मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" और इनका विवाह विच्छेद ??? ". रानी वैदेही ने पूछा.

" कैसा विवाह महारानी ? भला भाई बहन में भी कोई विवाह होता है क्या ? ये तो बस एक पूजा मात्र, एक पवित्र यज्ञ ही था, ताकि आपकी पुत्री दोषमुक्त हो सके. इन दोनों कि कामवासना से सब अपवित्र हो चुका है अब ! ". पुरोहित जी ने ब्यंगात्मक हँसी हँसते हुये कहा.

" आपने सत्य कहा पुरोहित जी... आप ईश्वर नहीं हैं ! ". इतनी देर से चुपचाप खड़े विजयवर्मन हठात से बोल पड़ें. " देखिये, मैं ये पाप करने के पश्चात् भी आप सबों के सामने जीवित खड़ा हूँ, आपके कथन अनुसार तो अब तक मेरी मृत्यु हो जानी चाहिए थी ना ? ".

" राजकुमार !!! ". राजा नंदवर्मन ने ऊँचे स्वर में विजयवर्मन को चुप रहने का इशारा किया.

विजयवर्मन ने अपने पिता कि बात जैसे सुनी ही ना हो, उन्होंने कहना जारी रखा.

" अवंतिका अब मेरी पत्नि है... कोई साधारण पुरोहित तो क्या, स्वयं ईश्वर भी अब हमारा सम्बन्ध विच्छेद नहीं कर सकतें ! ".

" और पुत्री तुम ? ". वैदेही ने अवंतिका को देखते हुए पूछा.

" हम दोनों सर्वदा ही एक दूसरे से प्रेम करतें थें माताश्री. ". अवंतिका ने नज़रें उठाकर धीरे से कहा. " भैया से उचित वर मेरे लिए और कोई हो ही नहीं सकता था ! ".

अवंतिका कि बात सुनकर पुरोहित जी क्रोध और घृणा से हँस पड़े, और बोलें.

" ये दोनों महापापी हैं... इनकी मृत्यु तय है अब !!! जब तक ये दोनों इस राजमहल में हैं, मुझे दुबारा यहाँ ना बुलाईयेगा ! ".

फिर पुरोहित जी एक क्षण भी वहाँ रुके बिना कक्ष से बाहर चलें गएँ.

" राजद्रोह... ". पुरोहित जी के जाते ही देववर्मन ने महाराजा और महारानी से कहा. " इनपर राजद्रोह का आरोप सिद्ध होता है पिताश्री, इन दोनों को मृत्युदंड दिया जाये ! ".

" राजद्रोह कैसे नाथ ??? ". चित्रांगदा ने देववर्मन को देखते हुए कहा. " ये दोनों नियमानुसार पति पत्नि हैं. भाई बहन के मध्य संसर्ग अनुचित होगा, परन्तु पति पत्नि के बीच तो ये एक अत्यंत स्वाभाविक सी बात है ! ".

" आपने अवश्य ही अपनी बुद्धि खो दी है प्रिये, वर्ना चरित्रहीनता कि पराकाष्ठा पार करने वाली इस स्त्री के पक्ष में आप ना बोलती ! ". देववर्मन ने मुस्कुराते हुए ब्यंग कसा.

" चरित्रहीन व्यक्तियों कि पहचान करना मुझे भली भांति आता है नाथ ! रही बात ननद जी और देवर जी कि, तो ये दोनों अग्नि को साक्षी मान कर विवाह के बंधन में बंधे हैं. यहाँ उपस्थित लोगों के लिए और पुरोहित जी, जो कि अभी अभी गएँ हैं, के लिए शायद ये सब एक क्रीड़ा, एक यज्ञ, या फिर एक पूजा पाठ से ज़्यादा कुछ ना रहा हो, परन्तु था तो ये एक विवाह ही ना !!! ".

चित्रांगदा के इस कथन के उपरांत कक्ष में पूरी तरह से सन्नाटा छा गया. कुछ देर कि चुप्पी के बाद राजा नंदवर्मन बोलें.

" मुझे ज्ञात नहीं बहु कि आप कुलवधु होकर भी इन दोनों अपराधीयों का साथ क्यूँ दे रहीं हैं, परन्तु इतना तो अवश्य ही स्पष्ट है कि ना ही इनके विवाह को कोई मान्यता दी जा सकती है और ना ही इनके मध्य स्थापित हुए किसी भी प्रकार के अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध को ! साथ ही ये भी सत्य है कि ये राजद्रोह नहीं !!! ".

" राजद्रोह नहीं ??? ये आप क्या कह रहें हैं पिताश्री ? ". देववर्मन ने भड़कते हुए कहा.

" राजद्रोह का अपराध मुझे ज्ञात है पुत्र... मैं राजा हूँ ! ". राजा नंदवर्मन धीरे से बोलें.

