RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
लड़की ने व्याकुल भाव से चारों तरफ देखा और फिर बोली—“ठहर।”
कौशल ठहर गया।
“चल।”—वह बोली—“पास ही जाना है।”
“पास कहां?”
“बंगाली मार्केट।”
कौशल उसके साथ हो लिया।
रंगीला और राजन हवामहल में बैठे थे।
हवामहल दिल्ली गेट के पहलू में बना एक रेस्टोरेन्ट था जिसमें एक पंडालनुमा अस्थाई हाल में रात को कैब्रे भी चलता था। कैब्रे की वजह से वहां आधी रात के बाद तक हलचल रहती थी। वे दोनों उस पंडाल से बाहर खुले में बिछी मेज-कुर्सियों में से एक पर बैठे थे। वे विस्की की एक पूरी बोतल पी चुके थे। लेकिन टुन्न उन दोनों में से फिर भी कोई नहीं था। कौशल की चिन्ता में नशा उन पर हावी नहीं हो रहा था।
रेस्टोरेन्ट बन्द होने का वक्त हो रहा था और कौशल अभी तक वापिस नहीं लौटा था।
“गुरु।”—अन्त में इन्तजार से तंग आकर जगदीब बोला—“पहलवान फूट गया लगता है।”
“फूट गया हो तो अच्छा ही है।”—रंगीला गम्भीरता से बोला—“साली चिंता तो मिटे कि कहीं वह हमें न फंसवा दे। मुझे तो उससे खतरा लगने लगा है। उसी की वजह से वह जुम्मन नाम का आदमी हमारे पल्ले पड़ गया। अभी पता नहीं और क्या गुल खिलाएगा वो।”
“हूं।”
“मुझे तो उसकी पायल नाम की माशूक का भी कोई चक्कर लगता है, लेकिन साला कुछ बक कर तो देता नहीं! बड़ी खुदगर्ज और कमीनी लड़की है। कौशल कहता है वो उससे नहीं मिला, लेकिन अगर वह उससे मिला हुआ और उसे उसने बताया हुआ कि उसके पास चार पैसे आ गए हैं तो वह जरूर उसकी खाट खड़ी करवा कर छोड़ेगी।”
“पहलवान जाए भाड़ में लेकिन, गुरु, साथ में हमारी खाट नहीं खड़ी हो जानी चाहिए।”
“इसी बात से तो मुझे डर लग रहा है।”
राजन खामोश रहा।
“राजन, फिलहाल दारा की निगाह में आने से तो हमें हर हाल में बचना चाहिए। मैं चाहता हूं कि दारा अगर हमें ढूंढ़ना भी चाहे तो न ढूंढ़ सके। इसके लिए अब आगे से हमें जामा मस्जिद के इलाके में नहीं दिखाई देना चाहिए।”
“तो फिर हम मिला कहां करेंगे?”
“कनाट प्लेस में। प्लाजा के सामने से जो गली ओडियन को जाती है, उसमें ‘कोलाबा’ नाम का एक छोटा सा रेस्टोरेन्ट है, कल दिन में दो बजे मुझे वहां मिलना। अगर किसी वजह से वहां हमारी मुलाकात न हो सकी तो शाम को सात बजे मैं तुम्हें प्लाजा के सामने मिलूंगा।”
“ठीक है।”
“इस बात का खास खयाल रखना कि कोई तुम्हारे पीछे न लगने पाए। न पुलिस, न दारा का कोई आदमी, न कोई और।”
“मैं खयाल रखूंगा।”
“अपना माल तुमने कहां छुपाया है?”
