मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-10-2021, 12:07 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
चुदते चुदते ऊ ओह आह करते करते वो बोलने लगा, "मेरी माँ का नाम सजल पटेल है , वो 45 साल की है, उसकी लम्बाई 5 फूट 3 इंच है, शादी के वक्त तो दुबली थी अब मोटी है। "

मैंने जोर से लंड गांड में डाला और बोला, "कितनी मोटी है भड़वे ?"

"कोई 80 किलो होगी, उसके स्तन कोई 36 इंच के होंगे एक बार मैंने ब्रा का साइज़ पढ़ा था बाथरूम में", वो बोला।

"अपनी रंडी माँ को कभी नंगा देखा ?", मैंने पूछा।

"हा थोडा सा देखा था", वो बोला। मैंने फिर लवडे का स्ट्रोक लगाया और पूछा "कैसे और कब देखा बता रंडी की औलाद?"

"बाथरूम के छेद से देखा था, वो अपनी काख के बाल और नीचे की झांटें रेजर से साफ़ कर रही थी। वो नंगी खड़ी थी उसके स्तन थोड़े लटके हुए हैं और निप्प्ल्स थोड़े छोटे हैं और पीले से रंग के हैं, थोडा सा पेट निकला हुआ है, नीचे झांट ज्यादा भरे हुए नहीं थे थोड़े ही थे कम गहरे और थोड़े गुन्घराले , मेरी रंडी माँ ने नीचे बैठ कर चूत के फांकें फैलायीं और फिर पहले क्रीम लगाया.................."

"ऊऊ गांड फट गयी धम्मदीप तुम्हारी चुदाई से "

"तू माँ के बारे में बता गांडू , अपनी गांड की चिंता छोड़ इसमें सुबह मैं टाँके लगवा दूंगा", मैंने कहा।

"हा फिर उसने नीचे झुक के अपने झांटों में रेजर फिराया मुझे साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था क्यूंकि वो नीचे बैठी थी, पर उसकी चूत के होठ फुले हुए और मोटे लग रहे थे थोड़े से भूरे या काले रंग के, फिर मेरी चोदु माँ ने खड़े होकर नल से चूत और काख धोयी और फिर मुझे लगा की वो बाहर न आ जाये इसलिए मैं वहां से हट गया "

"गांड कैसी थी रंडी सजल की ? "

" गांड बहुत मोटी है मेरी गांड की दोनों फांकें मिला दो तो उसकी एक फांक बनती है", वो बोला। .

"अच्छा भड़वे ये बता तेरी जगह अगर इस वक़्त मैं तेरी माँ की गांड मार रहा हूँ तो तू क्या करेगा?"

"मैं पीछे आकर आपके अंडकोष और गांड चाटूंगा, और जब आप माँ की गांड में पानी छोड़ दोगे तो वो पानी भरी गांड चाटूंगा"

ये सुनकर मुझे इतनी उत्तेजना हुई कि मेरी पिचकारी भर गयी , "ले रंडी के बेटे, ले तेरी माँ के खसम. तेरे बाप का पानी अपनी भोसड़ी में मादरचोद रंडवे , कोठे की औलाद ये ऊऊह्ह्हआआआआ आआआआआआअहऊ ऊऊऊऊ", कहकर मैंने फिर पानी छोड़ दिया , ऐसे करके सुबह तक उसने मुझे कोई 5 बार खाली किया.

