मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-11-2021, 12:25 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
डाल दो रस मेरी प्यासी चूत में--

हेलो दोस्तो, मेरी ये कहानी एक कहानी नहीं, एक वास्तविक घटना है, एक आत्म कथा है, एक उपन्यास के रूप में पेश कर रही हूँ. इस कहानी में एक पात्र ने मुझे ये सचाई बताई है जिसको मैने लिखने की कोशिश की है. उम्मीद है आप पसंद करेंगे. मुझे अपने विचार ज़रूर लिखना.

मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली याद है जब मैं पढ़ता भी था और काम भी करता था. मेरा नाम गणेश है और मैं जनम से ही अनाथ हूँ. मेरी उमर तब 15 साल की थी जब से मैं सरकारी स्कूल में पढ़ता था और रात को एक रेस्टोरेंट में सफाई करता था. मेरी वाकफियत शहर के बदमाश लोगों से थी और मैं एक नंबर का हरामी था. रेस्टोरेंट का मालिक रोशन नाम का एक बदमाश था और मुझे अक्सर उसके घर काम करने जाना पड़ता था.

मेरा कद 6 फीट का हो चुका था और शरीर भी ताकतवर था. एक दिन मैं मालिक के घर खाना देने गया तो ऐसा लगा कि घर में कोई नहीं है. मैं अभी पलटने ही लगा था कि मालकिन के कमरे से आवाज़ सुनाई पढ़ी तो मैं चौंक पढ़ा,” उफफफफफ्फ़ साले हरामी आराम से चोद….मैं कोई रंडी हूँ क्या? रोशन के सामने तो मुझे भाबीजी कहता है और अब देखो कैसे चोद रहे हो अपनी भाबी को? मादरचोद कितना बड़ा है तेरा लंड? तेरी बीवी खूब मज़े लेती होगी…मुझे तो थका दिया तुमने राज, काश मेरे पति का भी लंड तेरे जैसा विशाल होता. बहनचोड़ फाड़ कर रख डाली है अपनी भाबी की चूत…..अब जल्दी से चोद डाल मुझे, गणेश खाना ले कर आता ही होगा….मैं क्या करूँ मूह से अधिक भूखी तो मेरी चूत है….चोद मुझे राज….ज़ोर से पेल….मैं झड़ी” मेरी ना चाहते हुए भी नज़र दरवाज़े के छेद से अंदर चली गयी. मालकिन का गोरा जिस्म पसीने से नाहया हुआ था. उसका दूधिया बदन मालिक के दोस्त के सामने कुतिया की तरह झुका हुआ था. कितनी प्यारी लग रही थी मालकिन! पीछे से मालिक का दोस्त उस्स्को छोड़ रहा था और बगलों से हाथ डाल कर मालिकन की गोरी चुचि को बे-रहमी से मसल रहा था.

मैं चुप चाप बाहर हॉल में बैठ कर वेट करने लगा और थोड़ी देर में मैने बेल बजा दी. मालकिन एक गाउन पहन कर आई और मैने उस्स्को खाना पकड़ा दिया. मेरी नज़रें झुक गयी लेकिन मालकिन का जिस्म गाउन से बाहर निकलने को आतुर हो रहा था. खाना लेते हुए मालकिन का हाथ मुझ से स्पर्श कर गया और मुझे एक करेंट सा लगा. मालकिन की आँखें मेरे बदल को टटोल रही थी. वो मुझे वासनात्मक नज़रों से देख रही थी जैसे बिल्ली दूध के कटोरे को देखती है. मेरे सीने पर हाथ रख कर वो बोली,” गणेश, तुम तो जवान हो गये हो और सुंदर भी. कभी क़िस्सी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझ से माग लेना. मैं जानती हूँ की जवानी में मर्द को बहुत मुश्किल आती है.” मैं जानता था कि वो मुझ से चुदवाने के लिए तड़प रही है, लेकिन मैं अपनी नौकरी को रिस्क में नहीं डाल सकता था.

