अभी इम्तिहान चल ही रहे थे. पिता जी ने मैनेजर चाचा और उनकी पत्नी को अपनी समस्या बताई तो उन्होंने प्रिंसिपल चाची ने कहा," भाई साहब चिंता की कोई बात नहीं, आप जाये कनिका बिटिया को हम सम्भाल लेंगे, उसका साल खराब नही होने देंगे."

यह बात सुन कर मेरे पिता जी को सकून हुआ और फिर ५ दिन की वर्कशॉप के लिए माँ के साथ लखनऊ चले गये.

मेरा आखरी पेपर था, प्रिंसिपल चाची ने कहा-," आज आखरी पेपर है , भगवान का नाम लेकर पर्चा लिख आओ सब ठीक रहेगा. घर आने के बाद हम बाहर खाने जायेंगे."

मेरा पेपर अच्छा हो गया , बीच बीच में प्रिंसिपल चाची आकर मुझे देख भी जाती थी. स्कुल से लौट के मैंने कपड़े बदले और सो गयी. चाची भी थोड़ी देर बाद स्कुल से लौट आई और मुझे आवाज दी,"कनिका मेरे कमरे में आजाओ मै आगयी हूँ."
मैं चाची के पास लेटी तो चाची ने पूछा." पेपर कैसा रहा?"
मैंने कहा," बहुत बढ़िया!"
तभी चाची ने कहा-,"यह तो सिर्फ कागजी इम्तिहान था , तुम्हें जिंदगी के इम्तिहान के बारे में पता है?"
मैंने कहा," नहीं!"
चाची ने कहा,"माँ ने तुम्हें कुछ नहीं बताया?"
मैंने कहा-,"नही!"
"माहवारी के बारे में माँ ने कुछ बताया?"
"हर महीने में मुझे बहुत तकलीफ होती है, लेकिन माँ ने इसके लिये कुछ भी नहीं बताया।"
"तुम्हारी माँ बहुत व्यस्त रहती हैं, उन्हें पता ही नहीं कि बेटी कब जवान हो गई! लड़की को जीवन में बहुत सारी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जो अगर पता न हो तो पूरे जीवन में बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें इसके बारे में आने वाले दो चार दिन में सब कुछ सिखा दूंगी और कोई फ़ीस भी नही लूँगी."

कुछ नया सिखने को मिलेगा, सोच कर मैं झट से मान गई। फिर हम सो गये।

शाम को मैनेजर चाचा घर आये, प्रिंसिपल चाची ने मेरे सामने चाचा से कहा," कनिका सब कुछ सीखना चाहती है, क्यों जी सीखा दे इसको?"
मैनेजर चाचा ने आँखों आँखों में प्रिंसिपल चाची से कुछ कहा तब वो बोली," अरे! तुम कनिका बिटिया से ही पूछ लो! क्यों कनिका, बता अपने चाचा को?"
मुझे चाचा में कुछ हिचकिचाहट दिख रही थी तो मैंने कहा ," चाचा हाँ ! आप दोनों मुझे सिखा दो."
उन्होंने कहा," तुम अपने माँ बाप को इसके बारे में कुछ नहीं बताओगी?"

मैं मान गई। शाम को पाँच बजे चाची मुझे बाज़ार ले गई, वहाँ उन्होंने मेरे लिये शॉपिंग की पर ऐसी शॉपिंग माँ ने कभी नहीं की थी !चाची ने मेरे लिये लाल रंग की सुंदर ब्रा और पैंटी खरीदी, वीट क्रीम और कुछ सौंदर्य प्रसाधन खरीदे। मुझे मेरी पसंद की ढेर सारी चोकलेट भी खरीद कर दी। मैं खुश थी।

छः बजे हम घर पहुँचे। बाहर धूप के कारण घर आकर चाची ने मुझे नहलाया और शरीर की सफाई के बारे में बहुत कुछ सिखाया। शाम सात बजे उन्होंने मुझे कहा,"आगे जाकर मुझे लड़की के सारे काम सीखने पड़ेंगे."