“कहीं भी नहीं। मेरा माल इस वक्त भी मेरी जेब में है। इसे छुपाने की कोई बढ़िया जगह मुझे नहीं सूझी है अभी तक।”
तभी कैब्रे वाले पंडाल से लोग बाहर निकलने लगे।
वे दोनों भी उठ खड़े हुए।
उन्होंने वेटर को बुलाकर बिल चुकाया और उन्हें चोरी-छिपे वहां विस्की पीने देने की एवज में उसे बीस रुपए टिप दी।
वे सड़क पर पहुंचे।
राजन वहीं से फव्वारे को जाते एक फटफटे पर सवार हो गया। वह चारहाट में रहता था। लालकिले के सामने उतर कर वह पैदल चारहाट जा सकता था। चारहाट में उसके घर में वह और उसका बाप बस दो ही जने रहते थे लेकिन फिर भी अपनी शनील की थैली उसने अपने घर पर नहीं छुपाई थी। न जाने क्यों अभी इतने माल को अपने से अलग कर देने को उसका दिल नहीं मान रहा था। ऊपर से वह दारा से भयभीत था। क्या पता दारा पहले ही मालूम करवा चुका हो कि राजन कौन था और कहां रहता था। दिन में उसका बाप अपने काम पर चला जाता था और वह भी घर पर नहीं होता था। खाली घर में इतना माल वह असुरक्षित नहीं छोड़ सकता था।
दिल्ली गेट से रंगीला के घर का फासला कुछ भी नहीं था। बस चितली कबर बाजार पार किया और घर।
वह घर पहुंचा।
उसे घर अन्धेरे में डूबा मिला।
मंगलवार को गली में कहीं कथा होती थी जहां कोमल ने उसे दिन में ही बताया था कि उसने जाना था। प्रत्यक्ष था कि कोमल अभी तक कथा से वापिस नहीं लौटी थी।
वह ताला खोलकर भीतर दाखिल हुआ। उसने एक दो बत्तियां जलायीं और भीतर जाकर पलंग पर लेट गया।
उसने घड़ी देखी।
एक बजने को था।
कोमल बस आती ही होगी।
जिस कथा में कोमल गई थी, वह, उसने बताया था कि, शुरू ही रात के दस बजे होती थी इसलिए उसका एक डेढ़ बजे तक चलना मामूली बात थी। इलाके का दुकानदार तबका वह कथा करा रहा था। दुकानदारी और भोजन से फुरसत हासिल होने तक उन लोगों को दस बज जाना मामूली बात थी। रंगीला कोमल को ऐसी जगहों पर जाने से या कभी गली की किसी लड़की के साथ सिनेमा वगैरह चले जाने से कभी रोकता नहीं था, इसलिए नहीं रोकता था क्योंकि वह खुद उसे कहीं ले जा नहीं पाता था और कथा सुनने जैसे कामों में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी।
वह आराम ले पलंग पर पसरा रहा।
अगर उसे पता होता कि उसकी उससे ज्यादा पढ़ी-लिखी, खूबसूरत बीवी उस वक्त कथा में बैठी होने की जगह कहीं और थी तो वह यूं आराम से लेटा न रह पाता। वह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि उसकी सूरत से इतनी भोली भाली और मासूम लगने वाली बीवी उसके साथ बेवफाई कर सकती थी।
जबकि ऐन यही काम वह उस वक्त कर रही थी।
उस वक्त वह गली के एक नए बनते मकान के अन्धेरे बरामदे में एक युवक के साथ खड़ी थी। दोनों कसकर एक दूसरे के साथ लिपटे हुए थे। रात के उस वक्त गली सुनसान थी, मकान में अन्धेरा था और तिराहा बैरम खां के चौक में कथा अभी भी चल रही थी। युवक का नाम श्रीकांत था। उसके होंठ कोमल के होंठों से जुड़े हुए थे, एक हाथ से वह उसके शरीर को अपने शरीर के साथ लगाए था और उसका दूसरा हाथ कोमल के कपड़ों के नीचे घुसा उसके सारे शरीर को सहलाता हुआ भटक रहा था। कोमल की व्याकुल आंखें रह रहकर सुनसान गली की तरफ उठ जाती थीं, वह बड़ी मुश्किल से कह पाती थी कि श्रीकान्त अब उसे जाने दे लेकिन श्रीकान्त ‘एक मिनट और’ कहकर उसे फिर पहले से ज्यादा मजबूती से दबोच लेता था। वह ‘और’ वाला एक मिनट पन्द्रह मिनट लम्बा पहले ही खिंच चुका था। श्रीकांत चाहता था कि वह अपनी ‘जाऊं-जाऊं’ बन्द करे और आज वह उसे उस बनते मकान की नंगी ऊबड़ खाबड़ जमीन पर ही लंबी लिटा ले।
श्रीकान्त कोमल के साथ हाथापाई के कई मौके हासिल कर चुका था लेकिन उसके मन की असली मुराद आज तक पूरी नहीं हुई थी। अपनी वह मुराद पूरी करने के लिए वह उसे अच्छी तरह विश्वास दिला चुका था कि वह उसे दिलोजान से प्यार करता था और अगर वह पहले से विवाहित न होती तो वह पलक झपकते उसके साथ शादी कर लेता। कोमल को उसकी बातों पर पूरा विश्वास था, वह समझती थी कि श्रीकान्त वाकई उससे दिल से प्यार करता था लेकिन कोमल अभी तक अपने आप को श्रीकान्त के सामने समर्पित कर देने के लिए तैयार नहीं कर पाई थी। जब कभी भी उस क्षण जैसी कोई नौबत आती थी और हालात उसके काबू से बाहर होते नजर आते थे तो हमेशा या तो कोई व्यवधान आ जाता था और या फिर वही किसी तरह से अपने आपको काबू कर लेती थी।
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