RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
“छोड़ूंगा नहीं, स्साले।”—दामोदर अपने से दूर जाते राजन की तरफ मुंह करके चिल्लाया—“काट के गेर दूंगा। तू समझ क्या रिया है अपने आपको?”—जब उसने राजन को ठिठकते न पाया तो वह और भी जोर से गरजा—“तन्दूर में लगा दूंगा साले तुझे भी और तेरी उस क्रिस्तान छोकरी कू भी। जानता नहीं किसके सामने फैल रिया है, स्साला! मेरा जरा पांव फिसल गया तो स्साले यह मति न समझ लियो कि दामोदर को चित्त कर लिया है तूने...”
राजन उसकी हर बकवास सुन रहा था। वह जानता था कि उसके वापिस घूम पड़ने भर से ही वह बकवास बन्द हो सकती थी लेकिन उसने रुकना मुनासिब न समझा। हो सकता था ताव खाकर वह ज्यादा मार कुटाई कर बैठता। तब पुलिस चौकी का मुंह भी देखना पड़ सकता था और मौजूदा हालात में पुलिस के फेर में तो वह किसी कीमत में भी नहीं पड़ना चाहता था।
‘अगर डेजी की तरफ एक उंगली भी उठाई इस मोटे भैंसे ने’—वह अपने आपसे बोला,—‘तो साले का खून कर दूंगा। अब तो मैं जरूर ही रिवॉल्वर अपने पास रखूंगा, फिर देखूंगा बहादुरी सालों की। रिवॉल्वर देखकर न पेशाब निकल जाए सबका तो कहना।’
यूं ही अपने आपको समझाता राजन आगे बढ़ता गया।
उस वक्त केवल पूरी खाने की नीयत से मोड़ तक जाते वक्त भी जवाहरात वाली शनील की थैली उसकी जेब में थी। अब वह इसलिए भी थैली अपने पास रखना चाहता था कि पुलिस अगर कभी उसके पीछे पड़ ही जाए तो वह थैली को कहीं भी फेंक सकता था। थैली उसके घर से बरामद होने पर तो वह फंसता ही फंसता।
गुरुवार : शाम
अपनी थैली के बारे में रंगीला भी कम फिक्रमन्द नहीं था। अपने घर में उसे ऐसी कोई जगह सूझ नहीं रही थी जहां कि उसकी बीवी का हाथ न पड़ता हो। और हर वक्त थैली जेब में रखे रहना खतरनाक नहीं तो असुविधाजनक तो था ही।
लेकिन जेब में थैली रखने का एक फायदा भी था।
गिरफ्तारी के डर से कभी उसे एकाएक खड़े पैर भागना पड़ गया तो कम-से-कम माल तो उसके साथ होगा।
उसने सलमान अली से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन मौलाना ने उसे डांटकर भगा दिया था और कहा था कि वह कभी भूल कर भी उसके घर में आने की कोशिश न करे।
रंगीला के बहुत जिद करने पर उसने उसे टेलीफोन नम्बर बता दिया था, बहुत ही सख्त जरूरत आ पड़ने पर जिस पर वह उससे सम्पर्क स्थापित कर सकता था। उसने रंगीला को यह नहीं बताया था कि वह टेलीफोन कहां था लेकिन रंगीला को शक था कि वह टेलीफोन उसी इमारत में कहीं था जिसमें कि वह रहता था।
फेथ डायमंड के टुकड़ों को तराशने का काम वह अभी भी कर रहा था, ऐसा मौलाना ने उसे आश्वासन दिया था।
इस बात से रंगीला खुश था कि मौलाना को कर्जन रोड पर हुए कत्ल की या उससे कौशल के किसी ताल्लुक की खबर नहीं थी। कौशल के बाकी बखेड़ों की खबर भी उसे नहीं थी।
पिछली रात कौशल के उसके पास न पहुंचने की वजह से रंगीला को और भी विश्वास हो गया था कि वह पायल के कत्ल के सिलसिले में पुलिस की हिरासत में था। और अगर पुलिस उसके पास से जवाहरात बरामद कर चुकी थी तो अब वे उससे यह जानने की भरपूर कोशिश कर रहे होंगे कि उस चोरी में उसके साथी कौन थे?
क्या कौशल अपने दोस्तों के विश्वास की हत्या करेगा?
रंगीला को यूं लग रहा था जैसे वह बारूद के एक ऐसे ढेर पर बैठा था जो किसी भी क्षण भक्क से उड़ सकता था।
अगर पुलिस कौशल से उसके साथियों का नाम उगलवा चुकी थी तो किसी भी क्षण उसकी तलाश में वह चान्दनी महल भी पहुंच सकती थी।
उसके लिए यह फैसला करना मुहाल हो रहा था कि वह कौशल पर भरोसा रखे या वहां से भाग खड़ा हो।
पूछे जाने पर वह साफ मुकर सकता था कि वह किसी कौशल को या किसी राजन को जानता ही नहीं था लेकिन जवाहरात! जवाहरात का क्या करे वह?