नई ब्रा और पेंटी पहन कर मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था क्योंकि मैंने पहले कभी ब्रा पहनी ही नहीं थी और चूत के बाल साफ करने से थोड़ी खुजली भी हो रही थी। चाची ने एक क्रीम लेकर दी रही और मुझे वहां के बाल साफ़ करने को कहा था.

तब लगभग साढ़े सात बजे चाची ने कहा-,"आज मैं तुम्हें जीवन का सबसे बड़ा पाठ सिखाऊँगी."

बाद में उन्होंने मेरी सुंदर तैयारी की, उनके शादी के खूबसूरत फोटो दिखाये और कहा-,"आज मैं तुम्हें दुल्हन बनाऊँगी."
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन मन में गुदगुदी भी हुयी. कौन ऎसी १५ साल की लड़की होगी जिसे दुलहन का श्रंगार करना अच्छा न लगता हो? मैं भी मान गई.

बाद में उन्होंने मुझे उनका शादी का जोड़ा पहनाया, मेरी फोटो भी खींची, मुझे नजर ना लगे इसलिये काला तिल गाल पर लगाया।

मुझे मजा आ रहा था। बाद में चाची ने मुझे कहा," शादी पहली रात यानि ‘सुहागरात’ सबसे प्यारी होती है. हर लड़की इस रात के लिये तड़पती है. जिंदगी का सबसे बड़ा सुख इस दिन मिलता है."

मुझे चाची की पूरी बात तो नही समझ में आई लेकिन अंदर एक खलबली जरूर मची हुयी थी.

उन्होंने फिर कहा," क्या तुम वो मजा लेना चाहोगी? इसमें थोड़ा दर्द होता है पर मजा भी बहुत आता है. मैंने तो यह मजा तुम्हारी उम्र में ही कई बार चखा था और आज भी हर रात चख रही हूँ."

मैंने तुरंत हाँ कर दी।

सुहागरात में दुल्हन किस तरह बैठती है, कैसे अपने पति को बादाम का दूध पिलाती है, फिर कैसे शर्माती है, ये सब बताया और यह भी कहा," आज इसका प्रैक्टीकल भी तुम से करवाऊँगी."

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

फ़िर उन्होंने कमरा सजाया, कमरे में इत्तर छिड़का. शादी के जोड़े में मुझे बड़ी गर्मी लग रही थी लेकिन मैं चुप रही क्योंकि मुझे कुछ नया सीखना था.

बाद में उन्होंने मुझे बेडरूम में पलंग पर घूंघट लेकर बिठाया.

थोडी देर में वहाँ मैनेजर चाचा आ गये, उन्होंने भी नया कुरता पैजामा पहन था. आज वो बहुत ही अलग लग रहे थे. तभी सुंदर नाइटी में उनके साथ कैमरा लेकर चाची भी पहुँची और मुझे बोली," यह तुम्हारी पहली सुहागरात है अपने पति (चाचा) और गुरु (चाची) के पैर छुओ."

मैं कपड़े सम्भाल कर पलंग से नीचे उतरी और चाचा के पैर छुए।

उन्होंने मुझे मुँह दिखाई के तौर पर 100 रुपये दिये. मैं खुश हो गई, फ़िर मैंने चाची के पैर छुए. उन्होंने आशीर्वाद दिया," ऐसी रात तुम्हारी जिंदगी में हर रोज आये!"

फिर आगे बढ़ कर उन्होंने मुझे चुम लिया और मेरे हाथ में तीन गोलियाँ देकर कहा," यह छोटी गोली तुम्हें बड़ी सहायता करेगी, इसे दूध के साथ ले लो और दूसरी गोली तुम्हें गरमाएगी करेगी, तीसरी गोली तुम्हें दर्द नहीं होने देगी."

चाची की दी हुई गोलियाँ मैंने बिना कुछ कहे दूध के साथ ले ली और पलंग पर घूंघट लेकर बैठ गई.

चाचा जी ने फिर मुझे प्यार से सहलाया मेरे बदन में मानो बिजली दौड़ गई. घूंघट के कारण कुछ दिख नहीं रहा था. चाचा चाची बात कर रहे थे, हंस रहे थे," फ़ूल सी गुड़िया है धीरे करना, वैसे मैंने गर्भ निरोधक गोली और पेन किलर भी दे दी है."