वापिस आते हुए मेरे बदन में एक अजीब हुलचूल हो रही थी और मेरा लंड ना चाह कर भी अकड़ रहा था. मालकिन का नंगा जिस्म बार बार मेरी नज़र के सामने आ जाता. उस रात मैने मालकिन की याद में मूठ मारी.

स्कूल में एक लड़का और एक लड़की नये दाखिल हुए. सुनील और नामिता दोनो भाई बेहन थे. वो हमारी एमएलए प्रभा देवी के बच्चे थे. प्रभा देवी को सब जानते थे. वो प्रेम और ममता की तस्वीर मानी जाती थी. प्रभा देवी कोई 45 साल की थी. हमेशा सफेद सारी में रहती किओं की उसस्का पति मर चुका था. सभी उस्स्को मा कह कर बुलाते थे. सुनील, मेरी क्लास में था. वो बिल्कुल लड़कीो जैसा दिखता था, गोरा चिटा, और कोमल. सभी लड़के उस्स्को प्यारा लोंदा कहते और प्यार से या ज़ोर से उसस्की गांद को चिकोटी काटने की कोशिस करते. सुनील की छाती भी औरतों जैसी सॉफ्ट थी. वो लड़का कम और लड़की अधिक लगता था. उसस्की बहन नामिता मुझ से दो क्लास आगे थी. लंबी, सुंदर और सेक्सी. उसस्की छाती का उठान देखते ही बनता. पॅंट में उसस्के चूतड़ बहुत उभरे हुए दिखते. काले कटे हुए बाल और तेज़ आँखें देख कर मैं पहली नज़र में नामिता से प्यार कर बैठा. उस रात से मैं नामिता को नंगी कल्पना करके मूठ मारने लगा. कल्पना में मैं अपने आप को राज और नामिता को मालकिन के रूप में देखने लगा.

कुच्छ दिन बाद रघु(स्कूल का एक बदमाश लड़का) ने सुनील को ग्राउंड में दबोच लिया और उसस्की पॅंट उतारने लगा. बेचारा सुनील रोने लगा.” चल साले लोंडे, मैं तुझे चोद कर अपना पर्सनल लोंदा बना कर रखूँगा. बहनचोड़, वेर्ना सारा स्कूल तुझे चोदने को तैयार बैठा है. अगर मेरे साथ दे गा तो तेरी बेहन को भी प्रोटेक्षन दूँगा. साली माल तो बहुत बढ़िया है तेरी बेहन. अगर मेरे बिस्तर में आ जाए तो तेरी चाँदी लगवा दूँगा, मेरे साले” मैं सब कुच्छ देख कर वहाँ चला गया. सुनील की पॅंट उत्तर चुकी थी और उसस्के गोरे चूतड़ एक काले अंडरवेर में झाँक रही थी. साली उसस्की गांद भी बहुत सेक्सी दिख रही थी. लेकिन उसस्का रोना देख कर मैं अपने आप को रोक ना सका और रघु से बोला,” रघु, सुनील को छ्चोड़ दे, वेर्ना अच्छा ना होगा.” रघु भी भड़क उठा और बोला” बहनचोड़, ये लोंदा मेरा माल है और उसस्की बेहन भी मेरा माल है. चल फुट यहाँ से वेर्ना तेरी भी गांद मार लूँगा.”

मेरा गुस्सा भड़क उठा. रघु मदेर्चोद मेरी नामिता के बारे ग़लत बोल रहा था. मैं दिल से नामिता को प्यार करता था. मैने रखू को गले से पकड़ कर खूब मारा. मैने चाकू निकाल लिया जब उसस्के दोस्त वहाँ पहुँच गये. चाकू मैने रघु की गांद पर मारा जहाँ से खून निकलने लगा. सभी लड़के भाग गये. सुनील मुझे थॅंक्स कहने लगा. तभी नामिता वहाँ आई और अपने भाई से सारी बात पुच्छने लगी. सुनील उस्स्को बताने लगा. तभी नामिता की नज़र मेरे चाकू पर गयी और वो मुझे नफ़रत से देखती हुई बोली,” चलो भैया, यहाँ तो लोग चाकू लिए घूमते हैं.” मेरा दिल टूट गया.

