RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
धूप को कुछ ज्यादा ही तीखी पाकर उसने धूप से परे हटने के स्थान पर अपना कोट उतारकर कुर्सी की पीठ पर टांग दिया।
उसका जी चाहा कि वह कूचा मीर आशिक जाए और मालूम करे कि कौशल कहीं वहीं पर तो नहीं था।
लेकिन वहां जाना उसे मुनासिब न लगा।
दारा के आदमी कौशल के घर की निगरानी करते हो सकते थे और वह खामखाह उनकी निगाहों में आ सकता था।
तभी कोट कुर्सी की पीठ से सरककर नीचे फर्श पर जा गिरा।
“लाओ, तुम्हारा कोट अलमारी में टांग दूं।”—कोमल बोली।
“नहीं, नहीं।”—रंगीला झपटकर कोट उठाता बोला—“कोई जरूरत नहीं।”
उसने कोट वापिस कुर्सी की पीठ पर टांग लिया।
बात मामूली थी लेकिन कोमल का माथा ठनके बिना न रह सका।
रंगीला को चीजें इधर उधर फेंकने की आदत थी। वह घर आकर कपड़े बदलता था तो जूते कहीं फेंकता था, जुराबें कहीं फेंकता था, कोट कहीं होता था तो पतलून कहीं होती थी। खुद वैसी बेतरतीबी फैलाने के बाद शिकायत वह हमेशा कोमल से करता था कि वह चीजों को ठीक से उठाकर भी नहीं रख सकती थी।
उसके कोट में ऐसी क्या चीज थी जो वह आज यूं लसूड़े की तरह उससे चिपका हुआ था?
मन ही मन हैरान होती कोमल रसोई में घुस गई।
कोई पौने घण्टे बाद काफी सारे काम करके जब वह रसोई से बाहर निकली तो उसने रंगीला को कुर्सी पर ही सोया पड़ा पाया। अखबार उसकी गोद में से उड़कर उससे दूर जा पड़ा था और उसका कोट कुर्सी की पीठ पर से सरककर फिर फर्श पर गिरा पड़ा था। उसकी नाक में से सीटी जैसी आवाज निकल रही थी और वह गहरी नींद सोया पड़ा मालूम होता था।
कोमल हिचकिचाती हुई उसके समीप पहुंची।
डरते-डरते उसने कोट को फर्श पर से उठाया।
क्या वह उसकी जेबें टटोले?
अगर बीच में ही रंगीला की नींद खुल गई और उसने चंद्रा को कोट की जेबें टटोलते देख लिया तो वह उस पर हाथ उठाए बिना नहीं रहने वाला था।
एकबारगी तो उसका जी चाहा कि वह कोट को वापिस फर्श पर डाल दे लेकिन उसकी स्वभावसुलभ उत्सुकता ने उसे ऐसा न करने दिया।
बड़े आतंकित भाव से जल्दी जल्दी उसने कोट की जेबें टटोलनी आरम्भ कीं।
कोट की बायीं ओर की भीतरी जेब में एक शनील की थैली मौजूद थी। बहुत हिम्मत करके उसने थैली को जेब से बाहर खींचा और उसे उंगलियों से टटोला।
भीतर कोई कंकडों की तरह खड़कती चीज थी।
उसने कोट को अपनी बांह पर डाल लिया और थैली का मुंह खोलकर भीतर झांका।
थैली के भीतर झिलमिल-झिलमिल हो रही थी।
सांस रोके उसने थैली को अपने बायें हाथ की हथेली पर उलटा।
उसकी हथेली पर विभिन्न आकार के बेशुमार हीरे मोती जगमगाने लगे।
कोमल के छक्के छूट गए।
उसकी आतंकित निगाह अभी भी सोये पड़े रंगीला के चेहरे पर पड़ी। ऐसे में अगर वह जाग गया तो वह जरूर उसे जान से ही मार डालेगा।
उसने तमाम जवाहरात वापिस थैली में डाल दिए।
एक हीरा उसके हाथ से फिसलकर नीचे फर्श पर गिरा। एक हल्की सी टन्न की आवाज हुई लेकिन कोमल को वह आवाज यूं लगी जैसे बम फटा हो। उसने जल्दी में हीरा फर्श पर से उठा कर थैली में डाला, थैली का मुंह बन्द किया, उसे वापिस कोट की भीतरी बायीं जेब में डाला और कोट को पूर्ववत् कुर्सी के पास फर्श पर फेंक दिया।
वह किचन में आ गई। उसने सिंक के नल से ढेर सारा पानी पिया और एक स्टूल पर बैठ गई। वह अपनी धौंकनी की तरह चलती सांस पर काबू पाने की कोशिश करने लगी।
उसका दिल गवाही दे रहा था कि शनील की उस थैली में लाखों रुपये का माल था।
लेकिन इतना माल रंगीला के पास आया कहां से?