चाचा ने अपने कपड़े उतार दिये और वो अंडर वियर में आ गये. धीरे से उन्होंने मेरा घूँघट खोला और उनके मुँह से शब्द निकल पड़े-,"बहुत सुंदर, बिलकुल पारी!"

मैं सहम गई और आंखें बंद कर ली. उन्होंने मुझे बड़े प्यार से चूमा. पहले मेरे गालों को बाद में माथे को. मेरी बिंदी हटा दी, कान के बूंदे और गले का मंगल सूत्र भी निकाल कर रख दिया.

उसके बाद उन्होंने चाची को मेरी नथ निकालने को कहा. वे हंसी और बड़े प्यार से नथ निकाल दी.

धीरे धीरे वो मेरे पूरे बदन को छू रहे थे, मुझे गुदगुदी हो रही थी.

फ़िर उन्होंने मुझे खड़ा किया और मेरा घागरा खोल दिया. घागरा भारी होने से नीचे चला गया। मैंने पकड़ने की कोशिश की पर चाची ने मेरे हाथ पकड़ लिये.

फ़िर उन्होंने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मैं थोड़ी चिल्लाई,"चाची ये क्या!"

पर चाची ने कहा," चुप रहो, सुहागरात में ऐसा ही होता है."

अब मैं केवल ब्रा और पेंटी में खड़ी थी और मैने मेरा मुँह हाथ से ढक लिया. मुझे शर्म आ रही थी पर गोली की वजह से उत्तेजना भी हो रही थी.

चाचा ने मुझे बाहों में भर लिया और जोर से दबाया. उससे मेरे चुचूक उनके सीने से रगड़ गये. चाची रसोई से बाऊल में रसगुल्ला ले आई और मेरे मुँह में दे दिया. चाचा ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और एक झटके में मेरी पेंटी निकाल फेंकी.

मैं डर गई.

तभी चाची ने और एक रसगुल्ला मुँह में खिलाते हुए मेरी ब्रा निकाल फेंकी.
मै नंगी होगयी थी .मेरा शरीर काँप रहा था. तभी मुझे महसूस हुआ की मेरी चूत पर कुछ रेंग रहा है. मैंने आँखे खोली तो देखा चाचा मेरी चूत पर अपनी जीभ रखे हुए है . मेरी चूत पर पहली बार ऐसा कुछ हुआ था और ऐसा लगा जैसे सैकड़ो कीड़े मेरी चूत पर रेंग रहे है. मै बेहद घबड़ाई, लेकिन न जाने क्यों मुझे वो एहसास अच्छा लग रहा था. तभी चाची मेरे चुचूक को अपने मुह में लेकर चूसने लगी.

मै दोनों इस तरह के अनजान एहसास को एक साथ पाकर कुनमुनाने लगी.

चाची मेरी चुन्ची को चूमते हुए बोली,"-,"ऐसा ही होता है सुहागरात में! चुप रहो और मजे लो."

चाचा की जीभ मेरी चूत में जाती तो मैं मजे से तड़प उठती. अब चाचा ने मेरे दोनों पैर ऊपर उठाये और चाची ने रसगुल्ले का रस मेरी चूत में डाल दिया.

बहुत गुदगुदी हुई. फिर चाचा ने अपनी जीभ से वो रस चाट चाट कर चूस लिया. बाद में चाची ने दो रसगुल्ले मेरी कड़क चूचियों में फंसा दिये और चाचा ने वो पूरी उत्तेजना से चूस कर खाये. इसमें मेरे चुचूक पर उनके दांत भी गड़ गये.

चाची ने कहा," गोली खाई है तो दर्द कम होगा."

अब चाची ने मुझे नीचे उतार कर बैठने को कहा और चाचा पलंग पर बैठ गये।

अब उन्होंने कहा,"आज मैं तुम्हे लंड चूसना सिखाती हूँ."

मैंने चौक कर चाची की तरफ देखा लेकिन चाची ने मेरी तरफ ध्यान न कर चाचा का अंडरवियर नीचे खीच दिया. जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, चाचा का बड़ा सा लंड फ़ुफ़कारता हुआ निकल आया. मै तो उसको देख कर ही हड़बड़ा गयी. मैंने लड़को के लंड इधर उधर सड़क पर पेशाब करते हुए देखा था लेकिन ये तो बिलकुल ही उनसे अलग था. मै लंड देख बुरी तरह घबड़ा गयी थी. अजीब से दहशत दिल में होगयी थी लेकिन उसके साथ मेरी सांस भी भारी चलने लगी.