अगले दिन सुनील मुझ से हंस कर बात करने लगा और मुझे अपने घर भी बुलाया. मैं शाम को उसस्के घर गया तो प्रभा देवी ने मुझे शाबाशी दी की मैं बहादुरी से उसस्के बेटे की रक्षा करता हूँ. प्रभा देवी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और उसस्का गुदाज़ सीना मेरी कठोरे छाती से चिपक गया. आख़िर औरत का नरम सीना मर्द के दिल में आग लगा ही देता है. बेशक प्रभा देवी का रूप एक मा की याद दिलाता है फिर भी उसस्की नरम चुचि अपने सीने में महसूस कर के मेरे दिल में आग लग गयी.” गणेश बेटा, तुम रहते कहाँ हो?” मैने जवाब दिया,” माजी, मैं एक रेस्टोरेंट में काम करता हूँ और वहीं रहता हूँ.” “खैर अब तुझे काम करने की ज़रूरत नहीं है. तुम हमारे घर में रह सकते हो. मेरे ऑफीस वाले हिस्से में एक कमरा खाली है जहाँ तुम रह सकते हो और पूरी आज़ादी भी मिल सकती है, ठीक है, बेटा? तुझे सॅलरी भी मिलेगी.”

अंधे को क्या चाहिए? दो आँखें? फ्री में कमरा, रोटी, और घर जैसा माहौल. उस दिन से मैं उनके घर में रहने लगा. रहने क्या लगा, मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी. स्कूल में सुनील की तरफ कोई आँख ना उठाता और नामिता भी मुझे अब नफ़रत नहीं करती थी. लेकिन अभी प्यार भी नहीं करती थी. खैर सब कुच्छ एक दम नहीं हो जाता. देखा जाए गा.

घर में सभी मुझे बहुत प्यार करने लगे और प्रभा देवी को अपने बच्चो की सेफ्टी का कोई डर ना था. सब से पहले मुझे खाना पकाने वालों से मिलवाया गया. रसोई में दो लोग काम करते थे. गंगू, एक बुजुर्ग आदमी और नाज़, एक 25 साल की औरत जो कि घर में ही रहती थी. नाज़ का कमरा मेरे कमरे से साथ ही था. बस बीच में एक बाथरूम था जो हम दोनो का सांझा था. नाज़ का रंग सांवला था, नैन नक्श तीखे, जिस्म भरा हुआ, आँखें चमकीली. उसस्की चुचि का साइज़ ज़रूर 36 ड्ड रहा होगा और चूतड़ काफ़ी गद्दे दार. उस्स्को देख कर मुझे अपनी मालकिन की याद आ गयी. नाज़ जब चलती तो कूल्हे मटकाती और मेरा लंड खड़ा कर देती. नाज़ देख सकती थी कि उसस्का जवान जिस्म मुझ पर क्या असर कर रहा है. जब भी मौका मिलता तो वो मेरे सामने झुक कर मुझे अपनी मस्त चुचि की झलक दिखा ही देती. एक दिन मैने हौसला कर के उसस्की चुचि को टच कर लिया जब वो मुझे ग्लास पकड़ा रही थी, वो मुझे बोली,” बच्चू, अभी छ्होटे हो, ऐसी हरकत तब करना जब मर्द बन जाओ. बेटे, मुझे बच्चो में कोई दिलचस्पी नहीं है. मर्दों का काम बच्चा नहीं कर सकता.” उसस्की बात सुन कर मैं जल भुन गया.

उस रात मैं नाज़ को अपनी पहली औरत बनाने की स्कीम बनाने लगा. अब मैं जवान था, लंड बैचैन था. मुझे भी चोदने के लिए औरत चाहिए थी. नाज़ बुरी नहीं थी बस मुझ से उमर में बड़ी थी. दूसरा कारण नाज़ को फसाने का ये था कि नामिता के दिल में ईर्षा पैदा हो जाए गी और वो मेरी तरफ आकर्षित हो जाए गी. यानी एक चूत से दूसरी का शिकार.

