मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-10-2021, 12:08 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
सज्जू ने फिर उसकी कहानी सुनाना शुरू की। पढ़िए सज्जू की जुबान में।
मैं तब छोटी थी शायद आठवीं या नवीं में पढ़ती थी। मेरा घर भी सूरत में ही है। मेरे सात भाई और तीन बहने हैं, घर में काफी भीडभाड थी, चार भाई मुझसे बड़े और तीन छोटे थे। मेरा ननिहाल सौराष्ट्र में है वहां हमारा बड़ा घर है हालाँकि कहने को गाँव है लेकिन सारी सुविधाएँ वहा थीं। मेरे चार मामा थे और तीन मासियाँ। सबसे बड़े मामा मुझसे कोई ३० साल बड़े थे लेकिन सबसे छोटे मामा मुझसे भी ३ साल छोटे थे। हम हर छुट्टियों में वहां जाते थे। बीच वाले मामाओं में से एक मुझसे कोई १५ साल बड़े थे और दूसरे कोई ५ साल। हम वहां अक्सर खेलते थे।

"क्या खेलते थे बताओ न सब?", मैंने पूछा।

सारे खेल वो बोली। "फिर भी?

दिन में डॉक्टर डॉक्टर खेलते थे। वे बोलीं। मैं समझ गया, सजल क्या खेल खलती थी।

"क्या उम्र थी तब आपकी"
"कोई १२-१३ साल होगी", वो बोलीं।

"अच्छा एक बात पूछूँ बुरा न मनो तो?"
"हाँ पूछो?"
"उस उम्र में आपके पीरियड्स शुरू हो गए थे?"
"क्या आप भी कैसे कैसे सवाल पूछते हैं।"
"बताओ न इसमें क्या हुआ।"
"नहीं मेरे पीरियड्स तो १४-१५ की उम्र में शुरू हुए थे, हमारे समय में आज की लड़कियों की तरह जल्दी पीरियड्स नहीं आते थे।"

सजल अब आराम से बात करने लगी थी।
"सब कुछ खुल कर आराम से बताओ सज्जू, मैं तो आपका दोस्त हूँ।"
"कैसे बताऊँ बताते हुए भी शर्म आती है। बस इतना बता सकती हूँ मेरे मामा ने मेरे साथ गलत काम किया, कहते हुए उनकी आँखें भर आयीं "
मुझे लगा ये मौका अच्छा है इसलिए मैंने तुरंत उनको जकड कर चिपटा लिया। वे मेरे सीने पर चिपक गयीं। मैं अब सज्जू के बालों पर हाथ फिराने लगा।
"आप बहुत अच्छी हैं और बहुत सुंदर भी", कह कर मैंने उनका चेहरा उपर किया और अचानक से होठ चूम लिए। सज्जू को इस की उम्मीद नहीं थी वो अचकचा गयीं, "ये क्या किया सर?"
"सर नहीं धम्मु, मैं मुस्कराते हुए बोला"
"हाँ धम्मु ये तो अच्छी बात नहीं"
"देखो सज्जू हम दोस्त हैं और आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं और दोस्तों के बीच कुछ भी गलत नहीं होता मैंने प्यार ही तो किया है इसमें क्या गलती?"
"लेकिन मेरी उम्र आपसे ज्यादा है आप मेरे बेटे के दोस्त हैं कल को जीतू को पता चल गया तो वो तो शर्म से मर जायेगा या फिर जीतू के पापा तो मेरी जान ही ले लेंगे", वे बोलीं।
'"किसी को कुछ पता नहीं चलेगा और आज की इस दुनिया में किसी को किसी से कोई मतलब नहीं जीतू के पापा आपको कितना प्यार करते हैं? कितना वक़्त देते हैं? बिना प्यार कोई कैसे हक जमा सकता है सज्जू?, मैं बोला।
सज्जू कुछ बोलीं नहीं चुप हो गयी मुझे लगा बात थोड़ी सी जम गयी है। थोड़ी देर बाद हम पार्क से निकल पड़े क्यूंकि आठ बजने वाले थे, मैंने अँधेरे में सज्जू का हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगा। उन्होंने कोई प्रतिरोध नहीं किया।

