RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
“कुछ भी नहीं। चुपचाप बैठो और मेला देखो। रंगीला तुम्हारा पति है। अगर वह अपराधी है भी तो तुम्हें यह थोड़े ही शोभा देता है कि तुम उसकी रिपोर्ट करने पुलिस के पास पहुंच जाओ। तुम कतई खामोश रहो, कोमल।”
“कितने ढेर सारे जवाहरात थे!”—वह बड़े अरमान से बोली—“एक सच्चे मोतियों की पूरी लड़ी तो ऐसी थी कि मेरा जी चाह रहा था कि मैं तभी उसे गले में पहन लूं। लाखों के जवाहरात होंगे वह।”
“तुम उनका खयाल कतई मन से निकाल दो।”—श्रीकान्त तीखे स्वर में बोला—“मैं नहीं चाहता कि रंगीला के साथ तुम भी किसी मुसीबत में फंस जाओ। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा, मेरी जान?”
वह प्रेम प्रदर्शन कोमल को बहुत अच्छा लगा। वह कसकर श्रीकान्त के साथ लिपट गई।
“मैं कुछ नहीं करूंगी।”—वह बोली।
“और किसी से जिक्र भी मत करना इस बात का।”
“नहीं करूंगी।”
“अब छोड़ो यह किस्सा। खामखाह वक्त बरबाद हो रहा है।”
दोनों फिर गुत्थमगुत्था होने लगे।
रंगीला और राजन प्लाजा के सामने मिले, जहां से हटकर वे कनाट प्लेस के सैन्ट्रल पार्क में जा बैठे।
“हफ्ता होने को आ रहा है।”—राजन बोला—“अभी तक तो किसी की तवज्जो हम लोगों की तरफ गई मालूम होती नहीं!”
“फिर भी अभी हमें और सावधान रहना होगा।”—रंगीला बोला—“पुलिस से भी और दारा के आदमियों से भी। खास तौर से उस जुम्मन के बच्चे से जिसने हमारी सूरतें देखी हुई हैं।”
“उससे सावधान रहना क्या मुश्किल है! वह तो अगर हमें ढूंढ़ रहा होगा तो जामा मस्जिद के इलाके में ही ढूंढ़ रहा होगा और वहां अब हम कदम तक नहीं रखते।”
“ठीक।”
“कौशल कहां होगा?”
“क्या पता! वैसे वह अच्छा ही कर रहा है जो हमारे पास नहीं फटक रहा।”
“तुमने गलत सोचा था कि वह पुलिस की हिरासत में था। आज शाम के अखबार में...”
“हां। मैंने पढ़ा है।”
“कल पिक्चर कैसे पहुंच गए?”
“यूं ही।”
“तुम्हारे साथ तुम्हारी बीवी थी न?”
“और कौन होगी?”
“रंगीला”—राजन हिचकिचाता हुआ बोला—“एक बात है। समझ में नहीं आ रहा है कि तुम्हें कहूं या न कहूं।”
“क्या बात है?”—रंगीला उत्सुक भाव से बोला।
“तुम मेरे दोस्त हो। इसलिए बात को तुमसे छुपाकर रखने को भी जी नहीं मान रहा।”
“पहेलियां बुझा रहो हो, यार। कल मेरे सिनेमा जाने का ताल्लुक रखती कोई बात है क्या?”
“है तो ऐसी ही बात।”
“कोई कोमल की बात तो नहीं?”
“कोमल की ही बात है।”
“तो बता भी चुको।”
“यार, तुम खफा तो नहीं हो जाओगे?”
“ओफ्फोह! तुम तो पहेलियां बुझा रहे हो।”
“तुम... तुम कल पिक्चर से जल्दी उठकर चले गए थे न?”
“हां। मेरा मन नहीं लगा था पिक्चर में। तुम अपनी बात कहो।”
“तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही इण्टरवल हो गया था तो तुम्हारी बीवी ने उठकर बाल्कनी में सब तरफ निगाह दौड़ाई थी और फिर मेरे पीछे कहीं किसी के लिए हाथ हिलाया था और वापिस अपनी सीट पर बैठ गई थी।”
“फिर?”—रंगीला बड़े बेसब्रेपन से बोला।
“फिर एक युवक पीछे से आया और बत्तियां गुल होने के जरा बाद तुम्हारी खाली की हुई सीट पर कोमल के बगल में बैठ गया। मुझे ऐसा भी लगा था जैसे वे दोनों युवक के वहां पहुंचते ही खसुर-पुसर करने लगे थे।”
“तुम्हारे खयाल से उसी युवक को इशारा करके कोमल ने अपने पास बुलाया था?”
“मुझे नहीं पता लेकिन उस इशारे के बाद पहुंचा उसके पास वही युवक था।”
“फिर भी तुम्हारा खयाल क्या है?”
“मेरे खयाल से”—राजन हिचकिचाया—“कोमल ने उसी युवक को हाथ हिलाकर बुलाया था। पिक्चर खत्म होने के बाद भी वे दोनों हाल से इकट्ठे ही विदा हुए थे।”
“देखने में कैसा था वो?”
“सूट-बूटधारी खूबसूरत युवक था। कद दरम्याना था, बाल झबराले थे, दुबला नहीं था लेकिन मोटा भी नहीं था, दाढ़ी-मूंछ साफ थीं...”
“हूं।”—रंगीला एकाएक बेहद गम्भीर हो गया—“तो वह खरगोश मार्का लौंडा इत्तफाकिया ही मुझे दो बार अपने आसपास नहीं दिखाई दिया था!”