रात को मैं बिस्तर में लेटा हुआ था जब नाज़ की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी. वो गा रही थी. नहाते हुए गाना आम बात है. लेकिन मेरी कल्पना अब नाज़ का नहाता हुआ नंगा जिस्म देखने लगी. मैने अपने कान दीवार से लगा दिए. दीवार में मुझे अचानक एक छेद दिखाई पड़ा. मैने छेद में झाँका. छेद छ्होटा सा था लेकिन नाज़ की नंगी जवानी की झलक दिखाई पड़ ही गयी. उसस्का भीगा बदन पानी से चमक रहा था और वो मल मल कर नहा रही थी. मेरा लंड तन गया और मैने मूठ मारनी शुरू कर दी. काश नाज़ मेरे सामने आ कर चुदवा लेती. तभी उससने अपनी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया. उसस्की मखमल जैसी चूत फाड़ फाडा रही थी. उसस्की उगली चूत में घुस गयी और वो भी उंगली से अपनी चूत चोदने लगी. नाज़ बाथरूम में अपनी उंगली से चूत चोद रही थी और मैं कमरे में मूठ मार रहा था.” ओह….अहह…..” मेरे मूह से निकल गयी एक हल्की सी चीख जब मेरे लंड ने रस छ्चोड़ दिया. नाज़ ने शायद मेरी चीख सुन ली. इसी लिए वो घबरा उठी और उससने अपने हाथ को रोक दिया और टवल लपेट कर बाहर चली गयी.

मैं घबरा गया और डर रहा था कि नाज़ को पता चल गया है की मैं उस्स्को नहाते हुए देख रहा था और वो मेरी शिकायत प्रभा देवी को लगाएगी. मेरी घर से च्छुटी हो जाएगी. खैर दूसरे दिन नाज़ मुझ से आँख नहीं मिला रही थी और ना ही मुझ से बात कर रही थी. एक अजीब बात ये थी कि नाज़ और नामिता च्छूप च्छूप कर धीमी आवाज़ में आपस में बातें कर रही थी. उस दिन सारा दिन मुझे स्कूल में उदासी लगी रही, लेकिन रह रह कर नाज़ का नंगा जिस्म मेरी नज़रों के सामने आ जाता.

स्कूल से वापिस आते हुए नामिता मुझे अजीब नज़रों से देख रही थी. दोपहर को खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुया था जब क़िस्सी ने दरवाज़ा खाट खाटाया. बाहर नाज़ खड़ी थी. वो लाल रंग की सलवार कमीज़ पहने हुए थी और बहुत सीरीयस लग रही थी.” गणेश, मेरे कमरे में आयो, ज़रूरी बात करनी है.” मेरी गांद फटी जा रही थी. उसस्के कमरे में नामिता पहले से ही बैठी थी. “तो जनाब, नाज़ को छुप कर नहाते हुए देख रहे थे? मैं अगर मा को बता दूँ तो अभी च्छुटी हो जाए तेरी.” नामिता ने मुझे धमकाया.”नही….मैने कुच्छ नहीं ……मेरा कोई कसूर नही….सच मुझे कुच्छ नहीं पता….” मैं कुच्छ बोल ना पा रहा था.

नामिता ने मुझे गुस्से से देखा,” नाज़ ने तेरी आवाज़ सुनी थी. तुम क्या कर रहे थे? नाज़ तो अपनी चूत में उंगली कर रही थी, बेह्न्चोद तुम क्या कर रहे थे? इस तरह एक चुदासी लड़की को देखना अच्छा है? मैं और नाज़ कब से एक लंड की तलाश में थी और तू अपना लंड दिखाने की बजाए इसकी चूत देख रहे थे कामीने. तेरी सज़ा ये है कि या तो तू घर से जाएगा और या हमारे सामने अपने लंड का पारदर्शन करेगा. बोल क्या इरादा है?” कहते हुए नामिता हंस पड़ी और नाज़ भी मुस्कुराने लगी. मैं समझ गया कि दोनो लड़कियाँ मुझ से चुदवाना चाहती हैं. मेरी लॉटरी निकल पड़ी थी.

