RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
उसके पुराने गैंग में दामोदर नाम का एक लड़का था जो उससे खास तौर से खुन्दक खाता था। जैसे राजन कभी ऐक्टर बनने के ख्वाब देखता था, वैसे ही दामोदर अपनी कल्पना दिल्ली के ही नहीं बल्कि हिन्दोस्तान के सबसे बड़े दादा के रूप में किया करता था। वह अपनी कल्पना ऐसे फिल्मी गैंगस्टर के रूप में करता था जिसके आगे सब गर्दन झुकाते थे, जिससे पुलिस तक डरती थी, जो ‘बॉस’ के फैंसी नाम से पुकारा जाता था और जो जब भी कहीं जाता था, उसके दो चमचे दाएं-बाएं उसके साथ होते थे। अभी वह उम्र में छोटा था इसलिए छोटे-मोटे कारनामों की बाबत सोचता था लेकिन वह बड़े फिल्मी स्टाइल में हमेशा कहा करता था कि एक दिन उसने दिल्ली के अन्डरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बनना था, एक दिन उसने अपनी ऐसी धाक जमाकर दिखानी थी कि दारा भी उसका हुक्का भरता दिखाई देता। दामोदर बहुत मोटा और बेढंगा बना हुआ था, सूरत उसकी सूअर की थूथनी जैसी थी और उसको अपनी कुरूपता का अहसास भी था। दामोदर शुरू से ही राजन से इस बात से भी खुन्दक खाता था कि इलाके की सारी नौजवान लड़कियां राजन पर ही मक्खियों की तरह भिनभिनाती दिखाई देती थीं। दामोदर ने सोचा था कि मुम्बई से पिटा-सा मुंह लेकर लौटने के बाद तो राजन की लड़कियों में साख घटेगी, लेकिन राजन के लौट आने के चन्द ही दिनों में यह साबित हो गया था कि लड़कियों में उसकी लोकप्रियता रत्ती भर भी कम नहीं हुई थी। एक डेजी नाम की क्रिश्चियन लड़की तो खास तौर से राजन पर बुरी तरह से फिदा थी। राजन जब घर से भाग गया था तो दामोदर ने उस पर बहुत डोरे डालने की कोशिश की थी लेकिन डेजी ने न उसको घास डाली थी और न इलाके के किसी और लड़के को। राजन वापिस लौटा था तो वह पहले से भी ज्यादा जोशोखरोश से उससे मिलने जुलने लगी थी। दामोदर उन दोनों को इकट्ठे देखता था तो उसका जी चाहता था कि वह दोनों का नहीं तो राजन का तो जरूर ही खून कर दे।
राजन के लिए उसके मन में घर कर चुकी घृणा और विद्वेष की भावना उसे सदा राजन से उलझने, उसे जलील और बेइज्जत करने के लिए प्रेरित करती रहती थी।
खुद राजन डेजी से बहुत मुहब्बत करता था। वह उससे शादी करना चाहता था। लेकिन अपने बाप पर आश्रित रहकर या उसका ताले-चाबियों का धन्धा अपनाकर वह डेजी से शादी नहीं करना चाहता था। यह भी एक अहम वजह थी कि वह आसिफ अली रोड वाली चोरी में रंगीला का साथ देने के लिए फौरन तैयार हो गया था।
दामोदर देखने में हर लिहाज से राजन से ज्यादा लम्बा-चौड़ा और बलशाली लगता था, लेकिन फिर भी राजन से सीधे टक्कर लेने की उसकी आज तक हिम्मत नहीं हुई थी। वह राजन से हमेशा तभी उलझता था—बल्कि तब जरूर उलझता था—जबकि उसके दो-चार हिमायती उसके साथ होते थे। राजन को नीचा दिखाना, उसे बेइज्जत करना एक तरह से उसके जीवन का उद्देश्य बन गया था। अपने इस उद्देश्य में अगर उसे एक छोटी कामयाबी हासिल हो जाती थी तो वह उससे बड़ी कामयाबी हासिल करने के लिए तड़फड़ाने लगता था। वह चाहता था कि राजन उससे डरे, उससे फरियाद करे कि यार दामोदर, तू क्यों मेरे पीछे पड़ा हुआ है लेकिन राजन ऐसा नहीं करता था। वह ऐसा करता तो शायद दामोदर के कलेजे को ठण्ड पड़ जाती और वह किसी हद तक उसका पीछा छोड़ देता लेकिन राजन तो अपमान सहकर भी उसे यह जताकर ही जाता था कि वह जरूरी नहीं समझता था कि जो भी कुत्ता उस पर भौंके, वह पत्थर लेकर उसे मारने दौड़ पड़े।
राजन का वह रवैया दामोदर पर ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ता था कि वह और आग बगूला हो जाता था।
मौजूदा हालत यह थी कि दामोदर को यह बात अपने लिए बेइज्जती की लगती थी कि राजन उसके सामने से बेइज्जत हुए बिना गुजर जाए। ऐसी नौबत न आने पाए, इसलिए वह अपने कम-से-कम दो चमचे हमेशा अपने साथ रखता था।
उस रोज राजन दस बजे सो कर उठा।
उसका बाप कब का अपनी दुकान पर जा चुका था।
वह नित्यकर्म से निवृत्त हुआ और दरीबे के मोड़ की दुकान से पूरी खाकर आने की नीयत से घर से निकला।
उसने गली से बाहर कदम रखा तो उसने दामोदर को अपने एक साथी के साथ एक दुकान के चबूतरे पर बैठे पाया।
“अबे लमड़े यार।”—राजन अभी उनके पास पहुंचा भी नहीं था कि दामोदर ने फबती कसी—“अपना अमिताभ बच्चन आ रिया है।”
उसके साथी का नाम मदन था और राजन उसे भी खूब जानता था।
“खलीफा।”—मदन खी-खी करके हंसता हुआ बोला—“साथ में रेखा तो नहीं दिखाई दे री।”
“अबे, रेखा ने तो शादी कल्ली। अब कहां धरी है रेखा!”