सुबह वो अपनी गाडी में मुझे स्टेशन छोड़ने आया, "धम्मदीप अगले सन्डे आ जाना , और एक बार माँ को जैसे तैसे पटा लेना , फिर आगे देखेंगे" . मैंने हाँ कहा और ट्रेन में बैठ गया।

अगले शनिवार मैं वापस अहमदाबाद पंहुचा , जीतू मुझे स्टेशन पर लेने आया था, गाडी में बैठकर आधे घंटे से भी ज्यादा समय में मैं उसके घर पंहुचा ,

जीतू ने मेरा बैग उठाया और जैसे ही अन्दर गया उसकी माँ ने नमस्ते किया। और बोली, "जीतू आपकी बहुत तारीफ कर रहा था की सर बहुत अच्छा पढाते हैं और इसके लिए इतनी दूर से चलकर आये"

"मैं चाहकर भी ठीक से जीतू की मा को देख नहीं पाया, और सीधा उपर वाले कमरे में चला गया जो जीतू का कमरा था। मैं थकान उतरने के लिए नहाया और नहाकर बाहर आया तो जीतू खड़ा था।
"जीतू बता क्या पहनू , लूंगी चलेगी या पजामा कुरता पहनू ?"
"लुंगी पहन लो मेरे पापा भी तो पहनते हैं, और पापा वाली लुंगी ही लाया हूँ ताकि माँ को अच्छा लगे", कहकर उसने मुझे लुंगी दे दी। मैंने उपर एक कुरता पहना हुआ था, नीचे जीतू के पापा की लुंगी पहन ली।

इससे पहले की आगे की बात बताऊँ, जीतू के पापा के बारे में बता देता हूँ, उनको सरकार ने डेप्युटेशन पर जामनगर भेजा हुआ था इसलिए वे गांधीनगर नहीं के बराबर आते थे। जीतू कोचिंग के लिए गांधीनगर था जबकि उसकी बहन सूरत में ही कॉलेज में पढ़ रही थी।

मैं सीढ़ी उतर के नीचे आया और हम दोनों डायनिंग टेबल पर बैठ गए जीतू की माँ और उनका नौकर खाना परोस रहे थे, "आंटी आप भी साथ बैठ कर खा लीजिये ना", मैंने कहा।
"नहीं आप और जीतू खाईये वैसे भी मेरा शुक्रवार का व्रत है", जीतू की माँ बोलीं, मैं उनको तिरछी नज़रों से देख रहा था, उन्होंने गाउन पहना हुआ था वे औसत महिला थी, गोरी थीं और बदन भारी था, उनके स्तन खास बड़े नहीं थे मगर गांड विशाल थी , थोडा पेट उभरा हुआ था मगर इतना तो उत्तेजित करता ही है. उन्होंने गाउन के उपर इज्ज़तदार महिलाओं की तरह चुन्नी नहीं लपेटी हुई थी।

मुझे लगा वे थोड़ी खुली हुई महिला हैं. खाना खाने के बाद मैं वाश बेसिन में हाथ धो रहा था तो जीतू की माँ मेरे पास तौलिया लेकर आई। हाथ पोंछने के बहाने मैंने उनकी उँगलियाँ और थोडा कोहनी से पेट छूने की कोशिश की। उनको इस से कोई खास परेशानी नहीं हुई।

"धम्मदीप सर मेरी माँ कोल्ड कॉफी बहुत अच्छी बनाती है, पियोगे ?" जीतू बोला।

"आंटीजी कोल्ड कॉफी से तो व्रत तो नहीं टूटता ?" मैंने पुछा।

"नहीं सर, कोल्ड कॉफी तो आपके साथ ज़रूर पियूंगी", वो बोलीं।

"आप मुझे सर मत कहिये मैं आपसे छोटा हूँ," मैं बोला।

"नहीं जीतू के सर हमारे भी सर हैं", वो बोलीं।

मैं और जीतू बाहर लॉन में आकर बैठ गए।
"धम्मदीप कैसी लगी मेरी माँ ?" उसने पूछा।
"यार जीतू चुद जाये तो ज़िंदगी बन जाये, माल है तेरी माँ तो," मैं धीरे से बोला।