"अच्छा सज्जू तुमने मामा वाली बात तो बता दी लेकिन प्यार हुआ या नहीं ये नहीं बताया?
"ओह हाँ प्यार तो होगा ही। जब मैं स्कूल मैं पढ़ती थी तो मेरा एक क्लासमेट था जय वो मेरा बहुत ध्यान रखता था और हम दोनों में प्यार था मगर दोनों एक दूसरे को कह न सके, फिर कॉलेज में गयी तो वहां के एक टीचर थे अनुराग सर, उनसे थोडा आकर्षण हुआ"

"उनसे कुछ हुआ क्या? चुदाई वुदाई?"
"ये क्या बोल रहें हैं सर?", सज्जू बोली।
"ओह सॉरी मेरी आदत है गंदे शब्द निकल जाते हैं ", मैं बोला। सज्जू हसने लगी।
मैंने दुबारा पूछा "बताओ न"
"सब बातें बतायीं थोड़ी जाती है", सज्जू ने हंस कर कहा।
मैं समझ गया। मुझे लगा अगर आज की रात जीतू आसपास नहीं हुआ तो बात बन सकती है। हम खाना खाने गए, वहीँ बातों बातों में मैंने जीतू को एसएमइस भेजा "सज्जू चुदने को तैयार है किसी बहाने से आज रात कमरे से बाहर सो जा"
"ओ के" जीत का जवाब आया।

खाना खाने के बाद हम फिर बातें करने लगे शायद सज्जू से पहली बार कोई इतने दिनों बाद इतनी फुर्सत से बात कर रहा था।
"धम्मु पता नहीं इतनी फुर्सत से मैं शायद बरसों बात बातें कर रही हूँ मुझे ये ट्रिप हमेशा याद रहेगी", वो बोली।
तभी जीतू का फोन आया सज्जू गुजराती में बातें कर रही थी पर मुझे आईडिया हो गया की जीतू किसी बहाने से बाहर रुकने वाला है पर मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं बोला और इंतजार करने लगा की सज्जू क्या कहती है थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद मैंने कहा, "अब थकान हो गयी है कमरे पर चलें सज्जू बाकी बातें वहीँ कर लेंगे?"
"ठीक है लेकिन एक प्रॉब्लम है..!"
"प्रॉब्लम यहाँ क्या प्रॉब्लम हो गयी?", मैंने पूछा।
"जीतू को कोई दोस्त मिल गए हैं इसलिए वो आज बाहर ही रुकेगा..",सज्जू बोली।
"बाहर मतलब?", मैंने जान बूझ कर पूछा।
"बाहर मतलब वो शायद सुबह आएगा कमरे पर", सज्जू बोली।
"कोई बात नहीं अच्छा है न रात भर बातें करेंगे", मैंने कहा।

रस्ते में ही पीने का पानी ले लिया था हम सीधे कमरे पर चले गए। सज्जू बाथरूम में कपडे बदलने के लिए चली गयी। बाहर आई तो मैंने देखा उसने नाईटी पहनी हुई थी और उपर एक शाल लपेट लिया। मैं भी बाथरूम में गया और कुरता और लूंगी पहन आया।
"धम्मु ठंड नहीं लगेगी खाली कुरता पहना है आपने", सज्जू बोली।
"नहीं सज्जू लगेगी तो आपका शाल ले लूँगा", मैंने मजाक किया।
"और अगर मैं नहीं दू तो?", सज्जू बोली।
"तो मैं आधी बाँट लूँगा", मैंने फिर मजाक किया।