" अवश्य पिताश्री... ". देववर्मन ने सिर झुकाकर कहा. " राजद्रोह ना सही, परन्तु ये दोनों मृत्युदंड के तो भागी निसंदेह ही हैं ! "

" ये मुझे तय करने दीजिये राजकुमार ... ". कहते हुए राजा नंदवर्मन अपनी पत्नि वैदेही से अत्यंत धीमे स्वर में विचार विमर्श करने लगें.

देववर्मन ने गुस्से से पहले चित्रांगदा को देखा, फिर अवंतिका और विजयवर्मन को.

सभी चुपचाप खड़े महाराजा के फैसले कि प्रतीक्षा करने लगें.

कुछ समय उपरांत, विचार विमर्श समाप्त करके राजा नंदवर्मन ने सीधे अवंतिका और विजयवर्मन को सम्बोधित करते हुए पूछा.

" राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... क्या आप दोनों को अपने ऊपर लगाया गया आरोप समझ में आया और अगर हाँ, तो क्या आप दोनों अपना अपराध स्वीकार करतें हैं ??? ".

" पूज्य पिताश्री और माताश्री... हमें... ". विजयवर्मन ने कहना शुरू ही किया था कि रानी वैदेही ने उन्हें रोकते हुए कहा.

" हमारे निजी रिश्तों का अब कोई मोल नहीं रहा राजकुमार विजयवर्मन. उचित होगा कि आप दोनों हमें महाराजा और महारानी कि तरह सम्बोधित करें... ".

" जो आज्ञा ! ". विजयवर्मन ने सिर झुकाकर कहा, फिर बोलें. " आदरणीय महाराज और महारानी, हमें अपना अपराध ज्ञात है जो आप सबों के अनुसार एक अपराध है, परन्तु मैं अपना अपराधी स्वीकार करने कि स्थिति में नहीं हूँ ! ".

राजा नंदवर्मन और रानी वैदेही ने अवंतिका कि ओर देखा, तो उसने नज़रें उठाई, और बोली.

" मैं अपने पति से सहमत हूँ... मैं भी अपना अपराध स्वीकार नहीं करती ! ".

" जैसा कि हमने पहले ही अनुमान लगा लिया था ! ". राजा नंदवर्मन ने ठंडी आह भरते हुए इस प्रकार कहा जैसे कि मानो उन्हें इसी उत्तर कि आशा थी. फिर सिर उठाकर ऊँचे सशक्त आवाज में कहना शुरू किया. " राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... समाज द्वारा स्वीकृत भाई बहन के रिश्ते के अलावा अगर उनमें और कोई भी रिश्ता स्थापित होता है, तो वो गलत है. राजकुमारी अवंतिका ने कहा कि आप दोनों सर्वदा ही एक दूसरे से प्रेम करतें थें, जो कि अनुचित है. कामोन्नमाद और वासना कि आड़ में भाई बहन के अप्राकृतिक सम्बन्ध को प्रेम कि झूठी परिभाषा देना स्वयं में एक घृणित अपराध है, फिर आप दोनों ने तो उससे बढ़ कर ही सारी सीमाओ को लाँघ कर कुछ ऐसा करने का दुस्साहस कर डाला कि जो भाई बहन के पवित्र सम्बन्ध को दूषित करता है. साथ ही सामाजिक तौर पर यह एक अक्षम्य पाप भी है. परन्तु फिर भी मुझे ना ही आपसी रिश्तों का मोह है और ना ही समाज कि चिंता... मुझे केवल मात्र अपने राज्य से मतलब है. राज्य से ऊपर कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं ! "

अवंतिका और विजयवर्मन सिर उठाये महाराजा नंदवर्मन का कथन सुनते रहें.

" ये राजद्रोह तो नहीं, परन्तु राजद्रोह से कम भी नहीं, यह हमारे राज्य का अपमान है ! इसलिए आप दोनों को देशनिकाला कि सजा सुनाई जाती है ! ".

अवंतिका और विजयवर्मन ने एक दूसरे को देखा.

" और अगर राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका ने दुबारा कभी भी इस राज्य कि सीमा में कदम रखने कि कोशिश कि, तो उन्हें बिना किसी चेतावनी के मौत के घाट उतार दिया जायेगा !!! ".

" परन्तु ये अन्याय है... ". राजा नंदवर्मन का कथन पूर्ण होते ही चित्रांगदा लगभग चिल्ला उठी.

" हाँ पिताश्री... ये सरासर अन्याय है ! ". क्रोधित देववर्मन उठ खड़े हुये. " देशनिकाला ??? ऐसे पाप कि सजा केवल देशनिकाला ??? इन्हे अभी के अभी मृत्युदंड दिया जाये ! ".

" राजा का कथन ही अंतिम न्याय है पुत्र ... ". रानी वैदेही बोली.

