मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" परन्तु एक बात सोचिये देवर जी... जो कुछ भी हुआ वो किसी आम सभा में नहीं हुआ था, उस दिन सभा में केवल परिवार के लोग और पुरोहित जी ही तो थें !!! और फिर हर्षपाल हमसे इस बात पर विचार विमर्श भी तो कर सकतें थें ना, सीधे आक्रमण ही क्यूँ ??? ".

विजयवर्मन मुस्कुराये, फिर चित्रांगदा के हाथ को पकड़कर उनकी मुट्ठी में थमी उनके चाकू को वापस से उनकी कमर से लिपटे घाघरे में खोस दिया, और वार्तालाप को बदलने के उदेश्य से बोलें.

" राजनीती कि ये सारी बातें महाराज और सेनापति पर छोड़ दीजिये भाभी... आप तो बस इस बात कि चिंता कीजिये कि आप और अवंतिका मिलकर कैसे मेरी सुरक्षा करेंगी ! स्मरण रहे, कि महाराज मुझे यहाँ कक्ष में आप दोनों कि निगरानी में छोड़कर युद्ध के लिए गएँ हैं. "

इसपर अवंतिका भी ठिठोली करती हुई बीच में बोल पड़ी.

" पता है भैया... भाभी कह रहीं थीं कि हमारे जाने के उपरांत उन्हें आपकी बहुत याद आएगी... मुख्य रूप से रात्रि को सोने के समय !!! ".

" नहीं नहीं राजकुमार...मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा... सच्ची ! ". चित्रांगदा घबराकर बोली, फिर अवंतिका कि बाँह पर चिकोटी काटते हुये कहा. " विवाह के उपरांत आप कुछ अधिक ही लज्जाहीन हो गईं हैं राजकुमारी !!! ".

" अच्छा... मैं लज्जाहीन हो गई हूँ ??? ". अवंतिका ने हँसते हुये कहा.

" और नहीं तो क्या राजकुमारी ? और याद रखिये, अभी आपके अंग का घाव भरा नहीं है, आगे भी मेरी आवश्यकता पड़ेगी आपको ! ". शैतानी मुस्कान के साथ चित्रांगदा ने कहा.

चित्रांगदा का स्पष्ट इशारा उसकी घायल योनि कि ओर है, ये बात समझ में आते ही अवंतिका बुरी तरह से झेंप गई, और शर्म से उनके गालों में खून चढ़ गया.

" किस अंग का घाव अवंतिका ??? आप आहात हैं क्या... कहाँ चोट लगी है... दिखाइए ! ". विजयवर्मन ने घबराकर अवंतिका से पूछा.

लज्जा से मुरझाई हुई अवंतिका ने चित्रांगदा को आँखों ही आँखों में इशारा करके निवेदन किया कि वो विजयवर्मन को उनकी फटी हुई चूत के बारे में कुछ ना बतायें, और फिर विजयवर्मन से बहाना करते हुये बोली.

" कुछ नहीं भैया... वो बस मेरे पैर में हल्की सी मोच आ गई थी !!! ".

विजयवर्मन ने राहत कि एक ठंडी साँस ली, और फिर चित्रांगदा कि ओर मुड़कर उनके चेहरे को अपने हाथों में लिया, और उनके ललाट पर एक चुम्बन जड़ते हुये प्यार से बोलें.

" अवंतिका सत्य कह रही थी भाभी... मुझे आपकी बहुत याद आएगी. आपका स्थान मेरे जीवन में सदैव महत्वपूर्ण रहेगा, परन्तु इस जन्म में मैं अवंतिका के अलावा और किसी से प्रेम नहीं कर पाउँगा !!! "..............................

अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा इसी प्रकार काफ़ी देर तक आपस में बातचीत और हँसी ठिठोली करतें रहें. वे तीनों युद्ध कि ओर से निश्चिन्त थें, क्यूंकि उन्हें पता था कि इस युद्ध का परिणाम क्या होने वाला है. वे तो बस अब हर्षपाल के पराजय और राजा नंदवर्मन कि जीत का समाचार सुनने भर कि प्रतीक्षा कर रहें थें !.............................................

करीब दो घंटे के पश्चात् अचानक से कक्ष में एक सैनिक घुस आया और अवंतिका, विजयवर्मन तथा चित्रांगदा को वार्तालाप में मग्न पाकर क्षमा मांगते हुये घबराकर बोला.

" क्षमा कीजिये... एक अत्यंत अशुभ समाचार है !!! ".

" क्या हुआ सैनिक ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.

" हर्षपाल और उसके सैनिक हमारे राजमहल में घुस आएं हैं ! ".

" राजमहल के अंदर ??? ". विजयवर्मन उठ खड़े हुये. " और महाराज ??? ".

" महाराज तो रणभूमि में हैं, उन्हें ज्ञात नहीं ! ".

" और भैया देववर्मन ??? ".

" उन्हें किसी से नहीं देखा राजकुमार... ".

" माताश्री ??? ".

" उनके कक्ष में... उनके कक्ष में हर्षपाल के सैनिक घुस चुके हैं ! ".

" ये तुम क्या बोल रहे हो सैनिक ? ". विजयवर्मन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अनायास ही ये क्या हुआ.

