RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
“च-च-च। रेलवे स्टेशनों पर सामान की चोरी की वारदातें बहुत बढ़ती जा रही हैं। तुमने चोरी की रिपोर्ट लिखाई?”
“नहीं, साहब।”
“क्यों?”
“ऐसे चोरी गया माल पुलिस कभी बरामद तो कर नहीं पाती, साहब!”
“कभी कभी कर पाती है।”
कौशल चुप रहा।
“तुम रेल से जा कहां रहे थे?”
“हिसार! मैं हिसार का रहने वाला हूं।”
“तो फिर गए क्यों नहीं?”
“मेरा सामान जो चोरी चला गया था! खाली हाथ सर्दियों की रात का सफर मुझे परेशान कर सकता था।”
“हूं! फिर स्टेशन से तुम अपने कूचा मीर आशिक वाले ठिकाने पर वापिस चले गए थे?”
“नहीं, साहब। वह ठिकाना मैं हमेशा के लिए छोड़ चुका हूं।”
“तो फिर कहां गए तुम?”
कौशल हिचकिचाया।
“पिछली रात तुमने कहां गुजारी थी, कौशल सिंह?”
“पिछली रात मैं एक औरत के साथ था।”
“कौन औरत?”
“वह मेरी कोई जानकार नहीं थी। यूं ही राह चलते मिल गई थी।”
“ओह! कोई कालगर्ल?”
कौशल ने यूं सिर नीचा किए हामी भरी, जैसे वह बात अपनी जुबान पर लाने में उसे बहुत शर्म आ रही थी।
“मिली कहां वह तुम्हें?”
“स्टेशन के बाहर ही मिल गई थी। मैं रात किसी होटल में गुजारने की नीयत से फतहपुरी की तरफ जा रहा था कि वह मुझसे टकरा गई थी।”
“वह तुम्हें अपने ठिकाने पर ले गई थी?”
“हां, साहब।”
“कहां है उसका ठिकाना?”
“मुझे मालूम नहीं।”
भजनलाल ने उसे घूरकर देखा।
“साहब वह मुझे नावल्टी सिनेमा के पीछे की गलियो में दाएं-बाएं घुमाती कहीं ले गई थी। मैंने रास्ते की तरफ ध्यान नहीं दिया था। वैसे भी उस इलाके की मुझे वाकफियत नहीं है।”
“लड़की का नाम क्या था?”
“मुझे उसने अपना नाम कमला बताया था।”
“जो कि जरूरी नहीं कि उसका असली नाम हो!”
“जी, साहब।”
“कब मिली थी वह तुम्हें?”
“रात कोई साढ़े दस बजे के करीब।”
“रात भर तुम उसके साथ रहे थे?”
“जी हां। रात भी और अब तक का दिन भी मैंने उसी के यहां गुजारा था।”
“हूं। इस लड़की कमला का हुलिया बयान कर सकते हो?”
“हां, साहब। वह खुले खुले हाथ पांव वाली कोई पच्चीस-छब्बीस साल की लड़की थी। उसका रंग सांवला था, नयन-नक्श अच्छे थे, बाल कटे हुए थे, गले में वह एक सोने की जंजीर पहने थी, माथे पर बिन्दी लगाती थी। वह भूरे रंग की शलवार कमीज और तकरीबन उसी रंग का पुलोवर पहने थी।”
“तुम्हें तो बहुत बातें याद हैं उसके बारे में!”
“साहब, आखिर मैंने एक रात और आधा दिन उसके साथ गुजारा था।”
“अगर तुम्हारी अपनी भलाई की खातिर तुम्हें यह साबित करने की जरूरत पड़ जाए कि कल रात तुम उस लड़की के साथ थे, कहीं और नहीं थे, तो क्या साबित कर सकोगे?”
“मैं कैसे साबित कर सकूंगा, साहब? मैं तो जानता नहीं उस लड़की को। हां, इत्तफाक से वह फिर टकरा जाए मेरे से तो बात दूसरी है।”
“अब तुम्हारा हिसार जाने का इरादा नहीं है?”
“फिलहाल तो नहीं है, साहब।”
“अब क्या इरादा है?”
“पहले तो रहने की कोई जगह ही तलाश करने का इरादा है। मास्टर चन्दगी राम की व्यायामशाला में भी मैं इसी चक्कर में गया था। मेरा एक दोस्त शाहदरा रहता है जिसके मुझे वहां मिलने की उम्मीद थी।”
“हूं। कौशल सिंह!”
“जी, साहब।”
|