थोड़ी देर में हम दोनों ज़मीं पर बीचे बिस्तर पर अधलेटे हो गए। सज्जू मुझसे दूर लेटी थी बीच में जैसे जीतू की जगह छोड़ रखी हो।
"इतनी दूर रहोगे तो फिर मैं शाल कैसे लूँगा?", मैंने कहा।
"सोना नहीं है क्या?", सज्जू बोली।
"ठीक है मगर सोने से पहले थोड़ी देर बातें और करेंगे", मैंने कहा।
सज्जू ने हाँ में सर हिला दिया। "बत्ती तो बुझा दो बात तो अँधेरे में भी कर सकते हैं", सज्जू ने कहा।
मैंने उठ कर बल्ब बुझा दिया। "सज्जू मुझे आपका साथ और आपकी बातें बहुत अच्छी लगती हैं। आपको मेरा साथ और बातें कैसी लगती हैं?, मैंने पूछा।

"ये भी कोई पूछने की बात है। आप हो ही अच्छे बाकी जीतू के पता नहीं कैसे कैसे दोस्त आते हैं", वे बोलीं।
"कैसे मतलब?", मैंने पूछा।
"अरे कोई कोई तो बिलकुल गंवार लगते हैं इसको डांटती भी हूँ पर इसको असर ही नहीं होता", वे बोलीं।
"ओह्ह", मैं बोला।

थोड़ी देर इधर उधर की बातों के बाद मैंने यकायक अपना हाथ बढाया और सज्जू को पास खींच लिया।
"इतनी दूर बैठी हो की आवाज़ तक नहीं सुनाई दे रही। कल जीतू आयेगा तो दूर सोना ही है कम से कम आज की रात तो पास बैठ कर बातें करो", मैंने बोला।
"क्या सर", सज्जू बोली। मगर मेरा प्रतिरोध नहीं किया। अब सज्जू मेरे बिलकुल पास थी..

थोड़ी देर इधर उधर की बातों के बाद मैंने सज्जू से पूछा, "अच्छा मैं आपका दोस्त हूँ?"
"हाँ ये बात भी पूछने की ज़रूरत है क्या?", सज्जू बोली।
"तो फिर एक वादा करो जो कुछ भी पूछूँगा उस का सही सही उत्तर दोगे कोई लाग लपेट बिना", मैंने कहा।
"हाँ बाबा हाँ", सज्जू बोली।
"तो फिर बताओ आपकी रजोनिवृत्ती हो गयी?"
"कैसे कैसे सवाल पूछते हो आप भी ", वो बोली।
"अब इसमें क्या है बताओ न। मैंने सुना है उसके बाद औरतों की पुरुष में रूचि ख़त्म हो जाती है"
"नहीं ऐसा तो नहीं, पर हाँ मेरी रजोनिवृत्ती दो साल पहले आ गयी", सज्जू बोली।
"तो फिर सच बताओ प्रेम में रूचि ख़त्म हो गयी क्या दो साल पहले?", मैंने पूछा।
"क्या धम्मु आप भी"
मैंने मौका देखा और कहा, "सज्जू एक बात कहूँ अगर बुरा नहीं मनो तो?"
"हाँ कहो मैंने आपकी किस बात का बुरा माना है?", वे बोलीं।

"मुझे थोड़ी देर आपकी गोद में सोना है।" कह कर मैं तुरंत उनकी गोद में सो गया। उनकी मज़बूत जांघें मेरे होठों को छु रही थीं। वे थोड़ी देर चुपचाप बिना हिले डुले बैठी रहीं। फिर मैंने उनका हाथ अपने बालों पर रख दिया थोड़ी देर बाद वे मेरे बालों में उंगलिया घुमाने लगीं। मैंने इसी दौरान उनका हाथ पकड़ा और उसको चूम लिया। सज्जू ने विरोध नहीं किया।