मैं अपनी पॅंट खोलने लगा. तुम जैसी मस्त लड़कियो से प्यार करने के लिए मैं जनम से तड़प रहा हूँ और तुम मुझ से चुदवाना चाहती हो. तो देखो नामिता, कैसा लगा गणेश का लोड्‍ा? नाज़ तुम भी देखो रानी, आपकी सेवा में हाज़िर है मेरा कुँवारा लंड. सच में तुम मेरे लिए सुंदरता की देवी हो!” नामिता हंस पड़ी,” बहन्चोद, पहली बात ध्यान से सुन. सब के सामने तुम हुमको दीदी कह कर पुकारो गे और हम तुझे भैया. इस तरह क़िस्सी को शक नहीं होगा और हमारा खेल सेफ्ली चलता रहे गा. चुदाई के खेल को रिश्तों के पर्दे में ढक लिया जाएगा और हम तीनो मज़े करते रहेंगे, ठीक है?”

नाज़ अपने कपड़े उतारने लगी और नामिता भी नंगी होने लगी. मुझ जैसे लड़के की किस्मत खुल रही थी. मेरी नज़र नामिता के नंगे शरीर से हट नहीं रही थी. जब उससने अपनी ब्लॅक कलर की पॅंटी उतारी तो मेरा दिल धक धक करने लगा. उसस्की चुचि एक दम कड़ी हो चुकी थी. नामिता की चूत पर छ्होटी छ्होटी झांट थी. शायद कुच्छ दिन पहले शेव की थी उससने अपनी चूत. उसस्की आँख में लाल डोरे तेर रहे थे. मैने काँपते हाथ से उसस्की चुचि को स्पर्श किया तो उसस्की आह निकल गयी. मैं भी पूरा नंगा हो चुका था, नाज़ मेरी पीठ से चिपकने लगी. नाज़ की भरपूर चुचि मेरी पीठ में गढ़ रही थी और उसस्के होंठ मेरी गर्दन को चूमने लगे. मैने नामिता को अपने आलिंगन में ले लिया एर उसस्की चूत पर हाथ फेरने लगा. उसस्की चूत एक आग की तरह दहक रही थी. मैने अपने तपते होंठ उसस्की होंठों पर रख कर किस करने लगा. कमरे में वासना की आँधी उमड़ चुकी थी. नाज़ की बिन बालों वाली चूत मेरी चूतड़ से टकरा रही थी और उससने झुक कर मेरे लंड को पकड़ लिया और आगे पीच्छे करने लगी.

“दिल तो चाहता है कि मैं पहले चुदाई करवाउ पर डर लगता है. नाज़, तुम तो तज़ुर्बेकार हो, तुम ही पहली बार इस लंड का मज़ा ले लो और मुझे चुदाई की तड़प में जलने दो कुच्छ देर और. फिर तुम मुझे इस मूसल लंड से निपटने में मदद करना. गणेश भैया, तुम पहले अपनी बड़ी दीदी की चूत को ठंडा कर दो और बाद में मुझ को मज़े से चोदना. किओं नाज़ तैयार हो अपने भैया के लंड से अपनी चूत चुदवाने के लिए?” नाज़ बिना बोले मेरे लंड पर अपना मूह झुकाती चली गयी और उससने मेरे लंड को मुख में भर लिया. अपने एक हाथ से उससने मेरे अंडकोष उप्पेर उठा लिए और मेरे लंड को चूसने लगी. मुझे लगा जैसे मेरा लंड झाड़ जाए गा जल्दी ही. लेकिन मैने अपना ध्यान अपने सामने खड़ी वासना से भरी सेक्सी लड़कियो से दूर हटाया क्योंकि मैं अभी झड़ना नहीं चाहता था.