कोई सुन न ले इसलिए हम दूसरी बातें करने लगे। थोड़ी देर में सजल कॉफी ले आई और हमारे साथ ही बैठ गयी। फिर हम घर गृहस्थी की बातें करने लगे, मेरे घर में कौन है वगेरह वगेरह। बातों बातों में पता चल गया कि उनके पति यानि जीतू के पापा बरसों से सरकारी नौकरी में इधर उधर रहे हैं यानि उनको पति सुख नहीं के बराबर मिला है। उधर जीतू बिस्तर लगाने के बहाने उठ कर चला गया। मैंने बातों ही बातों में सजल को साथ घूमने के लिए राज़ी कर लिया।

वो नाथद्वारा जाना चाहती थीं मगर संभव नहीं हो पाया था क्यूंकि उनके पति व्यस्त रहते थे और दूसरा कोई साथ मिल नहीं पाया था। चूँकि मैं बीसियों बार वहां गया था इसलिए वे मेरे साथ जाने की इच्छुक थीं। मगर वे चाहती थीं की वे मैं और जीतू साथ चलें। फैसला हुआ की अगले हफ्ते हम तीनों एक साथ नाथद्वारा चलेंगे। मैं उसके बाद फ़ोन पर सजल से बात करता रहा, और उसके बेटे जीतू से भी।

जीतू को मैं बताता की मैं उसकी मां को कैसे कैसे चोद रहा हूँ और वो उस वक्त क्या क्या कर रहा है। और फिर फ़ोन पर ही मैं मुठी मारता जीतू अपनी माँ को फ़ोन पर खूब चुदवाता। शनिवार को मैं नाथद्वारा पहुच गया। और वही कॉटेज में मैंने एक कमरा ले लिया। जीतू और सजल भी अहमदाबाद से वहां बस से पहुच गए। कॉटेज में ज़मीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोना पड़ता था। ओढने को रजाई और तकिया वगेरह वहीँ से किराये पर मिलता था। कमरा काफी बड़ा था और ठण्ड भी थी, मैंने पहले से ही तीनो बिस्तर एक साथ ज़मीन पर बिछा दिए थे।

जीतू की मां को कॉटेज और जगह बहुत पसंद आई। "इसके कितने पैसे लगे सर?" उन्होंने पूछा।
"अब आप मेरे विद्यार्थी की मां हैं आपसे छोटे मोटे पैसों की बात थोड़े ही करूँगा?"
"फिर भी?"वे बोलीं।
"आप से मैं वसूल लूँगा इसकी कीमत।" मैंने हँसते हुए बोला।
"ठीक है सर", वे बोलीं।

हमने शीघ्र ही मंगला के दर्शन कर लिए, वहीँ से मैंने प्रसाद भी ले लिया। और दर्शन की भीड़ में मैंने उनका हाथ पकड़ लिया था और मौके बेमौके उनसे खूब चिपटा और उनको दबाता रहा। वे दर्शन के बाद भाव विव्हल थीं, "सर आपने मेरा सपना पूरा कर दिया, आप का मुझ पर बहुत बड़ा एहसान है",
मैंने कहा, "अच्छा इस को आप एहसान मानती हैं तो बदले में आप मुझे क्या देंगी?"
"जो आप मांगो मेरे बस में जो भी होगा दे दूंगी आपको, आपका मुझ पर और मेरे बेटे पर बहुत अहसान है सर", उन्होंने कहा।
"जो मैं मांगूं? पक्का?"
"हाँ सर बिलकुल पक्का", वे बोलीं।

दिन में हमने खाना खाया और घूमे फिरे , शाम को उन्होंने एक बार फिर दर्शन की इच्छा ज़ाहिर की।
"मैं नहीं आऊंगा मां आप सर के साथ चले जाओ", जीतू बोला।
हम लोग दरवाज़ा खुलने का इंतजार करने लगे। जैसे ही दरवाज़ा खुलने वाला था मैंने कहा, "देखो आप मुझे सर कहते हो और मैं आपको आंटी दोनों शब्द मुझे अटपटे लगते हैं, कोई और शब्द खोजते हैं", "आपको घर में किस नाम से बुलाते थे?", मैंने पूछा।
"मुझे बचपन में सज्जू कह कर पुकारते थे"
"और मुझे धम्मु",' मैं बोला।
"दर्शन से पहले आप मुझसे वादा कीजिये की आप मुझे धम्मु बुलायेंगीं और मैं आपको सज्जू", मैंने कहा।

