मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" युद्धभूमि में उन्हें बंदी बना लिया गया है मित्र ! ". देववर्मन ने सिर झुकाकर हर्षपाल से कहा.

" भैया ??? आप... आप इस अधम के साथ ??? ". विजयवर्मन के तो मानो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई हो.

अवंतिका और चित्रांगदा ने एक दूसरे को देखा तो चित्रांगदा ने अपनी नज़रें नीचे कर ली.

" और हाँ राजकुमार विजयवर्मन... हमने आपसे मिथ्या कहा था. " . हर्षपाल ने देववर्मन को अपने पास बुलाकर उनके कंधे पर हाथ रखते हुये विजयवर्मन से कहा. " इस राज्य के नये सम्राट हम नहीं, देववर्मन हैं !!! ".

देववर्मन ने सिर झुकाकर अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर की.

" केवल मात्र एक राजसिंहासन के लिए ??? ". क्षोभ और घृणा से भरे विचलित स्वर में विजयवर्मन ने कहा.

" अपने ज्येष्ठ भ्राता को गलत ना समझिये राजकुमार... ". हर्षपाल ने अवंतिका की ओर इशारा करते हुये कहा. " ये सब राजसिंहासन की लालसा के फलस्वरुप नहीं, बल्कि इस निर्लज्ज स्त्री की वजह से हुआ है !!! ".

विजयवर्मन ने एक बार अवंतिका को देखा और फिर देववर्मन को.

हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका के समीप जा खड़े हुये, और गर्दन घुमाकर पीछे खड़े देववर्मन से कहा.

" अत्यंत साधारण दिखने वाली इस स्त्री में ऐसा क्या है जो इसका अपना ही भाई इसका प्रेमी बन गया ??? ये जानने को हमारा ह्रदय व्याकुल हो रहा है मित्र देववर्मन. तनिक अपनी छोटी बहन के वस्त्र तो उतारिये !!! हमने राजकुमार विजयवर्मन को वचन दिया है की हम इन्हे स्पर्श नहीं करेंगे ! ".

" जैसी आपकी आज्ञा मित्र हर्षपाल ! ". कहते हुये देववर्मन आगे बढ़ें, फिर रुक गएँ, और बोलें. " वैसे क्षमा करें महाराज, परन्तु ये स्त्री अब अशुद्ध हो चुकी है. ये अब आपके किस काम की ??? ".

" सत्य वचन मित्र ! ". हर्षपाल ने सहमति जताई, फिर कुछ सोचकर बोलें. " परन्तु आप चाहें तो अपनी बहन को पाने की लालसा आज पूरी कर सकतें हैं... आपको भी इससे प्रेम था ना ??? ".

" प्रेम नहीं मित्र... एक समय था जब इस स्त्री के लिए मेरे मन में कामवासना की अग्नि सदैव ही मुझे उद्विग्न किया करती थी... दिन रात ! परन्तु अब इस स्त्री के लिए मेरे मन में केवल घृणा और द्वेष है ! ".

हर्षपाल ने बिना कुछ कहे अपना सिर हिलाकर देववर्मन की भावनाओं को समझने का संकेत दिया. अब वो धीरे धीरे चलते हुये चित्रांगदा के समीप पहुंचे और देववर्मन की ओर देखकर पूछा.

" और इस स्त्री के बारे में आपके क्या विचार हैं मित्र ? ".

" जैसा की मैंने कहा था महाराज, इसे अपनी दासी बनाकर इसका उद्धार करें !!! ". देववर्मन बोलें.

आंसुओं से भरी क्रोधित नज़रों से चित्रांगदा ने अपने पति देववर्मन को देखा, परन्तु कुछ बोली नहीं !

हर्षपाल अपना चेहरा चित्रांगदा के मुँह के एकदम समीप लेजाकर उसे ध्यान से देखते हुये बोलें.

" आपने मिथ्या कहा था मित्र देववर्मन... ".

" ये आप क्या कह रहें हैं मित्र ??? ". देववर्मन ने घबराकर पूछा.

" और नहीं तो क्या ? आपकी पत्नि अत्यंत सुंदर है, हमारी दासी बनने लायक तो बिल्कुल भी नहीं... ये तो इनका अपमान होगा ! ". हर्षपाल ने थोड़ा रुककर धीमे स्वर में कहा. " इन्हे तो हमारे राज्य की महानगरी के सबसे प्रसिद्ध वेश्यालय में स्थान मिलना चाहिए, ताकि हमारी नगरी के सारे नागरिक इनके रूप यौवन का समान रूप से भोग कर सकें !!! ".

" जैसा आप उचित समझें महाराज... आपका इसे जीवनदान देना ही काफ़ी है ! ". देववर्मन ने कहा.

देववर्मन की बात सुनकर हर्षपाल एकदम से ठहाका मारकर हँस पड़ें. वो स्वयं और उनके सैनिक भी इस बात से इतने प्रसन्न हुये की उन्हें चित्रांगदा कि अगली हरकत दिखाई ही नहीं दी.

चित्रांगदा ने पूरी शक्ति के साथ अपना दायां हाथ सैनिकों कि गिरफ्त से झटक कर छुड़ा लिया, और अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और हर्षपाल के चेहरे पर एक भरपूर वार किया !!!

अचानक से हुये इस हमले से तिलमिलाकर हर्षपाल ने तुरंत अपना चेहरा अपने हाथों से ढंक लिया और दर्द से चिल्लाते हुये लड़खड़ाकर पीछे हट गएँ.