बातों बातों में मैंने सज्जू के पावों पर उंगलिया फिराना शुरू किया वो बोली, "पाव मत छुओ आप"
"अरे आपके पाव कितने नाज़ुक और सुंदर हैं ये भी तो आपके बदन का हिस्सा हैं क्यूँ नहीं छूँउ?", मैं बोला।

धीरे धीरे मैंने उनकी रान और फिर थोडा सा जांघों पर हाथ फिराना शुरू कर दिया इसी प्रक्रिया में मैंने अपना सर उनकी गोद से उठाया और सीधा उनके सीने से सटा दिया और उनके हाथ अपने सर और कंधे पर रख दिए। सज्जू ने मुझे अपनी छाती से भींच लिया। मैंने अपने दोनों हाथ उपर किये और उनके कंधे और पीठ पर रख कर उनको भी अपनी बाँहों में कस लिया।

वे हलकी सी सिसका कर कर चुप हो गयीं अब सज्जू की साँसें तेज़ चलने लगीं थीं। अब मैं अपना मुह होठ नाक गाल औत पूरा चेहरा उनके सीने पर घुमा रहा था और चेहरे से उनकी छातियाँ दबा रहा था। उनकी छोटी और नरम छातियाँ मेरे चेहरे से दब रही थी और उनका सीना उत्तेजना में फूल रहा था। मुझे लगा लोहा गरम है। मैंने अपने दोनों हांथों को आगे किया और उनके स्तन दबाने और मसलने शुरू कर किए।

"ओह्ह आआआआअह्ह" कर के उनके मुह से हलकी सी चीख निकली। इसी दौरान मेरे हाथ में उनके निप्पल्स आ गए और मैंने उनको भी मसलना शुरू कर दिया। मैं खुद अब गरम था और मेरी सांस तेज़ चलने लगी थी। अब मेरे हाथ सज्जू के स्तन गले कंधे पीठ पेट सब जगह घूम रहे थे उसने मुझे जकड़ा हुआ था।

उसकी सांस तेज़ चल रही थी और साथ ही वो पूरी गरम हो चुकी थीं। मैंने इसी दौरान अपने होठ उनके होटों पर रखे तो सज्जू ने होठ हटा दिए। मुझे रुकना नहीं था मैंने सज्जू का चेहरा हाथ से जबड़ो से कस कर पकड़ लिया और उनके होटों को चूमने चूसने लगा।

उन्होंने शायद घबराहट या डर से या अनुभव नहीं होने के कारण अपने होठ पूरे नहीं खोले मगर मैंने जबड़ा कस कर पकड़ लिया। और होठ थोड़े से चौड़े कर के अन्दर जीभ दाल दी। ओह्ह आह कर के वे आनंद ले रही थीं थोड़ी देर में वे चुम्बन का मज़ा ले रही थीं और उनकी सांस धोंकनी सी चल रही थी।

मैंने चुमते चुमते ही उनके गाउन को नीचे से सरकाना शुरू कर दिया। जो जांघों तक तो आ गया लेकिन आगे उनकी मोटी गांड के नीचे दब गया। जहाँ से उनके सहयोग के बिना उसे उपर कर पाना संभव नहीं था। मैं उनके कंधो, गर्दन स्तनों , पेट और जांघों के उपरी हिस्से को चुमते चुमते नीचे आया और उनकी नंगी हो चुकी जांघों को चूमने चाटने काटने लगा। और इसी प्रक्रिया में मैंने अपने हाथ पीछे ले कर पहली बार उनकी मोटी और मांसल गांड को छुआ और दबाया।

जैसे ही वे उत्तेजना में थोड़ी सी हिलीं मैंने तुरंत गाउन को उनकी गांड से उपर सरका दिया। अब मैं चड्डी के उपर से उनकी चूत को चूमने की कोशिश कर रहा था लेकिन वे अपने पावों को आपस में दबा रही थीं। इसी दौरान मैंने पीछे हाथ ले जा कर उनकी विशाल गांड को दबाना शुरू कर दिया। और चड्डी के साइड से हाथ डाल कर अन्दर से भी नंगी गांड मसलना जरी रखा। इसी दौरान मैंने दुबारा अपना सफ़र उपर की तरफ शुरू कर दिया और चूमने के साथ साथ गाउन को उपर करना जारी रखा।

