मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-11-2021, 12:27 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
दीदी ने मुझे चुदवाया--2

गतान्क से आगे.......................

मुकेश जी वापस मेरे पास आकर बैठ गये. मेरे होंठो के ऊपर से

बिना उन्हे च्छुए दो तीन बार अपने होठ घूमकर मेरे कानो की ओर

सरक गये. उनकी गर्म साँसे अब मेरे कानो पर पड़ रही थी. मैं अब

उत्तेजित होने लगी थी. कसम के कारण कुच्छ भी नही कर पा रही थी.

बस अपने तकिये को मुत्ठियों से मसल रही थी. अब उनके होठ गले से

होकर नीचे उतरने लगे. पहले उन्हों ने मुझे पेट के बल सुला दिया.

फिर मेरे बदन पर से चादर हटा कर अपने होंठ मेरे गर्देन से होते

हुए धीरे धीरे नीचे लाने लगे. रीढ़ की हड्ड़िक़े उपर ऊपर से

लेकर मेरे कमर तक अपने होंठ फिराने लगे. कई बार तो मैं सिहरन

से उच्छल पड़ती थी. मैने अपना चेहरा तकिये मे दबा रखा था. और

दाँतों से तकिये को काट रही थी. उनके होठ पूरी पीठ पर फिरने के

बाद उन्हों ने मुझे सीधा किया. अब मैने अपने बदन को च्चिपाने की

कोई कोशिश नही की. मैं निर्लज्ज होकर अपनी दीदी की मौजूदगी मे ही

उनके हज़्बेंड के सामने नग्न लेटी हुई थी. जीजा जी के होंठ मेरे गले

से होते हुए मेरी चूचियो के पास आकर ठहरे. पहले उनके होठों ने

मेरी चूचियो की परिक्रमा की फिर दोनो चूचियो के बीच की घाटी

की सैर करने लगे. धीर धीरे उनके होंठ मेरे एक चूची पर चढ़

कर मेरे निपल के पास पहुँच गये. मेरे निपल्स उनके आगमन मे

खड़े होकर एकदम सख़्त हो गये थे. मुकेश जी अपने होठ मेरे निपल

के चारों ओर फिराने लगे. हल्के हल्के से निपल के ऊपर भी फिराने

लगे. मैं उत्तेजना से छटपटा रही थी. मुँह से अक्सर "आआहह

ऊऊओह" जैसी आवाज़ें निकालने लगी मेरे पैर भी सिकुड़ने और खुलने

लगे थे. मेरा सिर तकिये पर इधर उधर झटके ले रहा था. जी कर

रहा था जीजा जी मेरे स्तनो को मसल मसल कर लाल कर दें. दोनो

निपल्स को दन्तो से काट काट कर लहुलुहन कर दें मगर मैं किसी

तरह अपने ऊपर कंट्रोल कर रही थी. उन्हों ने अपने होंठ खोले और

उसे निपल के चारों ओर लगा कर गोल गोल फिराने लगे. मगर निपल

पर बिल्कुल भी होंठ नही लगा रहे थे. मैं कतर आँखों से दीदी की

ओर देखी. वो चुप चाप खड़ी हम दोनो की हरकतें देख रही थी.

काफ़ी देर तक मेरे दोनो निपल्स के ऊपर अपने होंठ फिरने के बाद

उनके होंठ मेरी नाभि की ओर बढ़ चले. नाभि के ऊपर काफ़ी देर तक

होंठ फिराने के बाद बाकी पूरे पेट को चूमा. फिर नीचे की ओर सरक

कर बिना मेरी योनि की तरफ बढ़े मेरे पैरों के पास आ गये. मेरे एक

पैर को उठाकर उस पर अपने होंठ फिराने लगे. मुझ से अब रहा नही

जा रहा था. उसके होंठ पंजों से सरकते हुए जांघों के अन्द्रूनि

हिस्सों तक सफ़र करके वापस दूसरे पैर की तरफ लौट गये. मेरी

योनि से रस चू रहा था. पूरी योनि गीली हो रही थी. अब दूसरे

पैर से आगे बढ़ते हुए उनके होंठ मेरे जाँघो से होते हुए मेरी योनि

पर उगे बालों पर फिरने लगे. पहले उन्हों ने मेरी योनि के ऊपर सामने

की तरफ उगे बालों पर काफ़ी देर तक होंठ फिराए. फिर उनके होंठ

नीचे की ओर उतरने लगे. मैने अपने पैरों को जितना हो सकता था

उतना फैला दिया जिससे उन्हे किसी तरह की कोई बाधा महसूस ना हो. जब

उनके होंठ चींटी की गति से चलते हुए मेरी योनि के मुँह पर आए

तो मैं उबाल पड़ी.

