RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
रंगीला खामोश रहा। चिन्तित वह उस आदमी की वजह से नहीं था, चिन्तित वह इस वजह से था कि वह दारा का आदमी था। दारा से वह कभी मिला नहीं था लेकिन उसने दारा के चर्चे बहुत सुने हुये थे। चान्दनी चौक और आसिफ अली रोड के बीच का सारा इलाका दारा का माना जाता था। उस इलाके में नाजायज शराब का धन्धा, जुआ, वेश्यावृति, पॉकेटमारी, चरस और मछली के तेल की स्मगलिंग जैसा कोई धन्धा उसकी जानकारी और हिस्सेदारी के बिना नहीं चल सकता था। वहां जो कुछ भी होता था, दारा के नाम पर होता था, दारा की शह पर होता था। पुलिस आज तक उसके खिलाफ कोई केस नहीं बना सकी थी, क्योंकि पुलिस का धन्धा मुखबिरी से चलता था और दारा के इलाके में किसी की उसके खिलाफ मुखबिर बनने की हिम्मत नहीं होती थी, होती थी तो दारा उसके मुखबिर बन पाने से पहले ही उसका पत्ता साफ करवा देता था।
“गुरु”—कौशल कह कह रहा था—“मुझे तो यह तुम्हारा वहम ही लगता है कि यह आदमी मेरी निगरानी कर रहा है।”
“तुम्हारी माशूक का क्या हाल है?”—रंगीला ने उसकी राय को नजरअन्दाज करते सवाल किया।
“कौन-सी माशूक?”—कौशल हड़बड़ाया।
“सौ-पचास माशूक हैं तुम्हारी? मैं पायल की बात कर रहा हूं।”
“ओह! वह!”—कौशल जबरन हंसा—“वह अब मेरी माशूक नहीं रही।”
“क्यों, क्या हुआ?”
“अब वह किसी की रखैल बन गई है। बढ़िया फ्लैट में रहती है। कीमती पोशाकें पहनती है। ऐश करती है।”
“किसकी रखैल बन गई है?”
“पता नहीं।”
“दारा की ही रखैल तो नहीं बन गई? मैंने सुना है दारा औरतों का बहुत रसिया है।”
“कहा न, इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं।”—वह उखड़े स्वर में बोला।
“पायल से हाल ही में मिले तुम?”
“न... नहीं। जब से उसने अपना मोरी गेट वाला कमरा छोड़ा है, तब से मेरी मुलाकात नहीं हुई उससे।”
उत्तर देने में उसने जो हिचकिचाहट दिखाई थी, वह न रंगीला से छुप सकी और न राजन से। दोनों की आंखों में सन्देह की छाया तैर गई।
“अब कहां रहती है?”—रंगीला ने पूछा—“कहां है उसका वह बढ़िया फ्लैट?”
“सुना है कर्जन रोड पर कहीं है।”—कौशल लापरवाही से बोला।
“सुना है?”
“हां। अरे, गुरु, तुम यह मुझसे वकीलों की तरह जिरह क्यों कर रहे हो? पायल का या दारा का हमारे वाले चक्कर से क्या रिश्ता?”
“रिश्ता गले में लाल रूमाल लपेटे तुम्हारे पीछे बैठा है।”—रंगीला शुष्क स्वर में बोला—“अगर रिश्ता नहीं है तो दारा का यह आदमी क्यों तुम्हारे पीछे लगा हुआ है?”
“यह तुम्हारा वहम है कि वह मेरे पीछे...”
“कौशल, तुमने जरूर अपने सौ-सौ के नोटों के पुलन्दे की कहीं नुमायश की है।”
“मैंने नहीं की। मैं क्या पागल हूं जो...”
“ताव मत खाओ।”
“और इस आदमी को भी तुम खामखाह मेरे सिर थोप रहे हो। मैं फिर कहता हूं कि तुम्हारा वहम है कि यह मेरे पीछे लगा हुआ है।”
“वहम है तो इसे अभी रफा किया जा सकता है।”
“कैसे?”
“अभी यह भी पता लग जायेगा कि यह तुम्हारे पीछे है या नहीं और यह भी पता लग जायेगा कि वह दारा का आदमी है या नहीं!”
“कैसे? कैसे?”
“तुम अपनी चाय खत्म करो, हमसे विदा लो और यहां से उठकर चल दो। अगर यह आदमी तुम्हारे पीछे लगा तो हम इसके पीछे लग लेंगे। फिर हम तीन जने क्या इस अकेले आदमी से यह नहीं कबुलवा सकते कि यह क्या बेचता है?”
“यह ठीक है।”—राजन फौरन बोला।
“मैं उठकर कहां जाऊं?”—कौशल तनिक विचलित स्वर में बोला।
“डर रहे हो?”
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