“तुमने भी देखा था उसे?”
“हाल में नहीं देखा था लेकिन सिनेमा के रास्ते में और सिनेमा के बाहर दो बार देखा था। मैंने तो उसे कोई राहगीर समझा था लेकिन वह तो पट्ठा मेरी बीवी का यार मालूम होता है।”
वैसे यह उसके लिए संसार का आठवां आश्चर्य था कि उसकी गुड़िया जैसी बीवी यार पालने जैसा हौसला कर सकती थी, वह यारबाश किस्म की औरत हो सकती थी।
“तुम जानते हो उस लौंडे को?”
“जान जाऊंगा।”—रंगीला विषभरे स्वर में बोला—“आखिर साला रहता तो हमारे ही इलाके में कहीं होगा!”
“मैं तो तुम्हें बात बताते डर रहा था लेकिन इतनी बड़ी बात सुनकर तुमने कोई खास ताव नहीं खाया, उस्ताद।”
“हमारे दूसरे बखेड़ों की वजह से आजकल ताव खाने का माहौल नहीं है। कोई और दिन होता तो मैंने अभी तक घर जाकर अपनी बीवी की चमड़ी उधेड़ दी होती। लेकिन इस वक्त बीवी की बेवफाई से ज्यादा विकट समस्याओं से दो-चार होना वक्त की जरूरत बना हुआ है।”
“यानी कि इस मामले में खामोश रहोगे?”
“खामोश तो रहूंगा लेकिन हाथ-पर-हाथ धरकर बैठा नहीं रहूंगा। बात की तह तक तो मैं जरूर पहुंचूंगा। उस लौंडे का भी पता मैं जरूर लगाऊंगा। इस काम के लिए मैं अपनी बीवी की निगरानी करूंगा और उसे उस लौंडे के साथ रंगे-हाथों पकड़ने की कोशिश करूंगा।”
“उसके बाद क्या करोगे?”
“यह अभी कहना मुहाल है।”—रंगीला दांत किटकिटाता हुआ बोला—“यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा मैं क्या करूंगा लेकिन अगर उनकी आशनाई हर हद लांघ चुकी है तो फिर जो कुछ मैं करूंगा, बहुत बुरा करूंगा।”
“रंगीला के वर्तमान मूड को देखते हुए राजन ने खामोश रहना ही मुनासिब समझा।
शनिवार : सुबह
श्रीकान्त चान्दनी चौक की एक केमिस्ट शॉप पर सेल्समैन की नौकरी करता था। अगले रोज शॉप पर पहुंचने के कोई आधे घण्टे बाद ही वह वहां से निकला और मोती सिनेमा के कम्पाउण्ड में पहुंचा। वहां लगे पब्लिक टेलीफोन से उसने 100 नंबर पर टेलीफोन किया।
“पुलिस कन्ट्रोल रूम।”—दूसरी ओर से तुरन्त उतर मिला।
श्रीकान्त ने जल्दी से कॉयन बॉक्स में सिक्का डाला और बोला—“क्या आप बता सकते हैं कि सोमवार रात को आसिफ अली रोड पर जो चोरी और कत्ल की घटना हुई थी, उसकी तफ्तीश का इन्चार्ज कौन है?”
“आप कौन बोल रहे हैं?”
“यह मैं इन्चार्ज को ही बताऊंगा।”
“आप क्या कहना चाहते हैं इन्चार्ज से?”
“कोई ऐसी बात जो कत्ल की तफ्तीश में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।”
“कौन-सी बात?”
“बार-बार एक ही सवाल करने का कोई फायदा नहीं। मैंने जो बताना है, सही आदमी को बताना है।”
“होल्ड कीजिए।”
“ठीक है।”
श्रीकान्त रिसीवर कान से लगाये खड़ा रहा।
“हल्लो।”—थोड़ी देर बाद उसके कान में फिर आवाज पड़ी।
“हां।”—वह बोला।
“आप दरियागंज पुलिस स्टेशन जाकर इंस्पेक्टर चतुर्वेदी से बात कर सकते हैं।”
“कामिनी देवी के कत्ल और उसके फ्लैट पर हुई चोरी की तफ्तीश वे कर रहे हैं?”
“हां।”
“शुक्रिया।”
श्रीकान्त ने लाइन काट दी।
उसने दरियागंज पुलिस स्टेशन जाने का कोई उपक्रम न किया।
उसने डायरेक्ट्री इन्कवायरी का नम्बर डायल करके दरियागंज पुलिस स्टेशन का नम्बर मालूम किया। फिर उस नम्बर पर फोन करके उसने इंस्पेक्टर चतुर्वेदी से बात करने की इच्छा व्यक्त की।
“आप कौन बोल रहे हैं?”—वहां से भी पूछा गया।
“मैं वह शख्स बोल रहा हूं”—श्रीकान्त बड़े धीरज के साथ बोला—“जो कामिनी देवी के कत्ल के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी रखता है।”
“कैसी जानकारी?”
“यह मैं इंस्पेक्टर चतुर्वेदी को ही बताऊंगा और अगर मुझे लटकाने की कोशिश करोगे तो मैं लाइन काट दूंगा।”
“होल्ड करो।”
एक मिनट बाद इंस्पेक्टर चतुर्वेदी लाइन पर आया।
“मैं इंस्पेक्टर चतुर्वेदी बोल रहा हूं।”—श्रीकान्त के कान में एक अधिकारपूर्ण आवाज पड़ी।
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