नाज़ मेरा लंड चूस रही थी और फिर मैने नामिता की चूत को सहलाना शुरू कर दिया. मैने एक उंगली उसस्की चूत में डाल दी और आगे पीच्छे करने लगा. वो गरम हो कर अपनी चूत मेरी उंगली की तरफ बढ़ाने लगी, जैसे वो सारी उंगली ले लेना चाहती हो,” गणेश बेह्न्चोद, साले और डाल मेरी चूत में. अपनी बेहन को उंगली से चोद बेह्न्चोद, ज़ोर से पेल. मेरी चूत में आग लगी हुई है.” मैं भी बहुत गरमा चुका था,” दीदी, अभी तो चोदा भी नहीं है तुमको, तुमने तो मुझे पहले से ही बेहन्चोद कहना शुरू कर दिया. अगर मुझे बेह्न्चोद बनाने की इतनी जल्दी है तो पहले तुझे चोद लेता हूँ. जब छ्होटी बेहन से बिना चुदाई किए नहीं रहा जाता तो पहले उसस्की चूत ठंडी कर देता हूँ. नाज़ दीदी तो पहले काफ़ी लंड का स्वाद ले चुकी होगी. पहले तुझे ही किओं ना चोद लूँ, नामिता दीदी?”

नामिता इतनी गरम हो चुकी थी कि उससने नाज़ को मेरे लंड से अलग किया और खुद चूसने लगी. नाज़ मुझ से लिपटने लगी और मैने अपने होंठ उसस्की चुचि पर रख दिए और उसस्का दूध चूसने लगा,” ओह भैया किओं तडपा रहे हो अपनी बेहन को, पी लो मेरा दूध. मेरे निपल चूस लो भैया, मेरी चूत से रस की बरसात हो रही है. अपनी बहनो को चोद डालो भैया, हम को चोदो मेरे भाई. एस्सा करो, तुम पहले नामिता की सील तोड़ लो. मैं तो पहले ही चुद चुकी हूँ, तुम नामिता को औरत बना डालो, भैया” मैने नामिता को अपने लंड से अलग किया और उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. कामुकता से भरी नामिता मुझे गौर से देख रही थी और उसस्की नज़र मेरे लंड से नहीं हट रही थी. नाज़ ने नामिता को होंठों पर किस किया और फिर उस्स्को पीठ के बल लिटा कर नामिता की चूत चाटने लगी. मैं नाज़ के चूतड़ सहलाने लगा,” अहह…..ओह….नाआआज़….चोद दे मेरी चूत…….भैया अब नहीं रहा जाता…….गणेश….पेल दो अब तो…..मेरी चूत जल रही है…..और मत जलायो मुझे…..हाआँ नाज़….अब जीभ से नहीं चैन मिलता, मेरे अंदर लंड डलवायो मेरी बहना…”

नाज़ मुस्कुराते हुए उठी और बोली,” गणेश भाई, तेरी बेहन अब भत्ती की तरह दहक रही है. अपना लंड एक हथोदे की तरह मारो इसकी जलती हुई चूत में. निकाल दो इस छिनाल की गर्मी. इसकी चूत को अपने लंड से भर दो. मैं इस्को चुदते देखना चाहती हूँ.” मैने नामिता की टाँगों को फैला दिया और उसकी चूत के होंठ अपने आप खुल गये. चूत के उप्पेर उसका छ्होला फुदक रहा था. मैने उसकी चूत को थपकी मारी तो वो कराह उठी,” जल्दी करो भैया, प्लीज़….और मत तडपयो, चोद डालो अब तो मेरे भाई”

मैने लंड का सूपड़ा चूत के मूह पर टीकाया. एस्सा लगा कि सूपड़ा क़िस्सी आग के शोले पर रख दिया हो. धक्का मारा तो लंड आसानी से चूत में घुस गया. शायद नामिता की चूत का रस इतना बह रहा था कि उसस्की चूत कुँवारी होने के बावजूद आसानी से लंड निगल गयी. और या फिर उसने पहले ही बैंगन या खीरा इस्तेमाल कर की चूत को खोल लिया था. कट की ग्रिफ्त लंड पर कितना मज़ा देती है मैं नहीं जानता था. लेकिन अब मुझे महसूस हुआ की चुदाई का मज़ा क्या होता है. मेरे चूतड़ अपने आप आगे पीच्छे हो कर चुदाई करने लगे. असल में मैं जितनी तेज़ी से धक्के मारता, मुझे उतना ही मज़ा आता. उधर नामिता भी अपनी गांद उछाल्ने लगी मेरे धक्कों का जवाब चूतड़ उच्छल कर देने लगी.