फिर उन्होंने चाचा जी का लंड अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी.वो उसको ऐसा चूस रही थी जैसे वो आइसक्रीम की बार खा रही हों.फिर उन्होंने मुझसे वैसे ही करने को कहा, लेकिन मैंने मना कर दिया.

तब उन्होंने चाचा के लंड पर ढेर सारा चॉकलेट लगा दिया और कहा," इसे चॉकलेट समझकर चूसो! बड़ा मजा आयेगा."

मैं मान गई क्योंकि मुझे चॉकलेट पसंद थी.

चाची ने चाचा का लंड पाने हाथ से पकड़ के मेरे ओठो पर लगा दिया और चाचा ने जोर लगा कर उसको मेरे मुँह ने डाल दिया. मुझे उनके लंड पर लगे चॉकलेट का स्वाद आरहा था और चाचा लंड को धीरे धीरे मेरे मुँह के अंदर बाहर करने लगे. चूसते-चूसते चोकलेट का स्वाद बदल रहा था. अब वो लंड बहुत बड़ा हो गया था और चाचा मेरे बाल पकड़ कर उसे अंदर तक मेरे गले तक डाल रहे थे. मुझे सांस लेना मुश्किल हो रहा था.

चाची मेरे चूचियाँ और चुचूक चूस रही थी.

तभी चाचा ने कहा," मैं झड़ने वाला हूँ!"

चाची ऊंघती हुयी आवाज में कहा,"अंदर ही झड़ जाओ."

और जोर से कुछ मलाई जैसी चीज मेरे मुँह में भर गई, वो मेरे गले तक पहुँची.मुझे ऐसा लगा कि मैं उलटी कर दूंगी पर चाची जी ने मुझे वो उगलने नहीं दिया और कहा,"यह अमृत है पगली! गिरा मत! पी ले!"

और मेरा मुँह ऊँचा करके ढेर सारा रसगुल्ले का रस मुँह में डाल दिया, मैंने वो रस पूरा निगल लिया.
अब चाची ने मुझे कहा," अब तुम्हारा आखिरी इम्तिहान परीक्षा है. इसमें तुम्हे पास होना ही है, नहीं तो जिंदगी बरबाद है."

तब चाचा फिर से खड़े हुये. वो हंस रहे थे.

चाची ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे दोनों पैर दूर-दूर कर दिये. अब उन्होंने भी अपने कपड़े उतार दिये।

अब दोनों पैरों में काफी अंतर था. अब वे मेरे सर की तरफ से आई और कहा," यह आखिरी इम्तिहान है ! इसे जरूर पास करना कनिका!"

और उन्होंने उनके और मेरी चूचियों पर ढेर सारी आईसक्रीम लगा दी और कहा,"- बिटिया., तुम मेरे चुचूक चूसना और मैं तुम्हारे!"

अब यह सिलसिला शुरू होते ही चाचाजी ने अपना लंड मेरी चूत में धकेला, मै दर्द से धर्रा गयी और मैंने चाची के चुचूक को काट लिया।

चाची ने चाचा से कहा," धीरे से बच्ची है!"

और चाची ने भी प्यार से मेरे चुचूक को काट लिया और हंसी, अब चाचा को इशारा किया और उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठों से चिपका दिया.

अब चाचा ने एक जोर का धक्का दिया तो उनका बड़ा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर चला गया.
चाचा ने ४/५ धक्के मार कर मेरी छोटी सी चूत में अपना लंड पूरा डाल दिया और मुझे पुचकारने लगे.

मैं जोर से चिल्लाई पर चाची ने अपने मुँह में मेरी आवाज दबा दी. मैं दर्द से तड़प रही थी.

तभी चाची ने थोड़ी बरफ मेरे शरीर पर रखी और मेरे उरोजों को सहलाने लगी और कहा,' कनिका बिटिया , तुम्हें माहवारी में हर महीने जिस काँटे से तकलीफ होती थी वो काँटा चाचा ने निकाल दिया है. अब तुम्हें कभी तकलीफ नहीं होगी."

