RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
भजनलाल ने हाथ बढ़ाकर कौशल की जेबों में से निकले सामान में से नोटों का पुलन्दा उठा लिया। उसने खामोशी से नोट गिने। फिर बोला—“दारा यह भी कहता है कि पायल के फ्लैट के सामने कल रात तुमने उस पर आक्रमण किया था और उसकी जेब से कोई चार हजार रूपये निकाले थे। यह तकरीबन उतनी ही रकम तुम्हारी जेब से बरामद हुई है।”
“साहब!”—कौशल आवेशपूर्ण स्वर में बोला—“वह झूठ बोलता है। बकवास करता है। मैंने तो आज तक उस आदमी की सूरत भी नहीं देखी। बस सिर्फ नाम सुना है मैंने उसका। और तारीफ सुनी है कि वह असल में क्या चीज है। साहब, जरूर वह अपनी खाल बचाने के लिए मुझे फंसाना चाहता है।”
भजनलाल ने बड़ी संजीदगी से गर्दन हिलायी लेकिन कौशल न समझ सका कि यूं गरदन हिलाकर वह अपनी सहमति जता रहा था या असहमति। फिर भजनलाल ने नोटों का पुलन्दा वापिस मेज पर रख दिया और हाथ बढ़ाकर पीतल का मुक्का उठा लिया। उसने मुक्के में अपने दायें हाथ की उंगलियां पिरोकर उंगलियां बन्द कीं और मुक्के का मुआयना किया।
“यह मुक्का तो बड़ा मजबूत और खतरनाक है।”—भजनलाल बोला—“ऊपर से तुम पहलवान हो। इस मुक्के का एक ही वार दारा को धूल चटा देने के लिए काफी था।”
“मैंने उस पर वार नहीं किया। मैंने उस पर उंगली तक नहीं उठाई। मैंने उसकी कभी सूरत तक नहीं देखी।”
“यह मुक्का कब से है तुम्हारे पास?”
“कल सुबह से। कल सुबह मैंने इसे जामा मस्जिद के एक कबाड़ी के पास देखा था और मैने दस रूपये में इसे खरीद लिया था।”
“क्यों?”
“अपनी हिफाजत के लिए, साहब। आजकल राह चलते तो हमले हो रहे हैं लोगों पर! आप क्या जानते नहीं कि शहर में राहजनी और बटमारी की वारदातें किस कदर बढ़ती जा रही हैं! अभी परसों रात ही किसी ने जमुना बाजार में मुझे लूटने की कोशिश की थी।”
“अच्छा!”
“जी हां। साले ने पीछे से आकर यह मोटा डण्डा मेरे सिर में दे मारा। यह देखिए।”—कौशल सिर झुकाकर उसे अपनी खोपड़ी दिखाता बोला—“कैसे खोपड़ी फुलाकर रख दी हरामजादे ने। वह तो मैं ही था जो वह वार झेल गया, कोई और होता तो मरा पड़ा होता।”
“च-च-च।”—भजनलाल बड़ी हमदर्दी के साथ बोला—“यहां से तो खून भी बहा मालूम होता है!”
“बहा था।”
“वह हमलावार फिर कहां गया?”
“मुझे वार से गिरता न देखकर भाग गया साला।”
“तुमने उसे पकड़ने की कोशिश न की?”
“साहब उस वक्त मैं अपना सिर थामता या उसे पकड़ता?”
“यह भी ठीक है। तुमने इस हमले की रिपोर्ट तो पुलिस में लिखवाई होगी?”
“नहीं, साहब।”
“नहीं?”
“नहीं, साहब।”
“क्यों?”
“क्या फायदा होता, साहब?”—कौशल दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला।
“तुम्हें पुलिस पर कोई खास भरोसा नहीं मालूम होता कौशलसिंह।”
“ऐसे ही है, साहब।”
“हूं। तो यह मुक्का तुमने अपनी हिफाजत की खातिर अपने पास रखा हुआ है।”
“जी, साहब। और हिफाजत की तो अब मुझे और भी ज्यादा जरूरत है।”
“मतलब?”