"ऊऊऊहह म्‍म्म्ममममाआआअ" करते हुए मैने अपने हाथों से उनके सिर

को मेरी योनि पर दबा दिया. मैं अपनी कसम खुद ही तोड़ चुकी थी. अब

मुझे कोई परवाह नही थी दुनिया की अब तो सिर्फ़ एक ही ख्वाहिश थी कि

जीजा जी मेरे बदन को बुरी तरह नोच डालें. मेरी योनि मे अपना लिंग

डाल कर मेरी खाज मिटा दें. मेरे मुँह से मेरे मन की भावना फुट

पड़ी.

"ऊऊओ जीएजजीीीइ अब और मत सताओ मैईईइ हाआअर गइई.

प्लीईसए मुझे मसल डालो. प्लीईएआसए"

उन्हे मेरी ओर से रज़ामंदी मिल चुकी थी. वो अपनी जीभ मेरी योनि मे

प्रवेश करा दिए. मेरे बदन मे एक बिजली सी दौड़ गयी और मैने

अपनी योनि ऊपर की ओर उठा दी. मेरा डिसचार्ज हो गया . मगर गर्मी

बिल्कुल भी कम नही हुई. मैने हाथ बढ़ाकर पॅंट के ऊपर से उनके

लिंग को भींच दिया. मैने पाया कि उनका लिंग एक दम तन के खड़ा हुआ

था. उन्हों ने मेरी हालत समझ कर अपने चेहरे को मेरी योनि से उठा

कर अपने कपड़े खोल दिए. वो भी बिल्कुल नग्न हो गये. फिर मेरी टाँगों

को अपने हाथो से पकड़ कर फैला दिया और मेरी योनि के मुहाने पर

अपना लिंग रख कर फिराने लगे. मैं अपनी योनि को उनके लिंग की तरफ

उठा रही थी जिससे कि वो मेरे अंदर घुस जाए. मगर वो थे कि मुझे

परेशान कर रहे थे.

"ह्म्‍म्म रजनी रानी बोलो क्या चाहिए." उन्हों ने मुस्कुराते हुए पूचछा.

"ऊऊओ क्यूँ सताते हो. प्लीज़ डाल दो इसे अंदर."

"नही पहले बताओ क्या चाहिए तुम्हे."

"आपका……..आपका लिंग……आपका लिंग"

"क्यों? मेरा लिंग क्यों चाहिए तुम्हे?

"मुझे चोद दो प्लीज़ अपने लिंग से मुझे चोदो खूब चोदो" मैं पूरी

तरह बावली हो गयी थी.

"उन्हु मैं नही देने वाला तुम्हे. तुम्हे अगर इसकी भूख लग रही है

तो खुद ही डाल लो इसे अपने अंदर."

मैं अब रुक नही सकी. मैने एक हाथ की चार उंगलियों से अपनी योनि के

द्वार को खोला औड दूसरे हाथ से उनके लिंग को छेद पर सेट करके अपने

पैरों को उनकी कमर पर लप्पेट दिया और पूरे ज़ोर से अपनी कमर को

उचकाया. उनका लिंग मेरी योनि को छीलता हुआ काफ़ी अंदर तक चला

गया . मैं दर्द से कराह उठी "उईईईईईई माआअ दीईदीईए आआआहह"

दीदी ने मेरे बालो पर हाथ फेरते हुए कहा "बस रजनी थोड़ा सा और

सब्र कर लो बस थोड़ा दर्द और होगा. सुनिए रजनी का ये पहला मौका

है थोड़ा धीरे धीरे करना बेचारी को दर्द ना हो"

अब मुकेश ने मुझे परेशान करना छ्चोड़ कर अपने लिंग को कुच्छ बाहर

निकाला और उसे वापस एक धक्के से अंदर कर दिया. उनका लिंग मेरी

झिल्ली को फाड़ते हुए अंदर प्रवेस कर गया.

मैं "आआआआआअहह हह" कर उठी. उनका लिंग पूरा मेरी योनि मे

फँस चुक्का था. जैसे ही उन्हों ने वापस निकाला तो उसके साथ कुच्छ

तरल प्रदार्थ भी बाहर निकल गया . अब पता नही वो रस था याँ मेरा

खून. मेरी योनि मे लग रहा था मानो आग लगी हुई है. इतनी बुरी

तरह जल रहा था मानो किसी ने उसे चीर के रख दिया हो.

धीरे धीरे मेरा दर्द कम होने लगा और उसके जगह उत्तेजना ने लेली.