मैने नाज़ को कहा कि वो नामिता की चुचि को चूसना शुरू कर दे. नाज़ बिना बोले नामिता की चुचि पर झुक कर उसस्के निपल्स चूसने लगी. मेरे हाथों ने नामिता को चूतड़ के नीचे से जाकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा,” अर्र्र्रररगज्गघह……मैं मर गइईई….ज़ोर से भाई….चोद बेह्न्चोद….चोद मुझे…..मैं गइईई…..गणेश…….ज़ोर सी” च्चपक च्चपक की आवाज़ से कमरा गूँज रहा था जब मेरा लंड नामिता की चूत के अंदर बाहर होता.” बहुत मज़ेदार हो तुम बहना….मैने एस्सा मज़ा कभी नहीं लिया…अगर पता होता इतना मज़ा आता है तो बेहन तो क्या मा को भी चोद देता को….ओह्ह्ह मेरी प्यारी बहना, बहुत मज़ेदार हो तुम…तुम ने मुझे धान्या कर दिया दीदी”

तभी नामिता की चूत मेरे लंड पर और ज़ोर से कस गयी और उसस्का बदन एंथने लगा. उसस्की साँस मुश्किल से चलने लगी. उसस्की जंघें मेरी कमर पर कस गयी. इधर मेरा लंड भी छूटने को था. मेरा लंड राजधानी एक्सप्रेस के पिस्टन की तरण चुदाई करने लगा,” ओह…दीदी….बस…..तेरा भाई झाड़ रहा है…..मेरा लंड झाड़ रहा है……क्या मैं पिचकारी चूत में डाल दूं या बाहर निकाल लूँ…भगवान कसम नहीं रहा जाता दीदी” नामिता की चूत पानी छ्चोड़ चुकी थी और वो अपने आप को संभाल कर बोली,” बाहर निकाल लो लंड, को भैया, मुझे गर्भवती नहीं होना है, बाहर निकालो जल्दी से.”

मैने अपना लंड बाहर खींचा तो नाज़ ने झट से झपट लिया और अपने मूह से लगा कर चूसने लगी और मेरा अंडकोष से खेलने लगी. मेरे हाथ नामिता दीदी की भीगी चूत को सहलाने लगे. अचानक मेरा लंड पिचकारी छ्चोड़ने लगा. मेरा लंड रस नाज़ के गालों पर, चुचि पर और कंधों पर जा गिरा. कुच्छ तो उससने पी लिया लेकिन रस की धारा इतनी तेज़ थी कि नाज़ के नंगे जिस्म पर फिर भी गिर पड़ा. नाज़ एक रंडी की तरह मेरा रस चाटने लगी.

मेरा लंड अब सिकुड चुका था. अब मुझे चुदाई में कोई दिलचस्पी ना रही थी. मैं नामिता की बगल में लेट गया. नाज़ की बारी अभी बाकी थी. लेकिन मेरे में अब दम नहीं रहा. मेरे पैरों के पास नाज़ मुझे चूमने लगी. उसस्के होंठ मेरे पैरों के अंगूठे को लंड की तरह चूसने लगे. फिर उससने मेरे पैरों को किस किया, फिर टख़नो को. धीरे से उसस्की ज़ुबान उप्पेर उठने लगी. उसकी ज़ुबान मुझ में फिर से वासना भरने लगी और मेरा लंड फिर से सिर उठाने लगा. मैने नामिता की चुचि को मसलना शुरू कर दिया. वो हंस कर बोली,” अपनी बेहन को चोद कर अभी दिल नहीं भरा, भैया? फिर से लंड खड़ा हो रहा है. मेरी चूत की चटनी बना दी है तुमने.” कहते हुए नामिता ने मेरे लंड को पकड़ लिया और मुठियाने लगी. नीचे से नाज़ की जीभ और हाथ मुझे उतेज़ित कर रहे थे. मुझे होश तब आया जब नाज़ ने मेरे अंडकोष को मूह में भर लिया,”गणेश भैया, अब तुझे दूसरी बेहन को चोद कर शांत करना है, मेरे भाई. उस्स्को भी तो उसस्का हिस्सा मिलना चाहिए.” नामिता मेरे कान में बोली.