सैनिकों ने वापस से चित्रांगदा को धर दबोचा और उनका खून से सना हुआ चाकू नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा.

" आप ठीक तो हैं ना मित्र !!! ". घबराये हुये देववर्मन ने दौड़कर हर्षपाल को थाम लिया, और उनके हाथ उनके चेहरे पर से हटाते हुये उनका घाव देखा.

हर्षपाल के दाएं जबड़े और गाल से होते हुये चाकू का एक लम्बा, सीधा, गहरा चीरा उनकी नाक को पार करके ऊपर बाएँ तरफ उनके माथे तक गया था. पूरा चेहरा खून से लथपथ हो चुका था. बस उनकी बायीं आँख किसी प्रकार से बच गई थी.

" चलो ये भी अच्छा है मित्र... शरीर पर कोई घाव तो लगा. "
अपने आप को संभालते हुये हर्षपाल ने क्रूरता भरी हँसी हँसते हुये अपने रक्तरंजीत दोनों हाथों को वहाँ मौजूद सभी लोगों को दिखाते हुये कहा. " वर्ना लोग समझते कि हमने ये राज्य बिना किसी परिश्रम के छल कपट से जीता है !!! ".

" बहुत हुआ मित्र... ये खेल अब समाप्त हो ! ". देववर्मन ने अपनी तलवार म्यान से निकालते हुये अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर संकेत करके कहा. " आज्ञा हो तो इन दोनों प्रेमीयों को ईश्वर के पास भेंज दूँ !!! ".

" अपने भाई बहन का वध करने के लिए आपको हमारे आदेश कि प्रतीक्षा करने कि कोई आवश्यकता नहीं मित्र देववर्मन... वैसे भी अब तो आप ही यहाँ के सम्राट हैं !!! ". हर्षपाल ने पास खड़े अपने एक सैनिक के वस्त्र पर अपने लहूलुहान हाथ पोछते हुये कहा.

देववर्मन अपनी तलवार लेकर आगे बढ़ें तो चित्रांगदा ने रोते हुये विनती कि.

" सबकुछ तो अब आपका ही है देववर्मन. बस इनके प्राण ना लीजिये ... इतनी घृणा क्यूँ ??? "

अपनी पत्नि कि बात अनसुनी कर देववर्मन आगे बढ़ें तो हर्षपाल ने उन्हें रोकते हुये कहा.

" मित्र... कम से कम इन्हे अपने चेहरे पर कौतुहल लेकर तो मृत्यु का आलिंगन ना करने दीजिये, आखिर ये आपके परिजन हैं. मरने से पूर्व इन्हे पूरा अधिकार है सच्चाई जानने का... ".

फिर अवंतिका और विजयवर्मन को देखते हुये बोलें.

" आपके राज्य कि सेना अत्यंत समर्थ है. हम तो क्या, कोई भी उन्हें सीधे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता. आपके ज्येष्ठ भ्राता देववर्मन ने ना सिर्फ हमारी ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, बल्कि हमारी मित्रता के पुरस्कार स्वरुप हमारे लिए राजमहल का गुप्त द्वार भी खोल दिया, ताकि हम और हमारी सेना अंदर प्रवेश कर सकें ! और देखिये... परिणाम आपके सामने है !!! "

अवंतिका और विजयवर्मन ने अविश्वास और घृणा से अपने भाई देववर्मन को एक नज़र देखा.

चित्रांगदा का चेहरा लज्जा और क्रोध से लाल हो गया, परन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहें थें कि उन्हें ये बात जानकार कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ था.

देववर्मन ने हर्षपाल कि ओर देखकर एक बार सिर झुकाया.

" हम आपके ऋणी हैं मित्र देववर्मन ! ". कहते हुये हर्षपाल देववर्मन कि ओर बढ़ें. " हमें अपना आभार व्यक्त करने का मौका दीजिये ! ".

हर्षपाल कि बात सुनकर देववर्मन ने घमंड से अपनी गर्दन ऊपर कर ली, मानो उन्होंने कोई अत्यंत विशाल कार्य किया हो.

कक्ष में उपस्थित किसी भी व्यक्ति के कुछ समझ पाने से पहले ही हर्षपाल ने म्यान से अपनी तलवार निकाली और बाघ कि सी तेज़ गति से देववर्मन कि गर्दन पर वार कर दिया !!!

अपने ऊपर हुये इस आकस्मिक हमले से देववर्मन संभल ना पाएं और अपने पीठ और सिर के बल ज़मीन पर गिर पड़ें. उनकी गर्दन में गहरा घाव हुआ था, परन्तु सिर धड़ से अलग नहीं हुआ था. देववर्मन अपने दोनों हाथों से अपनी गर्दन का घाव दबाकर रक्त रोकने का असफल प्रयास करने लगें. उनके हाथों कि पकड़ से होते हुये खून का फव्वारा ऊपर कि ओर छूटने लगा, और उनके शरीर को भींगोते हुये पूरे ज़मीन पर फ़ैलने लगा !

" भैया !!! ". विजयवर्मन के मुँह से निकला.

अवंतिका और चित्रांगदा एक साथ चीख पड़ी और अपनी आँखे बंद कर ली !

अपनी खून से सनी तलवार ज़मीन पर घिसटते हुये हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये घायल देववर्मन के करीब पहुँचे, और उनके पास बैठ गएँ.

" हर्ष... हर्षपाल !!! आखिर क्यूँ ??? ". अटकती हुई साँसों को किसी प्रकार काबू में करके देववर्मन ने फटी आँखों से हर्षपाल को देखते हुये पूछा.
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 07-22-2021, 12:52 PM

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