RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
भीतर एक विशाल मेज लगी हुई थी, जिसके पीछे शानदार वर्दी पहने एक रोबदाब वाला पुलिसिया बैठा था। उसके दाएं पहलू में दो और पुलिसिये बैठे थे जिनकी वर्दी के तीन सितारे बता रहे थे कि वे इन्स्पेक्टर थे। कौशल पुलिस वालों के रुतबे को सिर्फ तीन फीतियों और तीन सितारों तक समझता था। मेज के पीछे बैठे आदमी की वर्दी के कील कांटे और ही तरह के थे। लेकिन जिस अदब के साथ वे दोनों इन्स्पेक्टर तनकर कुर्सियों पर बैठे थे, उससे साफ जाहिर होता था कि मेज के पीछे वाला आदमी उनसे बड़ा अधिकारी था।
“आओ!”—बड़ा अधिकारी उसे देख कर मुस्कराता हुआ बोला—“बैठो।”
कौशल झिझकता हुआ आगे बढ़ा और उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।
उसके पीछे कमरे का दरवाजा बन्द हो गया।
“तुम्हारा नाम कौशल है?”—बड़ा साहब बोला—“कौशलसिंह डबराल?”
“जी, साहब।”—कौशल बड़े अदब से बोला।
“मुझे भजनलाल कहते हैं। मैं यहां असिस्टैंट कमिश्नर ऑफ पुलिस होता हूं।”
“जी, साहब।”
“ये इन्स्पेक्टर चतुर्वेदी हैं।”—उसने एक इन्स्पेक्टर की तरफ इशारा किया—“ये दरियागंज थाने से आए हैं। आसिफ अली रोड, जहां कामिनी देवी नामक धनाढ्य महिला का कत्ल हुआ था, इनके इलाके में पड़ता है और ये कनाट प्लेस थाने के इन्स्पेक्टर भूपसिंह हैं। कल रात कर्जन रोड के एक फ्लैट में पायल नाम की एक नौजवान लड़की का कत्ल हो गया था। अखबार में खबर तो पढ़ी ही होगी तुमने?”
“जी, साहब! पढ़ी थी।”
“हम तुमसे चन्द सवाल पूछना चाहते हैं। तुम्हें कोई एतराज?”
कौशल हिचकिचाया।
“एक बेगुनाह आदमी को”—भजनलाल उसे घूरता हुआ बोला—“पुलिस के चन्द सवालों का जवाब देने से एतराज नहीं होना चाहिए। एक नेक शहरी को तो उल्टे पुलिस की मदद करनी चाहिए।”
“आप कुछ भी पूछिए, साहब।”—कौशल हड़बड़ा कर बोला—“मुझे कोई एतराज नहीं।”
“गुड! अपनी जेबों का सामान निकाल कर मेज पर रख दो।”
“जी!”
“अपनी जेबों को मेज पर खाली करो।”
कौशल ने जेबों में मौजूद एक एक चीज निकाल कर मेज पर रखनी आरम्भ कर दी।
पीतल का मुक्का मेज पर रखते समय उसका दिल लरज गया। इतने बखेड़े के बाद वह मुक्का उसे अपने पास नहीं रखे रहना चाहिए था।
“बस!”—सौ सौ के नोटों के पुलन्दे समेत सब सामान जब मेज पर पहुंच चुका तो भजनलाल बोला।
“जी, साहब!”
भजनलाल ने इन्स्पेक्टर चतुर्वेदी को संकेत किया।
उसने उठकर खुद कौशल की सारी जेबें टटोलीं। उसने उसकी जुर्राबों के भीतर तक झांका। फिर उसने उसके दोनों हाथों का कोहनियों तक तथा गरदन और गले का मुआयना किया।
कौशल ने इस बात से बड़ी राहत महसूस की कि उसे छाती नंगी करके दिखाने के लिए नहीं कहा गया था।
“अपने हाथों के नाखून।”—इन्सपेक्टर चतुर्वेदी बोला—“तुमने आज ही काटे मालूम होते हैं।”
“जी, साहब।”—कौशल बोला।
“क्यों?”
“क्या क्यों?”—कौशल तनिक हड़बड़ाए स्वर में बोला।
“तुमने नाखून आज ही क्यों काटे?”
“साहब, नाखून कभी तो मैंने काटने ही थे! मेरी उनकी तरफ आज तवज्जो गई, मैंने आज काट दिए।”
“बस! यही वजह है?”
“जी हां।”
“और कोई वजह नहीं?”
“और क्या वजह होगी, साहब?”
“हूं।”
चतुर्वेदी वापिस अपनी कुर्सी पर जा बैठा।
कुछ क्षण खामोशी रही।
“तुम रहते कहां हो?”—अन्त में भजनलाल ने खामोशी भंग की।
“कहीं भी नहीं।”—कौशल बोला—“पहले मैं कूचा मीर आशिक में अपने एक दोस्त के साथ रहता था लेकिन कल रात को मैंने वह ठिकाना छोड़ दिया था।”
“क्यों?”
“मैं यह शहर छोड़कर जा रहा था।”
“वह क्यों?”
“क्योंकि मैं इस शहर से तंग आ चुका हूं।”
“तो फिर गए क्यों नहीं?”
“क्योंकि कल रात स्टेशन पर से मेरा सामान चोरी हो गया था। मैं बुकिंग से टिकट ले रहा था कि कोई मेरे पहलू में रखा मेरा सूटकेस उठा कर ले गया। मेरे सब कपड़े लत्ते और जरूरत का सामान उसी सूटकेस में था।”
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