और उन्होंने मुझे चादर पर गिरा खून भी दिखाया और कहा," यही वो गंदा खून है जो हर महीने तुम्हें तकलीफ देता था. अब थोड़ा और सह लो, सब ठीक हो जायेगा."

बाद में उन्होंने चाचा के लंड पर ढेर सारी क्रीम लगाई और कहा," इस क्रीम को तुम्हारे अन्दर लगा कर ये तुम्हारा इलाज कर देंगे, चिंता मत करो."।

अब उन्होंने मुझे घोड़ी जैसा बैठने को कहा ताकि मलहम ठीक से लगे.

अब चाचा ने लंड के सुपाड़े से मेरी चूत की आहिस्ता आहिस्ता रगड़ा और फिर धीरे धीरे अपना लंड अंदर डालना शुरू किया. मेरे नीचे लटकी चूचियों को चाची ने भी सहलाना शुरू कर दिया. अब मुझे दर्द तो हो रहा था लेकिन लंड का चूत के अंदर आहिस्ते आना जाना मजा देने लग रहा था. चाचा ने ऐसे ही धीरे धीरे मेरी चूत में ३/४ मिनट तक लंड अंदर बाहर किया और मेरी पीठ सहलाते रहे. मेरे मुह से सिसकी निकलना बंद ही नही हो रही थी. मजा तो आने लगा था लेकिन चाचा का लंड मुझे अभी भी दर्द दे रहा था.

फिर चाचा ने अपना लंड मेरी चूत से निकाल दिया और बिस्तर पर लेट गए और चाची से बोला ," सुनो कनिका धक गयी होगी उसकी टंगे भी मेरा वजन बर्दाश्त नही कर पा रही होगी. इसको ऊपर ही आने दो."

चाची ने मेरी चूंचियां छोड़ दी और मुझे चाचा के ऊपर आने को कहा. मुझे कुछ समझ में नही आया तो चाचा ने मेरी कमर पकड़ के अपने ऊपर लिटा दिया और मुझे चूमने लगे. फिर चाची ने चाचा का लंड पकड़ लिया और मुझे उनके लंड पर बैठाकर ऊपर नीचे होने को कहा. मेरी चूत से चाचा का लंड रगड़ रहा था और मुझे अच्छा भी लग रहा था . चाची अपने हाथ से ही चाचा का लंड मेरी चूत के ऊपर रगड़ा रही थी.

फिर चाचा ने मुझे एक बार लंड चूसने को कहा. इस बार मैं खुद मान गई और लोलीपोप जैसे उनका लंड चूसने लगी. चाची प्यार से मेरे बाल सहला रही थी और अपने पैर से मेरी चूत को भी सहलाने लगी.

चाचा अपनी कमर उठा उठा के मेरे मुह में लंड अंदर बाहर कर रहे थे और बोलते भी जा रहे थे,"कनिका तू बड़ी मस्त है!"
"इतनी जल्दी लंड चूसना सीख गयी."
"तुझे तो दिन रात चोदूंगा."

चाची के पैर का अगूंठा मेरी चूत अंदर खलबली कर रहा था और अनजाने में मै भी कमर हिलाने लगी.
चाची ने जब यह देखा तो बोला,"सुनो कनिका मस्त हो गयी है अब चोद दो इसको."

जैसे ही चाची ने ऐसा कहा , चाचा ने अपना लंड मेरे मुँह से निकल दिया और एक करवट लेकर मुझे बिस्तर पर गिरा दिया. वो खुद तेजी से मेरी टैंगो की तरफ चले गये. उन्होंने मेरी टांगो को फैला दिया. चाची ने तभीकहा,"अरे रुको! कनिका के चूतरो के नीचे पहले तकिया लगा दो, तभी तो कनिका बिटिया की चूत उभर के सामने आएगी और तुम्हारा लंड से मजा लेगी."

खुद चाची ने मेरे चूतरो के नीचे तकिया लगादी और चाचा का लंड पकड़ के मेरी चूत के द्वार पर रख दिया.

