RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
अपने बाप की वह इकलौती औलाद था। मां उसकी कब की मर चुकी थी, इसलिए उसके बाप ने दो साल बाद घर लौटे अपने बुढ़ापे के इकलौते सहारे के सारे गुनाह बख्श दिए थे।
लौट के बुद्धू घर को आए।
आज उसे दिल्ली लौटे दो साल हो चुके थे लेकिन उसके इलाके के उसके हमउम्र लड़के आज भी उसका मजाक उड़ाते थे कि गया था साला अमिताभ बच्चन बनने, बन उसका डुप्लीकेट भी न सका।
राजन बेचारा खून का घूंट पीकर रह जाता था।
उसका बाप तालों में चाबियां लगाने का मामूली काम करता था, कैसी भी खोई हुई चाबी का डुप्लीकेट तैयार कर देने में उसे महारत हासिल थी। अपना हुनर उसने राजन को भी सिखाया था जो कि राजन ने बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से इसीलिए सीख लिया था, क्योंकि करने को और कोई काम नहीं था। कई बार वह अपने बाप की दुकान पर भी जाता था लेकिन उस हकीर काम में उसका मन कतई नहीं था।
अलबत्ता रंगीला के सामने वह अक्सर डींग हांका करता था कि सेफ का हो या अलमारी का, लॉकर का हो या स्ट्रांगरूम का, वह कैसा भी ताला बड़ी सहूलियत से खोल सकता था।
राजन की उस काबिलियत पर रंगीला की योजना का मुकम्मल दारोमदार था।
दूसरे का नाम कौशल था।
कौशल छः फुट से भी निकलते कद का लम्बा-तड़ंगा जाट था जो कि मास्टर चंदगीराम की शागिर्दी में पहलवानी कर चुका था। कभी वह पहलवानी के दम पर इंग्लैंड-अमरीका की सैर के और सोने-चांदी के बेशुमार तमगे जीतने के सपने देखा करता था, लेकिन जब वह दिल्ली के दंगल में शुरू के ही राउण्डों में चार साल लगातार हार चुका तो उसके सारे सपने टूट गए। उम्र में वह राजन जितना ही बड़ा था लेकिन पहलवानी के चक्कर में उसने इतना ज्यादा वक्त बरबाद कर दिया था कि हुनर वह कोई राजन जितना भी नहीं सीख सका था। रहने वाला वह हिसार का था लेकिन नाकामयाबी की कालिख मुंह पर पोते वह घर भी तो नहीं जाना चाहता था।
उस घड़ी वे तीनों बेरोजगार, पैसे से लाचार, वक्त की मार खाये हुए, अन्धेरे भविष्य से त्रस्त, एक ही किश्ती के सवार नौजवान थे।
वे दोनों रंगीला के साथ आ बैठे।
कैन्टीन उस वक्त लगभग खाली थी।
“क्या किस्सा है, गुरु?”—राजन बोला।
“और आज बात साफ-साफ हो जाए।”—कौशल बोला—“पहेलियां बहुत बुझा चुके हो।”
रंगीला मुस्कराया। उसने दोनों के लिए चाय मंगवाई।
“सुनो।”—अन्त में वह बोला—“मेरे दिमाग में एक ऐसी स्कीम है जिससे हम इतना माल पीट सकते हैं कि जिन्दगी भर हमें कभी रुपये पैसे का तोड़ा नहीं सतायेगा।”
“क्या स्कीम है?”—राजन बोला।
“क्या करना होगा?”—कौशल बोला।
“चोरी।”—रंगीला धीरे बोला।
“धत् तेरे की।”—कौशल निराश स्वर में बोला।
“खोदा पहाड़ और निकला चूहा।”—राजन भी निराश स्वर में बोला—“गुरु, सस्पेंस तो इतना फैलाया और बात चोरी की की।”
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