RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
“अगर हम तुम्हारा खून टैस्ट करवाना चाहें तो तुम्हें कोई एतराज?”
कौशल हिचकिचाया।
“अगर तुम बेगुनाह हो तो इतनी मामूली-सी बात से तुम्हें कोई एतराज नहीं होना चाहिए।”
“मुझे कोई एतराज नहीं, साहब।”—कौशल मन ही-मन भयभीत होता लेकिन ऊपर से दिलेरी दिखाता बोला।
“तसवीर खिंचवाने से कोई एतराज?”
“एतराज तो नहीं, साहब, लेकिन तसवीर तो मुजरिमों की खिंचती है!”
“सम्भावित मुजरिमों को भी खिंचती है।”
“लेकिन गिरफ्तारी के बाद ही तो खिंचती होगी! मैं क्या अपने-आपको गिरफ्तार समझूं?”
“समझ लो।”
“लेकिन किस इलजाम में, साहब? आप जानते हैं आप मेरे खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर सकते।”
“कौशलसिंह, तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए तुम्हारे पास से बरामद यह मुक्का ही काफी है। यह एक खतरनाक हथियार है। और खतरनाक हथियार अपने पास रहना इरादायेकत्ल की चुगली माना जाता है।”
“लेकिन यह तो सिर्फ आत्मरक्षा के लिए मैंने अपने पास रखा हुआ था!”
“तुम्हीं तो कहते हो! तुम्हारे कहने से क्या होता है?”
“यह तो ज्यादती है आप लोगों की!”
“यह हमारी ज्यादती नहीं, हमारा सबक है तुम्हारे लिए। अगर तुम कानून छांट सकते हो तो हम भी कानून छांट सकते हैं।”
कौशल को जवाब न सूझा!
“अब बोलो। तसवीर खिंचवाने को तैयार हो?”
“जी, साहब।”
“शाबाश।”
भजनलाल ने घंटी बजाकर हवलदार को बुलाया और उसे आवश्यक निर्देश देकर कौशल को उसके साथ रवाना कर दिया।
एक घण्टे बाद कौशल फिर हवा की तरह आजाद सड़क पर मौजूद था। मुक्के के अलावा उसका सारा सामान—नोटों का पुलन्दा भी—उसे लौटा दिया गया था। उसकी अपनी निगाह में पायल के कत्ल से वह मुकम्मल तौर से बरी किया जा चुका था और कामिनी देवी के कत्ल और उसके यहां हुई चोरी से उसके रिश्ते की तो पुलिस को भनक तक नहीं थी। इस बात से यह भी साबित होता था कि दारा ने उस बारे में अपनी जुबान वहीं खोली थी। अलबत्ता उसने कौशल के पायल का कातिल होने की बात बार-बार दोहराई थी।
लेकिन जुबानी जमा-खर्च करने से क्या होता था! जो कहा जाता था, उसे साबित भी तो करना पड़ता था!
और दारा उसके खिलाफ कुछ साबित नहीं कर सकता था।
कौशल अब पूरी तरह से आश्वस्त था कि उसका बाल भी बांका नहीं होने वाला था।
कितनी गलतफहमी में था पहलवान!
गुरुवार : सुबह
राजन का अपने घर और अपने मौहल्ले से सिर्फ इतना रिश्ता था कि घर उसको रात को सोने के लिए जाना पड़ता था और घर पहुंचने के लिए मौहल्ले से उसकी गुजरना पड़ता था। नाकामयाबी की लानत के साथ जब से वह मुम्बई से लौटकर आया था, उसके बाप ने उसके टोका-टाकी करनी कतई छोड़ दी थी। राजन किस राह जा रहा था, भविष्य में उसका क्या बनेगा, इन बातों की बाप को फिक्र तो होती थी लेकिन वह उन्हें जुबान पर नहीं लाता था, इसलिए नहीं लाता था कि राजन कहीं फिर न घर से भाग खड़ा हो। उसकी निगाह में सब्र और इन्तजार ही राजन का इलाज था। लड़का हमेशा ही यूं लापरवाह नहीं बना रह सकता था। अभी तो उसे अपनी रिजक कमाने की जिम्मेदारी का अहसास होना ही था। उस मुबारक दिन के इन्तजार में जुबान को ताला लगाए बाप अपने बेटे के साथ रह रहा था। बाप बेटे जैसा नजदीकी रिश्ता होने के बावजूद, दोनों के एक ही छत के नीचे रहते होने के बावजूद, कई बार ऐसा होता था कि तीन-तीन चार-चार दिन बाप-बेटा एक-दूसरे के रूबरू नहीं हो पाते थे। बेटा जब रात को घर लौटता था तो बाप सो चुका होता था, बाप जब सुबह अपने काम धन्धे के लिए घर से रवाना होता था तो बेटा अभी जागा नहीं होता था।
चारहाट में कोई दर्जन भर उसके हमउम्र लड़कों का एक गैंग था जिसका एक्टर बनने की नीयत से मुम्बई भाग जाने तक वह भी अंग था। वापिसी पर जब उसने उस गैंग का फिर अंग बनने की कोशिश की थी तो उसे ऐसा माहौल मिला था जो उसके मिजाज को रास नहीं आया था। वही उसके वो हमउम्र लड़के थे जो कि उसका मजाक उड़ाया करते थे कि साला गया था अमिताभ बच्चन बनने, बन उसका डुप्लीकेट भी न सका।
अपने पुराने गैंग में आज राजन की स्थिति एक बेहद अवांछित व्यक्ति जैसी थी। लड़के न सिर्फ उसका मजाक उड़ाते थे बल्कि उससे उलझने की, उसे बेइज्जत करने की भी कोशिश करते थे। इसीलिए राजन की कोशिश यही होती थी कि वह दिन को चारहाट से निकल जाए और रात को सोने के वक्त ही वहां पहुंचे।
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