अजीब सांप-छछूंदर जैसी हालत हो गई थी उसकी। न उगलते बनता था और न निगलते।
दरीबे से पैदल चलता वह घर तक पहुंचा।
घर में उसने अपनी बीवी को कहीं जाने की तैयारी करते पाया।
वह कई क्षण अपलक उसे देखता रहा।
कितनी खूबसूरत थी उसकी बीवी! रंग-रोगन लगाकर तो एकदम फिल्म स्टार लगने लगती थी।
उसके दिल में अनुराग की भावना जागने लगी।
वह याद करने की कोशिश करने लगा कि कब से प्यार से कहीं लेकर नहीं गया था वह अपनी बीवी को।
मुद्दतें ही हो गई थीं दोनों को एक साथ घर से निकले हुए।
बीवी बेचारी भलीमानस मिल गई थी उसे जो कभी शिकायत नहीं करती थी।
उसने आगे बढ़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया।
कोमल पहले तो सकपकाई, फिर उसने मुस्कराते हुए अपना शरीर उसकी पकड़ में ढीला छोड़ दिया।
“कहां जाने की तैयारी हो रही है?”—उसने पूछा।
“सिनेमा।”—वह बोली—“तुम्हारी तो आजकल आधी रात से पहले लौटने की उम्मीद होती नहीं है। मैं अकेली बैठी बोर होती रहती हूं। बड़ी मुश्किल से गली की एक लड़की को पटाया है साथ सिनेमा चलने के लिए।”
“कौन-सी पिक्चर देखने जा रही हो?”
“बगावत।”
“कहां?”
“गोलचा पर।”
“कौन है उसमें?”
“धर्मेन्द्र। हेमा मालिनी।”
“नयी पिक्चर है?”
“हां, लेकिन उसे लगे हुई कई हफ्ते हो गए हैं।”
“अच्छी पिक्चर है?”
“कहते तो हैं कि अच्छी है। मैंने ट्रेलर देखा था। उससे तो अच्छी ही मालूम हो रही थी।”
“टिकट मिल जाएगा?”
“उम्मीद तो है!”
“चलो, आज मैं तुम्हारे साथ चलता हूं।”
“अच्छा! आज तो किस्मत खुल गई मेरी जो तुम मेरे साथ जा रहे हो।”
रंगीला ने और कसकर उसे अपने साथ लिपटा लिया।
“छोड़ो।”—कोमल बोली—“मैं जरा गली की लड़की को कह आऊं कि मैं उसके साथ नहीं जा रही हूं।”
“उसे भी साथ ले चलो।”
“अजी, झाड़ू मारो। वह वैसे ही बहुत नखरे झाड़ रही थी मेरे साथ चलने में। तुम मुझे सिनेमा दिखाने ले जाया करो तो मुझे क्यों साथ के लिए गलीवालियों के तरले करने पड़ा करें।”
“मुझे सिनेमा का तुम्हारे जितना शौक नहीं है न!”
“कभी-कभार तो ले जा ही सकते हो!”
“आगे से कभी-कभार जरूर ले जाया करूंगा।”
“अब छोड़ो।”
रंगीला ने उसे बन्धनमुक्त कर दिया।
वह घर से निकल पड़ी।
पिक्चर देखने वह श्रीकान्त के साथ जा रही थी। कई दिनों से रंगीला को आधी रात से पहले घर न लौटता पाकर आज उसने श्रीकान्त के साथ ईविनिंग शो देखने जाने का हौसला किया था लेकिन आज रंगीला शाम से पहले ही वापिस लौट आया था।
यूं ही थोड़ी दूर तक गली का चक्कर लगाकर वह वापिस लौट आई।
“मना कर आई सहेली को?”—रंगीला ने पूछा।
“हां।”
“अब चलें?”
“चलो।”
दोनों घर से निकल पड़े।
वहां से गोलचा बहुत करीब था। वे पैदल ही आगे बढ़े।
“एक बात है।”—रास्ते में रंगीला बोला।
“क्या?”—कोमल बोली।
“मुझे पिक्चर देखने का तुम्हारे जैसा शौक नहीं है। मैं बोर हो जाता हूं सिनेमा में बैठा-बैठा। अगर मुझे पिक्चर न जंची तो मैं बीच में उठकर चला आऊंगा।”
“मुझे अकेली छोड़कर?”
“क्या हर्ज है? पड़ोस में तो सिनेमा है। तुम पूरी पिक्चर देखकर आ जाना।”
“सिनेमा में अकेली औरत के पीछे लोग पड़ जाते हैं।”
“उसके पीछे पड़ जाते होंगे जो वहां पहुंचती अकेली होगी। तुम तो मेरे साथ जा रही हो।”
“लेकिन फिर भी...”
“अरे, जरूरी थोड़े ही है कि मैं तुम्हें अकेली छोड़ कर चला ही आऊं। हो सकता है फिल्म मुझे बहुत दिलचस्प लगे।”
“अच्छा।”
रंगीला के साथ सड़क पर चलती कोमल कनखियों से अपने दाएं-बाएं देख रही थी। श्रीकान्त उसे रास्ते में ही कहीं मिलने वाला था लेकिन अभी तक वह उसे दिखाई दिया नहीं था।
रंगीला नोट कर रहा था कि राह चलते लोग बहुत आंख भर-भरकर कोमल को देख रहे थे। लोगों की ऐसी निगाहबीनी का गुस्सा करने के स्थान पर वह बड़ा अभिमान महसूस कर रहा था कि जिस औरत पर हर कोई लार टपका रहा था, वह उसकी मिल्कियत थी।
तभी सड़क पर खड़े एक सूट-बूटधारी खूबसूरत युवक पर उसकी निगाह पड़ी। उस युवक ने उन दोनों की तरफ देखा और फिर हर किसी की तरह आंख भरकर कोमल को देखने के स्थान पर उसने उन दोनों की तरफ से पीठ फेर ली और लपक कर एक संकरी गली में घुस गया।
पुलिस के बारे में सोचते-सोचते जैसी मानसिक स्थिति में रंगीला पहुंचा हुआ था, उसमें उस युवक की वह हरकत उसे चौंकाए बिना न रह सकी। जब वे संकरी गली के दहाने पर पहुंचे तो उसने दूर तक उसके भीतर झांका।
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