“साहब, अगर दारा यह कहता है कि मैने उस पर वार किया है और उसकी जेब से पैसे निकाले हैं तो उसके आदमी तो मार-मारकर भूस भर देंगे मेरे में।”
“ऐसा नहीं होगा।”—भजनलाल सख्ती से बोला—“इतनी बद्अमनी नहीं हैं दिल्ली शहर में।”
कौशल चुप रहा।
“लेकिन दारा का यह दावा अपनी जगह पर अटल है कि उस पर हमला तुमने किया था।”
“वह झूठ बोलता है, साहब।”—वह चिल्लाया, लेकिन फिर उसे भजनलाल की चेतावनी याद आ गई और उसकी आवाज दब गई—“वह कैसे कह सकता है कि उस पर हमला मैने किया था? क्या उसने मेरी सूरत देखी थी?”
“सूरत तो उसने नहीं देखी थी तुम्हारी! इतना तो वह मानता है! वह कहता हैं कि तुम दबे पांव तब उसके पीछे पहुंचे थे जब वह अपनी कार में दाखिल होने जा रहा था। तुमने एक हाथ से फिरकनी की तरह उसे घुमाया था और दूसरे हाथ का एक भीषण प्रहार उस पर किया था।”
“मैंने नहीं।”
“वह कहता है कि ऐसा तुमने किया था।”
“जब उसने मेरी सूरत नहीं देखी तो वह ऐसा कैसे कह सकता है?”
भजनलाल ने उत्तर न दिया। उसने अपने सहयोगी पुलिसियों की तरफ देखा। दोनों ने गम्भीरता से सिर हिलाया।
“यह रकम”—भजनलाल ने मेज पर पड़े नोटों की तरफ संकेत किया—“अगर तुमने दारा से नहीं छीनी तो यह तुम्हारे पास कहां से आई?”
“यह क्या बहुत बड़ी रकम है साहब।”—कौशल आहत भाव से बोला—“जो मेरे पास नहीं हो सकती? अच्छे खाते पीते घर का आदमी हूं मैं। कोई मंगता तो नहीं हूं!”
“हूं।”—भजनलाल बोला, फिर उसने कालबैल बजाई। तुरंत दरवाजा खोलकर एक हवलदार भीतर दाखिल हुआ। वह हवलदार से बोला—“साहब को जरा बाहर बिठाओ।”
हवलदार कौशल को अपने साथ ले गया।
“क्या खयाल है?”—भजनलाल बोला।
“अगर वह झूठ बोल रहा था”—दरियागज थाने का इन्चार्ज चतुर्वेदी बोला—“तो मानना पड़ेगा कि बड़ी होशियारी से और बड़े आत्माविश्वास के साथ बोल रहा था।”
“झूठ तो वह शर्तिया बोल रहा था। छोकरा होशियार है, हो सकता है दोनों ही वारदातों में इसका हाथ हो।”
“सर।”—कनाट प्लेस थाने का इन्चार्ज भूपसिंह बोला—“मेरे वाले केस में तो मुझे दारा इससे कहीं ज्यादा बड़ा सस्पैक्ट लगता है। उसका चेहरा नुचा हुआ पाया गया है, जबकि इस छोकरे के चेहरे पर एक खरोंच भी नहीं है।”
“तुम यह कहना चाहते हो कि यह”—भजनलाल ने फिर नोटों की तरफ संकेत किया—“दारा की जेब से निकला हुआ रुपया नहीं है!”
“हो सकता है यह दारा का ही माल हो। लेकिन यह जरूरी नहीं कि कत्ल इस छोकरे ने किया हो। मेरी राय में इस छोकरे ने दारा पर तब आक्रमण किया होगा जब वह पायल का कत्ल करके बाहर सड़क पर आकर अपनी कार में सवार होने का उपक्रम कर रहा था।”
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