" मैं नहीं मानता ! अगर आपमें अपने पुत्र और पुत्री के प्रति अभी भी मोह माया बची है तो मुझे आज्ञा दीजिये !!! ". कहते हुये देववर्मन ने अपने म्यान को हाथ लगाया ही था कि राजा नंदवर्मन उच्च स्वर में बोलें.

" राजा कि आज्ञा ना मानना अवश्य ही राजद्रोह है राजकुमार देववर्मन !!! ".

देववर्मन ने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर काबू पाया, उनका पूरा शरीर क्रोध से थर्रा रहा था, उन्होंने अपनी तलवार को म्यान में छोड़ कर आँखे बड़ी बड़ी करते हुये एक नज़र सभा मैं मौजूद हर व्यक्ति पर डाली, और फिर धमकी भरे स्वर में बोलें.

" याद रहे, इसका परिणाम अत्यंत बुरा होगा, फिर ना कहियेगा कि मैंने चेतावनी नहीं दी थी ! ".

इतना कहकर देववर्मन अपने कंधे पर लिपटे दुशाले को झटकते हुये सभा से बाहर चले गएँ.

राजा नंदवर्मन ने दो बार ताली बजाई तो तुरंत दो सिपाही कक्ष में दाखिल हो गएँ, और महाराज का इशारा समझते ही उन्होंने अवंतिका और विजयवर्मन को उनके बाहों से पकड़ लिया.

" इसकी आवश्यकता नहीं महाराज... हम स्वयं चले जायेंगे. ". विजयवर्मन ने राजा नंदवर्मन कि ओर देखकर मुस्कुराते हुये कहा, फिर जिस सिपाही ने अवंतिका कि बांह पकड़ रखी थी, उससे कठोर स्वर में बोलें. " अब अवंतिका को अगर किसी ने स्पर्श भी किया तो वो अपने प्राणो कि आहुति देने को तैयार रहे !!! ".

सिपाही ने अवंतिका कि बांह छोड़ दी और भय से कांपते हुये राजा नंदवर्मन को देखने लगा. महाराज ने धीरे से सिर हिला कर इशारा किया तो दोनों सिपाही अवंतिका और विजयवर्मन को छोड़ कर एक तरफ हाथ बांधे खड़े हो गएँ. अवंतिका और विजयवर्मन ने सिर झुकाकर महाराजा और महारानी से आज्ञा ली, और कक्ष से बाहर निकल गएँ. दोनों सिपाही उनके पीछे पीछे हो लियें.

अवंतिका, विजयवर्मन, और दोनों सिपाहीयों के प्रस्थान करते ही चित्रांगदा ने हारे हुये कमज़ोर स्वर में कहा.

" पिताश्री... माताश्री... इतने कठोर ना बनिए... तनिक करुणा से कार्य लीजिये. वे आपके अपने पुत्र और पुत्री हैं !!! ".

राजा नंदवर्मन अपने सिंहासन से उठ खड़े हुये, और चलते हुये चित्रांगदा के पास पहुँचे, उसके दोनों कंधो को अपने हाथों से पकड़ा, और उसकी आंसूओ से झिलमिलाती आँखों में आँखे डालकर नरमी से बोलें.

" घर कि कुलवधु को वासना में लिप्त ऐसे घोर पापी भाई बहन के पक्ष में बोलना शोभा नहीं देता !!! ".

चित्रांगदा ने चुपचाप अपनी आँखों में आये आंसूओ को अपने गालों पर बह जाने दिया - वो समझ चुकी थी इस राजपरिवार में अवंतिका और विजयवर्मन के प्रेम सम्बन्ध को स्वीकारने वाला कोई ना था !

राजा नंदवर्मन के पीछे सिंहासन से उठ आई रानी वैदेही ने उनके कंधे पर हाथ रखकर चिंता जताते हुये कहा.

" मुझे तो ये चिंता सताए जा रही है कि जब मरूराज्य नरेश हर्षपाल को इन सबके बारे में पता चलेगा, तो ना जाने क्या होगा !!! ".

राजा नंदवर्मन उत्तर देने कि स्थिति में नहीं थें, सो चुप रहें.

अपने गालों पर बह चले आंसूओ को पोछे बिना ही चित्रांगदा ने महाराजा और महारानी से प्रस्थान कि आज्ञा ली, और वहाँ से बाहर निकल आई. अपने कक्ष कि ओर जाते हुये वो कुछ सोचने लगी - उन्हें मरूराज्य नरेश हर्षपाल कि कोई चिंता नहीं थी, उन्हें तो केवल अपने पति के चेतावनी भरे शब्द खटक रहें थें ( " याद रहे, इसका परिणाम अत्यंत बुरा होगा, फिर ना कहियेगा कि मैंने चेतावनी नहीं दी थी ! " )

क्यूंकि उन्हें पता था कि देववर्मन कोरी धमकी देने वालों में से नहीं थें !!!

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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 07-22-2021, 12:52 PM

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