नौकरी छूटने के बाद से क्या वह किसी चोरी या स्मगलिंग जैसे धन्धे में पड़ गया था?
क्या चक्कर था?
तभी एकाएक उसे याद आया कि सोमवार की रात को रंगीला घर नहीं आया था। सोमवार शाम का गया हुआ वह मंगलवार सुबह घर लौटा था।
और मंगलवार शाम के अखबार में सोमवार रात को हुई आसिफ अली रोड की एक धनाड्य महिला की हत्या की खबर छपी थी जिसके फ्लैट में से उसके कीमती रत्नजड़ित जेवर भी चुराए गए थे।
उसके शरीर ने एक जोर की झुरझुरी ली।
क्या उस औरत का खून उसके पति ने किया था?
क्या उसका पति चोर और खूनी था?
अब एकाएक उसे अपने पति से डर लगने लगा। जैसी उसकी उस वक्त हालत थी, उससे वह बहुत कुछ भांप सकता था। एक बार उसे यह मालूम हो जाने पर कि वह उसकी जेबें टटोल चुकी थी, उसकी खैर नहीं थी।
उसने थोड़ी देर के लिए घर से निकल जाने का फैसला किया।
अब वह अपने पति के सामने तभी पड़ेगी जब वह पूरी तरह से अपने आप पर काबू पा चुकी होगी। उस वक्त वह अक्सर सब्जी खरीदने के लिए घर से निकलती थी। रंगीला जागने पर आज भी उसे घर पर न पाता तो समझ जाता कि वह सब्जी लेने गई थी।
उसने टोकरी उठाई और घर से निकल पड़ी।
वह चौक में पहुंची।
वास्तव में वह वक्त उसकी और श्रीकान्त की एक संक्षिप्त सी मुलाकात का होता था। उस संक्षिप्त मुलाकात में ही वे आगे का कोई प्रोग्राम निर्धारित करते थे।
श्रीकान्त उसे वहीं खड़ी मिला जहां हमेशा मिलता था।
“शुक्र है अकेली आई हो।”—श्रीकान्त तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला—“शुक्र है आज साथ पहरेदार नहीं है।”
“मैं सब्जी खरीदने आई हूं।”—वह बोली—“अगर वह सब्जी खरीदने मेरा साथ आ सकता हो तो वह खुद ही मुझे सब्जी न ला दे।”
“छोड़ो, अब बोलो, क्या प्रोग्राम है?”
“अभी कोई प्रोग्राम मुमकिन नहीं। अभी वो घर पर है।”
“ओह!”
“लेकिन आजकल वह शाम को घर से जाता जरूर है और लौटता भी बड़ी देर से है।”
“कोमल, आज शाम को अगर तुम घर से निकल सको तो आज मैं तुम्हें अपने घर ले जा सकता हूं।”
“अपने घर?”
“हां! मेरे घर वाले सब एक शादी में जा रहे हैं जहां से वे आधी रात से पहले नहीं लौटने वाले। कोमल, ऐसा मौका फिर दोबारा हाथ नहीं आएगा।”
“अगर किसी ने देख लिया तो...”
“जब घर में कोई होगा ही नहीं तो देखेगा कौन?”
“अगर किसी ने मुझे तुम्हारे घर में घुसते देख लिया तो?”
“कोई नहीं देखेगा। अभी और थोड़ी देर बाद अन्धेरा हो जाएगा। आजकल हमारे अड़ोस पड़ोस वाले अन्धेरा होते ही घरों में घुस जाते हैं।”
“लेकिन...”
“लेकिन वेकिन छोड़ो।”—श्रीकान्त तनिक बेसब्रेपन से बोला—“अगर तुम सचमुच मुझसे प्यार करती हो तो आज मेरा कहना मानो। याद है मंगलवार रात को तुमने क्या कहा था? तुमने कहा था कि तुम हर तरह से मेरी बनना तो चाहती थीं लेकिन कोई मौका तो लगता! अब आज मौका लग रहा है तो तुम बात को टालने की कोशिश कर रही हो।”
“यह बात नहीं है।”
“तो फिर और क्या बात है?”
वह श्रीकान्त को जवाहरात के बारे में बताना चाहती थी और ऐसा सड़क पर खड़े होकर करना उसे जंच नहीं रहा था।
तो क्या वह श्रीकान्त के घर जाना कबूल कर ले?
हर्ज क्या था?
उसके मानसपटल पर अपने और श्रीकान्त के बड़े अश्लील दृश्य उभरे।
ऐसी तनहाई में उससे मिलकर श्रीकान्त अपनी मनमानी किए बिना नहीं मानने वाला था।
उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
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