“खलीफा, अपने अमिताभ के लिए बहुत रेखा धरी हैं। अपनी क्रिश्चियन रेखा को भूल रिए हो क्या?”
“हाय-हाय! बेचारा मजनूं हो रिया है उसकी खातिर।”
राजन ने उसकी फबतियों की तरफ ध्यान दिए बिना उनके सामने से गुजर जाना चाहा। सड़क पर उस वक्त रिक्शे बहुत थे जिनकी वजह से न चाहते हुए भी उसे उनके करीब से होकर गुजरना पड़ा। ज्यों ही वह दामोदर के आगे से गुजरा, दामोदर ने अपनी टांग सामने फैला दी।
उसकी टांग से उलझकर राजन गिरता-गिरता बचा।
उसने किसी प्रकार जब्त किया और बिना दामोदर की तरफ निगाह उठाए आगे बढ़ गया।
दामोदर शेर हो गया। उसने मदन के कन्धे पर हाथ मारा और उठकर खड़ा हो गया। दोनों लपककर राजन के दाएं बाएं पहुंचे और फौजियों की तरह पांव पटक-पटककर उसके साथ चलने लगे।
“लैफ्ट राइट।”—दामोदर बोलने लगा—“लैफ्ट राइट। लैफ्ट राइट...”
कई लोग हंसने लगे।
राजन ठिठक गया। क्रोध और अपमान से उसका चेहरा लाल भभूका हो गया।
“हाल्ट!”—दामोदर सड़क पर पांव पटककर रुकता हुआ बोला—“अटैन्शन!”
तभी राजन के दाएं हाथ का एक प्रचण्ड घूंसा दामोदर के पेट में पड़ा।
दामोदर का शरीर दोहरा हुआ और फिर सड़क पर ढेर हो गया।
राजन का आक्रमण उसके लिए बेहद अप्रत्याशित था। पहले हमेशा गाली गलौच और तकरार होती थी फिर लड़ाई-झगड़े की नौबत आती थी। तब तक बीच बचाव करने वाले लोग जमा हो जाते थे लेकिन उस रोज वैसा कुछ नहीं हुआ था।
राजन आंखों में कहर लिए मदन की तरफ घूमा।
अपने खलीफा को सड़क की धूल चाटता पाकर मदन वैसे ही भयभीत हुआ हुआ था। वह फौरन दो कदम पीछे हट गया।
“पीछे कहां हट रहा है, हरामजादे!”—राजन गुर्राया—“अब फारवर्ड मार्च क्यों नहीं करता?”
मदन और दो कदम पीछे हट गया और व्याकुल भाव से उसे देखने लगा। उसका हर एक्शन उसकी इस नीयत की चुगली कर रहा था कि राजन का उसकी तरफ पहला कदम बढ़ते ही उसने वहां से भाग खड़ा होना था।
राजन ने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू किया और फिर घूमकर आगे बढ़ गया।
दामोदर तब भी सड़क पर गिरा पड़ा था। ऐसा प्रचंड घूंसा उसने अपनी सारी जिन्दगी में कभी नहीं खाया था। राजन के उस एक ही अप्रत्याशित वार ने उसका मनोबल तोड़ दिया था। आज उसे यह पता लग गया था कि राजन जब चाहता उसे पीट सकता था।
फिर वह उठकर अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करने लगा। मदन ने आगे बढ़कर उसे सहारा देना चाहा तो उसने मदन का हाथ परे झटक दिया।
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