उनके थोड़े मांसल मगर लज़ीज़ पेट को भी मैंने चूमा और चाटा फिर उपर आ कर उनकी ब्रा के उपर अपना मुह फेरने लगा। इसी दौरान मैंने उनका गाउन उपर कर दिया। और उन्होंने अपने हाथ भी उपर कर दिए। मैंने गाउन को उपर ले कर हटा दिया। अब वे सिर्फ चड्डी और ब्रा में थीं। खिड़की के कांचों से आ रही रिशनी में उनकी स्तन काली ब्रा में मस्त लग रहे थे।

मगर में किसी जल्दी में नहीं था। मैंने ब्रा के उपर से ही उनके स्तनों पर मुह घुमाना चालू रखा और ऐसा करते करते पीछे हाथ ले जा कर ब्रा का स्ट्रप खोल दिया। ब्रा खुलते ही उनके छोटे कोई संतरे के आकार के स्तन आजाद हो गए और मेरे भीतर के बच्चे को माँ का दूध मिल गया। मैं उनके स्तनों को मसलते हुए काटते हुए खाते हुए चूसते हुए उनके निप्पल्स को दबाने लगा चूसने लगा। अब वे पूरी तरह उत्तेजित थीं और उनके मुह से सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मैंने तुरंत क्षण भर में अपना कुरता हटा दिया अब उपर से मैं निर्वस्त्र था। वे मेरे निप्पल्स को सहलाने दबाने लगीं मुझे लग गया वे काम कला में पूर्ण रूप से निपुण हैं।

मैंने अब उनके कंधे गर्दन और स्तनों पर चुम्बनों की ताबड़तोड़ झड़ी लगा दी। वे शायद ही कुछ सोच पातीं, मैंने उन्हें मुझसे दूर होने और मेरी गिरफ्त ढीला करने का मौका ही नहीं दिया। चूमते चूमते मैंने उनका हाथ अपनी लुंगी में फडफडा रहे लौड़े पर रख दिया। मैंने चड्डी नहीं पहनी थी इसलिए वो लगभग पूरा ही उनके हाथ में आ गया। उन्होंने लौड़े को सहला हिलाना और दबाना शुरू कर दिया। मैंने तुरंत लुंगी को ऊँचा किया और नंगा लौड़ा उनके हाथों में थमा दिया।

वे अब मेरे सुपाडे के उपर की चमड़ी को हिला रहीं थीं। सुपाडे के उपर उनकी उंगलिया अभ्यस्त चुदक्कड़ औरत की तरह हिल रहीं थीं बेच बीच में वे मेरे मूत के छेद को भी संभाल लेतीं। मैंने अब उनको लिटा दिया और उनकी गांड उपर कर उनकी भूरे रंगकी फूलों वाली चड्डी को हटा दिया। उनके पाव फैलाये और उनकी चूत के पास मुह ले गया।

उनके झांट बढे हुए थे। और मैं जैसे ही चूत चाटने की कोशिश करने लगा उन्होंने पाँव जोड़ लिए। मुझे पता था ऐसा वो ही औरत करती है जिसकी चूत काफी संवेदनशील हो। मुझे लगा अगर मैंने लौड़ा डाल दिया तो सज्जू शायद दो मिनट में पानी छोड़ देगी और मैं उनकी जांघें, चूत, पेट, बोबे, कंधे और गर्दन चूमते चूमते उनके उपर आने लगा। और अपने लौड़े को हमले के लिए तैयार करने लगा।
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-10-2021, 12:08 PM

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