" हमारी अधिकतर सेना तो अभी भी युद्धभूमि में है. महल के अंदर हुये इस विश्वासघाती हमले के लिए यहाँ अवस्थित सेना तैयार नहीं थी राजकुमार. शत्रु ने पीछे से आक्रमण किया. शत्रु कि सेना हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतारती हुई पूरे महल में फ़ैल रही है !!! ". सैनिक ने एक ही साँस में पूरी बात बताई.

तभी चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और सैनिक से पूछा.

" शत्रु कि सेना राजमहल के अंदर कैसे पहुँची सैनिक ??? ".

" किसी ने... ". भय से काँपते हुये सैनिक ने कहा. " किसी ने अंदर से राजमहल का गुप्तद्वार खोल दिया है देवी !!! ".

चित्रांगदा के होंठ विस्मय से खुले के खुले ही रह गएँ, और उनसे दूसरा कोई शब्द ना निकला !

अवंतिका भी घबराकर उठ खड़ी हुई.

किसी अनिष्ट कि आशंका से विजयवर्मन सोच में पड़ गएँ.

" इस कक्ष के बाहर द्वार पर हम कुछेक सैनिक अभी भी हैं राजकुमार. महाराज कि आज्ञा थी कि हम यहाँ से किसी भी मूल्य पर ना हटें. जब तक हममें से एक सैनिक भी जीवित रहेगा, ना ही हर्षपाल और ना ही उसका कोई सैनिक इस कक्ष में प्रवेश करने का दुस्साहस कर पायेगा !!! ". सैनिक ने कहा, और सिर झुका कर आज्ञा लेते हुये कक्ष से बाहर चला गया.

" ये क्या अमंगल हो गया भैया ??? ". अवंतिका ने काँपती आवाज़ में कहा और चित्रांगदा से लिपट कर खड़ी हो गई.

" सोचिये मत राजकुमार...आपलोग यहाँ से चले जाइये... अभी समय है ! ". चित्रांगदा ने कहा.

" और भाभी आप ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.

चित्रांगदा कि आँखों से आंसुओ कि धारा बह निकली, उन्होंने अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और लड़खड़ाते हुये स्वर में जबरन हल्के से मुस्कुराते हुये बोली.

" ये है ना मेरे पास राजकुमार !!! ".

" विपत्ति कि इस घड़ी में मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा भाभी ! ". क्रोध से काँपती आवाज़ में विजयवर्मन ने कहा.

" हठ ना कीजिये राजकुमार... अवंतिका को लेकर चले जाइये. हर्षपाल आप दोनों के लिए ही आया है !!! ". चित्रांगदा लगभग रोते रोते बोली.

" भैया ठीक कह रहें हैं भाभी... हम आपको एकांत छोड़कर नहीं जायेंगे ! ". अवंतिका ने कहा.

" मैं आप दोनों से बड़ी हूँ ... इस राज्य कि कुलवधु ! ये मेरी आज्ञा है !!! मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके आप दोनों को मेरा इस भांति अपमान करने का कोई अधिकार नहीं !!! ". चित्रांगदा ने अपने आंसू पोछते हुये सख़्त स्वर में कहा.

" आपकी आज्ञा का पालन हम अवश्य ही करेंगे भाभी... ". विजयवर्मन बोलें. " परन्तु आज नहीं !!! ".

चित्रांगदा हार चुकी थी, उन्होंने अवंतिका को गले से लगा लिया, तो दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगीं.

बाहर सैनिकों के कोलाहाल और तलवारों के आपस में टकराने से उत्पन्न झनझनाहट कि ध्वनि से विजयवर्मन समझ गएँ कि हर्षपाल के सैनिक द्वार तक पहुँच चुके हैं. बाहर से आने वाली चीख पुकार उनके अपने ही सैनिकों कि थी, ये पहचानते उन्हें देर ना लगी. वो समझ गएँ कि कक्ष के द्वार का रास्ता रोके खड़े उनके निष्ठावान सैनिक एक एक करके वीरगति को प्राप्त हो रहें हैं !!!

कक्ष के द्वार पर टंगे ज़रीदार परदे ने बाहर चल रही निर्मम निर्दयता को अब तक ढँक रखा था, परन्तु ऐसा अब ज़्यादा देर तक रहने वाला नहीं था !

विजयवर्मन को पता था कि एक पूरी सेना के विरुद्ध वो अकेले ना ही स्वयं कि रक्षा कर पाएंगे, और ना ही कक्ष में उपस्थित दोनों स्त्रीयों कि !!!

मृत्यु तो तय है !!!

परन्तु वो हैं तो पुष्पनगरी के राजनिष्ट छोटे राजकुमार ही ना !!! यूँ ही भयभीत कैसे हो जायें, यूँ ही पराजय कैसे स्वीकार कर लें !!!

निर्णय हो चुका था !!!

विजयवर्मन ने अपनी म्यान से अपनी तलवार बाहर निकाली और अवंतिका तथा चित्रांगदा को अपने पीछे हो लेने का इशारा किया.

अत्यंत धारदार चमकती हुई तलवार को अपनी सख़्त मुट्ठी में थामे, अपनी चौड़े छाती से लेकर अपने उन्नत सिर के ऊपर तक उठाये, अवंतिका और चित्रांगदा को अपने बलशाली शरीर के पीछे लगभग पूर्णत: छुपाये, विजयवर्मन कक्ष के द्वार कि ओर नज़र गड़ाये क्रूर हर्षपाल और उसके सैनिकों के अंदर प्रवेश करने कि प्रतीक्षा करने लगें !!!
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 07-22-2021, 12:52 PM

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