नाज़ ने मुझे पेट के बल लेट जाने को कहा तो मैं लेट गया. मुझे नहीं पता था कि उसस्का इरादा क्या है. मुझे अपने दोनो चुतताड पर दोनो लड़कियो के होंठ महसूस हुए. वो साली गश्ती लड़कियाँ मेरे चूतड़ चाटने लगी. क़िस्सी का हाथ मेरे चूतड़ को फैला रहा था. तभी एक उंगली मेरी गांद में घुसाने की कोशिश करने लगी. मैने गांद को टाइट कर लिया. तभी मेरी गांद पर एक ज़ोरदार थप्पड़ लगा. मेरे होश ठिकाने आ गये दर्द के मारे.” साले कुतिया की औलाद, अपनी बहन को चोद रहा था तो मज़े ले रहा था, अब अपनी गांद में उंगली गयी तो भड़क रहा है. नामिता ने तेरा 9 इंच का लंड ले लिया तब तो मज़े लेते थे, अब एक उंगली से गांद फटने लगी? अपनी गांद को ढीला छ्चोड़ो अगर हमारे साथ मज़े लेने हैं तो,” नाज़ ने एक और ज़ोरदार थप्पड़ मेरी गांद पर मारते हुए कहा. अजीब बात थी कि दूसरे थप्पड़ से मुझे दर्द तो हुआ लेकिन मज़ा भी आया. मैं मूड कर बोला,” क्या बात है? अपने भाई की गांद मारने का इरादा है क्या? तुम्हारी खातिर तो मैं कुच्छ भी कर लूँगा, मेरी बहनो. लो चोद लो अपने भाई को अगर यही इरादा है”

मैने अपनी गांद ढीली छ्चोड़ डी. तभी मुझे अपनी गांद में एक ज़ुबान घुसती महसूस हुई और मुझे बहुत मज़ा आया. नामिता या नाज़ मेरी गांद को ज़ुबान से चोद रही थी और दूसरी मेरे चूतड़ चाट रही थी. मेरा लंड काबू में नहीं था. अगर और कुच्छ देर यही खेल चलता रहा तो मैं झाड़ जाता. लेकिन तभी मुझे सीधा कर दिया गया. नाज़ ने अब अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मुझे किस कर के बोली,” हरामी, अपनी गांद का स्वाद चख ले मेरे होंठों से. नामिता, हमारे भाई की गांद बड़ी मसालेदार है. अगर टेस्ट करना है तो कर लो. फिर इस्सको भी तो अपनी गांद का टेस्ट करवाना है हमने!”

मेरा लंड आसमान की तरह उठा हुआ था. नाज़ मेरे उप्पेर चढ़ती हुई मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ने लगी. उसस्की चूत भी रस टपका रही थी,” किओं भैया, चढ़ु क्या तेरे लंड पर? करूँ सवारी अपने भैया के लंड की? तू भी क्या याद रखेगा की क़िस्सी लड़की ने चोदा था तुझे. गणेश भाई, नीचे लेट कर बहन चोदने का मज़ा लो मेरे भैया,’ कहते ही उससने मेरे लंड पर अपनी चूत को गिरा दिया. गुप की आवाज़ से मेरा लंड नाज़ की अनुभवी चूत में घुसता चला गया. मैने नाज़ के चूतड़ कस कर पकड़ लिए और नीचे से धक्के मारने लगा. नाज़ की मोटी चुचि मेरे होंठों के सामने झूल रही थी और मुझ से ना रहा गया तो मैने उसस्की चुचि को मूह में ले कर चूसना शुरू कर दिया. नामिता नीचे जा कर मेरे अंडकोष चूमने लगी. मेरी जंघें नामिता के चेहरे पर कस गयी.
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-11-2021, 12:25 PM

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