इस बार चाचा ने थोड़ा और क्रीम अपने लंड पर लगाया और एक धक्के में पूरा लंड मेरी चूत में समा दिया. मेरे मुँह से "मम्मी मर गयी!' निकल पड़ा. लेकिन चाचा रुके नही वो मेरी चूत में धक्के मारने लगे. उनका लंड कहि अंदर तक मुझे हिला दे रहा था. चाची नंगी मुझसे चिपटी रही और मेरे बदन को चूमते और सहलाते हुए बड़बड़ाने लगी,
" चोद कसके इसको!"
"बहुत दिनों से परेशान था चोदने को करले इच्छा पूरी!"
"क्या कोरी निकली!"

चाचा केवल "हाँ हाँ" बोलते जारहे थे और मुझे चोदते जा रहे थे. मुझे वाकई मजा आने लगा था और मै भी चाचा के लंड का साथ देने लगी.

मेरी चूंचियां फ़ूल गये थे, चूचक नुकीले हो गये थे , मेरे मुँह से "आह!! आह!! आई!!आई!!" की आवाजे निकल रही थी. तभी मुझे लगा जैसे मुझे पेशाब हो जायेगी और न चाहते हुए भी मुझे हो गयी. लगा जैसे मेरी चूत से कुछ निकला और एक नशा सा मुझ पर चढ़ गया. मै पस्त हो गयी , एक धकान सी मेरे शरीर छा गयी. पर चाचा रुकने वाले नहीं थे, उन्होंने अपनी स्पीड बढ़ा कर, कस कस के मुझे चोदने लगे. और चाची से कहा," मेरा निकलने वाला है ! क्या करूँ?"

चाची ने कहा," अंदर छोड़ दो, मैंने गोली दे दी है।"

चाचा का तभी चेहरा तन गया और "आआआआआआह!" कहते हुए मुझसे चिपट कर मेरे ही ऊपर गिर गए. उनके लंड ने गरम गरम वीर्य जोर से मेरे अंदर छोड़ दिया. उनके वीर्य की गर्मी जैसे मेरी चूत के अंदर महसूस हुयी मैं एकदम से अकड़ गई और मुझे अंजाना सा सुख मिला.

हम तीनो ऐसी ही हालत में उसी बिस्तर पर सो गए.

मैं रात भर सोती रही और सवेरे ९ बजे मेरी आँख खुली.देखा चाची मेरे बगल में दूध का ग्लास लेकर बैठी हैं, वो ही मेरा चेहरा सहला रही थी जिससे मेरी आँख खुल गयी थी. उन्होंने मुझे पुचकारते हुए उठाया और दूध का गिलास देते हुए बोली,"कनिका बिटिया कैसी हो? अच्छा लगा?" मै चाची की तरफ देख के शर्मा गयी. लेकिन मुझे अपनी टांगो के बीच अभी दर्द सा महसूस हो रहा था. मैंने चाची से कहा," चाची वहां दर्द है."

उन्होंने मेरा सर सहलाते हुए कहाँ,"पगली पहले ऐसा ही होता है, आज रात तेरे सामने तेरे चाचा मेरे साथ करेंगे और फिर तुम्हरी चूत मारेंगे, तब तुमको ज्यादा मजा आएगा."

मै उनकी बात सुन कर अंदर ही अंदर बहुत रोमांचित हो गयी और रात का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी. उस पूरी रात हमलोग नही सोये. कितनी बार मै झड़ी मुझे याद भी नही.

5 दिनों तक मैनेजर चाचा प्रिंसिपल चाची मुझे चोदते रहे और चुदाई सुख देते रहे . फिर मेरे पिता जी और माँ, लखनऊ से वापस आगये. उनके आने के बाद तो इतनी खुली छूट मुझे नही मिली लेकिन जब भी मौका मिलता था चाची किसी बहाने से मुझे अकेले में बुलवा लेती और चाचा मुझे चोद देते थे. एक साल बाद ही मेरे माँ बाप का तबादला हो गया और फिर मै मैनेजर चाचा और प्रिंसिपल चाची से कभी भी नही मिली. लेकिन मुझे आज भी उनकी याद आती है.
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-08-2021, 12:53 PM

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