"पर जीतू क्या समझेगा?", उन्होंने कहा।
"ओके आप जब जीतू नहीं हो तब मुझे इस नाम से बुला लीजियेगा, ठीक है, उन्होंने कहा, पक्का वादा?" मैंने पूछा।
"हाँ पक्का वादा धम्मुजी"
"धम्मुजी नहीं धम्मु कहो सज्जू"
"ओके धम्मु", कह कर हम दोनों हस पड़े और मैंने उनका हाथ पकड़ लिया। भीड़ में प्रवेश से पहले मैंने उनके कान में कहा, "आज श्रीनाथजी से मैं आपकी दोस्ती मांगूंगा" और हम अन्दर चल पड़े।

मैंने प्रवेश से पहले सजल की कमर में हाथ डाल दिया। "भीड़ बहुत है इस से लोगों के धक्के नहीं लगेंगे सज्जू", मैंने कहा। सजल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। भीड़ के बहाने मैंने उनको खूब दबाया और उनसे चिपटता रहा, शायद सज्जू को भी अच्छा लग रहा था। कई बार मैंने भीड़ के बहाने से उनकी कमर पर हाथ फिराया, दबाया और एक दो बार हाथ थोडा नीचे खिसका कर नितम्ब पर भी सहलाया।

हम बाहर आये तो शाम हुई ही थी और अभी खाने में काफी समय था। मैंने जीतू को फोन लगाया। "मैं बाज़ार में घूम रहा हूँ धम्मदीप सर, आप मा के साथ खाना खा लीजिये मैं सीधा कमरे पर आ जाऊंगा", वो बोला। ( आखिर उसको सहयोग तो करना ही था... ) मैंने फोन सजल को दिया, जीतू ने उससे भी यही बात कही। "सज्जू अभी काफी समय है, बगीचे में चलें?"
"हाँ सर ओह सॉरी धम्मु , चलिए,'' कह कर सजल हस पड़ी।

सर्दी थी इसलिए बगीचे में ज्यादा भीड़ नहीं थी। हम थोड़ी देर तो घूमे फिर एक बेंच पर बैठ गए। सजल घर गृहस्थी पति बच्चे और ज़िन्दगी की बातें बताती रहीं, मुझसे वो काफी सहज हो चुकी थीं। मुझे लगा अब बात थोड़ी आगे बधाई जा सकती है।

"सज्जू अगर मैं कोई व्यक्तिगत बात पूछूँ तो बुरा तो नहीं मानोगी?"
"नहीं, आपकी किसी बात का बुरा मानने का तो प्रश्न ही नहीं उठता", वो बोली।
"शादी से पहले आपका कोई बॉयफ्रेंड था या किसी से इश्क हुआ था?"
सज्जू थोड़ी चुप हो गयी फिर बोली, "आप किसी से कहोगे तो नहीं?"
"सज्जू श्रीनाथजी की कसम खाता हूँ तुम्हारे मेरे बीच जो भी बात या जो कुछ भी होगा उसका किसी को पता नहीं चलेगा", मैंने कहा।
"ओके धम्मु, मुझे आप पर विश्वास है", मैंने जोड़ा, "लेकिन आपको भी श्रीनाथजी की कसम खानी पड़ेगी की हमारे बीच जो कुछ भी बात होगी या कुछ भी होगा उसकी जानकारी किसी को नहीं होगी"
"हाँ मैं कसम खाती हूँ", वे बोलीं।
"तो फिर बताओ न", मैं बोला।
"ठीक है.."
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-10-2021, 12:07 PM

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