वो मुझे अब ज़ोर ज़ोर से चोदने लगे. मैं भी अपनी कमर उच्छाल उच्छाल

कर उसके लिंग को अपनी योनि मे ले रही थी. काफ़ी देर तक इसी तरह

चोदने के बाद उन्हों ने बिस्तर पर मुझे चौपाया बना कर पीछे से

अपने लिंग को वापस मेरी योनि मे डाल दिया. मैं उनसे चुदती हुए दो

बार पानी छ्चोड़ चुकी थी. काफ़ी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे

महसूस हुआ कि उनका लिंग फूल रहा है. उन्हों ने एक जोरदार धक्का

मारा तो मैं अपने को सम्हाल नही पाई और बिस्तर पर मूह के बल गिर

पड़ी वो भी मेरे ऊपर गिर पड़े और उनके लंड से एक तेज धार निकल

कर मेरी योनि मे समाने लगी. हम दोनो यूँ ही पड़े पड़े हाँफ रहे

थे. काफ़ी देर तक यूँ ही पड़े रहने के बाद वो उठने लगे

"बस…." मैने उन्हे खींचा "इतनी जल्दी हार मान गये. अभी तो मैं

आपके बालों को चूमूँगी"

कहकर मैने उनके हाथ को पकड़ कर अपनी ओर खींचा. वो मेरे नंगे

बदन पर गिर पड़े. मैने देखा दीदी जा चुकी थी. मैने उन्हे बिस्तर

पर दबा कर लिटा दिया

मैं उठकर उनकी जांघों पर बैठ गयी. मैने देखा जहाँ मैं लेटी

थी वहाँ चादर खून से लाल हो रहा था. मैने उनके निपल्स पर

अपनी जीभ फिराने के बाद उनके निपल्स को दाँतों से काटा और उनके

होंठों पर अपने होंठ रह दिए. मैने अपनी जीभ उनके मुँह मे घुसा

दी और उनके मुँह मे उसकी जीभ और दाँतों पर फिराने लगी. काफ़ी देर

तक मैने उनके मुँह का रस पिया फिर उठ कर उनके ढीले पड़े लंड को

देखा. पहले उस लिंग को एक किस किया फिर हाथ से सहलाते हुए उसे

देखने लगी. उनकी लिंग पर अभी भी हमारा रस और कुच्छ कतरे खून

के लगे थे. मैने तकिये के पास रखी अपनी ब्रा उठाकर उनके लिंग को

पोंच्छा. फिर अपनी जीभ निकाल कर उनके लिंग को ऊपर से नीचे तक

चटा. उनके बॉल्स पर भी अपनी जीभ फिराई. उनका लिंग वापस हरकत

मे आने लगा था. फिर मैने उनके लिंग को अपने मुँह मे समा लिया और

उनके लिंग को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. कुच्छ ही देर मे उनका लिंग पहले

की तरह खड़ा हो गया. अब मैने उठ कर उनके कमर के दोनो ओर घुटनो को

रख कर अपनी चूत की फांकों को अपने हाथों से फैलाया और उनके लिंग

को अपनी योनि पर सटा कर धीरे धीरे उनके लिंग पर बैठ गयी.

मुँह से एक आआहह निकली और उनका लिंग पहली चुदाई से दुख रही

मेरी योनि की दीवारों को रगड़ता हुआ अंदर घुस गया. फिर मैं उनके

लिंग पर बैठक लगाने लगी वो मेरी चूचियो को मसल मसल का लाल

कर रहे थे. करीब पंद्रह मिनूट तक इसी तरह उन्हे चोदने के बाद

मैं उनके सीने पर गिर पड़ी और मेरी योनि मे रस के फव्वारे छूट

गये.

फिर उन्हों ने मुझे लिटा कर मेरी कमर के नीच तकिया लगा कर मेरी

योनि को ऊपर उठाया और मेरी टाँगों की अपने कंधे पर रख कर मेरी

योनि मे अपना लिंग घुसाने लगे. मैं उनके लिंग को अपनी चूत को चीर

कर एक एक इंच अंदर जाते हुए देख रही थी, अपने लिंग को पूरी

तरह अंदर करके वो धक्के मारने लगे. मेरे मुँह से भी "औ ऊहह

उउईई" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. मुझे अब मेरी योनि और पेट मे

दर्द होने लगा था. करीब बीस मिनट तक मुझे चोदने के बाद उन्हों

ने अपना माल मेरी योनि मे डाल दिया. उनके साथ साथ मेरा भी वीर्य

निकल गया. हम दोनो बिस्तर पर लेटे लेटे हाँफ रहे थे. दीदी ने आकर

मुझे सहारा देकर उठाया. मेरे पैर बोझ नही सह पा रहे थे.

बाथरूम तक जाते जाते कई बार मेरे पैर लड़खड़ा गये. मुझे नहला

धुला कर बिस्तर के हवाले कर दिया. कुच्छ देर रेस्ट कर के मैं तरो

ताज़ा हो गयी.

उस दिन और अगले दिन हम ने खूब चुदाई की. मेरा तो बस मन ही नही

भर रहा था.

अगले दिन शाम को मम्मी पापा लौट आए. उन्हों ने आकर सूचना दी कि

मेरी शादी पक्की हो गयी है. मैं ये सुन कर मुस्कुरा दी. शादी तो

मेरी अब पक्की हुई लेकिन सुहागरात तो पहले ही मन चुकी थी.

समाप्त
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-11-2021, 12:27 PM

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